-जो आता है, दागदार बनकर निकलता है
भोपाल। अरबों रुपए की संपत्ति वाले मप्र वक्फ बोर्ड के साथ अब यह मनहूसियत जुड़ती जा रही है कि यहां जो भी अफसर आता है, वह दागदार बनकर ही बाहर निकलता है। अफसरों की अफसरों से आपसी दुश्मनी और सियासी ओहदेदारों की मंशाओं ने इन हालात को हवा दे रखी है। अब आलम यह है कि यहां कोई भी अधिकारी अपनी सेवाएं देने को राजी नहीं है। हाल ही में यहां सेवाएं देकर निवृत्त हुए एक प्रशासनिक अधिकारी के साथ बने मामलात ने इस बात को और गहरा कर दिया है।

जानकारी के मुताबिक वक्फ अधिनियम के मुताबिक सीइओ के पद पर डिप्टी कलेक्टर स्तर के अधिकारी की नियुक्ति का प्रावधान है। लेकिन पिछले कई सालों में इस योग्यता वाले कम ही अधिकारी यहां नियुक्त हो सके हैं। लंबे समय से अधिकारियों के साथ बनने वाले हालात को हाल ही में निवृत्त हुए प्रभारी सीइओ जमील खान के साथ भी चस्पा कर दिए गए हैं। मुस्लिम अफसरों की कमी की वजह से मुश्किल से प्रभार संभालने वाले जमील खान को लेकर अब बोर्ड के कई किस्से जुड़ गए हैं।

कई अफसर हुए कार्यवाही का शिकार

अलग-अलग समय पर बोर्ड में पदस्थ रहे सीइओ डॉ. एसएमएच जैदी, दाऊद खान, एसयू सैयद, एमए फारुखी, डॉ. युनूस खान आदि भी अफसरों की आपसी तनातनी और सियासी खींचतान का शिकार हो चुके हैं। इन अफसरों को भी विभागीय जांचों से लेकर लोकायुक्त और ईओडब्ल्यु जैसे मामलों से जूझना पड़ा है। इनमें से कुछ तो अब तक बोर्ड कार्यकाल की कार्यवाहियों का शिकार हैं और कुछ अपनी सेवानिवृत्ति के बाद भी मुश्किल से बाहर नहीं निकल पाए हैं।

कई उपलब्धियां, फिर भी मिली सजा

मप्र वक्फ बोर्ड में आखिरी बार सीइओ के रूप में पदस्थ रहे डॉ. युनूस खान ने अपने कार्यकाल में कई बड़े कामों को अंजाम दिया है। इस दौरान उन्होंने मुस्लिम यूनिवर्सिटी बनाने के लिए जकात फाउंडेशन ऑफ इंडिया के साथ एमओयू किया और प्रदेश के लिए शिक्षा की बड़ी तेहरीर खड़ी की। उनके ही कार्यकाल में करीब 50 मस्जिदें बनने के रास्ते आसान हुए। इसके अलावा 36/41 में नई वक्फ संपत्तियों को बोर्ड के रिकार्ड में उन्होंने जुड़वाया। डॉ. युनूस के कार्यकाल में बोर्ड की मौजूदा आमदनी 84 लाख से बढ़कर 1.64 करोड़ रुपए हुई है।

उनके कार्यकाल में वक्फ संपत्तियों के विवादित मामलों के करीब 2 हजार प्रकरण भी निपटाए गए। इसी तरह सेंट्रल वक्फ कौंसिल से मिलने वाली ग्रांट के करीब 25 प्रकरण भी तैयार हुए थे। प्रदेश में बोर्ड की गतिविधियों को व्यवस्थित संचालन के लिए बनाई जाने वाली कमेटियों का आंकड़ा भी डॉ. खान के कार्यकाल में सबसे अधिक रहा। साथ ही दफ्तर की व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने के लिए यहां जीपीएस सिस्टम भी उनके कार्यकाल में ही लगाया गया था। बावजूद सियासी और प्रशासनिक कूटरचनाओं के बीच वे ऐसे पिसे कि उनके ऊपर की गई कार्यवाही अब तक के बोर्ड रिकार्ड में सबसे नायाब कही जाने लगी है। उनके कामों को दरकिनार कर उनपर आपराधिक प्रकरण लाद दिया जाना यहां आने वाले दूसरे अधिकारियों का रास्ता रोकने का कारण बन गया है।

सियासी चाहतें बनती हैं मुश्किल
सूत्रों का कहना है कि मप्र वक्फ बोर्ड में पदस्थ होने वाले सियासी ओहदेदार अपने राजनीतिक आकाओं और अपने करीबियों को फायदा पहुंचाने के लिए अक्सर वक्फ संपत्तियों की हेरफेर करते रहे हैं। इस दौरान नियमों की अनदेखी की तलवार अक्सर बोर्ड में पदस्थ अधिकारियों पर गिरती है। ओहदेदार अपने कार्यकाल के बाद बोर्ड से रुख्सत हो जाते हैं, लेकिन नियमों से बाहर जाकर काम करने वाले अफसर अपनी कलम इस्तेमाल होने का नुकसान बाद में भी उठाने पर मजबूर हो जाते हैं।

अब नए सीइओ की तरफ नजर
जानकारी के मुताबिक मप्र वक्फ बोर्ड में नए सीइओ के रूप में शहडोल के एक इंजीनियर शरफुद्दीन को नियुक्त किया गया है। इस नई नियुक्ति को विभागीय मंत्री रामखेलावन पटेल की खास पसंद बताया जा रहा है। लेकिन बोर्ड में पिछले सीइओ के साथ बने हालात के चलते इस नए अधिकारी के भविष्य को लेकर भी लोगों में कानाफूसी का दौर शुरू हो गया है।

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