रोम में रहने के दौरान बारबरा ने जर्मन बंदियों को अपने साथ मिलाकर एक टीम बनाई. जिसका इस्तेेमाल उन्होंने काउंटरइंटेलिजेंस की तौर पर करना शुरू कर दिया. इस टीम के लिए जर्मन बंदियों को चुनने का कारण यह था कि इन बंदियों का इस्तेमाल करके आसानी से जर्मन सेना में सेंध लगाई जा सकती थी. उन्होंेने साउरक्राउत नाम का ऑपरेशन शुरू किया.
महिला जासूसों की अपनी इस श्रृंखला में हमने इसके पहले ऐसी कई जासूसों के बारे में आप तक जानकारी पहुंचाई जिन्होंने अपनी बहादुरी का जलवा दुश्मनों के समक्ष रणश्रेत्र में किया था. इस अंक में हम आपका परिचय एक ऐसी महिला से कराएंगे जिसने नाजियों के खिलाफ मनोवैज्ञानिक जंग की कमान संभाली थी और उन्हें पटकनी दी थी. उनका नाम था बारबरा लावर्स. बारबरा ने इटली मे रहते हुए अमेरिकी मोरेल ऑपरेशन की कमान संभाली थी. मोरेल ऑपरेशन ऐसे ऑपरेशन होते थे जिनमें शत्रु को सीधे युद्ध में परास्त करने की बजाए उस पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाया जाता था. बारबरा ने इस काम को बखूबी अंजाम दिया था.
बारबरा का जन्म 22 अगस्त 1914 को ब्रानो में हुआ था जो उस समय ऑस्ट्रिया-हंगरी राजतंत्र का हिस्सा था. बड़ी होकर वे एक वकील बनीं और द्वितीय विश्र्व युद्ध से ठीक पहले उन्होंने पत्रकारिता के पेशे को अपना लिया था. बारबरा शादी के बाद बेल्जियन कांगो चली गईं और जैसे-जैसे विश्व युद्ध की विभीषिका बढ़ती गई तो दंपत्ति ने अमेरिका की तरफ रुख किया. पर्ल हार्बर पर हुई बमबारी के बाद बारबरा के पति ने सेना ज्वाइन कर ली. वहीं बारबरा ने चेक दूतावास में नौकरी कर ली. लेकिन जल्दी ही उन्होंने भी सेना की खुफिया शाखा ज्वाइन कर ली और अपनी सेवाएं देने के लिए रोम चली गईं. रोम में बारबरा ने नाजी सैनिकों के छक्के छुड़ाने के लिए मनोवैज्ञानिक चालें चलना शुरू कीं.
रोम में रहने के दौरान बारबरा ने जर्मन बंदियों को अपने साथ मिलाकर एक टीम बनाई. जिसका इस्तेेमाल उन्होंने काउंटरइंटेलिजेंस की तौर पर करना शुरू कर दिया. इस टीम के लिए जर्मन बंदियों को चुनने का कारण यह था कि इन बंदियों का इस्तेमाल करके आसानी से जर्मन सेना में सेंध लगाई जा सकती थी. उन्होंेने साउरक्राउत नाम का ऑपरेशन शुरू किया. उन्होंने इटली के उन सभी इलाकों में हिटलर के खिलाफ प्रोपेगैंडा फैलाना शुरू किया, जिन इलाकों पर मित्र राष्ट्रों का कब्जा हो गया था. लोगों वहां के लोगों में हिटलर के खिलाफ कई तरह की गलत जानकारियां देना शुरू कर दिया. जिससे लोगों में हिटलर के खिलाफ अधिक डर बैठ जाए और वो उसे और अधिक नापसंद करना शुरू कर दें.
बारबरा ने वहां पर लीग ऑफ लोनली वॉर वुमेन नाम की संस्थां भी बनाई थी. यह एक छद्म संस्था थी जिसका निर्माण नाजी सैनिकों को हतोत्साहित करने के लिए किया गया था. इसके जरिये बारबरा नाजी सैनिकों की पत्नियों की तरफ से छद्म चिटि्ठयां लिखवाया करती थीं. इन चिटि्ठयों में यह लिखा होता था कि नाजी छुट्टी लेकर घर जाने के लिए अपने अधिकारियों से झगड़ने लगे. अधिकारियों के लिए इस स्थिति से निपटना मुश्किल होने लगा. सबसे मजेदार बात तो यह हुई कि उनके इस ऑपरेशन की वजह से एक बार वॉशिंगटन पोस्ट अखबार भी बेवकूफ बन गया था. अखबार को यह खबर लगी कि कई जर्मन सैनिक अपने घर गए हुए हैं तो उसने यह खबर छाप दी कि जर्मन सैनिक अपनी महिला मित्रों की तलाश में इटली के फ्रंट से वापस अपने देश गए हुए हैं. ये सैनिक अपने रिश्तेे बचाने के लिए घर गए हुए हैं क्योकि उनकी पत्नियां उनसे बेवफाई कर रही हैं. दरअसल यह खबर अखबार को इटली में ही एक सर्कुलर से मिली थी जिसे जर्मन सैनिकों के लिए लिखा गया था. लेकिन वास्तविकता में वह सर्कुलर तो बारबरा ने लिखा था और जर्मन बंदियों से बंटवाया था. वॉशिंगटन पोस्ट अखबार तक का चक्कर में पड़ जाना बारबरा के इस ऑपरेशन की कामयाबी को बयान करता है.
बारबरा ने एक और ऑपरेशन को कामयाब बनाया था जिसके लिए उन्हें ब्रान्ज क्रास दिया गया था. इस ऑपरेशन के दौरान बारबरा ने सैनिकों की एक टुकड़ी के दिमाग में ऐसी विरोधी बातें भरी थीं कि इन सैनिकों ने जर्मन सेना का साथ देने से इंकार कर दिया था और उन्हें पीछे हटने पर मजबूर किया था.
जब द्वितीय विश्र्व युद्ध की समाप्ति हो गई तो वे वापस अमेरिका लौट गईं. इसके बाद भी वे कई तरह के सामाजिक कार्यों से जुड़ी रहीं. सामाजिक कार्यों के प्रति उनके मन में रुझान पूरी जिंदगी रहा. साल 2009 में उनकी मौत हो गई. दरअसल बारबरा ने समाज से कुरीतियों को खत्म करने को भी अपनी जिम्मेदारी माना और कई काम किए.