साथियों प्रोफेसर रणजित परदेशी मेरे अर्धशतक से भी अधिक समय के मित्र रहे हैं ! प्रोफेसर रणजित परदेशी डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने जिस जगह पर (अक्तूबर 1935 ) “मै हिंदू धर्म में पैदा जरुर हुआ हूँ ! लेकिन मृत्यु के पहले मै इस घोर विषमताओं से भरे हुए हिंदुधर्म से मुक्ति पाऊंगा !” ऐसी ऐतिहासिक घोषणा की थी ! उस नासिक जिले के येवला नामके तालुका की जगह, कॉलेज में राजनीतिक शास्त्र के, रणजित शिक्षक रहे हैं ! जो कॉलेज की पढाने की ड्यूटी के बाद दर्जनों बच्चों को लेकर, येवला जैसे कस्बे में राष्ट्र सेवा दल की तीन – तीन शाखाओं को चलाने के अलावा, ‘एक गांव एक कुंआ’ जैसे दलितों के पिने के पानी का आंदोलन, तथा मराठवाडा विश्वविद्यालय के नामांतर आंदोलन, मतलब राष्ट्र सेवा दल के पंचसूत्री के अनुसार जाती – धर्मनिरपेक्ष समतामूलक समाज की रचना के लिए जद्दोजहद करते थे !
और सबसे महत्वपूर्ण बात उन्होंने अपने विद्यार्थियों में से मोहन गुंजाल , विक्रम गायकवाड जैसे किसानोंसे लेकर दलित आदिवासीयो के बीच में काम करने वाले कार्यकर्ताओं का निर्माण किया है ! सत्तर से अस्सी के दशक में येवला राष्ट्र सेवा दल शायद, भारत के सबसे सक्रिय केंद्र रहा है ! उस दौरान मैं भी येवला में रणजीत परदेशी के कम्यून में रहा हूँ ! और यह सब गतिविधियों को अपनी आंखों से देखा हूँ !
शायद 1977 की बात है, ‘एक गांव एक कुंआ’ का आंदोलन के वजह से, येवला के करीबी एक गांव में दलित समुदाय को पूरी तरह से बहिष्कार करने का वाकया हुआ था ! और रणजीत ने कहा कि सुरेश पुलिस ने सज्ञान लेकर कड़ी कार्रवाई की है ! तो पुलिस स्टेशन पर चलना है !
तो मै जब येवला के पुलिस स्टेशन के परिसर में पहुंचा ! तो बहुत ही मैले – कुचैले कपड़े पहने हुए, हरतरहसे गरीब दिखाई देने वाले लोग, हमारे सामने रो- रोकर गिड़गिड़ाते हुए, बोलने लगे की “हमारी गलती हो गई ! हम आप लोग जो भी कहेंगे, वह सब कुछ करेंगे ! लेकिन हमें पुलिस की कार्रवाई से बचाइए !” मुझे पहली नजर में उन सभी लोगों को देखते हुए, लगा कि पुलिस दलितों की एट्रॉसिटि के केस में, शायद दलितों को ही गिरफ्तार कर के ले आई है ! लेकिन रणजीत ने कहा कि, “नही यह लोग गवली, ( गाय-भैंस चराने वाले ) जाती के है ! और ‘एक गांव एक कुंआ’ आंदोलन के बाद ! इन्होंने गांव के दलितों को बहिष्कार किया है ! यहाँ तक कि, उन्हें उस कुएं से पानी लेने से लेकर, गांव के दुकान से सामान लेने की मनाही से ! लेकर गांव में से आने-जाने वाले मुख्य रास्ते से चलने की मनाही तक कर दी है ! और इसलिए पुलिस इन्हें गिरफ्तार कर के ले आई है ! ”
लेकिन हम लोग पुलिस स्टेशन के परिसर में थे तो ! वह हमारे पाव पडते हुए गिड़गिड़ा कर कहने लगे ! ” कि हमारी तरफ से गलती हुई है ! और अभी हम आप लोगों के कहने के अनुसार जो भी कहेंगे वह करेंगे !”
तो मैंने रणजित को कहा,” कि हम गांव में चलते हैं ! और वास्तव में स्थिति का अध्ययन करने के बाद, दलित तथा गवली जाती के लोगों की पहले अलग – अलग, और बाद में संयुक्त बैठक करेंगे ! और बाद में पुलिस के पास आकर कुछ बिच का रास्ता निकालने की कोशिश करेंगे !”
तो हम लोग साइकिल से पांच छह किलोमीटर दूर, उस गांव में पहुंचने के बाद देखा कि, गवलीयो स्थिति दलितों के जैसी पारिवारिक जीवन जीने वाले दिखाई दे रहे थी ! और दलितों के लगभग सभी के मकान पक्के, और आर्थिक स्थिति गवलीयो से बेहतर दिखाई दे रही थी ! मेरे लिए यह एक नया अनुभव था ! विस्तार से जानकारी प्राप्त करने के बाद पाया ! कि उस गांव में, लगभग हर दलित के पास, जमीन होने की वजह से, वह गवलीयो की तुलना में बेहतर स्थिति में रह रहे थे ! और गवलीयो के पास सिर्फ पशु चराने के अलावा, और कोई भी व्यवसाय नहीं होने की वजह से ! वह आर्थिक रूप से दलितों की तुलना में अधिक खस्ताहाल जीवन जी रहे थे !
तो हम लोग उस गांव से वापस लौटने के बाद, पुलिस स्टेशन के इनचार्ज से मिलकर यह सब परिस्थितियों से अवगत कराने की कोशिश करते हुए, कहा कि “सामाजिक सवाल सिर्फ पुलिस या प्रशासन के भरोसे से हल नहीं होंगे ! क्योंकि गांव के लोगों को सिर्फ कानून के दबाव में रखते हुए, ऐसे सुधार करने से गांव की शांति और सद्भावना कायम नहीं रह सकती ! और आप हो या हमारे जैसे एक्टिविस्ट लोग भी बारह महिना गांव में नहीं रहने की वजह से ! ( हमारे देश में साडेछहलाख गांव है ! ) गांव के लोगों को समझाने – बुझाने के बाद ही, इस तरह की समस्या का हल होता है ! और यहां तो सिर्फ आप लोग गवलीयो को उठाकर ले आए ! और आपके पुलिस स्टेशन का माहौल देखकर वह घबराहट में कुछ भी करने को तैयार हो गए हैं ! अब इसी परिस्थिति में हम आप गांव में चलकर गांव के सभी गवलीयो से सामुहिक रुप से संकल्प लेने का काम करते हैं ! और दोबारा बहिष्कार करने की घटनाओं को नही होने की कसम, गांववासियों से लेकर समस्या का समाधान करने के लिए चलना चाहिए !
पुलिस इनचार्ज राठोड नांम का, शायद बंजारा जाती का होने की वजह से, वह अड गया ! और कहने लगा कि ” इन्हें तो सिर्फ पुलिस का डंडा ही समझ में आता है !” मैंने कहा कि “यह गांव के गरीब लोगों को इस तरह गुंडों के जैसे उपायों से यह समस्या हल नहीं होगी ! आपसी समझ और सद्भावना से ही यह समस्या हल होगी !” तो इनचार्ज के अंदर की वर्दी जाग गई ! और उसने कहा कि, “आप सरकारी कार्यप्रणाली में हस्तक्षेप कर रहे हो ! इस जुर्म में, मै आपको अंदर कर सकता हूँ ! “तो मैंने कहा कि ऑफिसर यह क्रिमिनल मामला नहीं है ! इससे गांव में हमेशा के लिए दुष्मनी का माहौल बन जायेगा जबकि गवलीयो ने अपनी गलतियों को स्वीकार कर लिया है ! और वह अभिवचन भी दे रहे हैं ! कि दोबारा हमारे गांव में ऐसा नहीं होगा ! तो अब इसे ज्यादा खिचना ठीक नहीं होगा ! लेकिन इनचार्जने इसे अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया !
और मुझे सचमुच ही हवालात में बंद कर दिया ! रणजीत तथा अन्य साथियों ने इनचार्जको बताया, कि “वर्तमान महाराष्ट्र के गृहराज्य मंत्री मेरे मित्र है ! और केंद्र के गृहमंत्री भी !” ( महाराष्ट्र में गृहमंत्री भाई वैद्य थे ! और केंद्र में चौधरी चरण सिंह थे ! ) शायद यह सुनकर इनचार्ज के होश ठिकाने पर आए ! और वह गवलीयो को छोड़कर हमारे साथ उस गांव में आकर लोगों को संबोधित करने के लिए आए ! और दलित तथा गवलीयो ने मिलकर ऐलान किया कि” हमारे गांव में कोई उंचनिच का व्यवहार नहीं होगा ! और हम सभी मिलजुल कर रहेंगे !” इस तरह इस ‘एक गांव एक कुएं’ की समस्या का हल निकालने में कामयाबी हासिल हुई !
लेकिन हमारे हिंदुओं की महान स्मृति मनुस्मृति के वजह से, दलितों की आर्थिक स्थिति भले ही बेहतर थी ! लेकिन सामाजिक रूप से वह शुद्र होने की वजह से ! उन्हें गांव के सामुदायिक कुएं पर पानी लेने की मनाही थी ! जो उस समय महाराष्ट्र में राष्ट्र सेवा दल के वरिष्ठ साथी डॉ. बाबा आढाव के नेतृत्व मे ‘एक गांव एक कुंआ’ के आंदोलन की वजह से, कई गांवों में सार्वजनिक कुंऐ दलितों के लिए मुक्त हुए ! लेकिन ठीक से फॉलो अप नही होने की वजह से ! कुछ- कुछ गांवों में इस तरह की परिस्थितियों का सामना करना पड़ा है !
तो मैंने रणजीत को कहा, “कि छत्रपति शिवाजी महाराज जिस तरह से एक- एक किले को जितते गए ! वैसे ही हमारे डॉ. बाबा आढाव भी एक गांव एक कुंआ के आंदोलन को कर रहे हैं ! लेकिन आंदोलन के समय जो माहौल रहता है ! उसके दबाव में गांव के सभी लोगों को, डर के मारे उसमे तात्कालिक रूप से शामिल तो होना पड़ता है ! लेकिन जैसे ही आंदोलन के लोगों की पिठ होती है ! वैसे ही उनके अंदर सदियों से बैठि हुईं, उंचनिच की भावनाओं का, हिलोरें मारना शुरू हो जाता है ! और बाद में इस तरह की परिस्थितियों का निर्माण होता है !
सामाजिक परिवर्तन सिर्फ कानून बनाने से, और पुलिस प्रशासन के दबाव से करोगे तो ! जैसे ही कानून व्यवस्था, और प्रशासन का जोर कम होगा ! वैसे ही लोग अपनी हजारों वर्ष पुरानी मानसिकता के वजह से ऐसा व्यवहार करेंगे ! इसलिए सामाजिक सवाल सिर्फ कानून व्यवस्था और प्रशासन के मदद से हल नहीं होंगे ! उसके लिए लोगों को प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है ! और जबतक लोग जो सदियों से एकसाथ रहते हैं ! उनके भीतर शत्रुता का भाव पैदा होने से, उनका एकसाथ रहना भी काफी तनावग्रस्त होने से गांव की आपसी शांति बिगड़ सकती है ! और हम एक्टिविस्ट लोग शिवाजी महाराज के जैसे ! अपने दल – बल के साथ तात्कालिक आंदोलन तो कर सकते हैं ! लेकिन अगर उस आंदोलन का फालोअप नही किया, तो ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है !
अन्यथा हर गांव में एक अलग – अलग देश बनने की संभावना है ! और मनमाड मे डॉ. बाबा आढाव जब इसी घटना के आसपास आए थे ! तो रणजीत मुझे विशेष रूप से उनके साथ बातचीत करने के लिए लेकर गया था ! और डॉ. बाबा आढाव मनमाड के डॉ. देशमुख के घर पर ठहरे हुए थे ! हम लोग वहां पहुंच कर इस गाँव के अनुभव को लेकर बोलने की कोशिश की ! तो बाबा ने मेरी तथाकथित उच्च जाति का उल्लेख करते हुए कहा कि (अचरज की बात डॉ. बाबा आढाव का भी जन्म उसी जाती मे हुआ है !) “तुम तो ऐसा ही बोलोगे ! ” मैंने कहा कि सवाल मै या आप, कौन सी जाती के है ? यह नहीं है ! सवाल ‘एक गांव एक कुंआ’ के आंदोलन की समीक्षा करने का है ! और उसमें हमसे जो खामियां रह जा रही है, उन्हे सुधारने की बात है ! लेकिन जिन्हें डॉ. बाबा आढाव का परिचय जिन लोगों को है ! उन्हें सभी को पता है कि डॉ. बाबा आढाव आज महाराष्ट्र के ज्योतिबा फुले माने जाते हैं ! लेकिन ज्योतिबा के मन में इस तरह की भावना होती तो, वह भिड़ेवाडा में अपने जीवन की पहली पाठशाला स्री – शुद्रो के लिए कभी भी शुरू नहीं कर सकते थे !
और लोकमान्य तिलक ने केसरी अखबार में, ज्योतिबा की पत्रिका का विज्ञापन तक पैसे देने के बावजूद छापने के लिए इन्कार कर दिया था ! लेकिन उसके बावजूद, ज्योतिबा ने लोकमान्य तिलक के संकट के समय उनके साथ खडे रहे थे ! इस तरह के मुलभूत परिवर्तन के काम करने वाले लोगों को बहुत ही समझदारी से व्यवहार करने की आवश्यकता है ! जो महात्मा ज्योतिबा फुले तथा महात्मा गाँधी जी के पास थी ! तभी तो वह दोनों महात्मा के रूप में जाने जाते हैं ! और इतना बड़ा काम करने में कामयाब हुए !
मुझे बेहद खुशी है कि प्रोफेसर रणजीत परदेशी मेरी और डॉ. बाबा आढाव की इस बहस में पूरी तरह से मेरे साथ थे ! और उन्होंने भी अफसोस जाहिर किया था कि डॉ. बाबा आढाव बहुत ही बडा काम कर रहे हैं ! लेकिन उन्हें अपने दिल – दिमाग को उतनाही बड़ा करने की आवश्यकता है ! रणजीत बहुत ही प्रतिभाशाली और बौद्धिक मेहनत करने वाले मित्रों में से एक था ! लेकिन उसके प्रतिभा और मेहनत की जितनी कद्र होनी चाहिए थी ! उतनी हुई नही, इसका मुझे दुःख है ! 80 साल के उम्र में कई तरह की बिमारीयो से ग्रस्त था ! कल उसे छुटकारा मिला ! यह मै बहुत ही, बोझिल मन से लिख रहा हूँ ! अब धुलिया में जाते हुए रणजीतकी कमी हमेशा अखरेगी ! भावपूर्ण श्रद्धांजली !!

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