राजनीति से दूर रहकर भी राजनीति करने वाली प्रियंका गांधी को इस बात का बेहद गुस्सा है कि उनके भाई वरुण गांधी ने परिवार के साथ विश्वासघात किया है. नाराज़ प्रियंका ने यहां तक कहा कि उनके पिता ने देश की एकता के लिए जान दे दी, वह किसी के लिए इस बात का अनादर नहीं कर सकतीं, भले ही वह उनका बच्चा क्यों न हो. पांच वर्षों के बाद प्रियंका को वरुण द्वारा पीलीभीत में दिया गया वह सांप्रदायिक बयान भी याद आ गया, जिसकी वजह से उन्हें जेल जाना पड़ा था. वरुण को लेकर उनका (प्रियंका) गुस्सा अपनी मां सोनिया गांधी और भाई राहुल गांधी से काफी ज़्यादा दिख रहा है. उनका गुस्सा कितना जायज है, यह तो जनता बताएगी, लेकिन प्रियंका के कड़वे बोल वरुण को आहत कर गए. वरुण ने प्रियंका को जवाब भी दिया, लेकिन शालीनता के दायरे में रहकर. वरुण का कहना था कि प्रियंका ने शालीनता की लक्ष्मण रेखा लांघी है, लेकिन उनकी शालीनता और उदारता को कोई कमजोरी न समझे. वरुण तो ज़्यादा नहीं बोले, लेकिन मेनका गांधी ने भतीजी प्रियंका को आईना दिखाने में देर नहीं की और कहा कि वरुण की विचारधारा पर कुछ कहने से पहले प्रियंका को रॉबर्ट वाड्रा पर बोलना चाहिए.
आख़िर वरुण को लेकर प्रियंका इतनी नाराज़ क्यों हैं? वरुण आज तो भाजपा में नहीं आए हैं. पिछला चुनाव वह पीलीभीत से जीते थे और इस बार सुल्तानपुर में ताल ठोंक रहे हैं. वैसे राजनीतिक पंडित प्रियंका की वरुण से नाराज़गी की वजह कुछ और बताते हैं. दरअसल, प्रियंका गांधी की नज़र सुल्तानपुर संसदीय सीट पर काफी समय से थी, जहां से वह चुनाव लड़कर अपनी राजनीतिक पारी शुरू करने की उम्मीद लगाए बैठी थीं, लेकिन उनकी मां सोनिया गांधी नहीं चाहती हैं कि कांगे्रस की चाबी उनसे दूर यानी बेटी के परिवार के पास पहुंच जाए, इसलिए प्रियंका के चुनावी राजनीति में क़दम रुके हुए हैं. हकीकत यही है कि मां-भाई की मर्जी न होने के कारण ही प्रियंका चुनाव लड़ने के लिए ना-ना का जाप करती रहती हैं, लेकिन चुनाव लड़ने की उनकी हसरत किसी से छिपी नहीं है. राबर्ट वाड्रा भी चाहते हैं कि प्रियंका चुनावी राजनीति का हिस्सा बनें और कभी ऐसा हुआ, तो सुल्तानपुर संसदीय क्षेत्र उनके लिए सबसे बेहतर रहेगी. यह सीट गांधी परिवार की विरासत है और इस पर गांधी परिवार के सदस्य या फिर क़रीबी जीतते रहे हैं.
सुल्तानपुर वह सीट है, जो नेहरू-गांधी परिवार के गढ़ अमेठी-रायबरेली के त्रिकोण को पूरा करती है. अमेठी और रायबरेली में राहुल गांधी एवं सोनिया गांधी की मजबूती के लिए सुल्तानपुर में ताकतवर होना कांगे्रस के लिए ज़रूरी है. पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के डॉ. संजय सिंह ने यहां से बाजी मारी थी, तो 1984 के बाद पहली बार यह सीट कांग्रेस के खाते में आई. इसके बाद के छह चुनावों में तीन बार भाजपा, दो बार बसपा और एक बार जनता दल ने यह सीट हासिल की. कांग्रेस अथवा कहें कि अमेठी और रायबरेली में पार्टी का चुनावी प्रबंधन देख रहीं प्रियंका सुल्तानपुर को हाथ से निकलने नहीं देना चाहतीं. इसलिए वरुण को भी न बख्श कर प्रियंका सुल्तानपुर के कांग्रेसियों में जोश भर रही हैं, ताकि पार्टी की प्रत्याशी डॉ. अमिता सिंह के पक्ष में मजबूत माहौल तो बने ही, मौक़ा पड़ने पर वह इस सीट पर स्वयं भी दावेदारी ठोंक सकें.
लेकिन, वरुण के सुल्तानपुर से मैदान में कूदने से प्रियंका के अरमानों पर पानी फिरता दिखने लगा. वरुण के यहां से जीतने का मतलब होगा उनका यहां खूंटा ठोंककर जम जाना. इसी कारण प्रियंका उत्तेजित होकर ऐसा कुछ कह गईं, जो किसी को अच्छा नहीं लगा. संजय गांधी की मौत के बाद सास इंदिरा गांधी से पटरी न बैठ पाने के चलते मेनका ने अपना रास्ता अलग कर लिया था, लेकिन इस हकीकत को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता कि सोनिया गांधी और उनके दोनों बच्चों ने भी कभी यह प्रयास नहीं किया कि पुरानी बातें भूलकर सब एक हो जाएं. वरुण गांधी बहन प्रियंका की शादी में मां मेनका की मर्जी के ख़िलाफ़ जाकर शामिल हुए थे. अपनी शादी में उन्होंने अपनी ताई सोनिया, भाई राहुल गांधी एवं बहन प्रियंका को निमंत्रित भी किया था, लेकिन दोनों ही मौक़ों पर दस जनपथ ने शालीनता का परिचय नहीं दिया. वरुण के विवाह में न राहुल पहुंचे और न प्रियंका. इंदिरा गांधी जीवित होतीं, तो प्रियंका द्वारा वरुण के साथ किए जा रहे बर्ताव का शायद समर्थन न करतीं.
आज की तारीख में उत्तर प्रदेश की सियासत में प्रियंका गांधी वाड्रा की पहचान इतनी भर है कि वह सोनिया की बेटी और राहुल गांधी की बहन हैं. चुनाव और खासकर लोकसभा चुनाव के समय प्रियंका को अपनी मां सोनिया और कभी-कभी भाई राहुल के संसदीय क्षेत्र में घूमते देखा जा सकता है. कारण साफ़ है, सोनिया और राहुल के कंधों पर पूरे देश में प्रचार की ज़िम्मेदारी रहती है, इस वजह से वे अपने-अपने संसदीय क्षेत्र में ज़्यादा समय नहीं गुजार पाते. ऐसे में प्रियंका बेटी और बहन होने का फर्ज निभाती हैं. रायबरेली में तो वह खासकर काफी समय देती हैं. चाहे 2004 एवं 2009 के लोकसभा चुनाव रहे हों या फिर 2012 के विधानसभा चुनाव और अब 2014 का आम चुनाव, सभी में प्रियंका ने कड़ी मेहनत की, लेकिन वह स्वयं कभी चुनावी जंग में नहीं कूदीं, जबकि कांगे्रस में एक बड़ा धड़ा लगातार प्रियंका के सक्रिय राजनीति में आने का पक्षधर रहा है. कहा जाता है कि सुल्तानपुर से वरुण गांधी के मैदान में कूदने के बाद प्रियंका गांधी ने मोदी से खौफजदा कांगे्रसियों में आत्मबल बढ़ाने के नाम पर वाराणसी से चुनाव लड़कर राजनीति में इंट्री का सपना देखा था, परंतु यह पूरा नहीं हो पाया.
क़रीब डेढ़ दशक पहले 1999 में प्रियंका ने कुछ इसी अंदाज में परिवार के मित्र रहे अरुण नेहरू को ललकारा था. रायबरेली से कांग्रेस के कैप्टन सतीश शर्मा के ख़िलाफ़ भाजपा के टिकट पर लड़ रहे अरुण नेहरू के पक्ष में माहौल बनने लगा था. माना जा रहा था कि रायबरेली की पारंपरिक सीट कांग्रेस गंवा देगी, तभी अचानक प्रियंका की इंट्री से सारा खेल बदल गया. मतदान से पूर्व प्रियंका ने कैप्टन शर्मा के पक्ष में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए इलाके के मतदाताओं से कहा, मुझे आपसे एक शिकायत है. मेरे पिता से जिसने (अरुण नेहरू) गद्दारी की, पीठ में छुरा मारा, ऐसे आदमी को आपने यहां घुसने कैसे दिया? जवाब दीजिए. प्रियंका की इस भावनात्मक अपील का रायबरेली की जनता पर ऐसा असर हुआ कि अरुण नेहरू चुनाव हार गए और सतीश शर्मा की जीत हुई. वरुण के यहां से उतरने से स्वाभाविक रूप से गांधी परिवार का होने का कुछ लाभ उन्हें भी होगा. अमेठी, सुल्तानपुर या रायबरेली के आंगन में प्रियंका ऐसी कोई पारिवारिक प्रतिस्पर्धा पैदा नहीं होने देना चाहतीं, जिसका नुकसान आगे चलकर सोनिया, राहुल या स्वयं प्रियंका को उठाना पड़े, लेकिन समझने वाली बात यह भी है कि अरुण नेहरू और वरुण गांधी में काफी फासला है.
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