अाने वाले दिन या महीने देश के लोगों की जान पर आने वाले संकट के दिन होंगे. लोग चिंतित और परेशान हैं, क्योंकि सूखे की आशंका सारे देश में सामने दिखाई दे रही है. पानी की कमी का ख़तरा सामने दिखाई दे रहा है. और जब मैं लोग कहता हूं तो उसका मतलब गांव में रहने वाले और विशेषकर किसान ज्यादा है, क्योंकि जो शहरों में रहते हैं, उन लोगों का जिम्मा सरकारें अपने ऊपर मानती हैं. गांव में रहने वालों का जिम्मा नहीं मानती हैं. लातूर में पानी से भरी ट्रेन 5 लाख लीटर पानी लेकर गई, लेकिन वह पानी सिर्फ शहरों में बट रहा है. गांव की किसी को चिंता नहीं है, हो भी नहीं सकती, कोई कर भी नहीं सकता, क्योंकि जब करने का वक्त होता है, तब सरकारें मौज-मस्ती में और काम को मजाक समझकर अपना वक्त टालती हैं.
सरकार के पास तंत्र है, सरकार के पास विज्ञान है, सरकार के पास लोग हैं जो यह बता सकते हैंै कि आने वाले वक्त में मौसम कैसा रहेगा. पर हमारा मौसम विभाग भी कमाल का है, वह जो भविष्यवाणी करता है, उससे उल्टा होता है. जबकि वहीं बीबीसी की भविष्यवाणी लगभग 90 प्रतिशत सही उतरती है और हमारे देश के लोग बीबीसी की भविष्यवाणी के ऊपर ज्यादा विश्वास करते हैं. हमारे मौसम विभाग ने पहले यह कहा कि इस बार पानी कम बरसेगा और पानी का बड़ा संकट आने वाला है.
लेकिन अचानक पिछले एक हफ्ते से हम देख रहे हैं कि सरकार यह प्रचार कर रही है कि मौैसम विभाग कह रहा है कि इस बार सामान्य से अच्छी बारिश होगी. इसका मतलब सरकार यह सूचना इसलिए फैला रही है क्योंकि लोगों में पैनिक न हो. पर सरकार यह नहीं समझ रही है कि जब प्यास से और सूखे से लोग मरेंगे, तब क्या हाल होगा?
मैं देश के समझदार पाठकों और सरकार के संवेदनशील अंगों को यह ख़बर देना चाहता हूं कि अभी पिछले दिनों मैं बुंदेलखंड की तरफ था. वहां बहुत सारे गांव के लोगों से मेरी मुलाकात हुई. उन लोगों ने एक बात बहुत स्पष्ट मुझसे कही कि अगर इस बार बारिश नहीं हुई तो बुंदेलखंड से गुजरने वाली हर ट्रेन लूटी जाएगी.
जब उन्होंने यह कहा, तो मैं उनका चेहरा देख रहा था और उसमें यह दृढ़ निश्चय था कि चाहे वह आदिवासी हों, गरीब हों, वंचित हों, उच्च जाति के हों लेकिन गरीब हों. वे यह योजना बनाए बैठे हैं कि वहां से गुजरने वाली ट्रेनें जरूर लूटी जाएंगी. अगर इस बार बारिश नहीं होती है तो कोई भी सरकारी मशीनरी, लॉ एनफोर्समेंट एंजेसी इसे नहीं रोक पाएगी. अगर यह बुंदेलखंड में होगा, तो मुझे डर है यह देश के बहुत सारे हिस्सों में दोहराया जा सकता है.
और जो दूसरी बात मेरी समझ में नहीं आती. हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट चिंतित हैं कि देश में पानी नहीं है. हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट चिंतित हैं कि देश में अनाज नहीं है, सूखा पड़ने वाला है. लेकिन सरकारें चिंतित क्यों नहीं हैं? सरकार चाहे केंद्र की हो या राज्यों की. अगर आपको किसी भी सरकार की चिंता समझ में आए, तो मुझे एक खत डाल दीजिए कि आपको इतने दिनों में जब आप ये पंक्तियां पढ़ रहे हैं आपको सरकार की चिंता नज़र आई.
महाराष्ट्र हाईकोर्ट मुंबई में होने वाले आईपीएल मैचों में कितना पानी खर्च होता है, कितना पानी रोज मुंबई के लिए है, पीने के लिए मिल रहा है या मैदान को ठीक करने के लिए, इसके बारे में सवाल पूछता है, चिंता दिखाता है और यह फैसला करता है कि एक मैच के अलावा और कोई मैच मुंबई ही नहीं, महाराष्ट्र में भी कहीं नहीं होगा. मुंबई और महाराष्ट्र से बाहर मैच होंगे.
30 अप्रैल के अलावा आईपीएल का कोई मैच महाराष्ट्र में नहीं होगा. देश का सुप्रीमकोर्ट चिंता दिखाता है, सरकार से पूछता है कि उसने क्या व्यवस्था की? लोगों को सूखे से बचाने की उसके पास कोई योजना है या नहीं? सरकार ने इन पंक्तियों के लिखे जाने तक सुप्रीमकोर्ट को कोई योजना नहीं दी. ऐसा क्यों है? सरकारें क्यों असंवेदनहीन हो गई हैं लोगों की चिंता से, खासकर गांव के लोगों की चिंता से सरकारें क्यों परेशान नहीं होती हैं? क्या उन्हें डर नहीं लगता कि इस देश में सरकारें अगर इसी तरह व्यवहार करेंगी, तो अराजकता को बढ़ावा मिलेगा.
सरकारों के काम करने का वक्त और मैं यहां पर मनमोहन सिंह की सरकार और नरेंद्र मोदी की सरकार में कोई फर्क नहीं कर रहा हूं. लेकिन आज हम नरेंद्र मोदी जी की बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि नरेंद्र मोदी जी को लोगों ने इस आशा में वोट दिया था कि वह उस ढर्रे पर नहीं चलेंगे जिस ढर्रे पर मनमोहन सिंह की सरकार चलती थी. लेकिन दिखाई दे रहा है कि नरेंद्र मोदी जी उससे ज्यादा ख़राब ढर्रे पर चल रहे हैं.
दो साल बीत गए. लेकिन पानी या सूखे को लेकर कोई भी डिजास्टर मैनेजमेंट (आपदा प्रबंधन) का प्लान सामने नहीं आया. आप लोगों को अपने साथ लीजिए और उनसे कहिए कि यह प्रकृति आपदा आने वाली है. आप इस-इस तरह से इसका सामना कर सकते हैं. पर लोगों को धोखे में रखकर अचानक आपदा को आने देना और लोगों को उसमें फंसते हुए देखकर खुद देश या विदेश के फाइव स्टार होटलों में घूमते हुए खाना खाना और अपने सारे वर्ग को जो शहरों में रहते हैं, जिस वर्ग से सत्ता में हिस्सेदारी करने वाले लोग आते हैं. उन लोगों को रिलीफ या मदद मुहैया कराना क्या यह न्याय है? इससे देश के लोगों का जो विश्वास टूटेगा उस विश्वास के टूटने का क्या परिणाम होगा? क्या सरकारों को इसका अंदाजा है?
हम सिर्फ इतना कह सकते हैं और यह निवेदन करना भी चाहते हैं कि अपने इस काहिली और आलसीपन से बाहर निकलिए. देश के लोगों को आने वाली दैवीय आपदा या मानवीय काहिली से पैदा की गई आपदा के बारे में स्पष्ट रूप से बताइए और उनका साथ लेकर इसका सामना करने की कोशिश कीजिए. आने वाले दिन जो मई महीने से शुरू होंगे, उनमें पानी के लिए इस देश में दंगे होंगे. गांवों में लोग कुएं से पानी नहीं लेने देंगे और लोग हिंसा करके पानी लेंगे, क्योंकि बिना पानी पिए, प्यास की वजह से होने वाली मौत बहुत ख़तरनाक होती है.
अनाज़ न मिले तो आदमी तीन-चार दिन गुजार सकता है और तब तक कहीं से घास, कहीं से भीख, कहीं से रिलीफ आदमी को मिल सकता है. बहुत सारी जगहों पर तो इसका भी कोई दूर-दूर तक कोई आसरा नहीं दिखाई देता. लेकिन बिना पानी के कोई मरे या न मरे, ग़रीब तो मर ही जाएगा और इस देश में 70 प्रतिशत गरीब हैं. इसलिए मेरा अनुरोध है अभी भी वक्त है, लोगों से बात कीजिए.
सारे साधु-संतों से कहिए, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से कहिए, सारे एनजीओ से कहिए कि यह आने वाला ख़तरा है. इसका सामना करना पड़ेगा और इस तरीके से किया जा सकता है. क्या सरकार यह रोल नहीं निभा सकती? अगर नहीं निभाती है प्रधानमंत्री जी, तो फिर मेरे पास आपके लिए रोने के सिवाए और कोई चारा नहीं है.