हमने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र भेजा था, जिसे हमने इसी जगह छापा भी था. उस पत्र की पावती यानी एक्नॉलेजमेंट तक हमें नहीं मिला. प्रधानमंत्री कार्यालय इतना सक्षम कार्यालय है, इतना एफिशिएंट कार्यालय है कि वह कहां तो एक महीने बाद होने वाली घटना पर उसी तारीख में अपनी चिट्ठी बनाकर भेज देता है और वहीं वह एक पत्र की पावती भेजने की जहमत तक नहीं उठाता. क्या हमें यह अपेक्षा नहीं करनी चाहिए कि कोई भी शख्स या संगठन पत्र भेजेगा, तो प्रधानमंत्री कार्यालय उसका जवाब देगा या प्राप्ति की रसीद भेजेगा? भारतीय जनता पार्टी के सांसद या कार्यकर्ता जब यह कहते थे कि ऐसा होता है, तो हमें विश्वास नहीं होता था, क्योंकि नरेंद्र मोदी जी ने जिस तरह के हाव-भाव दिखाए थे, उनसे यह लगता था कि मौजूदा प्रधानमंत्री कुछ अलग ढंग से काम करेंगे और उनका कार्यालय भी. पर खैर, यह मसला प्रधानमंत्री का है.
इसके बावजूद हम प्रधानमंत्री से एक दूसरा निवेदन कर रहे हैं. हमें मालूम है कि प्रधानमंत्री इसे नहीं सुनेंगे, क्योंकि प्रधानमंत्री के अपने दिमाग की प्राथमिकताएं और उनके सलाहकारों की सलाह देश की प्राथमिकताओं से कुछ अलग हैं. प्रधानमंत्री ने डिजिटल इंडिया बनाने की घोषणा कर दी और एक बड़ा इवेंट किया. इस समारोह में देश के सारे प्रमुख उद्योगपति मौजूद थे, जिन्होंने साढ़े चार लाख करोड़ रुपये के इंवेस्टमेंट की घोषणा कर दी. प्रधानमंत्री की पहली योजना स्वच्छ भारत प्रधानमंत्री के कारण ही कूड़े में चली गई, क्योंकि प्रधानमंत्री ने इसके फॉलोअप का कोई तरीका नहीं बनाया. उन संस्थानों को उन्होंने मजबूत नहीं किया, जिनके ऊपर सफाई की ज़िम्मेदारी है. और, लोगों ने इसे प्रधानमंत्री के साथ फोटो खिंचाने या उनके साथ नाम जोड़ने का एक अवसर मान लिया. प्रधानमंत्री ने देश के जाने-माने नामों को इस अभियान में जोड़ा. सबने एक दिन झाड़ू उठाई, वे चाहे सिनेमा के रहे हों, खेल के रहे हों या उद्योग जगत के, और फोटो खिंचवा ली तथा अपना कर्तव्य पूरा मान लिया. सारा देश गंदगी से बजबजा रहा है. स्वच्छ भारत अभियान के ऊपर करोड़ों रुपये खर्च हुए, लेकिन अभियान ठप्प पड़ा है. प्रधानमंत्री ने मेक इन इंडिया को देश का मोटो बनाया और सारी दुनिया में यह कहते घूमे कि हमारे यहां श्रम सस्ता है, इसलिए आप हमारे यहां सामान बनाएं. लेकिन, बाहर की कंपनियां हिंदुस्तान में कितनी आईं, इसका जवाब सरकार नहीं दे रही है. जितने इंवेस्टमेंट की घोषणा हुई थी, उसमें से कितना सचमुच हुआ, इसके कोई आंकड़े सरकार के पास नहीं हैं. दूसरी तऱफ भारत का निर्यात अवश्य कम हो गया. यह आंकड़ा उपलब्ध है. प्रधानमंत्री जी ने इस पर भी ध्यान नहीं दिया और अब डिजिटल इंडिया…
प्रधानमंत्री को समझाने की ज़रूरत नहीं है कि जिस देश के गांव में लोग अंग्रेजी का ए और हिंदी का अ नहीं जानते हैं, निरक्षर हैं और पिछली सरकारों ने अरबों रुपये साक्षरता अभियान में खर्च किए, लेकिन वे लोगों की जेब में चले गए, हम उस भारत में इंटरनेट की सुविधा देने की बात कह रहे हैं. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने लैपटॉप बांटे. वे लैपटाप बहुत सारी जगहों पर एक महीने के भीतर दोबारा बाज़ार में पहुंच गए. और जिनके पास हैं भी, वहां वे धूल फांक रहे हैं, क्योंकि उन्हें लैपटॉप चलाने का ए नहीं आता. ट्रेनिंग का कोई इंतजाम नहीं है. उस भारत में प्रधानमंत्री अरबों रुपये खर्च करके लोगों के पास इंफॉर्मेशन हाइवे पहुंचाना चाहते हैं. योजना बहुत अच्छी है, लेकिन यह वैसी ही योजना है, जैसे कि आप बंजर खेत में बिना खाद-पानी डाले, बिना उसे खेती के लिए तैयार किए, बीज डाल दें. लेकिन प्रधानमंत्री हैं, उनके सलाहकार हैं, टेलीविजन है, ताली बजाने वाले हैं और निवेश की घोषणा करने वाले हैं. यह तय है कि जिसने ढाई सौ करोड़ रुपये की घोषणा की, वह ढाई हज़ार करोड़ रुपये कमाएगा. और, यह टोटल साढ़े चार लाख करोड़ रुपये का इंवेस्टमेंट, जिसकी घोषणा डिजिटल इंडिया के कॉन्क्लेव में पूंजीपतियों ने की, वे इसका सौ गुना कमाकर यानी सरकार को लूटकर बाहर निकल जाएंगे.
प्रधानमंत्री जी, क्या यह नहीं होना चाहिए कि आप सबसे पहले सारे स्कूलों-कॉलेजों को प्रोत्साहित करते, प्रेरित करते कि वे हिंदुस्तान के गांवों में साक्षरता अभियान को अपनी प्राथमिकता बनाएं? हाईस्कूल से लेकर डिग्री तक के छात्रों को, जो इस देश में पढ़ रहे हैं, उनका सर्टिफिकेट तब मिलेगा, जब वह दो महीने गांव में साक्षरता अभियान में जुड़ें. और, प्रत्येक 10 किलोमीटर क्षेत्र के स्कूलों-कॉलेजों को यह ज़िम्मेदारी दी जाती कि अगर उनके क्षेत्र में कोई भी निरक्षर पाया गया, तो उन्हें मिलने वाली सरकारी सहायता बंद कर दी जाएगी. देश के लोगों को साक्षर बनाना हमारी पहली प्राथमिकता है. अगर वे साक्षर बनेंगे, तभी उन्हें आप कंप्यूटर इस्तेमाल करने की जानकारी दे पाएंगे. नहीं तो कंप्यूटर अश्लील फिल्म देखने का साधन बन जाएंगे और कंप्यूटर अपराध का कारण बन जाएंगे. एक सर्वे में यह बात सामने आई है कि अपराधों की बढ़ती संख्या के पीछे फेसबुक का बहुत बड़ा हाथ है. हिंदुस्तान का देहात पिछली सरकार की कई योजनाओं की वजह से भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा केंद्र बन गया. पूरी की पूरी पंचायत भ्रष्ट हो गई. भ्रष्टाचार दिल्ली और राज्यों की राजधानी से निकल कर गांवों की पंचायत तक पहुंच गया. क्या अब अपराध राज्यों की राजधानी से गांवों में पहुंच जाएगा? यह सवाल प्रधानमंत्री जी, मैं इसलिए पूछ रहा हूं, क्योंकि आपके बारे में मेरी यह धारणा है कि आप इन सारी चीजों को नहीं पसंद करते. लेकिन, अगर आपके द्वारा किए हुए कामों की वजह से यही नतीजा निकलने वाला है, तो क्या सोचने की ज़रूरत नहीं है?
होना तो यह चाहिए था कि हम सबसे पहले गांवों को साक्षर करते. लोगों के स्वास्थ्य एवं शिक्षा की योजनाओं में शामिल होने के लिए हम देश के पूंजीपतियों को प्रेरित करते और तब डिजिटल इंडिया जैसे ग्लैमरस प्रोग्राम की शुरुआत करते. लेकिन, आपने आईटी सेक्टर को पैसा देने के लिए जो योजना बनाई है, वह हिंदुस्तान को बहुत आगे नहीं ले जाएगी. यह इस तरह की योजना है कि आपने रन-वे बनाया नहीं और हवाई जहाज खरीदने की तैयारी करने लगे.
प्रधानमंत्री जी, देश की प्राथमिकताएं, जो आपने तय की हैं, वे सही हैं, लेकिन उनका क्रम ग़लत है. जो आप आज कर रहे हैं, वह आपको तीसरे-चौथे साल करना चाहिए और आज आपको बुनियादी तौर पर इस देश के नौजवानों को विकास के कामों में लगाने के रास्ते तलाशने चाहिए. उद्योगों की इकाई गांवों के पास यानी हर ब्लॉक में पहुंचानी चाहिए. अनाज संग्रह करने के लिए हर ब्लॉक में भंडारण के तरीके तलाशने चाहिए. लोग निजी तौर पर किस तरह भंडारण गृह का निर्माण कर सकते हैं और जिन्हें सरकार किराया देकर अपनी निगरानी में रखे, इसकी योजना बनानी चाहिए. गांव के स्कूल किस तरीके से शिक्षकों का बेहतर इस्तेमाल कर सकते हैं और कैसे साक्षर ग्रामीण पैदा कर सकते हैं, यह देखना आवश्यक है. उतना ही आवश्यक है कि गांवों के स्वास्थ्य केंद्र सही ढंग से काम करें. लेकिन, यह नहीं हो रहा है.
माननीय प्रधानमंत्री जी, हम यह बात इसलिए लिख रहे हैं, क्योंकि हमारे ऊपर अभी भी यह छाप है कि आप हिंदुस्तान को बदलना चाहते हैं. धार्मिक विचारों के ऊपर किसी का आपसे मतभेद हो सकता है, पड़ोसियों से रिश्तों की नीति के ऊपर मतभेद हो सकता है, लेकिन आपसे यह अपेक्षा हर एक की है कि आप देश में जहां कहीं भी भ्रष्टाचार से लड़ने का सवाल है, वहां आप चट्टान की तरह खड़े होंगे. और, यह भी अपेक्षा है कि देश की प्राथमिकताओं, जिनमें गांव, खेती, किसान, नौजवान और मज़दूर प्रमुख हैं, को आप सबसे पहले हल करेंगे, पर आप ऐसा नहीं कर रहे हैं. आपने प्राथमिकताओं का क्रम उलट दिया है. और, जब क्रम उलटते हैं, तो यह बिल्कुल वैसा होता है, जैसे कहीं की यात्रा पर निकलने से पहले आप अपने पैर के जूतों या पैजामे का ध्यान न दें, बल्कि पॉर्लर में जाकर फेशियल कराएं और बाल ठीक कराएं. और, स़िर्फ बाल और चेहरा ठीक कराने के बाद जब यात्रा पर कोई निकलता है, तो पैर में कांटे गड़ते हैं, कंकड़ चुभते हैं, पैर यात्रा नहीं कर पाते. मेरा आग्रह है कि आप प्राथमिकताओं के बारे में सोचिए, नहीं तो साल भर बीत गया, तीन महीने और बीत गए हैं, आपको लेकर देश में एक दूसरी तरह की राय बनने लगेगी और लोग मानने लगेंगे कि आप भी ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जो इतिहास में शायद ही दर्ज हो पाएं.