हालिया बदलावों को लेकर प्रतियोगी छात्र रवीश सिंह कहते हैं कि प्रीलिम्स में बदलाव को बेहतर माना जा सकता है क्योंकि विश्व के कई अन्य देशों में एप्टीटयूड टेस्ट को पहले ही शामिल किया जा चुका है. ऐसा वहां 80 के दशक में ही शुरू हो चुका है. इसमें एक बेहतर बात यह है कि विषय विशेष के हट जाने से सभी के लिए समान मानक हो गया है जो अच्छी बात है.
प्रतियोगी परीक्षाओं के पाठ्यक्रम में समय-समय पर बदलाव किए जाते रहे हैं. इन्हें छात्रों के अनुरूप और समसामयिक बनाए जाने का प्रयास भी किया जाता रहा है. इसी तर्ज पर यूपीएससी के पाठ्यक्रम में भी बदलाव जारी है. इसे लेकर साल 2011 में यूपीएसी ने प्रारंभिक परीक्षा के पाठ्यक्रम में बदलाव किया था. इस वर्ष मुख्य परीक्षा में भी कुछ बदलाव के लिए नियम बनाए गए हैं. इसके बाद से पाठ्यक्रम में बदलाव को लेकर प्रतियोगी छात्रों का विरोध जारी है. पाठ्यक्रम में बदलाव को लेकर प्रतियोगी छात्रों ने कुछ दिनों पूर्व संसद और कांग्रेस के मुख्यालय के बाहर भी प्रदर्शन किया था. प्रतियोगी छात्रों की इस संदर्भ में कुछ प्रमुख मांगे हैं, जैसे अगर पाठ्यक्रम में बदलाव किया जा रहा है तो उन्हें या तो उम्र में छूट दी जाए या फिर तीन अटेम्प्ट और दिए जाएं. प्री के दोनों पेपर में कट ऑफ रखे जाएं, जिससे किसी एक पेेपर में अधिक अंक लाकर ही मेरिट में आने पद्धति में रोक आ सके. दोनों ही पेपर के वेटेज को समान किया जाए. इसके अलावा इन प्रतियोगी छात्रों की कुछ और भी समस्याएं हैं, जैसे हिंदी माध्यम के छात्रों के लिए दिया जाने वाला प्रश्न पत्र अंग्रजी से अनुवाद न होकर हिंदी में ही बनाया जाए. इससे छात्रों को आसानी होगी. प्रश्न पत्र बनाने के दौरान अंग्रेजी से बनाए गए मूल प्रश्न पत्र का हिंदी में अनुवाद किया जाता है. इसमें हिंदी के ऐसे कठिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है, जिसे समझना कठिन हो जाता है.
हालिया बदलावों को लेकर प्रतियोगी छात्र रवीश सिंह कहते हैं कि प्रारंभिक परीक्षा में बदलाव को बेहतर माना जा सकता है, क्योंकि विश्व के कई अन्य देशों में एप्टीट्यूड टेस्ट को पहले ही शामिल किया जा चुका है. ऐसा वहां 80 के दशक में ही शुरू हो चुका है. इसमें एक बेहतर बात यह है कि विषय के चयन के हट जाने से सभी के लिए समान मानक हो गया है, जो अच्छी बात है, लेकिन मुख्य परीक्षा को लेकर बदलाव की वजह से पुराने छात्रों को परेशानी का सामना करना प़ड रहा है. वे कहते हैं कि पाठ्यक्रम में हो रहे बदलाव का स्वागत है, लेकिन इसके लिए हमारी मांगों पर विचार किया जाना चाहिए, जिससे किसी प्रतियोगी छात्र के साथ अत्याचार जैसी स्थिति न बने.
वहीं इस मामले पर सत्यपाल का कहना है कि जीएस और सीसैट के पेपर में मार्किंग समान होनी चाहिए, क्योंकि इसकी वजह से असामनता उपजती है. वहीं वे यह भी कहते हैं कि आखिर दो बार अंग्रेजी का टेस्ट लेकर यूपीएसी क्या साबित करना चाहती है. अगर हिंदी माध्यम के छात्रों के लिए अंग्रेजी जानना जरूरी है तो हिंदी के राजभाषा होने के कारण अंग्रेजी माध्यम के छात्रों के लिए भी कोई ऐसा अनिवार्यता क्यों नहीं है कि वे भी हिंदी जानें.
एक अन्य प्रतियोगी छात्र विशाल सिंह इस बदलाव को हिंदी माध्यम के प्रतियोगियो के लिए नुकसान के तौर पर देखते हैं. उनका मानना है कि यूपीएससी परीक्षा में बदलाव ब़डे शहर या कॉन्वेंट के छात्रों को ध्यान में रखकर किया जा रहा है. उनके अनुसार, इन जगहों से प़ढाई करने वाले या टेक्निकल शिक्षा प्राप्त किए छात्रों को उनकी शिक्षा के दौरान ही एप्टीट्यूड टेस्ट के बारे में प़ढाया जाता है, जिसकी वजह से उन्हें इसमें आसानी होती है. वहीं ग्रामीण इलाके से आने वाले छात्रों को खासी दिक्कतें उठानी प़डती हैं.
प्रतियोगी छात्र मानवेंद्र सिंह मानते हैं कि प्रारंभिक परीक्षा को आसान बनाने से मुख्य परीक्षा की मेरिट गिर रही है. वहीं अंग्रेजी पर ज्यादा जोर दिए जाने के कारण दोनों भाषाओं में परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले छात्रों के प्रतिशत में अंतर आ रहा है.
परीक्षा में आ रहे मौजूदा बदलाव के बारे में हिंदी माध्यम के छात्रों में एक आम राय बनती जा रही है कि संघ लोक सेवा आयोग अंग्रेजी भाषा को अधिक महत्व दे रहा है. आयोग की निगाह में सिर्फ अंग्रजी की जानकारी होना ही एकमात्र योग्यता का पैमाना है. आयोग को हिंदी माध्यम के छात्रों का भी उतना ही ख्याल रखना होगा, जितना कि वे अंगे्रजी माध्यम के छात्रों का रख रहे हैं. यूपीएसी की परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले छात्र देश के महत्वपूर्ण पदों पर पहुंचते हैं. ऐसे में यह जरूरी है कि परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले छात्रों में सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व हो, क्योंकि महत्वपूर्ण पदों पर पहुंचने वाले विशिष्ट लोगों को हर वर्ग का प्रतिनिधित्व करना आवश्यक है, न कि किसी वर्ग विशेष का. इन परीक्षाओं का प्रारूप ऐसा रहा है, जिनमें मध्यम वर्ग और ग्रामीण परिवेश के भी प्रतियोगी छात्र चुनकर आते रहे हैं. भारत में सिविल सर्विसेज की परीक्षा सिर्फ एक परीक्षा न होकर कई लोगों के लिए सपने की तरह होती है. ऐसे में इन परीक्षाओं में सिर्फ अंग्रेजी माध्यम के छात्रों का ही ख्याल रखा जाएगा तो अन्य भाषाओं के प्रतियोगी छात्रों में निराशा आएगी. इसे लेकर छात्र काफी उग्र भी हो रहे हैं, क्योंकि जिन छात्रों का यह अंतिम प्रयास है, उन्हें ऐसे बदलावों से काफी नुकसान हो सकता है. इसे लेकर ही छात्र लगातार आयोग से इस बात की मांग करते रहे हैं कि अगर पाठ्यक्रम में कोई बदलाव किया जाए तो उन्हें इसके लिए और तीन बार परीक्षा देने का मौका दिया जाए.
इसके अलावा हाल ही में यूपी लोक सेवा आयोग को भी लेकर छात्रों ने इलाहाबाद में प्रदर्शन किए थे. कई मसलों को लेकर प्रतियोगी छोत्रों ने प्रदर्शन किए. पुलिस ने छात्रों पर लाठीचार्ज भी किया. यूपी लोक सेवा आयोग की परीक्षा के परिणाम को लेकर भी छात्रों ने कई बार प्रदर्शन किए हैं. वहीं नई आरक्षण नीति का तो छात्र विरोध करते आ ही रहे हैं. नई आरक्षण नीति (हर स्तर पर ओवर लैपिंग ) की वजह से छात्र भी दो गुटों में बंट गए हैं. ऐसे छात्र, जिन्हें इस नीति से लाभ होने वाला है, इसका समर्थन कर रहे हैं. वहीं जिन छात्रों का इससे नुकसान होने वाला है, वे इसके खुलकर विरोध में सामने आ गए हैं. छात्रों के इस आंदोलन को राजनीतिक रंग भी दिया जा रहा है.
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