कोरोना के कारण अब तक देश भर में पचास हज़ार लोग असमय मृत्यु का शिकार हो चुके हैं और पूरे विश्व में लगभग पौने आठ लाख. इन सबकी मृत्यु का दुःख तो है ही, इस बात का और भी दुःख है कि कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए बनाये गए पर्सनल डिस्टेंसिंग के प्रोटोकॉल के कारण इन लोगों को वो सम्मानजनक अंतिम बिदाई भी नहीं मिल पाई जिसके वे हक़दार थे. जैसे, अपनी कर्तव्यनिष्ठा, बुलंद हौसले और अदम्य सेवाभाव से पूरे इंदौर का दिल जीतने वाले कोरोना शहीद जूनी इंदौर थाने के प्रभारी इंस्पेक्टर देवेंद्र चंद्रवंशी के लिए पूरे इंदौर में सम्मान और दुःख की वो लहर थी कि यदि प्रशासनिक रोक और लॉकडाऊन ना होता तो लाखों इंदौरी उन्हें अंतिम बिदाई देने पहुँचते। भावनाओं का ज्वार ही ऐसा था … अविस्मरणीय।
ठीक इसी तरह, पूरे विश्व में इंदौर का नाम रौशन करने वाले आज की तारीख़ में पूरे विश्व के सबसे लोकप्रिय शायरों में अव्वल जनाब राहत इंदौरी साहब का इंतकाल यदि सामान्य परिस्थितियों में हुआ होता तो आज तक इंदौर में निकला सबसे बड़ा जनाजा होता, जिसमें उनके लाखों चाहने वाले भी होते और पूरे देश से ख़ासो-आम की शिरकत होती और प्रशासन को ख़ास इंतज़ामात करने पड़ते।
अब, सबसे बड़े दुःख की बात यह है कि आँखों -कानों पर पट्टी बांधकर और दिमाग को सुन्न कर नफ़रत की फसल बोने -सींचने और काटने में लगे कुछ लोग मानवता और शिष्टता के तमाम तकादे ठुकराकर इस कदर ओछी सोच पर उतर आये हैं कि महान देशभक्त शायर की मौत पर भी ख़ुश हो रहे हैं, जैसे वे स्वयं अमरफल खाकर आये हैं। कुछ परपीड़कों ने इस बात को विशेष रेखांकित किया कि अंतिम समय उन्हें पॉलीथिन में पैक कर लाया गया और उनके अपने लोग उन्हें ढ़ंग से कांधा भी न दे सके… किस किस्म के इंसान हैं ये लोग ??? वे अपनी नफ़रत की आग में कोरोना काल में ईश्वर-अल्लाह-भगवान महावीर- गुरुनानक देव को प्यारे हुए हर इंसान के परिजनों का दुःख बढ़ा रहे हैं, उनकी मृत्यु को अपमानित कर रहे हैं. कोरोना काल मेंबिना कोरोना के भी अनेक हस्तियाँ ( स्व. दद्दाजी, स्व. ऋषि कपूर, स्व. इरफ़ान खान आदि) और प्यारे लोग बिदा हुए तो सोशल डिस्टेंसिंग के बंधनों के कारण उनके कई ख़ास परिजन तक उन्हें अंतिम बिदाई ना दे सके. कहीं बेटे अपने पिता का अंतिम दर्शन न कर पाए ( इंदौर के डॉ. शत्रुधन पंजवानी साहब) तो कहीं माँ अपने लाड़ले को अंतिम बार न निहार सकी. देश भर में ही नहीं विश्व भर में हुई सारी कोरोना मृत्यु में शव पॉलीथिन में ही दिए गए. कहीं – कहीं तो खास lockdown के कारण परिजनों के ना पहुँच पाने के कारण सरकारी कर्मचारियों या NGO के सदस्यों ने उनका अंतिम संस्कार किया। लेकिन, किसी की अंतिम बिदाई पूरे सम्मान, परिजनों की – चाहने वालों की उपस्थिति के बिना होना तो गहन दुःख और शोक का विषय है. यदि कोई इसमें भी खुश होता है तो समझ लीजिए कि उसे इंसान की योनि में जन्म तो मिला, लेकिन वे इंसान बनने से चूक गए. ऐसे परपीड़कों के प्रति गुस्सा भी नहीं आता, सिर्फ़ तरस आता है … दया के पात्र हैं ये इंसान बनने से चूके मनुष्य की शक़्ल वाले बेचारे … भगवान इन पर अपनी करुणा बरसाये और इन्हें इंसान बनाये।
आलोक बाजपेयी कहिन
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