छात्र नेता कन्हैया कुमार पर हाल में दिए अपने बयान को लेकर सांसद डॉ भोला सिंह खूब चर्चा में रहे. उनके बयान ने उन्हें मुश्किल में भी डाला, लेकिन उन्हें सियासत का माहिर खिलाड़ी यूं ही नहीं कहा जाता, वे पहले की तरह ही क्षेत्र और सियासत में सक्रिय हैं. सियासी हलकों में डॉ भोला सिंह की पैठ खूब गहरी है. पिछले 50 वर्षों से सक्रिय राजनीति में रहते हुए डॉ भोला सिंह विधायक बने, सांसद बने, बिहार विधान सभा के उपाध्यक्ष रहे और बिहार सरकार में मंत्री भी बने. सम्प्रति वे बेगूसराय के सांसद हैं. उनके बयान से उपजे हाल के विवाद के साथ-साथ वर्तमान राजनीति से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर उनसे बातचीत की ‘चौथी दुनिया’ संवाददाता सुरेश चौहान ने. प्रस्तुत हैं, बातचीत के कुछ खास अंश…
बेगूसराय में चर्चा है कि छात्र नेता कन्हैया कुमार 2019 में यहां वामदल का चेहरा हो सकते हैं. इस लिहाज से भोला सिंह द्वारा कन्हैया की प्रशंसा अन्य भाजपा नेताओं को नागवार गुजरी. हालांकि वामदलों के लिए भोला सिंह का नजरिया, कन्हैया को लेकर दिए गए उनके बयान से अलग है. वे कहते हैं कि वामपंथ का सूरज डूब चुका है. भाकपा-माकपा दोनों दलों की राजनीतिक शक्ति का पतन हो गया है. इनमें नेतृत्व का घोर अभाव है. 2015 के विधानसभा चुनाव में भाकपा-माकपा मोर्चा एक भी सीट नहीं जीत पाई. भाकपा तो मृतात्मा की स्थिति में है. इसकी रोशनी मंद पड़ चुकी है और अब उसके जीवंत हो पाने की भी संभावना नहीं है. यह भाकपा की हताशा का ही प्रतीक है कि डेढ़ वर्ष पूर्व इसने छात्र नेता कन्हैया को अपनाया. लेकिन आपसी कलह के कारण भाकपा कन्हैया का पार्सल खोलने को भी तैयार नहीं है. भाकपा की आपसी कलह कन्हैया के राजनीतिक जीवन को भी मार डालेगी.
अपने अब तक के राजनीतिक जीवन के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि मैंने भाकपा से दलीय राजनीति प्रारम्भ की. भाकपा से कांग्रेस में आए, फिर कांग्रेस से राजद में आए और राजद से भाजपा में. अपने 50 वर्ष के सक्रिय राजनीतिक जीवन में मैंने इन सभी दलों में रहते हुए कार्यकर्ताओं को सम्मान एवं स्नेह दिया. यही कारण है कि इन सभी पार्टियों के कार्यकर्ताओं में मेरी पैठ बनी हुई है. मेरे साथ जनाधार होने का यही कारण भी है. अब भी मेरी राजनीतिक भूमिका को लेकर जनता प्रतीक्षा करती रहती है. मुझे लेकर कई बार भीतरघात हुआ, लेकिन जनता की शक्ति मेरे साथ है, इसलिए भीतरघात के बाद भी मैं चुनाव नहीं हारता. मेरे लिए क्षेत्र का विकास प्राथमिकता है. डॉ श्री कृष्ण सिंह के बाद अभी बेगूसराय का सर्वाधिक विकास हुआ है. हमारे यहां करीब 60 हजार करोड़ रुपए का निवेश हुआ है. बेगूसराय जिले की राजनीति की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि यह राजनीतिक चेतना का जिला है. यहां से स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास भी जुड़ा हुआ है. बेगूसराय हमारे पूर्वजों की शहादत और साधना का जिला है.
यहां 1967 तक कांग्रेस का वर्चस्व रहा. उसके बाद यहां वामपंथ का उदय हुआ, जिसने कांग्रेस का एकाधिकार समाप्त किया. 1977 में कांग्रेस-भाकपा का मोर्चा बना, जो विधानसभा की सभी सीटों पर हावी रहा. फिर 1990 में लालू युग की शुरुआत हुई और लालू-भाकपा का गठबंधन बना. 1995 के चुनाव तक यहां इसका दबदबा कायम रहा. 2000 में बेगूसराय की राजनीति में नई सुबह का उदय हुआ. मेरे भाजपा में शामिल होते ही पहली बार बेगूसराय विधानसभा सीट पर भगवा झंडा लहराया और मैं विधायक बना. 2005 में भी यही स्थिति रही. 2010 में भाजपा-जदयू गठबंधन ने सातों विधानसभा सीटों पर कब्जा जमाया. फिर 2014 के लोकसभा चुनाव में मैं सांसद निर्वाचित हुआ. गत विधानसभा चुनाव में नीतीश-लालू-कांगे्रस मोर्चा ने जिले के सातों विधान सभा सीटों पर विजय प्राप्त की. ऐसा नहीं है कि यहां कांग्रेस का जनाधार नहीं है, लेकिन कांग्रेस अकेले चुनाव जीतने की स्थिति में नहीं है. भाजपा का राजनीतिक प्रभाव जनता के बीच कायम है, लेकिन राजनीतिक प्रभाव के अनुरूप संगठन मजबूत नहीं हो
पाया है.
डॅा भोला सिंह को लंबा राजनीतिक अनुभव है. उन्होंने राज्य व केंद्र में कई सरकारों को आते-जाते देखा है. वर्तमान समय की राजनीति उन्हें उदास करती है. वे कहते हैं कि पहले राजनीति संस्कृति के गर्भ से आती थी, अब तो संस्कृति भी राजनीति के दामन में है. आज देश में कहने को जनतांत्रिक पद्धति है. असल बात तो यह है कि केवल पद्धति है, जनता नहीं है. राजनीतिक दल आज कालेधन से सिंचित हो रहे हैं. ऐसा भी नहीं है कि इसका बुरा असर समाज पर नहीं हो रहा, समाज भी इससे अछूता नहीं है. पहले सामाजिक शक्ति राजशक्ति हुआ करती थी, अब सामाजिक शक्ति ने भी राजनीतिक रूप ले लिया है. यही कारण भी है कि राजनीतिक क्षितिज पर घना अंधेरा छाया हुआ है. इससे निकलने का रास्ता जनता के पास है, लेकिन जनता भी अब उसी राजनीतिक दलदल में फंसती जा रही है.
वर्तमान समय में कानून व्यवस्था का भी वही हाल है. किसा एक राज्य या शहर नहीं, बल्कि पूरे देश में कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े हो रहे हैं. कानून व्यवस्था की समस्या अब प्रशासनिक नहीं रही, अब इसने सामाजिक स्वरूप धारण कर लिया है. इसका सबसे बड़ा कारण है कि अपराध को सत्ता से प्रतिष्ठा मिल रही है. यह बड़ी विडम्बना है कि जिसे कानून के शिकंजे में रहना था, कानून ही उसके शिकंजे में है. डॉ भोला सिंह ने कृषि की चर्चा करते हुए कहा कि एक समय ऐसा था जब कृषि संस्कृति राजनीति का दिशा निर्देशन करती थी. लेकिन अब राजनीति पूरी तरह से कृषि और किसानों से विमुख हो चुकी है. किसानों को अब मजबूरीवश मजदूर बनना पड़ रहा है. यही कारण है कि गांव का गांव शहर की ओर पलायन कर रहा है. हम सभी को इसपर सोचने की जरूरत है.