मित्रों मै 1973 से आपातकाल में 1976 को अक्तूबर महीने मे बडौदा डायनामाईट केसमे अमरावती जेल जाने के बाद मैंने राष्ट्र सेवा दल के पूर्ण समय कार्यकर्ता के पद त्याग दिया था क्योंकि राष्ट्र सेवा दल के संघटन को आंच नहीं आनी चाहिए 1969 के गांधी जन्मशती के उपलक्ष्य में सेवाग्राम वर्धा मे प्रथम बैच की कस्तूरबा गांधी मेडिकल कालेज के एडमिशनमे गडबडी होने के कारण इंदु शेंडे नामकी एक लडकी का अनशन चल रहाथा और मै अमरावती मेडिकल कॉलेज के जी एस होने के हैसियत से इस लडकी को विदर्भ के सभी मेडिकल कॉलेज के जी एस और विद्यार्थीयोने सपोर्ट किया था यह मामला उस समय महाराष्ट्र विधानसभा में भी गुंजा था और मिडिया आज के जैसा हर जिले में विभाजित किया गया है वैसा नहीं था संपूर्ण महाराष्ट्र की खबर हर अखबरोमे और गोंदिया से लेकर बांदा तक सब के नजर में आती थी !
एक तरफ महात्मा गाँधी जी के जन्मशती उत्सव की सेवाग्राम आश्रम में बादशाह खान अब्दुल गफ्फार खां से लेकर जयप्रकाश नारायण और देश के अन्य नेताओं का आना जाना और इंदु शेंडे का अपनी मेरीटमे होने के बावजूद किसी एक प्रभावशाली गांधीयन की बेटी को इंदु शेंडे की जगह उसके मार्क कम होने के बावजूद अंतिम समय में उस गांधीयन परिवार की लडकी को एडमिशनमे प्राथमिकता दी गई थी ! गाँधी जी के और जन्मशती के उपलक्ष्य में कस्तूरबा के नाम पर शुरू किया जाने वाला मेडिकल कॉलेज में पहलीही बैच के समय यह अफरा तफरी करने के कारण हम सब मेडिकल कॉलेज के विद्यार्थीयोने इंदु शेंडे के उपर हुए अन्याय का एकजुट होकर विरोध करने के कारण मेरा परिचय दस साल पस्चात 1979 के सोलह जनवरी को भंडारा मैरेज रजिस्टार के सामने मेरे दो दोस्त और इंदु शेंडे के स्कूल के दो दोस्तों की उपस्थिति में विवाह करने के पस्चात मै उरण के एक अभ्यास शिबीरमे चला गया !
हमारे शादी के नाही कोई कार्ड या रिसेप्शन और कोई भी विधि ना करते हुए सिर्फ डेढ़ रूपये मे शादी की थी डेढ़ भी इसलिये कि मेरे माता-पिता धुलिया जिला के इंदु शेंडे के वर्धा और शादी भंडारामे इस कारण रजिस्टार को तीन जगहों पर नोटिस भेजने की फीस के रुप मे एक रूपये का नुकसान हुआ काश एक ही जगह नोटिस भेजने की फीस के सिर्फ आठ आने खर्च आया होता इसलिए एक रूपये का नुकसान अभी भी याद आने से दुख होता है !
1980 के 24 फरवरी को हमारे बेटे कृष्णा का जन्म हुआ है और सिजेरियन सेक्शन की वजह से मेडम इंदु को सवा महीने की कंपलसरी बेडरेस्ट करने के लिए मजबूर होना पड़ा था और आंतर जातीय शादी के कारण दोनों के परिवार नाराजगी का मामला होने के कारण मजबूरन मुझे इंदु के सिजर ऑपरेशन की जगह रोज ड्रेसिंग करने से लेकर हमारे बेटे की शी-सू और बोतल से दुध पिलाने इत्यादि बालसंगोपन के कामकाज से लेकर हमारे घर के लिए खाना बनाना और घर की सफाई से लेकर कपड़े बर्तन धोना पड़ा क्योंकि हमारे बजट में नौकर रखने का प्रावधान नहीं था ! फिर सवा महीनों बाद दुसरे बेटे के समय भी सिजेरियन सेक्शन की वजह वही तीमारदारी उपर से पहला बेटे को सम्हलने की सर्कस यह मेरा जीवन का शायद सबसे ज्यादा मेहनत और परीक्षा की घड़ी का समय रहा है !
आपातकाल के जेल की बात हो या राष्ट्र सेवा दल के संघटन को भी लेकर पूर्ण समय कार्यकर्ता की भुमिका मे भी इतना कष्ट करने की जरूरत नहीं पडी ! मै महाराष्ट्र की तथाकथित 96 कुलीन मराठा घर में पैदा हुआ लडका कभी पीने के पानी को भी खुद को लेना नहीं पडता था ! फिर अन्य घरेलू काम करने की कभी जरूरत ही नहीं पडी !
उम्र के सत्ताइसवे साल की 16 जनवरी 1979 के बाद मेरी संपूर्ण क्रांति का प्रयोग भुमि 1989 के भागलपुर दंगा तकरीबन दस साल का समय शुध्द रूप से हाऊस हज्बंड का रहा है और कदम कदम पर मेरे अंदर के पुरुष का अहंकार के उपर से उठने का समय है !
बिचका तफसील दूंगा तो शायद एक किताब की शक्ल में हो जायेगा क्योंकि दोनों बच्चों को लालन पालन में बीमारियों से लेकर हमारे अपने आर्थिक तंगी के कारण कोलकात्ता जैसा शहर में 1982 से 1997 यानी मेरे उम्र के तीस से पैंतालीस और हमारे बच्चों के दो और एक साल की उम्र से बोर्ड के परीक्षा का समय कलकत्ता का रहा है और उपरसे महाराष्ट्र से आने वाले ज्यादा तर मेहमान पन्नलाल सुराणा,भाई वैद्द,गप्र प्रधान,यदुनाथ थत्ते,आचार्य केलकर,मेधा पाटकर,ठाकुरदास बंग,वसंत पळशीकर,सुंदर लाल बहुगुणा और जेपी आंदोलन के पुराने मित्र यानी हमारा घर धर्मशाला में तब्दील हो गया था लेकिन जितने का नाम लिया है सब के हिस्से में घर के काम करने के लिए कोई ना कोई जिम्मेदारी दी जाती थी और वह सभी आनंद से वह काम करते थे!
इसकारण एखादा अपवाद छोड़ कर सभी ने हमारे बच्चों को सम्हलने से लेकर खाना बनाने और घरेलू कामों में हाथ बटाने के कारण हमारे घर पर आये किसी भी मेहमान के कारण हमारे उपर बोझ नहीं लगा उल्टा हमारे बच्चे एक-दो दिन गेप के बाद आज मेहमान क्यों नहीं आये ऐसा पूछते थे और आज हमारे एकही बेटे के रहने के कारण वह भी हमसे ज्यादा सेकुलर और किसी भी तरह का भेदभाव नहीं मानने वाला है ! और इसका एकमात्र कारण बचपनसे उन्हें महाराष्ट्र के और भारत की जाति धर्मनिरपेक्ष समाज के लिए प्रयास करने वाले क्रीम की सोहबत मे बडा होनेका मौका मिला है अन्यथा आजकल हमारे अपने ही घरों में जातीयता और सांप्रदायिकता का कोरोना जैसे महामारी के शिकार घर भी है मैंने खुद ऐसे घरों को देखा है ! इसलिए राष्ट्र सेवा दल की इतनी आवश्यकता 80 साल के दौर में कभी नहीं रही होगी उतनी आज है और यह गतिविधि बढानेका प्रयास यही वर्तमान फासिस्ट माहौल को रोकने कि कोशिश होगी यही मेरा मानना है और व्यक्तिगत रूप से अपने आप को इसी गतिविधि के लिए खपाकर मरने से पहले कुछ बदलाव की प्रक्रिया को गति प्रदान करता रहूँ यही मेरा दृढ संकल्प के साथ सभीको क्रांतिकारी सलाम
डॉ सुरेश खैरनार