यह एक दस्तूर सा बन गया है कि जब उत्तर भारत में जाड़े का मौसम दस्तक देता है, तो दिल्ली में प्रदूषण पर बहस शुरू हो जाती है. पहले दीवाली के पटाखों को लेकर और बाद में आसपास के इलाकों में धान के पुआल जलाने के कारण उठे धुओं को लेकर. लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या सिर्फ दिल्ली ही भारत का एक मात्र शहर है, जहां प्रदूषण की ये स्थिति है? क्या देश के दूसरे शहरों की सुध लेने वाला कोई है? उन गांवों का क्या जहां तक मीडिया की नज़र नहीं पहुंचती? प्रदूषण के जो दूसरे प्रकार हैं उनपर बहस और उनका निदान कौन करेगा? अब रिपोर्ट्स आने लगीं हैं कि भारत में वर्ष दर वर्ष न केवल प्रदूषण स्तर में वृद्धि हो रही है बल्कि प्रदूषण जनित रोगों से मरने वालों की संख्या में भी लगातार वृद्धि हो रही है.
फिलहाल बात दिल्ली से शुरू करते हैं. यहां इस वर्ष भी प्रदूषण पर बहस उस समय शुरू हुई जब दिल्ली के आसमान को धुंओं की चादर (जिसे स्मॉग कहा गया) ने ढक लिया. लोगों की सांसें उखड़ने लगीं और आंखें जलने लगीं. दिल्ली सरकार ने एक बार फिर ऑड-इवेन का राग अलापा. लेकिन दफ्तरी अडचनों के कारण बात आगे न बढ़ सकी. हालात की गंभीरता को देखते हुए स्कूल बंद रखने के आदेश दे दिए गए. जो दिल्ली छोड़ सकते थे वे छोड़ कर जाने लगे. दिल्ली स्थित कई दूतावासों ने अपने गैरज़रूरी स्टाफ को सिंगापुर भेज दिया. कोस्टा रिका के राजदूत को दिल्ली छोड़ बंगलौर में शरण लेनी पड़ी. शायद ऐसे ही हालात के लिए शायर ने यह शेर लिखा था- सीने में जलन आंखों में तूफ़ान सा क्यों है/इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यों है. इसमें कोई शक नहीं कि स्मॉग के कारण दिल्ली का हर शख्स परेशान था. धुंध के कारण कई सड़क दुर्घटनाएं हुईं, रेल और हवाई यातायात बाधित हुआ.
दिल्ली और उत्तर भारत के अन्य शहरों के वायु गुणवत्ता सूचकांक (एयर क्वालिटी इंडेक्स) के आंकड़े डब्लूएचओ द्वारा निर्धारित 60 यूनिट से कम पीएम-10 की सुरक्षित सीमा से कई गुना अधिक हो गए हैं. उदाहरण के लिए, उत्तर भारत के कुछ शहरों के प्रदूषण स्तर पर एक नज़र डालें, तो कई शहर ऐसे हैं जहां की स्थिति दिल्ली से भी खतरनाक है. 16 नवम्बर को दिल्ली और उत्तर भारत के कुछ शहरों का एअर क्वालिटी इंडेक्स इस प्रकार है: दिल्ली (198.7), गुरुग्राम (187.6), नोएडा (255.9), फरीदाबाद (291), ग़ाज़ियाबाद (286.6), मुरादाबाद (291.9), लखनऊ (217.6), आगरा (185.5). ये आंकड़े साबित करते हैं कि उत्तर भारत का प्रदूषण स्तर डब्लूएचओ के सुरक्षित सीमा से इतना अधिक हो गया है कि यदि इन्हें गैस चैम्बर कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, दिल्ली का एक्यूआई आमतौर पर 300 से 400 के बीच रहता है और कभी-कभी 440 के स्तर तक पहुंच जाता है.
दुनिया और भारत
इस वर्ष के शुरू में प्रकशित ग्रीनपीस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले पांच वर्षों में भारत में वायु प्रदूषण का स्तर 13 प्रतिशत बढ़ा है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, चीन के बड़े शहर जो हमेशा धुंध में डूबे रहते थे, वहां वर्ष 2010 से 2015 तक प्रदूषण स्तर में 17 प्रतिशत की गिरावट आई है. दुनिया में सबसे अधिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन करने वाले देश अमेरिका में भी पिछले पांच वर्षों के दौरान वायु प्रदूषण स्तर में 15 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई, जबकि यूरोपीय यूनियन में वर्ष 2005 और 2013 के दौरान 20 प्रतिशत की कमी देखी गई. इन देशों में प्रदूषण के स्तर यूं ही में सुधार नहीं हो गया, बल्कि इसके लिए काफी प्रयास किए गए.
इस मामले में भारत के पिछड़ने का एक कारण मॉनिटरिंग व्यवस्था की कमी भी है. वर्ष 2016 तक भारत के 23 शहरों में केवल 39 प्रदूषण मॉनिटरिंग स्टेशन थे, जबकि चीन के 900 शहरों और कस्बों में 1500 मॉनिटरिंग स्टेशन हैं. अमेरिका के 450 शहरों में 770 मॉनिटरिंग स्टेशन हैं, जबकि यूरोपीय यूनियन के 400 शहरों में 1000 मॉनिटरिंग स्टेशन काम कर रहे हैं. इस पृष्ठभूमि में यह समझना मुश्किल नहीं है कि क्यों भारत अपने वायु गुणवत्ता सुधार के लिए अपने ही द्वारा स्थापित लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सका, जबकि चीन जिसके शहर बीजिंग को वायु प्रदूषण की राजधानी कहा जाता था, वो अपने वायु की गुणवत्ता में व्यापक सुधार की ओर अग्रसर है. भारत के अधिकतर शहर राष्ट्रीय परिवेश वायु गुणवत्ता मानक (एनएएक्यूएस) के लक्ष्यों को प्राप्त करने में असफल हैं.
ज़हर बनता पानी और शोर बनते शहर
दिल्ली में आई धुंध ने और उसके कारण वायु प्रदूषण स्तर ने समाचार पत्रों और टीवी चैनलों में सुर्खियां बटोर ली, लेकिन वायु प्रदूषण के साथ-साथ जल प्रदूषण की स्थित भी कम ख़तरनाक नहीं है. वाटर ऐड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत का 80 प्रतिशत सरफेस वाटर खतरनाक हद तक प्रदूषित हो चुका है. चौथी दुनिया ने नमामि गंगे और गंगा नदी के प्रदूषण पर कई रिपोर्ट्स प्रकाशित की है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक, 75 से 80 प्रतिशत जल प्रदूषण का कारण घरों से निकलने वाले सीवरेज के दूषित पानी का जल के साधनों में बे-रोक-टोक मिलना है. इसके कारण वेक्टर जनित बीमारियों जैसे कॉलरा, हैजा, जौंडिस आदि रोगों के मामले बढ़े हैं. ध्वनि प्रदूषण का भी हाल कुछ ठीक नहीं है. अभी हाल ही में पर्यावरण मंत्रालय ने राज्यसभा को बताया कि देश के 7 शहरों में ध्वनि प्रदूषण स्वीकार्य सीमा से ऊपर चला गया है. इन शहरों में दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बंगलुरु, लखनऊ, हैदराबाद शामिल हैं. इस प्रदूषण का व्यापक प्रभाव पर्यावरण पर तो पड़ ही रहा है, इंसान को भी इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है.
प्रदूषण की मार
मेडिकल जर्नल लांसेट द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, भारत के कुल मरीजों में से 6 प्रतिशत मरीज़ वायु प्रदूषणजनित रोगों से ग्रसित हैं. हालांकि वर्ष 1990 और 2016 के बीच वायु प्रदूषण जनित रोगियों की संख्या में गिरावट आई है, लेकिन इसका कारण घरों में इस्तेमाल होने वाले इंधन का बदलाव है, जिसकी वजह से यह कमी आई है. इस अध्ययन के मुताबिक, बाहरी प्रदूषण के कारण होने वाले रोगों से सबसे अधिक प्रभावित उत्तर भारत के राज्य हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, बिहार और पश्चिम बंगाल हैं. प्रदूषण जनित रोगों के कारण हुई मौत के मामले में भारत दुनिया के 188 देशों में पांचवें स्थान पर है. लांसेट के अध्ययन के अनुसार, 2015 में दुनियाभर में 90 लाख लोग प्रदूषण जनित रोगों के कारण मारे गए, इनमें 28 प्रतिशत लोगों का सम्बन्ध भारत से था. ज़ाहिर है ये आंकड़े बहुत गंभीर संकेत दे रहे हैं. अगर त्वरित रूप से इन पर काबू नहीं पाया गया, तो और अधिक भयानक परिणाम सामने आ सकते हैं.
समस्या का निदान कितना आसान
दिल्ली में स्मॉग के आक्रमण से निपटने के लिए दिल्ली सरकार ने हेलीकॉप्टर द्वारा पानी के छिड़काव से लेकर ऑड-ईवन जैसे उपायों पर विचार किया और कर रही है. चूंकि दिल्ली देश की राजधानी है और देश के सभी बड़े टीवी चैनल्स यहीं से ख़बरें प्रसारित करते हैं, इसलिए सबकी नज़रें यहां जमी हुई हैं. लेकिन जैसा कि आंकड़े ज़ाहिर करते हैं, वायु प्रदूषण के मामले में भारत के कई शहर दिल्ली से भी आगे हैं. ज़ाहिर है, उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया है. बहारहाल, विश्व के अधिक प्रदूषण वाले देशों ने कुछ उपाए कर अपना प्रदूषण रोकने में कामयाबी हासिल की है. प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए सबसे पहले अधिक से अधिक शहरों में मॉनिटरिंग स्टेशन स्थापित करना चाहिए, ताकि यह पता चल सके कि देश के अलग-अलग हिस्सों में प्रदूषण की स्थिति क्या है. इसके अलावा दुनिया के दूसरे देशों में मल्टी-फंक्शन डस्ट सेप्रेशन ट्रक, वेंटिलेटर कॉरिडोर, स्मॉग पुलिस, कोयले की खपत में कमी, यातायात नियंत्रण (जैसे ऑड-ईवन का तरीका और पार्किंग में कमी, आदि), सार्वजनिक परिवहन बेहतर करना, आदि शामिल हैं.
ज़ाहिर है कि प्रदूषण एक बड़ी समस्या है. प्रदूषण केवल वायु प्रदूषण नहीं होता है. दुनिया के बड़े और विकसित देशों, जहां प्रदूषण एक बड़ी समस्या थी, ने यदि प्रदूषण पर काबू पा लिया है, तो कोई वजह नहीं कि भारत में वैसा नहीं हो सकता. लेकिन भारत में समस्या यह है कि एक तो यहां जनता में जागरूकता का आभाव है, वहीं सरकारें भी बस खानापूरी ही करती हैं. नमामि गंगे और स्वच्छ भारत अभियान इसके जवलंत उदहारण हैं. करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी कहानी वहीं की वहीं रुकी हुई है. इसलिए ज़रूरी है कि सरकारी कोशिशों के साथ-साथ लोगों को भी जागरूक किया जाए कि वे अपने परिवेश को साफ़ सुथरा रखें और सरकार पर भी उसे साफ़ रखने के लिए दबाव बनाएं.
पर्यावरण संरक्षण के आसान उपाय
पर्यावरण संरक्षण का अर्थ विकास ही समझा जाना चाहिए और इस कार्य में ग्रामीण तथा शहरी सभी लोगों को सक्रिय होकर हिस्सा लेना चाहिए. भारतीय संस्कृति में वनों के महत्व को समझते हुए उनके संरक्षण को उचित मान्यता दी गई है. जनसाधारण को प्रदूषण से उत्पन्न खतरों से अवगत कराया जाना चाहिए, ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपने स्तर पर प्रदूषण कम से कम करने का हर सम्भव प्रयास ईमानदारी से करे. विस्तृत पैमाने पर उचित वृक्षारोपण कर प्रदूषण को कम किया जा सकता है.
इसके लिए सरकार को चाहिए कि वह जगह-जगह कुछ ऐसी भूमि की व्यवस्था करे, जहां पर व्यक्ति अपने नाम से, यादगार व स्वास्थ्य के लिए कम से कम एक वृक्ष लगा सके. जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण कर प्रदूषण को काफी हद तक कम किया जा सकता है. प्रदूषण से बचने के लिए यह आवश्यक है कि किसी भी परियोजना को तैयार किए जाने के समय ही पर्यावरण से सम्बंधित मसलों पर विचार कर, उन्हें परियोजना में शामिल कर लिया जाए. प्रदूषण पर नियंत्रण पाने के लिए प्राकृतिक संसाधनों, कूड़े-कचरे व अवांछित पदार्थों का नियोजित ढंग से प्रबंध कर तथा विषैले रसायनों का प्रचलन रोक कर किया जा सकता है.
शेनज़ेन कैसे बन गया साफ-सुथरा शहर
चीन वायु प्रदूषण से बहुत ज्यादा पीड़ित देशों में से है. इसने अपने शहरों से कार्बन कम करने की कवायद शुरू की. इसी कडी में शेनजेन शहर को लो कार्बन सिटी बनाया जा रहा है. शेनज़ेन की स्थिति बेहतर हुई है. अधिकारियों के मुताबिक, यहां 50 फ़ीसदी तक वायु प्रदूषण कम करने में कामयाबी मिली है. शेनज़ेन हांगकांग की सीमा पर बसा शहर है, इसकी आबादी 1.1 करोड़ है. यह देश का तेज़ी से बढ़ता शहर है. यहां दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कंटेनर पोर्ट भी मौजूद है. इस पोर्ट पर सैकड़ों क्रेन समुद्री जहाजों पर माल को लादते-उतारते हैं. जब इस बंदरगाह में कोई डीजल ईंधन से चलने वाला जहाज प्रवेश करता है, तो अपने इंजन बंद कर देता है, उसकी जगह उसे बंदरगाह से चलने वाले क्लीन इलेक्ट्रेसिटी केबल के जरिए ऊर्जा मिलने लगती है. इसी तरह से शहर के अंदर इलेक्ट्रिक बसें और टैक्सियां चलाई जा रही हैं, प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग इकाईयों को बंद किया गया है. लेकिन सबसे प्रभावी क़दम, वायु की गुणवत्ता को लेकर बनाए गए सख़्त क़ानून का बनाया जाना है. क़ानून का उल्लंघन करने वालों को कड़ी सजा मिलती हैं. यहां औद्योगिक इकाईयों से निकलने वाले प्रदूषण के आंकड़ों की निगरानी होती है.