‘धर्म (मजहब) जब तक दिल में रहता है तब तक वह मजहब होता है लेकिन जब दिमाग पर चढ जाता है तो जहर बन जाता है।’ मशहूर अदीब सआदत हसन मंटो ने यह बात अपने एक मुख्तसर अफसाने में मुल्क की तकसीम के वक्त लिखी थी। आज पचहत्तर साल बाद मंटो की बात पूरी तरह सच साबित हो रही है। क्योकि मुल्क के हर कोने में मजहब के ऐसे ठेकेदार पैदा हो गए हैं जिनके दिमागों में जहर भर गया है और वह नफरत की आग में अंधे हो चुके हैं। इस मजहबी अंधेपन का ताजा सुबूत गुजिश्ता हफ्ते मध्य प्रदेश के नीमच जिले के मनासा में मिला है जहां रतलाम जिले के सरसी के रहने वाले पैंसठ साल के बुजुर्ग भंवरलाल जैन को मजहब के जहर में डूबे दिनेश कुशवाहा ने इसलिए पीट-पीट कर मार डाला कि दिनेश भंवरलाल को मुसलमान समझ रहा था। भंवरलाल के लिए बताया गया कि ज्यादा उम्र की वजह से उनकी याद्दाश्त कमजोर हो गई थी और वह किसी सवाल का जवाब भी ठीक से नहीं दे पाते थे। दिनेश कुशवाहा ने उन्हें यह समझ कर पकड़ा कि शायद वह मुसलमान हैं उनसे नाम पूछा तो उनकी जबान लड़खड़ा रही थी तो दिनेश कहता है कि ‘अच्छा तू मुसलमान है, तेरा नाम मोहम्मद है।’ यह कहते हुए उसने उस बुजुर्ग को इतना मारा कि उनकी मौत हो गई।
दिमागों में इतना जहर खुसूसन मध्य प्रदेश के लोगों के जेहनों में नफरत की आग लगाने का काम किसी और ने नहीं बल्कि खुद वजीर-ए-आला शिवराज सिंह चैहान और उन्हें जल्द से जल्द हटाकर वजीर-ए-आला बनने के उतावले उनके होम मिनिस्टर नरोत्तम मिश्रा ने किया है। गुजिश्ता दो सालों से इन दोनों का रवय्या मुस्लिम दुश्मनी का है वह भी खुलेआम अपनी मुस्लिम दुश्मनी की जेहनियत को यह लोग छिपाते भी नहीं हैं। उसी का असर मध्य प्रदेश में हिन्दुओं के नाम पर बनी तंजीमों के गुण्डों पर साफ दिखाई देता है। गुजिश्ता दिनों खरगौन में हुए दंगे के दौरान एक मुसलमान को छः-सात लोगों ने पकड़कर इसलिए पीट-पीट कर मार डाला कि वह गोल टोपी लगाकर घर से बाहर निकल गया था। वह भीड़ में नहीं गया था, वह बाहर निकला तो पुलिस वाले उसे पकड़कर थाने ले गए और थाने से उसे कातिल भीड़ के हवाले कर दिया गया। खरगौन के मुसलमान और मुसलमान होने के शक में नीमच में मारे गए भंवरलाल जैन दोनों के मामलात में सीसीटीवी कैमरे की फुटेज की वजह से कातिलों का पता चल सका। अगर रिकार्डिंग न मिलती तो दोनों मामलात में पुलिस लीपापोती करके काम तमाम कर देती। मध्य प्रदेश के लोगों में जहर भरने का ही नतीजा है कि यह जहरीले लोग यह समझने लगे हैं कि वह मुसलमानों के खिलाफ कुछ भी करेंगे तो भी उनके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं होगी।
मामला सिर्फ मध्य प्रदेश तक महदूद नहीं है जिस-जिस प्रदेश में बीजेपी की सरकार है उन सभी प्रदेशों का यही हाल है। यह सूरतेहाल 2014 के बाद से ही पैदा हुई है। ऐसी नफरत का माहौल पैदा होने की वजह साफ है क्योंकि बीजेपी सरकारों वाले प्रदेशों में जहरीले लोगों के खिलाफ कार्रवाई होना तो दूर हमेशा उनकी हौसला अफजाई होती है। राजस्थान में वसुंधरा सरकार के जमाने में शम्भू लाल रेंगर नाम के एक जहरीले शख्स ने एक मुसलमान को काट कर मारा और मरने से पहले ही उसे जला दिया। रेंगर को सरकार पर इतना भरोसा था कि उसने अपनी हरकत की वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल कर दी। मजबूरन पुलिस को उसे गिरफ्तार करना पड़ा। लेकिन भारतीय जनता पार्टी और बजरंग दल ने जो कुछ किया वह बहुत ही शर्मनाक था। रामनवमी के अगले जुलूस में जहां राम-लक्ष्मण की झाकियां शामिल की गईं उन्हीं झाकियांे में शम्भू रेंगर की भी झांकी बनाकर शामिल की गई। इसपर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई।
झारखण्ड मे गौकुशी के नाम पर दो मुसलमानों की लिंचिंग करने वाले कातिलों को सरकार की मिलीभगत से जमानत मिल गई तो उस वक्त मोदी वजारत में शामिल फाइनेंस मिनिस्टर आफ स्टेट जयंत सिन्हा ने उन कातिलों को घर बुलाकर न सिर्फ खातिर की बल्कि उन्हें हार फूल पहनाकर उनकी इज्जत अफजाई भी की। कर्नाटक में श्रीराम सेने बनाकर गुण्डई और वसूली करने वाला प्रमोद मुथालिक मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाते हुए राजधानी बंगलौर से केरल की सरहद तक घूमता रहता है और मुसलमानों के खिलाफ जहर ही उगलता रहता है। वहीं पर ‘हिन्दू जनजागृति समिति’ नाम की एक नई तंजीम हिन्दुओं से खुली अपील करती है कि वह मुस्लिम फल वालों से फल न खरीदें और मुस्लिम टैक्सी ड्राइवरों की टैक्सी में न बैठे। उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती। जबकि उत्तर प्रदेश के शामली में मेम्बर असम्बली नाहिद हसन ने एक प्राइवेट जलसे में कह दिया था कि अगर शहर के बीजेपी से मुताल्लिक कारोबारी अपनी हरकतों से बाज न आए तो मुसलमान उनकी दुकानों से सामान न खरीदें। इसपर नाहिद हसन के खिलाफ दो तबकों के दरम्यान नफरत फैलाने की दफा के साथ-साथ गैंगस्टर एक्ट लगा दिया गया। वह फरवरी से जेल में हैं।
नफरत फैलाने का काम हिन्दुओं के तहफ्फुज (रक्षा) के नाम पर बनी तंजीमें भी कर रही हैं। हिन्दुओं की हिफाजत के लिए वजीर-ए-आजम मोदी हैं होम मिनिस्टर अमित शाह हैं, रियासतों में चीफ मिनिस्टर्स हैं, पुलिस है पैरा मिलीट्री फोर्सेज है। इसके बावजूद नफरत के जहरीले कारोबारी हिन्दू रक्षक के नाम पर रोज नई-नई तंजीमें बनाते जा रहे हैं। कोई उनसे यह तक नहीं पूछता कि आखिर उनके पास पैसा कहां से आता है मुल्क में तकरीबन पचहत्तर फीसद हिन्दू हैं, अट्ठारह से बीस फीसद मुसलमान हैं। मुसलमानों ने तो आज तक अपने तहफ्फुज (सुरक्षा) के नाम पर कोई तंजीम (संगठन) नहीं बनाई। पांच फीसद से कम आबादी वाले सिखों, ईसाइयों, जैनियों और बौद्धिस्टों ने भी ऐसी कोई सेना नहीं बनाई, फिर पचहत्तर फीसद से ज्यादा आबादी वाले हिन्दुओं को ‘रक्षादल’ और ‘सेनाएं’ बनाने की क्या जरूरत है। उन्हें कौन सा खतरा है। फिर भी कुकुरमुत्तों की तरह नई-नई सेनाएं और रक्षादल बनते ही चले जारहे हैं। मोदी की मरकजी सरकार हो, या रियासती सरकारें किसी ने आजतक इन सेनाओं और रक्षादलों पर सवाल तक नहीं उठाए हैं। यह कहां का इंसाफ है। ऐसे हालात में अगर नफरत नहीं बढेगी मुसलमानों के खिलाफ जहर नहीं फैलेगा तो और क्या होगा। इससे तो लगता है कि बीजेपी सरकारें जानबूझकर नफरती अनासिर को आगे बढाने का काम कर रही हैं। यह देश और समाज के लिए इंतेहाई खतरनाक है।

 

Source : Jadid Markaz

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