विदिशा मध्य प्रदेश में रहने वाले कवि दफ़ैरून अपने अनोखे और प्रभावशाली लेखन के लिए जाने जाते हैं।उनके तीन कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं।प्रस्तुत हैं उनकी पांच कविताएं।
-ब्रज श्रीवास्तव
बच्चा
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बच्चा खड़ा होना चाहता है
वक़्त नहीं चाहता बच्चा खड़ा हो
बच्चा धम्म से गिरता है
बार – बार खड़े होते बच्चे के पाँव में
वक़्त बार – बार टंगड़ी मारता है
बच्चा बार – बार गिरता है
और फिर – फिर खड़ा होना चाहता है
वक़्त की हरक़त बच्चे के दिल में
ज़िद को जन्म दे रही है
बच्चा वक़्त को मुस्कुरा कर देखता है
बच्चा वक़्त को खिलखिला कर देखता है
अचम्भित वक़्त बच्चे को झुक कर देखता है
बच्चा ठीक उसी वक़्त पकड़ लेता है वक़्त को
और दोनों हथेलियों के बीच
आटे की लोई सा गोल – गोल घुमाता है
तड़फड़ाता वक़्त फिसल जाने के लिये
गेंद में तब्दील हो जाता है
और तब बच्चा खड़ा ही नहीं होता
दूर तक उसके पीछे दौड़ता चला जाता है
* दफ़ैरून
यह पहले घर था
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यहां पहले बहुत शोर रहता था
यहां पहले बहुत हंसी रहती थी
यहां पहले रात में बहुत देर तक
बहती रहती थी रोशनी
फिर धीरे-धीरे शोर कम हुआ
और कम होता चला गया
फिर धीरे-धीरे हंसी कम हुई
और कम होती चली गई
फिर धीरे-धीरे रोशनी कम हुई
और कम होती चली गई
यह जो आप मकान देख रहे हैं
पहले घर था
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* दफ़ैरून
(मेरे कविता संग्रह ” पत्थरों ने कब कान पाए ‘ से)
: सत्ता
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सत्ता
केवल उन्हें बचाती है
जो सत्ता को बचाते हैं
सत्ता ने
तुम्हें बचाया
तुमने सत्ता की कृतज्ञता प्रकट की
और उसके जहाज के छेद में
जो डुबा सकता था उसे कभी भी
जा चिपके
फेविकोल के मज़बूत जोड़ से
कहते हैं कि
सत्ता के हज़ार हाथ होते हैं
तो फिर तुमने सोचा कभी –
तुम्हारे साथ ही
जो एक और डूब रहा था
सत्ता ने उसे डूबने दिया ?
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* दफ़ैरून
जैसे प्यार के
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बारिश गिर रही है
धीरे.. धीरे..
सैमों के
खीरों के
आमों के
अमरूदों के
बीजों ने
खोलना शुरू कर दी हैं आंखें
नन्हे नन्हे सिर उठा
देखने लगे हैं आकाश
टुकुर टुकुर विस्मित
यही नहीं
टुकुर टुकुर विस्मित
सिर उठा देखते आकाश
आंखें खोल रहे हैं बीज
और भी सौ प्रकार के
जैसे महुए के
जैसे अनार के
जैसे प्यार के
बारिश गिर रही है
धीरे.. धीरे..
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* दफ़ैरून
( पेड़ अकेला नहीं कटता ‘ से )
मैं मिला उससे
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मैं मिला उससे
अपने वास्तविक चेहरे के साथ
उसे पसंद नहीं आया
और हमारा ब्रेकअप हो गया
मेरे पास कुछ चेहरे हैं
लो देखो
पसंद करो
कहो , मैं तुम से
किस चहरे के साथ मिलूं ।
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*दफैरून
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