अभी हम बात करते हैं, प्रदेश की राजधानी से तकरीबन 250 किलोमीटर दूर गोमती के उद्गम स्थल माधोटांडा की. यहां इन दिनों काफी चहल-पहल है. पौ फटते ही आसपास के गांवों से लोगों की भीड़ इस पावन स्थान पर जुटने लगती है. यहां पर कोई गोमती के भीतर कचरा साफ करता हुआ, तो कोई उसके किनारे हो रहे सौंदर्यीकरण के लिए, तो कोई गोमती के अविरल प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए हो रही खुदाई कार्य के लिए श्रमदान करता नजर आता है. श्रम और सेवा के इस समागम में पीलीभीत के जिलाधिकारी डॉ. अखिलेश कुमार मिश्र स्थानीय जनता से बातें करते हुए तो कभी लापरवाह सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों को हिदायत देते नजर आते हैं. उनकी कोशिश लोगों की जिंदगी और आस्था से जुड़ी पावन गोमती को पुनर्जीवित कर इसे धार्मिक पर्यटन के नक्शे पर जगह दिलाने की है.

काम कर गई डीएम की अपील

पीलीभीत के डीएम अखिलेश कुमार मिश्र ने जब मां गोमती के उद्घोष के साथ फावड़ा चलाकर ऐतिहासिक श्रमदान का शुभारम्भ किया, तो लोग बड़ी संख्या में अभियान से जुड़ते गए. उन्होंने स्थानीय जनता से आह्वान किया तो आसपास की तमाम ग्राम पंचायतें इस कार्य में समय और श्रमदान के लिए सहर्ष तैयार हो गईं. इस पावन तीर्थ का कायापलट करने के लिए लोगों ने खुद ही अपने लिए काम बांट लिए हैं. किसी ने आस-पास के गांवों में नदी को पुनर्जीवित करने के लिए जन-जागरण की जिम्मेदारी संभाली है, तो किसी ने यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए कराए जा रहे काम में हाथ बंटाने का जिम्मा उठाया है. यहां आने वाला तीर्थयात्री भी यह सब देख कर इस नेक काम में कुछ न कुछ आर्थिक मदद देकर जा रहा है. गोमती किनारे स्थित दुर्गानाथ मठ में सन 1989 से पूजा-पाठ करा रहे महंत रतनगिरि कहते हैं कि जैसे ही झील में जमी रेत-मिट्टी हट जाएगी, वैसे ही उद्गम स्थल के बाकी जल स्रोत भी खुल जाएंगे और नदी में पानी की कमी नहीं रहेगी.

सरकारी मदद की नहीं है दरकार

माधोटांडा में बड़ी संख्या में जुटे लोगों को देखकर यह आसानी से समझा जा सकता है कि गोमती को लेकर जनमानस अब जाग गया है और उसके पुनरुद्धार को लेकर चारों ओर चर्चा हो रही है. गोमती पर ढाए गए जुल्म के खिलाफ अब लोग मुखर भी हो रहे हैं और उसके पुनर्जीवन के लिए आगे भी आ रहे हैं. सहभागिता का ही नतीजा है कि गोमती के उद्गम स्थल के पुनरुद्धार का कार्य तेजी से हो रहा है. फुलहर झील से जलकुंभी साफ कर दी गई है. अब मुख्य उद्गम स्थल पर गोमती का पानी साफ दिखने लगा है. साथ ही इस पावन तीर्थ स्थल पर मंदिर के जीर्णोद्धार के साथ रंगाई-पुताई का कार्य जारी है. पीलीभीत जनपद के माधोटांडा कस्बे के पास (गोमत ताल) फुलहर झील से शुरू होकर गोमती नदी शाहजहांपुर, लखीमपुर, सीतापुर, लखनऊ, बाराबंकी, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, जौनपुर होते हुए 960 किमी का सफर तय करके वाराणसी के पास गंगा में मिलती है.

हैलो हाय छोड़िए, जय गोमती मइया बोलिए

पीलीभीत के डीएम अब स्थानीय लोगों को हैलो हाय छोड़ कर जय गोमती बोलने की अपील कर रहे हैं. उनकी यह अपील कारगर हो रही है. लोग फोन पर आम बातचीत से पहले बिल्कुल वैसे ही जय गोमती मइया बोलने लगे हैं, जैसे ब्रजमंडल में अभिवादन के लिए राधे-राधे कहते हैं. अभी यह शुरुआत है, लेकिन सोशल मीडिया के कमेंट बॉक्स में भी लोग जय गोमती बोल कर लोगों का अभिवादन कर रहे हैं. इस अभियान की खास बात यह है कि इसमें सरकार से कोई आर्थिक मदद नहीं ली जा रही है. सब कुछ जन सहयोग से चल रहा है. स्थानीय लोगों का विश्वास है कि यदि ऐसी ही प्रगति रही, तो एक बार फिर उन्हें गोमती के बहते जल का कल-कल संगीत सुनने को मिलेगा.

-मधुकर मिश्र-

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