पितरों के प्रति श्रद्धा निवेदित करने और उन्हें मोक्ष दिलाने के लिए प्रतिवर्ष गया में पितृपक्ष मेला लगता है. लेकिन लगता है इस बार तीर्थयात्री आधी-अधूरी तैयारी के बीच पिंडदान करेंगे. पितृपक्ष मेले के नाम पर संबंधित विभागों की ओर से महीने भर से तैयारी की जाती है, कई बैठकें होती हैं, लोगों से सुझाव लिए जाते हैं और मेले का समय निकट आने पर आनन-फानन में सारे कार्य पूरे करने की बात कही जाती है. इसके बाद भी 15 दिनों के आस्था के इस अद्भुत मेले में आकर अपने पितरों को पिंडदान करने वाले तीर्थयात्रियों को जिला प्रशासन या बिहार सरकार पूरी तरह संतुष्ट नहीं कर पाती है. 15 दिनों में करीब 5 लाख से 10 लाख के बीच देश-विदेश के सनातनधर्मी आते हैं. वैसे तो गया में साल भर तीर्थयात्री पिंडदान करने आते रहते हैं. लेकिन धार्मिक मान्यता है कि पितृपक्ष में हिन्दू धर्मावलंबियों के पितर गया में आकर अपनी संततियों (परिवार जनों) से पिंडदान की अपेक्षा रखते हैं, जिससेे कि उन्हेें मोक्ष प्राप्त हो सके.
इसके बदले में पितरों की ओर से सुख-शांति, समृद्धि और आशीर्वाद मिलता है. प्राचीन काल से चली आ रही इस सनातन परम्परा और संस्कृति से प्रभावित होकर आज भी बड़ी संख्या में हिन्दू धर्मावलंबी गया में आकर अपने पूर्वजों का पिंडदान कर श्रद्धा निवेदित करते हैं. बताया जाता है कि गया में 7 पीढ़ियों के 21 गोत्रों का पिंडदान होता है. यहां पवित्र फल्गु नदी, विष्णुपद मंदिर समेत कुल 45 वेदियों पर पिंडदान किया जाता है. इन वेदियों में प्रेतशिला पहाड़ी पर स्थित वेदी भी शामिल है. जहां अकाल मृत्यु को प्राप्त पितरों का पिंडदान किया जाता है. वर्षों पहले पितृपक्ष मेले में बहुत समृद्ध या बड़े लोग ही देश के विभिन्न हिस्सों से आकर श्राद्ध और पिंडदान करते थे.
लेकिन जैसे-जैसे आबादी बढ़ रही है, वैसे-वैसे लोगों में जागरूकता फैल रही है. मीडिया के सहारे गया में पिंडदान की चर्चा और सनातन परम्परा की बात सामने आने लगी तो लोगों में गया आकर पिंडदान करने की आस्था भी बढ़ी. यही कारण है कि पितृपक्ष मेले में प्रतिवर्ष 5 लाख से लेकर 10 लाख तक तीर्थयात्री आते हैं. इतनी बड़ी संख्या को बेहतर सुविधा देने के लिए प्रतिवर्ष जिला प्रशासन, राजस्व विभाग तथा बिहार सरकार के अन्य विभागों की ओर से तैयारी की जाती है. पवित्र सरोवरों, वेदियों की सफाई, बिजली, पानी की आपूर्ति, सड़क मरम्मत, आवासन आदि की व्यवस्था बड़े पैमाने पर की जाती है. वाहनों के ठहराव की व्यवस्था के साथ पूरे शहर में सुरक्षा की विशेष व्यवस्था करनी पड़ती है. स्वास्थ्य व चिकित्सा शिविर भी लगाए जाते हैं. होटलों में खान-पान की निगरानी भी की जाती है. इन्हीं सारी व्यवस्थाओं को लेकर सरकार की ओर से तैयारी की जाती है.
पिंडदानियों का महत्वपूर्ण मुकाम होता है-अक्षयवट, क्योंकि यहां अंतिम पिंडदान किया जाता है. लेकिन यहांआस-पास गंदगी तो है ही, साथ ही सड़क भी टूटी-फूटी है. लावारिस पशुओं से भी यहां तीर्थयात्रियों-पिंडदानियों को परेशानी होती है. वैतरणी तालाब भी पिंडदानियों के लिए अहम है. इस तालाब की सफाई भी समुचित रूप से नहीं हो पाई है. हृदय योजना के तहत इस तलाब का जीर्णोद्धार किया जा रहा है. पितृपक्ष मेले के शुरू होने के समय आनन-फानन में जैसे-तैसे कार्यों को पूरा किया जा रहा है. गुणवत्ता गौण हो गई है. हृदय योजना के तहत गया नगर निगम की निगरानी में ब्रह्म सरोवर का भी कार्य हो रहा है. इसका ठेका बाहर की किसी कम्पनी ने लिया है. मूल कम्पनी ने यहां के कार्यों को कराने का जिम्मा एक छोटे ठेकेदार को दिया है. इस योजना के कार्य को जिस तरह किया जा रहा है, वह टिकाऊ होगा या नहीं इस पर संदेह है. ब्रह्म सरोवर, रामसागर तालाब, सूर्यकुंड आदि सरोवरों की सफाई भी अधूरी है. बिजली तथा पानी की आपूर्ति की व्यवस्था कितनी कारगर होगी यह तो मेला शुरू होने के बाद ही पता चल सकेगा.
गया तथा संपूर्ण मेला क्षेत्र में कई स्थानों पर मेन हॉल के ढक्कनों की खराब स्थिति है. मेला क्षेत्र में वैसे तो अतिक्रमण हटाने का काम एक पखवाड़ा पूर्व से शुरू है, लेकिन एक तरफ से अतिक्रमण हटाया जाता है तो दूसरी ओर से अतिक्रमण कर पुन: दुकानें लगाई जा रही है. शहर का के.पी रोड इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. अन्य सड़कों की तो बात ही छोड़ दें. वैसे तो अतिक्रमण के चलते आम दिनों में शहर की सभी सड़कों में जाम की समस्या रहती है. लेकिन पितृपक्ष में बड़ी संख्या में बाहरी वाहन आने से जाम और बड़ा रूप ले लेता है. हालांकि ट्रैफिक व्यवस्था को ठीक रखने और सुरक्षा के लिए 5 हजार से अधिक पुलिस पदाधिकारी और जवानों को दूसरे जिले से लाया जाता है. फिर भी पिंडदानियों को कुछ न कुछ परेशानी का सामना करना पड़ता है. सच्चाई यही है कि कुछ सरकारी विभाग पितृपक्ष मेले का इंतजार करते है.
क्योंकि मेला व्यवस्था के नाम पर बिहार सरकार से करोडों रुपए का आवंटन होता है. 15 दिनों में इस राशि को खर्च किया जाता है. बिजली विभाग, लोकस्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग, स्वास्थ्य विभाग, राजस्व विभाग, पर्यटन विभाग और गया नगर निगम को जो आवंटन आता है, उसे मेले में व्यवस्था के नाम पर खर्च तो किया जाता है. लेकिन इसमें बंदरबाट भी खूब होता है. इस बार पितृपक्ष मेले की तैयारी की समीक्षा किसी मुख्यमंत्री ने पहली बार की है. यही कारण है कि इस बार मेले में व्यवस्था कुछ ठीक होने की उम्मीद है. लेकिन सड़कों के किनारे फेवर ब्लाक ईंट को लगाने का काम आज भी अधूरा पड़ा है. पिंडवेदियों की सफाई भी ठीक प्रकार से नहीं हो पाई है. कहा जा सकता है कि आधी-अधूरी तैयारी के बीच लाखों तीर्थयात्री गया में पिंडदान करेंगे.
पितृपक्ष मेले की तैयारी का जायज़ा लेने पहुंचे मुख्यमंत्री
14 सितम्बर 2018 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गया आकर पितृपक्ष मेला क्षेत्र में घूम कर तैयारी का जायजा लिया और आवश्यक निर्देश दिए. इस दौरान उन्होंने विष्णुपद मंदिर परिसर और देवघाट का जायजा लिया. मुख्यमंत्री ने यहां जगदेव प्रसाद और पूर्व मंत्री उपेंद्र नाथ वर्मा की प्रतिमा का भी आनावरण किया. पितृपक्ष मेले की समीक्षा बैठक के दौरान मुख्यमंत्री ने कहा कि 15 दिनों तक चलने वाले पितृपक्ष मेले में सफाई की ऐसी व्यवस्था हो कि यहां आने वाले श्रद्धालु खुश होकर घर लौटें. बैठक में जिलाधिकारी अभिषेक सिंह ने पितृपक्ष मेला 2018 से संबंधित प्रशासनिक तैयारियों से मुख्यमंत्री को अवगत कराया.
उन्होंने तालाबों की स्वच्छता का विशेष रूप से ख्याल रखने का आदेश दिया, क्योंकि बड़ी संख्या में श्रद्धालु तालाबों में नहाते हैं. उन्होंने पानी की स्वच्छता के साथ-साथ पानी की निकासी पर ध्यान देने का भी निर्देश दिया. साथ ही उन्होंने कहा कि मेले के दौरान हर हाल में 24 घंटे बिजली की निर्बाध आपूर्ति होनी चाहिए. बैठक में कृषि मंत्री प्रेम कुमार, शिक्षा मंत्री कृष्णनंदन वर्मा समेत कई अधिकारी मौजूद थे. मुख्यमंत्री ने फल्गु तट पर स्थित देवघाट और सूर्यकुंड का भी निरीक्षण किया. इसके बाद नीतीश ने आयुक्त कार्यालय परिसर में स्थापित जगदेव प्रसाद और दिग्घी तालाब के पास स्थापित पूर्व मंत्री उपेंद्र नाथ वर्मा की प्रतिमा का अनावरण किया.