कुछ तो लोग कहेंगे….!

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खान अशु

 

कुछ तो लोग कहेंगे….!
मिसाल देने के नामों की कमी नहीं…! यहां से वहां तक, इधर से उधर तक हर तरफ एक इतिहास बिखरा पड़ा है….! अच्छों को बुरा साबित करने इंसानी खसलत हर दौर जिंदा रही है, आगे नहीं रहेगी, इसकी उम्मीद भी नहीं की जाना चाहिए….! बुरा कहने पर आमादा लोग तो उनको भी नहीं बख्श पाए, जिन्हें महात्मा का लकब हासिल रहा है…! उनकी महानता का बदला कत्ल से दिया जा सकता है, उनके सद कर्मों को उनकी बुराई निरूपित किया जा सकता है, उनके हत्यारे को मासूम और महान करार दिया जा सकता है… तो फिर एक शायर को चंद सिरफिरे, जिन्होंने न उनके जीवन काल, उनके संघर्ष, साहित्य के समर्पण, उनके मन में देश के लिए बसी मुहब्बत को देखा और न उनके हर शे”र से निकलने वाले एक भाव को समझ पाए…! आसमानों में जा बसे उस शायर के शब्दों को आधार बनाकर उसके लिए नफरत पैदा करने वाले न उसके आसपास फटकने के लायक रहे हैं और न उसकी किसी अदा को समझ पाने की ताकत, समझ, अक्ल और ज्ञान ही उनमें है…!

देश के सबसे बड़े दुश्मन पाकिस्तान की सरजमीं पर जाकर सियासी लोग अपनी जमीन तलाशते रहे, उस देश की तरफ मुंह करने के लिए भी ये शायर उस दौर में किनारा कर चुका था, जब उसके लाखों चाहने वालों मजमा उसके लिए आंखें बिछाए बैठे रहते थे…! सबसे बड़ी ताकत होने का दंभ भरने वाले मुल्क के किसी भी मंच को इस शायर ने कभी अपनी मौजूदगी न देने का फैसला महज इसलिए किया है कि उसके देश के लोगों को अक्सर जलील करते रहते थे, उनके जरूरी काम के लिए जाने पर भी सौ सवाल, दस पाबन्दियां लगाते रहते थे…!

अच्छों को बुरा कहने की आदत रखने वाले हर दौर ज़िंदा रहने वाले हैं, रहेंगे… वजह खुद की लकीर को बड़ा करना तो इनके वश में है नहीं, दूसरों की लाइन को छोटा करने की नाकाम कोशिश ही इनके लिए आसान है…!

पुछल्ला
मीडिया दम का बेजा फायदा
मीडिया रसूख का फायदा कैसे उठाया जा सकता है, राजधानी के एक दोयम दर्जे के अखबार में जबरिया संपादक बने बैठे एक साहेब को देख अंदाज लगाया जा सकता है। बेटा इंजिनियर बनने के आखिरी दिनों में है। उसकी पढ़ाई के साथ दिमागी कमज़ोरी का इलाज भी जारी है। जितने साल की इंजीनियरिंग पढ़ाई, उससे दोगुना वर्षों का मेडिकल ट्रीटमेंट। दिमाग दुरुस्त नहीं तो दिमागी पढ़ाई कैसे हो रही। कॉलेज प्रबंधन पर मीडिया दबाव कितना होगा, अंदाज लगाया जा सकता है।

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