–गुजरात के तकरीबन डेढ़ करोड़ पाटीदार मतदाता वहां किसी भी दल की राजनीतिक बाजी पलटने में सक्षम माने जाते हैं. पिछले लगभग डेढ़ दशक से गुजरात में भाजपा की जीत की रीढ़ समझे जाने वाले ये पाटीदार फिलहाल उससे बुरी तरह नाराज़ हैं. उनकी नाराज़गी की दो वजहें हैं. पाटीदार नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में अपने लिए दस फीसदी आरक्षण की मांग कर रहे हैं. पटेलों में असंतोष की कुलबुलाहट इससे भी है कि पाटीदार यह महसूस कर रहे हैं कि अब वे भाजपा में धीरे-धीरे हाशिए पर धकेले जा रहे हैं. आनंदीबेन पटेल को हटाए जाने के बाद नितिन पटेल को मुख्यमंत्री न बनाने के पीछे के खेल को भी वे सोची-समझी राजनीतिक साज़िश मानते हैं. इसीलिए प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह के लगातार गुजरात दौरों और पाटीदारों को मनाने की हर चंद कोशिशों के बावजूद उनके तेवर अभी नरम नहीं हुए हैं.
गुजरात में पाटीदारों की नाराज़गी से भाजपा के क्षत्रपों की बेचैनी बढ़ गई है. इसीलिए पाटीदारों के आंदोलन की धार कुंद करने के इरादे से विजय रुपाणी की सरकार ने हाल में एक नया पासा फेंका है. मुख्यमंत्री ने आन्दोलनकारी पाटीदारों से बातचीत के लिए तीन सदस्यीय मंत्रिमंडलीय समिति का गठन किया. समिति में उप-मुख्यमंत्री नितिन पटेल के अलावा काबीना मंत्री चिमन सपारिया और राज्यमंत्री नानूभाई बनानी शामिल थे. इस समिति ने पाटीदार अमानत आंदोलन तथा दूसरे ताकतवर संगठन ‘सरदार पटेल ग्रुप सभा’ समेत 6 संगठनों के प्रतिनिधियों से 26 सितम्बर को लम्बी बातचीत की. बातचीत में हार्दिक पटेल और एसपीजी के कद्दावर नेता लालजी भाई पटेल भी शामिल हुए, पर नतीज़ा ठन-ठन गोपाल ही रहा. पाटीदारों के युवा नेता हार्दिक पटेल ने बैठक के बाद साफ़ कहा कि सरकार के साथ बातचीत बेनतीजा रही. लेकिन इस मुद्दे पर पहली बार बैकफुट पर आई गुजरात सरकार ने आनन-फानन में तीन फैसलों का ऐलान कर दिया.
रूपाणी सरकार ने घोषणा की है कि 25 अगस्त 2015 को जीएनडीसी मैदान पर हुई पाटीदारों की ऐतिहासिक रैली के दौरान पाटीदारों के खिलाफ दर्ज़ हुए सभी मुकदमे सरकार वापस ले लेगी. साथ ही सरकार आंदोलन के दौरान मारे गए लोगों के आश्रितों को नौकरी तथा वित्तीय सहायता भी मुहैया कराएगी. मालूम हो कि पाटीदार-आंदोलन के दौरान 13 लोगों की जान गई थी. गुजरात सरकार ने दो आयोगों के गठन को भी मंजूरी दे दी है. इनमें एक आयोग आरक्षण के दायरे में न आने वाले सभी वर्गों के कल्याण के लिए ज़रूरी उपायों पर अपने सुझाव देगा. यह ‘गैर आरक्षित जाति आयोग’ उन वर्गों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का आकलन करेगा, जो फिलहाल कृषि, शिक्षा और नौकरी के क्षेत्र में सरकारी लाभ प्राप्त नहीं कर रहे हैं.
दूसरा आयोग दो वर्ष पूर्व पाटीदार आंदोलन के दौरान हुई पुलिस ज़्यादतियों की जांच करेगा. इस आयोग की अध्यक्षता हाई कोर्ट के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश करेंगे. इन फैसलों से साफ़ है कि सरकार जैसे-तैसे गुजरात में पाटीदारों के गुस्से की आंच को जल्दी से जल्दी ठंडा करना चाहती है.