गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान में से दो राज्य तो ऐसे रहे जहां पर भारतीय जनता पार्टी ने सभी सीटों पर विजय पताका फहराई. भाजपा के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री वहां जनता ने उन्हें पीएम बनाने के लिए पूरा योगदान दिया. राज्य में मोदी की लोकप्रियता का आलम यह रहा कि पार्टी के ज्यादातर उम्मीदवार भारी मतों से विजयी हुए. वहीं राजस्थान में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया का सिक्का एक बार फिर चला और सभी सीटों पर पार्टी उम्मीदवारों ने जीत हासिल की. महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना का गठबंधन चुनाव लड रहा था. दोनो पार्टियों का काफी पुराना गठबंधन है. गठबंधन ने राज्य में अभी तक का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन किया. आइए नजर डालते हैं इन राज्यों के चुनाव परिणामों पर.
पहले बात करते हैं राजस्थान की. ज्यादा समय नहीं बीता जब राज्य में विधानसभा चुनाव हुए थे. इन चुनावों भारतीय जनता पार्टी को प्रचंड बहुमत मिला था और अशोक गहलोत को करारी मात मिली थी. लोकसभा चुनावों के नतीजे तो जख्म पर नमक लगाने वाले जैसे साबित हुए. राज्य की एक भी सीट कांग्रेस पार्टी नहीं बचा पाई जबकि यहां से यूपीए सरकार के कई मंत्रियों और लोकप्रिय नेताओं के अलावा भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरुददीन की प्रतिष्ठा दांव पर थी. राज्य में सचिन पायलट, सीपी जोशी और जीतेंद्र सिंह जैसे लोगों को हार का सामना करना प़डा. जबकि भाजपा की ओर से पहली बार चुनाव मैदान में उतरे ओलंपिक पदक विजेता राज्य वर्धन सिंह राठौर ने सीपी जोशी को करारी शिकस्त देते हुए संसद में पहुंचने का गौरव हासिल किया. राज्य के चुनाव में बाडमेर की सीट भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गई थी क्योंकि यहां से पार्टी के कददावर नेता रहे जसवंत सिंह निर्दलीय ही भाजपा प्रत्याशी सोना राम के विरोध मेंे खडे हो गए थे. हालांकि भाजपा ने अपनी पूरी ताकत इस सीट पर झोंक दी थी और आखिरकार उसे सफलता भी हासिल हुई. राज्य में वसुंधरा राजे सिंधिया ने अपना डंका बजा दिया है और यह साबित कर दिया कि राज्य भाजपा में भविष्य में उनके निर्णयों को ही सबसे ऊपर तरजीह दी जाएगी.
लगभग सभी पार्टियों कई हाई प्रोफाइल नेताओं की किस्मत महाराष्ट्र में दांव पर थी. सुशील कुमार शिंदे, प्रिया दत्त, मेधा पाटेकर, गोपी नाथ मुंडे, मुरली देवडा, संजय निरूपम, पूनम महाजन, किरीट सोमैया, नितिन गडकरी, छगन भुजबल जैसे लोगों की इज्जत दांव पर थी. इनमें से कई नेता अपनी प्रतिष्ठा बचा पाए तो कई चुनावी समर में शहीद हो गए. भाजपा और शिवसेना गठबंधन ने राज्य की 48 में से 42 सीटों पर सफलता पाई जिनमें से 23 सीटों पर भाजपा और 19 सीटों पर शिवसेना ने जीत हासिल की. कांग्रेस के लगभग सभी बडे नेताओं को अपनी सीटें गंवानी पडी. इनमें पूर्व गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे भी शामिल हैं. वहीं मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता और आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार मेधा पाटेकर भी चुनावी मैदान में बुरी तरह परास्त हुईं. पूर्व भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने विजय पताका फहराई. अमूमन पूरे राज्य में एनडीए का ही जलवा रहा. शरद पवार की पुत्री सुप्रिया सूले हालांकि अपनी सीट बचाने मेंे कामयाब हो गईं. चुनाव पूर्व ऐसा माना जा रहा था कि राज्य में यूपीए सरकार का प्रदर्शन अन्य राज्यों की तुलना में ठीक हो सकता है लेकिन इतना बुरा हाल होगा, इसकी किसी को भी उम्मीद नहीं थी.
अगर नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात की बात की जाए तो यहां पर तो पहले से ही यह उम्मीद की जा रही थी भाजपा बेहतरीन प्रदर्शन करेगी. इसका कारण यह भी है कि राज्य में पिछले कई बार से भाजपा की सरकार और नरेंद्र मोदी अपने राज्य में काफी लोकप्रिय भी हैं. यहां से भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी और मशहूर बॉलीवुड कलाकार परेश रावल चुनाव मैदान में थे. दोनों ने भारी मतों के अंतर से जीत हासिल की. जहां परेश रावल लगभग सवा तीन लाख मतों से विजयी हुए वहीं आडवाणी ने तकरीबन पौने पांच लाख मतों से जीत हासिल की. ऐसा लगता है जैसे राज्य की जनता ने यह पहले से ठान लिया हो कि इस बार तो राज्य की सभी सीटों पर भाजपा को जीत दिलानी ही है. इस राज्य में साल 2009 के लोकसभा चुनावोें यूपीए को 12 सीटों पर जीत हासिल हुई थी लेकिन इस बार के चुनाव पार्टी के लिए किसी बुरे सपने की तरह साबित हुए थे. आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने चुनाव प्रचार के दौरान यहां आकर यह कोशिश की थी पार्टी का जनाधार राज्य में बढाया जाए लेकिन नतीजों में इसका कोई प्रभाव सामने नहीं आया.
कुल मिलाकर इन राज्यों में एनडीए गठबंधन ने न सिर्फ जीत हासिल की बल्कि ऐतिहासिक जीत हासिल की. यूपीए शासन से थक चुकी जनता को मोदी ने अपने भाषणों के दौरान आशावान भविष्य के सपने दिखाए और जनता ने उनपर भरोसा भी किया. अब देखना यह होगा कि नरेंद्र मोदी जनता की उम्मीदों पर कितना खरे उतर पाते हैं.
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