पंचायत चुनाव की वजह से नेताओं को किसानों का दर्द समझ में आने लगा है. चाहे भाजपा हो या महागठबंधन पूर्वी चम्पारण और पश्चिमी चम्पारण में सभी दलों की राजनीति गांव-गवंई और किसान-मजदूरोंं के इर्द-गिर्द सिमट गई है. सभी अपने दल की मजबूती के लिए ज्यादा से ज्यादा अपने समर्थकों को त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में जीताना चाहते हैं. इसी वजह से विधानसभा सत्र में किसानों और गांव से जुड़े मुद्दे सभी दल उठाने लगे हैं.
उद्योग के क्षेत्र में चम्पारण में कुछ भी नहीं है. कृषि प्रधान इस क्षेत्र में एक मात्र उद्योग चीनी मिल थी जो विभिन्न कारणों से लगभग बंदी के कगार पर है. मोतिहारी का श्री हनुमान चीनी मिल, चकिया चीनी मिल पूरी तरह बन्द हो चुके हैं. सुगौली चीनी मिल भी बन्द हो गई थी, लेकिन हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड की संस्था हिन्दुस्तान बायोफिल्स ने इसका अधिग्रहण कर नए सिरे से चीनी मिल का निर्माण किया जो जिले में एकमात्र संचालित होने वाली चीनी मिल है. यहां किसानों का गन्ना ही एक मात्र कैश क्रॉप था.
पूर्वी चम्पारण के मोतिहारी और चकिया चीनी मिल को चालू कराने में सरकार विफल रही है. भाजपा ने इसे मुद्दा बना कर सरकार को घेरने का प्रयास किया है. ताकि पंचायत चुनाव में इसे राज्य सरकार और जदयू-राजद की विफलता के रूप में भुनाया जा सके. लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में भी चीनी मिल एक बड़ा मुद्दा था. स्थानीय सांसद और केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने कहा था कि चीनी मिल राज्य सरकार के अधीन का विषय है. राज्य सरकार के पूर्व गन्ना विकास मंत्री अवधेश कुशवाहा की भी चीनी मिल को खोलने को लेकर काफी किरकिरी हुई. लेकिन किसी ने भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया.
कल्याणपुर के भाजपा विधायक सचिन्द्र प्रसाद सिंह ने चीनी मिल के मामले को उठाया है. इसके मद्देनजर श्री सिंह ने विधानसभा में एक प्रश्न भी पटल पर रखा है. उन्होनें कहा कि जिले की चीनी मिलों के दम तोड़ने के कारण किसानों की हालत खराब हो चुकी है. 2007 में किसानों के बीच उम्मीद की किरण जगी थी जब तत्कालीन स्थानीय सांसद सह केंद्रीय कृषि, खाद्य एवं उपभोक्ता मंत्री डॉ अखिलेश प्रसाद सिंह ने सरियतपुर मेें नई चीनी मिल के स्थापना की घोषणा की थी. क्षेत्र के किसानों ने इसका स्वागत किया और आगे बढ़कर मिल निर्माण के लिए अपनी भूमि दी. 105 एकड़ जमीन खरीदी गई. उक्त चीनी मिल उद्योगपति पवन रूईया की योजना थी. भूमि अधिग्रहण के बाद चीनी मिल का भव्य शिलान्यास कार्यक्रम आयोजित किया गया.
समारोह में तत्कालीन कृषि मंत्री शरद पवार, केंद्रीय रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव, केंद्रीय राज्य मंत्री अखिलेश प्रसाद सिंह सहित बड़ी संख्या में नेता व गणमान्य उपस्थित थे. लेकिन मिल निर्माण की दिशा में उसके बाद कोई कार्य नहीं हुआ. हालांकि अगर सरियतपुर में चीनी मिल बन जाती तो करीब 10 प्रखंडों के हजारों किसान परिवार को लाभ होता. क्षेत्रीय विधायक सचिंद्र प्रसाद सिंह ने इस मामले की जांच करवाने की मांग की है कि उद्योगपति रूइया को जिस शर्त पर जमीन दी गई और राजस्व में सरकार द्वारा छूट दिया गया इसका लाभ जनता को क्या मिला?
जानकारी के अनुसार उद्योगपति द्वारा तत्कालीन बिहार सरकार को तीन वर्ष में चीनी मिल के स्थापना की बात कही गई थी. वर्ष 2007 में मेसर्स कयालपुर सुगर रिफाइनरी लिमिटेड कोलकाता ने इंवेस्टमेंट प्रोमोशन बोर्ड पटना को चीनी मिल लगाने का प्रस्ताव दिया था. 26 अक्टूबर 2007 को सरियतपुर में चीनी मिल लगाने की अनुमति राज्य सरकार ने दे दी थी. वहीं 21 मार्च 2008 को मंत्रिपरिषद ने प्रस्ताव पारित कर दिया था. प्रस्तावित मिल का नाम ग्लोब सूगर रिफाइनरी लिमिटेड रखा गया.
2011 तक मिल को स्थापित कर गन्ना की पेराई शुरू कर देनी थी, लेकिन अभी तक कुछ भी नहीं हुआ. अब मांग उठने लगी है कि भूमिदाता किसानों की जमीन का दोबारा मूल्यांकन कराकर भूमि अधिग्रहण नियमावली के अनुरूप किसानों को लाभ दिया जाए. भाजपा ने इस मामले को उठा कर जिले भर के किसानों का समर्थन लेने का प्रयास किया है. हालांकि इस मामले में आम जनता और किसानों ने सभी दलों को कठघरे में खड़ा कर रखा है, क्योंकि किसी ने भी इस मामले में कभी सार्थक प्रयास नहीं किया. आने वाला वक्त ही बताएगा कि इसका सार्थक परिणाम निकलता है या यह भी महज राजनीतिक स्टंट ही है.प