हमारे देश के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार (नरेंद्र मोदी) कश्मीर में जाकर कहते हैं कि पाकिस्तान भारत के लिए ख़तरा है. वह कहते हैं कि आज पाकिस्तान के पास तीन एके हैं, एके-47, एके एंटनी-देश के सबसे कमजोर रक्षा मंत्री और एके-49 यानी अरविंद केजरीवाल. यानी भाजपा इस देश में पाकिस्तान की तर्ज पर शासन करना चाहती है.  भाजपा जनता के बहुमत से नहीं, बल्कि लोगों को पाकिस्तान का भय दिखाकर सत्ता हासिल करना चाहती है.
देश इलेक्शन मोड में पहुंच चुका है. चुनाव के वक्त नेता तरह-तरह के वक्तव्य देते हैं. तरह-तरह की बातें करते हैं, ताकि मतदाताओं को लुभाया जा सके, लेकिन इस सबके बीच कुछ ऐसी बातें भी की जा रही हैं, जिन्हें सही नहीं ठहराया जा सकता. ये बातें असामान्य हैं और जिनका देश के भविष्य पर अच्छा असर नहीं होने वाला. पाकिस्तान में आम तौर पर यह होता है कि जब वहां के शासक किसी मुसीबत में पड़ जाते हैं, तो वे अपनी अवाम को भारत का भय दिखाते हैं, कश्मीर का राग अलापना शुरू कर देते हैं और यह कहते हैं कि अगर तुम मेरी बात नहीं मानोगे, नहीं सुनोगे, तो भारत हम पर हमला कर देगा. भारत में ऐसी स्थिति कभी नहीं रही. लेकिन, आज जो हम देख रहे हैं, वह शुभ संकेत नहीं है.
हमारे देश के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार (नरेंद्र मोदी) कश्मीर में जाकर कहते हैं कि पाकिस्तान भारत के लिए ख़तरा है. वह कहते हैं कि आज पाकिस्तान के पास तीन एके हैं, एके-47, एके एंटनी-देश के सबसे कमजोर रक्षा मंत्री और एके-49 यानी अरविंद केजरीवाल. यानी भाजपा इस देश में पाकिस्तान की तर्ज पर शासन करना चाहती है. भाजपा जनता के बहुमत से नहीं, बल्कि लोगों को पाकिस्तान का भय दिखाकर सत्ता हासिल करना चाहती है. मैं नहीं समझता कि भारत के लोग इतने मूर्ख हैं, जिन्हें इस तरह की बातों से बरगला कर वोट हासिल किया जा सकता है. पाकिस्तान भारत के लिए कोई ख़तरा नहीं है.

सुुप्रीम कोर्ट को एक क़दम और आगे जाना चाहिए और यह कहना चाहिए कि सरकारी पैसे की रिकवरी कैसे की जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट क्रिकेट जैसे ग़ैर ज़रूरी मुद्दों पर अपना समय दे रहा है कि आईपीएल बंद होना चाहिए या कौन टीम खेलेगी या किसे बीसीसीआई का प्रेसिडेंट होना चाहिए. क्या यह ठीक है? हमारे पास एक कमजोर प्रधानमंत्री है और उससे भी खराब पीएम इन वेटिंग हमारे पास है, लेकिन यह सुप्रीम कोर्ट है और कोई भी इसके काम में दखलअंदाजी नहीं कर सकता.

जो लोग इस तरह की बातें कर रहे हैं, वे इस देश की जनता के साथ भद्दा मजाक कर रहे हैं. विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा, बेहतर शासन और भ्रष्टाचार ख़त्म करने जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने की बजाय भाजपा पाकिस्तान का भय दिखाकर वोट हासिल करने की कोशिश कर रही है. थोड़ी देर के लिए चीन की बात होती, तो समझ में भी आती. हालांकि चीन भी हमारे लिए कोई बड़ा ख़तरा नहीं है. ये लोग यह समझाने की कोशिश में है कि अमुक पार्टी सरकार में आ गई, तो देश का भविष्य ख़तरे में पड़ जाएगा. यह हास्यास्पद है. दूसरी तरफ़, हम अपने देश के अन्य संस्थानों को भी देख रहे हैं. उनके रुख को समझना मुश्किल होता जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने हाल में कई आदेश दिए हैं, जिनमें से एक है यूआईडी. पहले ही दिन से यूआईडी कार्ड का मामला ग़ैर-क़ानूनी रहा है. इसके लिए संसद ने कोई क़ानून नहीं बनाया है यानी संसद की इसमें कोई सहमति नहीं थी. यह एक कार्यकारी आदेश भर था. बंगलुरू के सज्जन को हजारों करोड़ रुपये दे दिए गए.
अंतत: सुुप्रीम कोर्ट ने माना है कि इस आधार कार्ड की कोई क़ानूनी अनिवार्यता नहीं है. अब इसके बाद, उन हजारों करोड़ रुपये के लिए किसे ज़िम्मेदार ठहराया जएगा, जो सरकार ने नंदन नीलेकणी को दिए थे? क्या प्रधानमंत्री इसके लिए ज़िम्मेदार होंगे? क्या कांग्रेस पार्टी यह ज़िम्मेदारी लेगी? अब नीलेकणी बंगलुरू से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं. सुुप्रीम कोर्ट को एक क़दम और आगे जाना चाहिए और यह कहना चाहिए कि सरकारी पैसे की रिकवरी कैसे की जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट क्रिकेट जैसे ग़ैर ज़रूरी मुद्दों पर अपना समय दे रहा है कि आईपीएल बंद होना चाहिए या कौन टीम खेलेगी या किसे बीसीसीआई का प्रेसिडेंट होना चाहिए. क्या यह ठीक है? हमारे पास एक कमजोर प्रधानमंत्री है और उससे भी खराब पीएम इन वेटिंग हमारे पास है, लेकिन यह सुप्रीम कोर्ट है और कोई भी इसके काम में दखलअंदाजी नहीं कर सकता.
मैं सोचता हूं कि यह देश अभी बहुत नाजुक दौर से गुजर रहा है. जितनी जल्दी चुनाव ख़त्म हो और एक नई सरकार बने, यही बेहतर होगा. मैं समझता हूं कि देश के वरिष्ठ राजनेताओं को पार्टी लाइन से हटकर एक साथ बैठना चाहिए और एक ऐसा तरीका निकालना चाहिए, जिससे देश में एक अच्छा माहौल बन सके. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को पहल करनी चाहिए और विभिन्न राजनीतिक दलों के चार-पांच वरिष्ठ राजनेताओं, जैसे आडवाणी जी, कांग्रेस एवं दूसरी पार्टियों के वरिष्ठ नेताओं को बुलाना चाहिए और इस बात पर आम सहमति बनाने की कोशिश होनी चाहिए कि यह देश अब कैसे चलेगा, चाहे चुनाव के नतीजे जो भी हों? मैं इस बात से चिंतित नहीं हूं कि प्रधानमंत्री कौन होगा. हर पांच साल में प्रधानमंत्री आते और जाते रहते हैं, लेकिन देश को चलाने के लिए एक फ्रेमवर्क अटूट रहना चाहिए. आज यही फ्रेमवर्क टूट रहा है. 2जी घोटाले में हमने देखा कि कैसे नियम-क़ानून को ताख पर रखा गया. आख़िर इसके लिए ज़िम्मेदार कौन है? दूरसंचार मंत्रालय के सचिव आईएएस, आईपीएस या विदेश सेवा के अधिकारी होते हैं. अगर ये लोग क़ानून का पालन नहीं करेंगे, तो देश का हाल पाकिस्तान जैसा हो जाएगा. उम्मीद करते हैं कि हम जल्द ही इस सबसे बाहर निकलेंगे और जितनी जल्दी बाहर निकल सके, उतना ही बेहतर होगा.

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