नेपाल हमारा वर्षों से मित्र रहा है. हज़ारों साल या जब से ये दोनों देश अस्तित्व में आए, हम नेपाल को छोटा भाई मानकर उसके प्रति स्नेह जताते रहे हैं, लेकिन भारत की तऱफ से कुछ ऐसी ग़लतियां हुईं, जिसने नेपाल के लोगों के मन में भारत के प्रति विद्वेष भर दिया. हमारे देश के नेताओं ने, जिनमें डॉ. राममनोहर लोहिया, लोकनायक जयप्रकाश प्रमुख थे, उन्होंने नेपाल राजशाही के खिला़फ चल रहे सशस्त्र आन्दोलन में नेपाली कांग्रेस की भरपूर मदद की.
हालांकि उस समय की सरकारें राजशाही के खिलाफ चल रहे आंदोलन में तटस्थ रहीं, पर भारत के इन दो बड़े नेताओं ने बड़े पैमाने पर नेपाल की राजशाही के खिलाफ मुक्ति में मदद की. नेपाल में लोकतंत्र आया, लेकिन उसके बाद से ही हमसे वैसी ही ग़लतियां शुरू हुईं, जैसी हमने बांग्लादेश में कीं. नेपाल के लोग हमारी नीतियों की वजह से हमसे दूर होने लगे, लेकिन ये दूरी जितनी पिछले तीन साल में बढ़ी है, उसका कोई दूसरा उदाहरण नहीं है.
नेपाल में भूकंप आया. हमने नेपाल की भरपूर मदद की, लेकिन हमारी मदद करने का तरीक़ा और हमारे यहां के भ्रष्टाचार ने नेपाल के लोगों को बुरी तरह से आहत किया. उस समय पूरे नेपाल में भारत विरोधी माहौल बना. उन्हें लगा कि हम उन्हें सहायता नहीं, भीख दे रहे हैं. अंत में नेपाल सरकार ने भारत की सहायता एजेंसियों और भारत सरकार को नेपाल में काम करने से रोकने का एक तरह से आदेश दे दिया. नेपाल में चीन ने उस समय बहुत मदद की और ये सब हमारी आंख के आगे हुआ. हमारी सरकार, हमारा विदेश मंत्रालय इस मामले में कुछ नहीं कर पाया, बल्कि उन्होंने भारत के लोगों के पास नेपाल में चल रहे मानसिक विद्रोह को पहुंचने ही नहीं दिया.
मोदी जी ने प्रधानमंत्री बनते ही सारी दुनिया में घूमना शुरू किया और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की सलाह से उन्होंने विदेश नीति का एक नया नक्शा बना लिया. मुझे नहीं पता कि इस नक्शे को बनाने में विदेश मंत्रालय के विशेषज्ञों का कोई हिस्सा था या नहीं, पर यह कहा जा सकता है कि वो नक्शा सरकार का था क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी उस पर अमल कर रहे थे. प्रधानमंत्री मोदी ने अपने प्रधानमंत्री पद के शपथग्रण समारोह में सबसे पहले सार्क देशों के राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित किया और लगभग सभी आए, आज पाकिस्तान के साथ हमारा क्या रिश्ता है, हम सबको मालूम है.
इस समय हमारी सबसे ज्यादा दुश्मनी पाकिस्तान के साथ है और यह परंपरागत दुश्मनी से भी आगे बढ़ गई है. दूसरी तऱफ प्रधानमंत्री मोदी ने चीन को घेरने की कोशिश की. उन्होंने बहुत तेज़ी के साथ मंगोलिया को एक बिलियन डॉलर की सीधी क्रेडिट लाइन देकर चीन को घेरने की शुरुआत की. शायद मोदी जी को लग रहा था कि वे मंगोलिया को चीन से अलग कर उसे परेशान कर लेंगे, लेकिन इसी दौरान चीन धीरे-धीरे नेपाल का सबसे बड़ा निवेशक बन रहा था.
इस साल की पहली छमाही में नेपाल के निवेश में अकेले चीन का हिस्सा 68 प्रतिशत है. उसके सामने कोई टक्कर नहीं है और मंगोलिया मोदी जी के वादे में आ गया. कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि मोदी जी वादे कर देते हैं और बाद में उन्हें भूल जाते हैं. मंगोलिया के साथ भी मोदी जी का किया वादा पूरा नहीं हुआ. इसके पहले मंगोलिया दलाईलामा को न्यौता देकर चीन से आमने-सामने की लड़ाई में आ चुका था. उसे लगा कि भारत के महाबली प्रधानमंत्री जब उनके साथ हैं, तो फिर डर किस बात का.
चीन ने मंगोलिया के साथ अपनी सीमा बंद कर दी, व्यापार और मदद भी बंद कर दी. दूसरी तऱफ महाशक्तिशाली भारत के महाबली प्रधानमंत्री की तरफ से मंगोलिया को कोई मदद नहीं पहुंची. मंगोलिया परेशान हो गया. उसने चीन से मा़फी मांगी और वादा किया कि वो दलाईलामा को कभी भी मंगोलिया नहीं आने देगा.
अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में हमारी विश्वसनीयता की स्थिति बहुत मज़ेदार है. चीन ने नेपाल को लगभग अपने साथ कर लिया है, जिसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि चीन, नेपाल के साथ भारत से अलग सैन्य अभ्यास करने वाला पहला सहयोगी देश बन रहा है. अब अगर चीन, नेपाल के साथ युद्धाभ्यास करेगा, सैनिक सहायता देना शुरू करेगा, तब हमारे पड़ोसियों में हमारे साथ कौन रहेगा? यह विदेश मंत्रालय को अभी समझ में नहीं आया है या शायद विदेश मंत्रालय यह समझ नहीं पा रहा है कि पड़ोसी का मतलब क्या होता है.
दूसरी तऱफ भारत में औद्योगिक विकास की दर 6.5 प्रतिशत रहने वाली है. प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री से यह अपेक्षा थी कि वे यह बताएंगे कि उन्होंने आर्थिक मोर्चे पर नोटबंदी कर किन उद्देश्यों को हासिल किया. किसी भी देश के विकास का पैमाना उसकी औद्योगिक विकास की गति है, रोज़गार है. शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क यानी इंफ्रास्ट्रक्चर ये सब बढ़ें, ये सब उसके हिस्से हैं, लेकिन इन सबको प्राप्त करने के लिए अभी हमें और 6 साल इंतज़ार करना पड़ेगा, ऐसा सरकार का कहना है.
यानी अगर हमें ये चीजें चाहिए तो 2019 में भी नरेन्द्र मोदी को चुनना देश की मजबूरी हो जाएगी. भारत सरकार देश की जनता को ये नहीं बता पा रही है कि उसके विकास का रोडमैप क्या है? विकास हो रहा है या विकास की गाड़ी चल रही है, तो कितने क़दम चली, इसके पैमाने क्या हैं? ऐसा लगता है जैसे पूरा देश बंद बक्से में बैठा है और देश व उस बक्से में बंद लोगों को बाहर से आवाज़ दी जा रही है कि बक्सा चल रहा है, बक्सा चल रहा है.
नौकरियां ख़त्म हुईं, विकास दर और उत्पादन कम हुआ. मेक इन इंडिया में लोग नहीं आए, विदेशी निवेश नहीं आया और जिस ब्लैक मनी की बात सरकार कर रही है, वो ब्लैक मनी का छोटा हिस्सा ही है, बाक़ी पैसा तो बैंकों में आया ही, जो इस देश के 100 करोड़ लोगों ने अपनी वक़्त, ज़रूरत की परेशानियों से बचने के लिए अपने घरों में रखा था. यह हमारे देश की हज़ारों साल पुरानी परिपाटी है.
अब सरकार कह रही है कि हम कैशलेस या लेसकैश होना चाहते हैं. लोग मोबाइल के ज़रिये सारे आर्थिक लेन-देन करें. इसके पहले क्या सरकार देश के लोगों को ये विश्वास दिलाएगी कि हम अगले दस सालों में मोबाइल सिस्टम दुरुस्त कर लेंगे, कॉल इंट्रप्ट नहीं होगी. हम मोबाइल बैंकिंग के लिए जो फिगर भरेंगे, दबाएंगे, वो सचमुच हमारे ही अकाउंट से जुड़ेगी या कहीं और चली जाएगी और अगर यह गड़बड़ी होती है तो इसका जिम्मेदार कौन होगा.
मेरा ख्याल है कि देश का हर आदमी संचार व्यवस्था खासकर मोबाइल सिस्टम के ऑपरेशन से परेशान है. एक कॉल दो से तीन बार ड्रॉप होती है और ड्रॉप होनी वाली कॉल पूरी करने के लिए जब आदमी दोबारा डायल करता है, तो नई कॉल चार्ज का पैसा उसकी जेब पर बोझ के रूप में आ जाता है.
भारत सरकार का संचार मंत्रालय या सिर्फ प्रधानमंत्री यही वादा कर दें कि अगले साल भर में मोबाइल सिस्टम बिल्कुल चुस्त-दुरुस्त हो जाएगा और बैंकिंग सिस्टम में मोबाइल के ज़रिये कोई भी घपला नहीं हो पाएगा. आप मोबाइल में नंबर किसी का मिलाते हैं, नंबर किसी का मिल जाता है. जो चीज़ कभी नहीं होती थी, वो शुरू हो गई कि दो लोग मोबाइल पर बात कर रहे हों, तीसरा आदमी अचानक हैलो-हैलो करने लगता है.
यह लैंडलाइन में तो होता था, लेकिन ये अब मोबाइल में भी होना लगा. इसका मतलब ये है कि हमारी संचार व्यवस्था को देखने वालों में कोई बुनियादी दिमाग़ी कमी है या कोई जान-बूझकर शरारत हो रही है. इसी को रोकने का काम तो सरकार का है, लेकिन सरकार इस काम को नहीं रोक पा रही है और न प्रधानमंत्री इस बात का वादा कर रहे हैं. आख़िर में, एक चिंता के साथ बात को ख़त्म करते हैं कि हमारी पूरी संचार व्यवस्था चीन के पास है. हमारे सारे सर्वर चीन में हैं. हमारे यहां के जितने इक्यूूपमेंट हैं, वो सब चीन में हैं. यहां तक कि वो मशीनें जो कार्ड को स्वाइप करती हैं, वे भी चीन की बनी हुई हैं.
हमारे देश की कैशलैस व्यवस्था की 40 प्रतिशत सीधी हिस्सेदारी अब चीन के पास पहुंच गई है, क्योंकि भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के अधिकारियों की मिलीभगत से या उनके षड्यंत्र से चीन की अलीबाबा नामक कंपनी हिन्दुस्तान के मुद्रा बाज़ार की 40 प्रतिशत में सेंध लगा चुकी है. जिस दिन हमारा पाकिस्तान या नेपाल के साथ कोई भी गंभीर झगड़ा हुआ या जिस दिन चीन को लगा कि भारत बहुत ज्यादा उड़ रहा है, उसी दिन वो हमारी संपूर्ण अर्थव्यवस्था को तबाह करने की शुरुआत कर देगा. इसके लिए उसे किसी से पूछने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि उसी के उपकरण हमारे पास हैं.
मैं जब चीन गया था, तो मुझे वहां एक जानकारी मिली कि हमारे 14 उपग्रह सैटेलाइट चीन में बने थे. उनमें चीन ने जासूसी के यंत्र लगा दिये थे. हमने उन 14 उपग्रहों का पैसा चीन को एडवांस में पेमेंट कर दिया था, लेकिन चीन से हमने वो उपग्रह नहीं लिए, क्योंकि तब तक हमें पता लग चुका था कि चीन ने इसमें जासूसी के उपकरण लगा दिए हैं. वे उपग्रह अब भी चीन में पड़े हुए हैं.
अब शायद हम उनको कभी लेंगे भी नहीं या शायद मोदी सरकार को तो पता भी नहीं होगा कि पिछली सरकार द्वारा किया गया यह कारनामा सुधारा भी जा सकता है कि नहीं. उल्टे इस सरकार ने एक नया कारनामा कर दिया कि हमारी मौद्रिक व्यवस्था में 40 प्रतिशत की सेंध चीन की कंपनी को लगाने की इजाज़त खुशी-खुशी दे दी. अब देखना है कि हमारी विदेश नीति, अर्थनीति देश के विकास का अगले 6 महीने में क्या हाल बनाती है.