माननीय मुख्यमंत्री हरियाणा राज्य,
सप्रेम नमस्कार
कल डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी के 131 वी जयंतीपर एक वेबीनार में हमारे वरिष्ठ मित्र अनिल नौरियाजीने चर्चा में हिस्सा लेते हुए, मेरा ध्यान आकर्षित किया कि “आपने हरियाणा राज्य के अधीन फरिदाबाद इलाके के एक सत्तर साल से भी पुराना अस्पताल जिसका नाम सरहद गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान के नाम पर था ! 2020 के दिसंबर में अटल बिहारी वाजपेयी का नाम देने का निर्णय लिया”! और अब लगभग सोलह महिने होने जा रहे हैं ! संभव हो कोरोना के आड में ऐसी कई खबरें लोगों को पता नहीं चली ! हमारे मित्र डॉ प्रेम सिंह का एक लेख इस विषय पर मैंने सोशल मीडिया में देखा जरूर था ! पर अनिल नौरियाजीने जिस तरह से मुझे झकझोरा तो आज मैं यह लिख रहा हूँ !
और शायद आपने भी कोरोना के समय एक मुस्लिम नाम के ऐवज में एक हिंदुत्ववादी नेता का नाम देकर ! कोरोना के इलाज के लिए मददगार साबित होंगे इस उद्देश्य से भी यह नाम बदलने की कवायद की होगी !(क्योंकि दिल्ली पुलिस की मिलीभगत से मुसलमान कोरोना फैलाने का जुमला निजामुद्दीन के तबलिगी जमात के मुख्यालय में लाँकडाऊन में अटके उनके साथियों को निकालने के बदले वह कोरोना फैलाने वाले हैं जैसा गैरजिम्मेदाराना बयानबाजी करते हुए संघ और वर्तमान केंद्र सरकारने अंतमे औरंगाबाद हाईकोर्ट के फटकार लगायी तब कहीं यह मुहिम थमी ! लेकिन तब तक लोगों के बीच जो खाई और मुसलमानों को लेकर और एक गलतफहमी फैलाने वाले हिंदुत्ववादीयो को काफी हदतक कामयाबी हासिल हुई है !
और खरगोन से लेकर राजस्थान और गुजरात के खंबात तथा हिम्मतनगर जैसे इलाके रामनवमी के दिन जो दंगे भडके है ! यह संघ के सौसालो से अधिक समय से मुसलमानों के खिलाफ बदनामी की मुहिम का परिणामस्वरूप लगभग हर दंगे में प्रफुस्टित होता है ! उसके स्थानीय तात्कालिक कारण कुछ भी हो ! दंगे कौन शुरू करते हैं ? वह बात दिगर है ! लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान मुस्लिम समुदाय के लोगों का ही होता है ! यह बात तय है ! और तथाकथित मुख्य धारा के मिडिया के टी वी परिचर्चा न होकर, सिर्फ बीजेपी या आर एस एस के तरफसे एंकर भी बोलते हुए देखकर ! उसमे जाने वाले मुस्लिम प्रवक्ताओं के उपर तरस आता है ! उन्हें लगता होगा कि हमें जितनी भी जगह मिली है उसका उपयोग अपने कौम के लिए करना चाहिए ! लेकिन इतने अर्से के बाद भी उन्हें यह समझ में नहीं आ रहा है कि वह सिर्फ इस्तेमाल किए जा रहे ! और वह भी मुस्लिम समुदाय के खिलाफ !
लेकिन मुख्यमंत्री महोदय आप आर एस एस के शाखा से तैयार होकर निकले हुए स्वयंसेवक हो ! इतना मुझे पता है ! और संघ सेना, पॅरा मिलिटरी या पुलिसकर्मियों के जैसे प्रशिक्षण देने का काम करता है ! जिसे अंग्रेजी में (Regimentation ) बोला जाता है ! इस कारण संघ के स्वयंसेवकों में पढ़ने तथा सोच-विचार करने का अभाव होता है ! इतना अभाव कि अपने खुद के प्रकाशन के साहित्य को भी नही पढते है !(एक बार मैं नागपुर के संघ मुख्यालय के, प्रकाशन विभाग में कुछ किताबें खरीदने के लिए गया था ! वहां रखी हुई किताबों की धुल देखने के बाद काऊंटर पर एक बुजुर्ग प्रचारक को कहा “कि आप के किताबों पर काफी धुल जमी हुई है” ! तो उन्होंने कहा कि ” असल में हमारे स्वयंसेवक संघ के ड्रेस तथा अन्य साहित्य खरेदी के लिए आते हैं ! उन्हें संघ शिबीरोमे जितना बौद्धिक मिलता है ! उससे वह जिंदगी भर काम कर सकते हैं ! इसलिये वह साहित्य खरेदी के लिए कभी नही आते हैं ! और आप जैसे पढ़ने वाले लोग भी हमारे पास कम ही आते हैं ! इसलिये किताबों पर धुल जमा होना स्वाभाविक है ! और हमारे भी तरफसे उधरवाले सेक्शन में ध्यान कम ही जाता है !” इस कारण खट्टर हो या नरेंद्र मोदीजी हो ! अगर इन्हें बादशाह खान, अब्दुल गफ्फार सिर्फ यह नाम देखने के बादही ! अनायास बचपन से ही संघ के रेजिमेंटेंशन के ट्रेनिंग के कारण ! मुस्लिम द्वेष आपमें भी कुटकुटकर भरा होने की संभावना है ! और आनन-फानन में 2014 से बीजेपी जहाँ – जहाँ सत्ता में आई वहां – वहां मुस्लिम नाम देखकर बदलने की मुहिम शुरू की गई ! जिसमें मुगलसराय से लेकर इलाहबाद और भी कई जगहों के नाम बदलने की मुहिम चलाई जा रही है !
मै फिलहाल अन्य जगहों के नामों की चर्चा नहीं करूंगा लेकिन आप को खान अब्दुल गफ्फार खान यह कौन थे ? और उनके नाम की जगह पर किसका नाम दिया है ? इसपर जरूर विस्तार से जानकारी देने का कष्ट करना चाहुंगा !
खान अब्दुल गफ्फार खान – जिन्हें पख्तून प्यार से ‘ बाचा खान ‘ कहते है ! और भारत के जनसाधारण (संघ के लोग छोड़कर) सीमांत गांधी, ‘ सरहद गांधी ‘ और ‘ बादशाह खान ‘ के नाम से याद करते हैं ! जिसे हटाने का कार्य आपने पंद्रह महिने पहले किया है ! वह संसार की नजरों में (संघ छोड़कर) महान सत्यनिष्ठ योद्धा है, अहिंसा ध्वज के इतने महान उपासक है – ऐसे अडिग अहिंसाव्रती है ! कि इनका नाम लेकर शताब्दियों तक विश्व की शांतिप्रिय जातियों और कोटी – कोटी जनमानव गौरव से सिर उंचा रखेंगे (संघ परिवार छोड़) बाचाखान – जिन्होंने अटक पार युद्धशाली पख्तूनो के हाथ से बंदुके फिकवा दी ! और उनके हृदय में खुदाई खिदमतगारी – मानव मात्र की सेवा करने का भाव पैदा कर दिया था ! (जिसका उल्टा आर एस एस अपने ट्रेनिंग में लाठी – काठी और अब बम बनाने से लेकर बंदुके तथा पिस्तूल तक चलाने के प्रशिक्षण देते हैं ! तभी तो मोहन भागवतजी ने कहा कि संघ स्वयंसेवक तीन दिन के भीतर ही भारतीय सेना की जगह ले सकता है !)
तो आप को भारत के एक सपुत ! जो आज से सौ साल पहले अखंड भारत के लिए भारत के मध्य में स्थित नागपुर में रहकर अखंड भारत की रट नहीं लगा रहा था ! वर्तमान फटा (Federal Administered of Tribal Area ) पुराने पख्तूनिस्थान जो अफगानिस्तान की सिमा से सटा हुआ है ! और उसमे रहने वाले पठाणो से लेकर हजारा और विभिन्न जातियों के आदिवासियों के बीच रहकर 1890 के समय पैदा हुआ उतमान जई, अश्तंगर (हस्तनगर) नाम के गांव में खान बहराम खां के घर बच्चा पैदा हुआ था ! मतलब डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी के जन्म के आसपास की बात है ! और वही बच्चे को बादशाह खान अब्दुल गफ्फार खान के नाम से जाना जाता है ! जिसने उम्र के बीस साल पूरे करने के पहले से ही भारतीय आजादी के आंदोलन में शामिल हो गया था ! और अपने जन्मस्थान में खुदाई खिदमतगार(भगवान के सेवक) नाम पर एक संघठन तैयार किया था ! और भारत की आजादी के साथ-साथ आजके पाकिस्तानी पख्तुनिस्थान इलाके के रहिवासी होने के बावजूद 23 मार्च 1940 के मुस्लिम लिग के लाहौर प्रस्ताव का पुरजोर विरोध किया है ! (धर्म के आधार पर राष्ट्र बनाने की मांग का विरोध किया है !) और 1947 में पाकिस्तान अलग बनने के बाद भी उन्होंने पाकिस्तान के अस्तित्व को स्वीकार नहीं किया है ! और उस कारण भारत की आजादी की लड़ाई में वह जीवन के जितने साल जेल में रहे ! उससे ज्यादा समय पाकिस्तान बनने के बाद पाकिस्तान की जेलों में बंद रहे हैं ! भारत में सुरक्षित अंतर से पाकिस्तान मुर्दाबाद बोलने में क्या जाता है ? लेकिन पाकिस्तान में रहकर मरते दम तक पाकिस्तान के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करना ! यह हिम्मत वाले बादशाह खान अब्दुल गफ्फार खान के132वी पुण्य तिथि के समय उनके नाम से अगर कोई अस्पताल है ! तो उसका नाम बदलने की कृती बिमार मानसिकता का परिचायक है ! खट्टर साहब आप को पता होना चाहिए कि ! वह भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित एक मात्र पाकिस्तानी नागरिक है ! और ऐसे शख्सियत के नाम को बदलने की कृती भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले सभी लोगों का अपमान है ! और वह भी भारत की आजादी के पचहत्तर साल के कार्यक्रम के दौरान ! लानत है आपकी संकुचित मानसिकता पर ! और किनका नाम दिया गया है ? जो ग्वालियर पुलिस के रेकॉर्ड के अनुसार भारत छोडो आंदोलन के दौरान पुलिस के मुखबिर थे ! उस अटल बिहारी वाजपेयी का ! खट्टर साहब धन्य हो आप ! प्रशासन के तौर पर पख्तूनिस्थान भले पंजाब में संलग्न था लेकिन दुर्गम इलाके के कारण उपेक्षित रहा हैं और इसलिये नहीं कोई पढ़ने – लिखने की व्यवस्था थी और न ही कोई स्वास्थ्य सुविधा ! लेकिन बादशाह खान एक जमींदार परिवार में पैदा होने के कारण उनके बड़े भाई उस समय इंग्लैंड से डॉक्टर की पढाई पूरी करने के वापस पख्तूनिस्थान के बाद मे मुख्यमंत्री भी बने थे !
अपनी आत्मकथा में बादशाह खान खुद ही लिख रहे हैं ! कि यह कितनी खेदजनक बात है कि हमारा क्षेत्र, जो इतिहास के विभिन्न युगों में ज्ञान-विज्ञान, साहित्य व सभ्यता के उत्कृष्ट विकास का केंद्र था,! इतिहास की प्रतिकुल परिस्थितियों, मुल्ला – मुलाटो की मुर्खता, अविद्या और गिरावट के कारण इस हदतक अवनत हो गया है ! कि इसमें शिक्षा जैसे नेक काम की गुंजाइश न रही !
हमारे इस देश में विभिन्न संस्कृतियों और सभ्यताओं के दौर व्यतित हो चुके हैं ! एक समय था जब यह इलाका आर्य – सभ्यता की लीला – भूमि था ! फिर इस देश में बौद्ध मत का युग आरंभ हुआ ! इस युग में हमारे देश ने बहुत उन्नति की ! और यह एक महान शिल्प – ज्ञान व सभ्यता के निशान छोड़ गया ! आज भी महात्मा गौतमबुद्ध दो भव्य और विराट मूर्तियां बामियान में मौजूद हैं,! जो संसार भर में महात्मा गौतमबुद्ध की सबसे बड़ी मूर्तियां हैं ! और पर्वतांचल मूर्तिकला का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं ! (लेकिन इस्लामी आतंकवाद के तालिबान के लोगों ने 2000 के बाद अफगानिस्तान के युद्ध के दौरान उन्होंने बारूदी सुरंगों का इस्तेमाल कर के उध्वस्त किया है !)
बामियान के पर्वतांचल में महात्मा बुद्ध की विराट मूर्तियों के चारों ओर पर्वत में स्थान – स्थान पर गुफाए या गुहा- मंदिर बने हैं ! इन गुहा- मंदिरों में बौद्ध धर्म के साधक, भिक्षु, नेता, अध्यापक, गुरु और शिष्य रहा करते थे ! बामियान के अतिरिक्त जलालाबाद के निकटवर्ती इलाके में हड्डा नाम के स्थान पर बौद्ध धर्म का महान विश्वविद्यालय था, जिसके भग्नावशेष अभितक मौजूद हैं ! वहीं महीमा तक्षशिला (टैक्सला) को प्राप्त थी ! इन स्थानों पर पाए गए तक्षण – शिल्प, मूर्तीकला, वास्तुकला, दारू – शिल्प के नमूनों से मालूम होता है कि उस समय हम पठान लोग एक उत्कृष्ट सभ्यता और समुन्नत संस्कृति के धनी थे ! हमने इतनी उन्नती की थी कि अपने देश से बाहर चीन और सूदूरपूर्व तक हमारे बाजू फैले हुए थे ! इस प्रकार हमने अपनी संस्कृति और महात्मा बुद्ध के संदेश को संसार के अन्य भागों तक पहुँचाया है ! इस तरह अपने आत्मकथा में इमानदारी से लिखनेवाले खान अब्दुल गफ्फार खान के नाम को बदलने वाले वर्तमान शासन के प्रतिनिधि के अज्ञानता पर तरस आता है !
और उसी इस्लामी आक्रमण का हौवा बता – बता कर वर्तमान भारत में बाबरी मस्जिद विध्वंस से लेकर ! गुजरात के दंगों में, अहमदाबाद की वलि रहमानी की मजार को हिंदुत्ववादीयो के द्वारा बुलडोजर चला कर नष्ट करने की कृती को क्या हिंदु तालिबान नही कहेंगे ? क्यों कि इतिहास के क्रम में लगभग सभी आक्रमणकारियों के द्वारा स्थानीय लोगों को अपमानित करने के लिए उनकी स्त्रियों के साथ अत्याचार हो ! या उनके धार्मिक स्थलों को नष्ट करने की कृती सतत हुई है ! दो हजार साल पहले पुष्प मित्र शुंग के द्वारा बौद्ध धर्म के अनुयायी को मारने से लेकर बौद्ध धार्मिक स्तूप नष्ट कर के उन्हीके उपर मंदिर बनवाने के उदाहरण भारत के कोने-कोने में मौजूद हैं वर्तमान आंध्र प्रदेश की नई राजधानी अमरावती कभी बौद्ध धर्म का केंद्र रहा है ! भगवान गौतम बुद्ध को साक्षात्कार होने की जगह के पीपल के वृक्ष को काटने से लेकर बौद्ध गया में हिंदुत्ववादीयो के तरफसे मंदिर बनवाया गया था ! क्या यह इतिहास भुल गये ? छठवीं शताब्दी में केरल के कालडी से निकले सोलह साल के शंकराचार्य ने पच्चीस साल के अंदर भारत से बौद्ध धर्म को नष्ट करने के लिए क्या – क्या कहर बरपाया है ? बौद्ध धर्म के खिलाफ स्थानीय हिंदु शासकों की मदद से ! अभियान चलाया था ! और वर्तमान में भारत के मथुरा से लेकर पूरी, भुवनेश्वर, अमरावती(आंध्र प्रदेश की नई राजधानी निर्माण कार्य शुरू है ! और उसमें कौनसे पुरातत्व के नमूने मिल रहे हैं ? ) मे क्या किया है ? इस इतिहास को दुरुस्त करने की शुरुआत की तो ! भारत के आधे से अधिक धार्मिक स्थल के सिर्फ नाम बदलने से नही चलेगा ! सभी जगहों को बौद्ध धर्म के अनुयायियों को सौपना पडेंगा !
जेरूसलेममे आज गुडफ्रायडे के दिन दो हजार साल पहले क्या हुआ था ? यह आपको पता होना चाहिए ! तथाकथित विश्व सभ्यता के विकास (डॉ सम्यूअल हंटिग्टन के शुगर कोटेड भाषा में सभ्यता का संघर्ष !) के सफर में बहुत कुछ तोड़ फोड़ हुई है !
और आज सब को दुरुस्त करने का अभियान चलाया तो ! संपूर्ण विश्व में अफरा-तफरी का दौर शुरू हो जायेगा ! ऐसे हजारों की संख्या में ओरिसा, बंगाल, बिहार, आसाम और बामियान के ताजा उदाहरणों को लेकर भी हम कुछ सिखेंगे या नहीं ? फिर तो पूरे विश्व में सब तरफ अफरा-तफरी मच जायेगी ! क्योंकि विश्व के ज्यादा से ज्यादा वर्तमान देशों ने अपने कालोनी बढ़ाने के लिए अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया, न्यूझीलंड, अफ्रीका के सभी देश और एशियाई देशों के कई देशों में आकर अपना राज कायम करने के उदाहरण आखों के सामने मौजूद है ! अब इस इतिहास को दुरुस्त करने के चक्कर में तिसरा विश्वयुद्ध शुरू हो सकता है ! क्योंकि वर्तमान सभ्यता का ढोल पीटने वाले अमेरिकी 1492 के ख्रिस्तोफर कोलंबस की तथाकथित खोज की देन हैं ! और कोलंबस के ही समय स्थानीय जातीयो के नष्ट करने का आंकड़ा है ! दो करोड़ से अधिक ! क्या अब जो भी स्थानीय लोग बचे हुए हैं ! अगर वह भी आर एस एस के जैसे अभियान चलाने के लिए शुरू करे तो कैसा होगा ?
भारत की प्रथम लिखित इतिहास की पुस्तक कश्मीर के पंडित कल्हण की राजतरंगीणी के अनुसार भारत से बौद्धों के नष्ट करने के लिए महान हिंदु धर्म के राजा पुष्प मित्र शुंग ने अपने खजाने से सौ दिनार एक बौद्ध भिक्षु के सर काटकर लाने वाले को देने का तथ्यों को देखते हुए ! आज के बौद्धों की तरफ से बदले की कार्रवाई शुरू हो तो कैसा रहेगा ? और भारत के वर्तमान हिंदु धर्म के धार्मिक स्थलों को पुराने बौद्ध धार्मिक स्थलों के उपर बनाने के इतिहास दुरूस्त करने का अभियान शुरू होगा तो कैसा रहेगा ? यह जो इतिहास के दुरूस्त करने के नाम पर संघ के लोग बहुत आफत मोल ले रहे हैं ! क्योंकि आर्यों ने भारत में आकर मुल निवासियों के साथ क्या किया यह अमेरिका के गोरो से ज्यादा भयानक है !
मै बंगाल में पंद्रह साल था ! मुझे बंगाल में किसी छोटी मोटी बैठक में घुसने के समय ! कुछ बंगाली मित्रों से सुनना पड़ता था “कि चुप थाक बोरगी ऐसे छी” (चुप हो जाइये बोरगी आ गया है !)
महाराष्ट्र के भोसलाओने बंगाल में जाकर जो कहर बर्पा था ! तो आज भी रोज रात को सोने के पहले कुछ बंगाल की माँ अपने छोटे बच्चों को सुलाने के लिए कहती है “कि सुई जा अन्यथा बोरगी ऐसे जाबे !” यह सब किस बात के प्रमाण है ? इतिहास के क्रम में कमअधिक प्रमाण में सभी आक्रमणकारियों ने स्थानीय लोगों को लुटेरों के जैसे लुटा है ! शिवाजी महाराज ने खुद सुरत को कितनी बार लुटा है ? रहा सवाल ऐतिहासिक विरासत की जगह को लेकर अगर आप ज्यादा खुदाई करोगे तो फिर भारत के कितने मंदिर सुरक्षित रहेंगे यह भी देख लिजिये !
यह नामोको बदलने की राजनीति एक ओछी राजनीतिक कृति में आती है ! यह अकर्मण्यता के राजनेता के रूप में जाना जाएगा ! लोगों के रोजमर्रे के सवालों से ध्यान भटकाने के लिए ! सोची-समझी साजिश के तहत, आप लोग आस्था का खेल खेल रहे हो ! जो कभी सौ साल पहले जर्मनी में हिटलर ने भी खेला था ! लेकिन पच्चीस साल के भीतर उसे इसी अप्रैल महीने में 24 तारीख को 1945 के दिन खुद को अपने कनपटी पर पिस्तौल दाग कर आत्महत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा है ! इस इतिहास को आज सिर्फ सतहत्तर साल हो रहे हैं ! एक हप्ते के अंदर ही !
डॉ सुरेश खैरनार 15 एप्रिल 2022, नागपुर