माननीय आपने भीमा कोरेगाव की 2018 के एक जनवरी की घटना को लेकर, मैने राष्ट्र सेवा दल के अध्यक्ष के पद पर रहते हुए हमारे कुछ साथियों के सहयोग से आठ जनवरी 2018 को भिमा कोरेगांव की घटना की जांच की थी ! और वह रिपोर्ट माननीय निखिल चक्रवर्ती ने स्थापित किया हुआ ‘मेनस्ट्रीम’ नामकी पत्रिका ने आपने 23 जनवरी 2018 के अंक में प्रकाशित किया था ! शायद आपने मेनस्ट्रीम पत्रिका से ही, भीमा कोरेगाव की केस सर्वोच्च न्यायालय में पेश होने के समय, आप उस बेंच में एक न्याधीश थे ! और आपने अकेले ने उस केस के संदर्भ में डिसेंट जजमेंट दिया है ! और उस जजमेंट में हम ने की हुई जांच का रिपोर्ट शब्दशः आपने जजमेंट में कोट किया है !
यह बात मुझे जब पता चली तो वर्तमान समय में, पिछले नौ सालों से वर्तमान केंद्र सरकार सत्ता में आने के बाद संसद से लेकर न्यायालय तक सरकार के दबाव में काम कर रहा है ! और जिस देश में न्यायाधिशोकी जानमाल की सुरक्षा की गारंटी नहीं है वहाँ सर्वसामान्य नागरिकों की क्या स्थिति है ? ( 12 जनवरी 2018 के दिन जस्टिस चलमेश्वरने अपने दिल्ली स्थित सरकारी आवास पर जस्टिस मदन लोकूर, जस्टिस कुरियन जोसेफ, और जस्टिस रंजन गोगोई के साथ जस्टिस लोया की मृत्यु के केस को लेकर पत्रकारों से बातचीत की ! और हमारे उपर कितना दबाव है ? यह बात पत्रकारों के सामने कहना भारत के न्यायव्यवस्था के इतिहास में पहली बार हुई है ! )

वर्तमान सरकार के मुखिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी की पुरानी आदत है ! जो उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए चौदह साल में गुजरात की सबसे निचली अदालत से लेकर वहां के उच्चन्यायालय तक दबाव में रखने का काम किया है !2002 के दंगों में पुलिस-प्रशासन की भूमिका क्या रही हैं ? यह पूरी दुनिया जानतीं है ! और इन्हीं बातों को लेकर तिस्ता सेटलवाड बीस साल से भी अधिक समय से दंगों में मारे गए लोगों के लिए न्याय की गुहार लगा रही है !

उसे ही सजा देने का सबसे ताज़ा उदाहरण तिस्ता सेटलवाड के साथ चल रहा मामले में साफ दिखाई दे रहा है ! और राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता रद्द करने का निर्णय कौन सा संविधान के अनुसार लिया गया निर्णय है ? सभी का नाम मोदी ही क्यों होता है इसमें कौन सी आपत्ति जनक बात है ? और कौन-से कानून के अनुसार राहुल की लोकसभा की सदस्यता समाप्त हो जाती है ? और सोहराबुद्दीन से लेकर इशरत जहां जैसे लोगों की हत्या के आरोपी को इस देश की कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी सौंपी जाती है ! यह हमारी सभी संविधानिक संस्थाओं का फेल्युअर है ! संजीव भट्ट जैसे अफसर को बेल तक मिलने नहीं दिया जा रहा है ! और सबसे हैरानी की बात गुजरात दंगों के अपराधियों में से कुछ बलात्कार और हत्या जैसे संगीन अपराध के मामले को एक – एक करके क्लिनचिट देने की कार्यतत्परता जिसमें नरेंद्र मोदी और अमित शाह को भी सबसे पहले क्लिनचिट इसी तरह से दी गई है ! और गुजरात के कोर्ट की विश्वसनीयता संशय के घेरे में आनेके वजह से ही 2002 के दंगों के केसेस महाराष्ट्र के कोर्ट में ट्रान्सफर किए गए हैं ! जस्टिस लोया की मृत्यु उसीका नतीजा है ! किस तरह से लोया परिवार दहशत में रह रहा हैं ! क्या यही हमारे देश की कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी है ? और तथाकथित अमृतकाल मेरे हिसाब से मणिपुर की महिलाओं के साथ किया गया घृणास्पद व्यवहार जो कि मणिपुर की राज्यपाल एक आदिवासी महिला है और देश की राष्ट्रपती भी ! क्या इन्हीं बातों से चिढकर अपराधी अपनी प्रतिक्रिया कर रहे हैं ?


लेकिन आप मुख्य न्यायाधीश बनने के बाद लगा कि आप इस तरह के किसी भी प्रकार के दबाव में नही आने वाले न्यायाधीश है ! इस आशा से मै आज आपको यह खुला पत्र लिख रहा हूँ !
माननीय आपने वाराणसी के सर्व सेवा संघ की जमीन के मामले में खुद कहा था कि “मैं इस मामले को खुद देखने वाला हूँ ! और तबतक रेल विभाग उस जगह कोई कार्रवाई नहीं करेगा ! ऐसा आपने कहा था ! और शायद उसी कारण रेल विभाग ने कोई कार्रवाई नहीं की ! लेकिन जिस वाराणसी कोर्ट और बाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सर्व सेवा संघ के मामले में सुनवाई से मना कर दिया था ! तो वापस उत्तर प्रदेश के किसी भी कोर्ट में भेजने का क्या मतलब है ?
गुजरात के बाद उत्तर प्रदेश की न्यायिक व्यवस्था से लेकर प्रशासनिक व्यवस्था पूरी तरह से सत्ताधारी दल के मातृसंस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इशारे पर काम कर रहे हैं !
अभी कल ही मेरे पास सोशल मीडिया के द्वारा एक घटना के बारे में जानकारी प्राप्त हुई है ! “वर्धा के आंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के व्हाईस चांसलर जो मुलतः बनारस के है ! और उन्होंने अपनी पीएचडी की थीसिस किसी पांडे नामकी महिला के 1991 में कीए गए पीएचडी की थिसिस की नकल इस महाशय ने की है ! और पिछले तीस सालों से वह महिला अपने थीसिस की नकल करने की तक्रार बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट तक कर चुकी है ! लेकिन उसे आजतक न्याय नहीं मिल रहा है ! और यह विवादास्पद पीएचडी होल्डर आज भारत के केंद्रीय विश्वविद्यालय का व्हाईस चांसलर नियुक्त किया जाता है ! इससे उत्तर प्रदेश की अकादमिक अनुसंधान से लेकर प्रशासन और आपके मातहत रहने वाली न्यायिक प्रणाली भी कैसे काम कर रहे हैं ? यह पीएचडी की केस एक उदाहरण के तौर पर दे रहा हूँ !


वैसे तो महिलाओं के साथ किए गए अपराधो से लेकर अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के साथ तथाकथित गोमांस के नाम पर मॉबलिंचिग में मारे गए लोगों और बाहुबली के नाम पर चुन – चुनकर अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के एंकाउटर और दुसरी तरफ टोनी मिश्रा से लेकर कुलदीप सेंगर या संजीव बलियान जैसे लोगों के द्वारा किए गए अपराधियों के बारे में उन्हें बचाने के लिए विशेष रूप से उत्तर प्रदेश पुलिस की भूमिका बहुत ही संगिन मामलों के रहते हुए क्या कारवाई हो रही है ? तो उसी उत्तर प्रदेश के कोर्ट में वापस भेजने का कोई औचित्य नहीं है !
और जिस देश में एक तरफ महिलाओं को देवीयो का दर्जा दिया जाता है ! और उसी देश के एक राज्य मणिपुर में आदिवासी समुदाय की दो महिलाओं के साथ जो किया गया है ! यह संपूर्ण देश के लिए शर्म की बात है ! जब कि वर्तमान समय में भारत के सर्वोच्च राष्ट्रपति पद पर बैठी एक आदिवासी महिला को बैठाने की बात वर्तमान सत्ताधारी दल ने ढोल बजाकर दावा किया ! “कि देखो भारत के इतिहास में पहली बार किसी आदिवासी समुदाय की महिला को राष्ट्रपति बनाया है !” लेकिन आदिवासीयो को राजनीतिक रूप से अपिजमेंट करना और मणिपुर में पिछले दो महिने से अधिक समय से जो कुछ चल रहा है ! और कल जो विडियो सोशल मीडिया पर वायरल होकर घुम रहा है !

वह संपूर्ण देश की गर्दन शर्मसे निची झुकी जा रही है ! इसलिए आपसे प्रर्थना है कि ” भिमा कोरेगांव, वाराणसी की सर्व सेवा संघ की जमीन और मणिपुर में राज्यपाल भी आदिवासी समुदाय की है ! लेकिन दो आदिवासी महिलाओं के साथ किए गए कृत्य का सज्ञान आपने खुद होकर लेना चाहिए ! क्योंकि मणिपुर में राज्यपाल से लेकर मुख्यमंत्री की कार्यतत्परता कितनी चुस्त- दुरुस्त है यह कल की घटना से साफ जाहिर हो गया है !
और वाराणसी के राजघाट स्थित सर्व सेवा संघ की जमीन को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोगो द्वारा कब्जा कौन सा कानून के अंतर्गत आता है ? जिसमें स्थानीय प्रशासन और पुलिस की पूरी मदद संघ के लोगो के लिए विशेष रूप से काम कर रही है ! इसलिए वहीं उत्तर प्रदेश के कोर्ट में भेजने का औचित्य कहा तक उचित है ? वह कोर्ट तो बात सुनने के लिए तैयार नही है ! इसलिए तो सर्वोच्च न्यायालय में आएं थे ! तो फिर जाए तो कहा जाए ?
डॉ. सुरेश खैरनार 20 जुलै, 2023, नागपुर

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