बिहरगई पंचायत के एक गांव में 199 परिवार के बीच 23 लाख 88 हजार रुपए खर्च किए गए हैं. बिहरगई के कमालुद्दीन आजाद ने बताया कि हमने अपने पैसे से शौचलय बनवाया है. सरकार से मिलने वाली राशि के लिए प्रखंड का चक्कर काटते-काटतेे तीन माह बीत गए, लेकिन राशि नहीं मिली. ग्रामीण मनोज यादव, अनीता देवी ने बताया कि सरकार को कोई सरल नियम बनाकर शौचालय लाभुक के खाते में राशि दी जानी चाहिए. गया जिले के झारखंड की सीमा से लगे डुमरिया प्रखंड की भी कमोबेश यही हालत है.
खुले में शौच से मुक्ति (ओडीएफ) को लेकर पूरे देश व प्रदेश में जागरूकता अभियान चल रहा है. हर तरफ ओडीएफ की चर्चा हो रही है. बिहार में मगध के पांच जिलों में भी खुले में शौच से मुक्ति के लिए घर-घर शौचालय निर्माण को लेकर अभियान चलाया जा रहा है. इसके लिए सरकार की ओर से निर्धारित राशि लाभुकों को दी जा रही है. विभिन्न कार्यक्रम, जैसे नुक्कड़ नाटक, गीत-संगीत के माध्यम से गांव-गांव, शहर-शहर में जागरूकता फैलाई जा रही है. लोगों को शौचालय की आवश्यकता तथा खुले में शौच से होने वाली परेशानी और बीमारी के बारे में बताया जा रहा है. लोगों को जागरूक किया जा रहा है. अभियान पर लाखों-करोडों की राशि खर्च की जा रही है, लेकिन इसमें जितनी प्रगति होनी चाहिए थी, वैसी प्रगति नजर नहीं आती है. मगध प्रमंडल के मुख्यालय गया जिले को पूरी तरह 2 अक्टूबर 2018 तक खुले में शौच से मुक्ति का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.
यानी गया जिले के हर घर में शौचालय का निर्माण आगामी गांधी जयंती तक हो जाएगा. लेकिन जो स्थिति है, उसमें नहीं लगता है कि गया जिला पूरी तरह खुले में शौच से मुक्त हो पाएगा. गया जिले के 24 प्रखंडों में कुल 333 पंचायतें हैं. इन पंचायतों में यदि देखा जाए तो बहुत कम गांवों को खुले में शौच से मुक्त किया जा सका है. उदाहरण के रूप में जिले के बांके बाजार प्रखंड को लिया जा सकता है. इस प्रखंड के 11 पंचायतों के 99 गांव के 155 वार्ड में से सिर्फ 15 वार्ड को ही ओडीएफ किया जा सका है. पूर्ण रूप से एक पंचायत को ओडीएफ के लिए चुना गया था, लेकिन काम नहीं हो सका. इस पंचायत के 17 वार्ड में से 12 वार्ड ही ओडीएफ हो सके हैं. इस पंचायत के प्रत्येक वार्ड में एक-एक एजेंसी को शौचालय बनवाने का जिम्मा दिया गया था. जिस वार्ड को ओडीएफ किया गया, वहां बनाए गए शौचालय की हालत बहुत खराब है.
हालांकि इस प्रखंड के गोईठा वा रौशनगंज पंचायत को 2005 में ही खुले में शौच से मुक्त कर दिया गया था. यहां के मुखिया को राष्ट्रपति के द्वारा पुरस्कृत भी किया गया था. इस प्रखंड में बनाए गए 1944 शौचालय पर 2 करोड़ 33 लाख 28 हजार रुपए खर्च किए गए थे. बिहरगई पंचायत के एक गांव में 199 परिवार के बीच 23 लाख 88 हजार रुपए खर्च किए गए हैं. बिहरगई के कमालुद्दीन आजाद ने बताया कि हमने अपने पैसे से शौचलय बनवाया है. सरकार से मिलने वाली राशि के लिए प्रखंड का चक्कर काटते-काटतेे तीन माह बीत गए, लेकिन राशि नहीं मिली.
ग्रामीण मनोज यादव, अनीता देवी ने बताया कि सरकार को कोई सरल नियम बनाकर शौचालय लाभुक के खाते में राशि दी जानी चाहिए. गया जिले के झारखंड की सीमा से लगे डुमरिया प्रखंड की भी कमोबेश यही हालत है. यहां के सेवरा पंचायत को पहले ही ओडीएफ किया जा चुका है. अन्य पंचायतों में भी शौचालय बनवाने का काम कछुआ गति से हो रहा है. एक से 10 अप्रैल 2018 तक छतीसगढ़ से आई एक टीम ने रात्रि चौपाल लगाकर नुक्कड़ नाटक के जरिए शौचालय की आवश्यकता से लोगों को अवगत कराया. वहीं ग्रामीणों का तर्क है कि अभी खेतों में उपजे फसल को समेटने का समय है. फसलों को जब हम घर ले आएंगे, तभी दूसरे काम में लगेंगे.
जहनाबाद जिले के सात प्रखंडों के 93 पंचायतों में भी खुले में शौच से मुक्ति के लिए जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है. परन्तु परिणाम बहुत सार्थक नहीं है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार जहानाबाद के मोदनगंज के 43 तथा काको प्रखंड के 1 वार्ड को ओडीएफ घोषित किया गया है. 2 अक्टूबर 2018 तक मोदनगंज प्रखंड को पूर्ण रूप से ओडीएफ करने का लक्ष्य है. इससे पहले मखदुमपुर प्रखंड के 3 पंचायतों को ओडीएफ घोषित किया गया था, बाद में ओडीएफ घोषित पंचायतों की जानकारी ली गई तो यह योजना पूरी तरह फेल साबित हुई. यही हाल जहानाबाद से लगे 5 प्रखंडों और 65 पंचायतों वाले अरवल जिले का है. यहां भी रात्रि चौपाल और सुबह की निगरानी के बाद भी शौचालय निर्माण की प्रगति अच्छी नहीं है.
औरंगाबाद जिले में कुल 11 प्रखंड हैं. यहां पंचायतों की संख्या करीब 250 है. औरंगाबाद जिले को एक साल के अंदर ओडीएफ घोषित किए जाने का लक्ष्य रखा गया है. इस जिले के देव प्रखंड के पवई पंचायत को 31 दिसम्बर 2017 तक खुले में शौच से मुक्त घोषित किया गया है. लोग बताते हैं कि जमीनी हकीकत इस दावे से दूर है. ओबरा प्रखंड के उब पंचायत के कजबा गांव में राजकीय मध्य विद्यालय में शौचालय नहीं रहने के कारण छात्र-छात्राओं, शिक्षकों को खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है. यहां की एक महिला शिक्षिका ने बताया कि सरकार स्वच्छता अभियान के तहत नुक्कड़ नाटक व अन्य कार्यक्रमों पर लाखों रुपए खर्च कर रही है.
अगर इस राशि को शौचालय निर्माण कार्य में लगाया जाता, तो तस्वीर दूसरी होती. अभी प्रचार ज्यादा काम कम हो रहा है. मगध के पिछड़े जिले के रूप में नवादा को जाना जाता है. इस जिले में कुल 14 प्रखंड हैं. 187 पंचायतों के 1099 गांव वाले नवादा जिले में भी खुले में शौच से मुक्ति के लिए शौचालय निर्माण की गति बहुत धीमी है. झारखंड की सीमा से लगे कौआकोल, गोबिन्दपुर, अकबरपुर, रजौली आदि प्रखंडों में तो शौचालय निर्माण की बात की जा रही है. कुछ पंचायतों को शीघ्र ओडीएफ हो जाने की बात कही जा रही है. 2 अक्टूबर 2018 तक इस मामले में बहुत हद तक लक्ष्य प्राप्त कर लेने का दावा सरकारी स्तर पर किया जा रहा है, लेकिन शौचालय निर्माण की जो गति है उससे लक्ष्य प्राप्त करने में संदेह है.
गया जिले को तीव्र गति से लक्ष्य प्राप्त करने का भले ही प्रमाण पत्र व सम्मान मिल गया है, लेकिन शौचालय निर्माण की जमीनी हकीकत कुछ और है. मामला यह है कि जहां कोई एजेंसी शौचालय निर्माण कर रही है, वहां वह आंकड़ों का खेल कर राशि की निकासी कर ले रही है. दूसरी ओर जो लोग खुद खर्च कर शौचालय निर्माण कर रहे हैं, उन्हें राशि लेने के लिए काफी परेशान होना पड़ रहा है. इसमें भी दलालों की चलती है. इन्हीं सब कारणों से मगध के जिलों में ओडीएफ की उपलब्धि तमाम प्रयासों के बाद भी सार्थक नहीं हो रही है.