मकतूल गुनाहगार है, कातिल काबिल-ए-रहम है…! दुनिया में बहती धारा से अलग चलोगे तो कुछ अलग दिखाई दोगे…! फार्मूला हिट हो गया, कामयाबी दौड़ी चली आई और आने से पहले अकल का चीर हरण करने से नहीं चूकी…! अलग दिखने की चाह अब बिगड़ी बातें, बिगड़े बोल, रिश्ते तोड़ते उद्बोधन की तरफ खींचे चले जा रहे हैं, मकबूलियत की मगरूरियत उसी राह का भ्रम जाल फैला चुकी है, जिसपर चलकर विनाश ही विनाश है…! जिनके दम पर रुतबा और रसूख मिला था, मुश्किल दौर में उन लोगों की अनदेखी की गई, लोगों ने भुला दिया…! कारोबारियों को दो टूक कहकर खामोश कर दिया जाता है कि अपने अधिकार का उपयोग उनके लिए कर कोई अहसान नहीं किया है, कुबूल कर लिया जाता है…! जिस पार्टी पर वोट बटोर लेने के इल्जाम आयद होते आए हैं, उसके मंच से कहना कि वोट तो खरीदे भी जा सकते हैं, पार्टी ने इग्नोर कर दिया…! अब बच्चों की फौज पैदा करने और उनके दम पर देश पर राज करने की मंशा…! न तो पार्टी की गाइडलाइन का हिस्सा होगा, न व्यवहारिक रूप से ये सत्यापित हो पाएगा…! लेकिन बोलने की बीमारी कोई कहां ले जाए…! बोलना था, बोल दिया… किसी को पागल कहने से परहेज नहीं किया गया और किसी राज्य पर हिन्दू पताका फहराने के सब्ज बाग दिखाने में भी कोताही नहीं की गई…! नाम के साथ जो पदवी जुड़ी है, उससे विपरीत दिशा में बहते रहने की उनकी आदत ही है शायद…! विध्वंस के साथ उनका नाम जुड़ जाता है, धैर्य और संयम की उनसे अपेक्षा नहीं की जा सकती, किसी मजहब को भला कहने के लिए दूसरे को महा बुरा करार दिया जाना भी उनके कर्मों में जुड़ा है…! जंगल, पहाड़ी और सुकून की जगह पर भगवन को स्मरण करने का ऐलान करने वाले लोग जब-जब सियासत की तरफ बढ़ते चले आए हैं, उन्होंने प्यार, मुहब्बत और सुकून के पौधों को उखाड़ फेंक, नफरत की खेतियां ही की हैं, उन्हें इस बात का अहसास हो चला है कि उनकी सियासत की नैया, इन कड़वे बोलों की पतवार ही पार लगाएगी, इसलिए मन, मस्तिष्क और जुबान के विचारों में मतभेदता कभी भी हिलोरें मारने लगती है…!

पुछल्ला
नकल के लिए
अकल भी जरूरी है
हारों का इतिहास बना चुकी पुरानी पार्टी ने मुहल्ले के चुनाव में अपनी सबसे सशक्त पार्टी की विचारधारा के रवैये को अपनाने का मन बनाया है। छोटे चुनाव में बड़े नेताओं की फौज मैदान उतारी जाएगी। इस बीच ये भुला दिया गया कि फौज के जवानों के चेहरे कब से फीके और उनके औजारों में कब से जंग लग चुकी है। न चेहरे का प्रभाव बाकी है और न बातों का कोई दबाव ही बचा है। नकल करते हुए इस बात पर भी जाया जा रहा है कि टिकटों की आखिरी मोहर लगाने के लिए जिला कार्यालयों को अधिकार होगा। तरकश का आखिरी बर्बादी अस्त्र कहा जाना चाहिए, इसके बाद बगावत की बाढ़ पार्टी की छोटी मौजूदगी को भी बहाकर ले जाने का कारण बनने वाली है।

खान अशु

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