आज 20 जून बांग्ला भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार, और पत्रकार गौर किशोर घोषका 98 वा जन्म दिन है ! अविभाजित बंगाल के जसौर जिले के हट गोपालपुर नाम के एक देहात में जन्म हुआ था ! लेकिन बटवारे के कारण उनके परिजनों को अपने पुस्तैनी घर को छोड़ कर भारत में आना पड़ा !

उसके बाद नवदीप के एक स्कूल से इंटरमीडिएट सायन्स के बाद गरीबी के कारण आगे की पढ़ाई पूरी नहीं कर सकें ! फिर अपने जीवन यापन करने के लिए 1941 से 1953 बारह साल, होटल के बाॅय से लेकर इलेक्ट्रिशियन, फीटर, विक्रेता, नाटक कंपनी के मैनेजर, शिक्षक, मजदूर आंदोलनकारी, बार्डर कस्टम के बाबु और इतनी सारी यात्रा करने के बाद सत्ययुग नामके बंगाली भाषा के अखबार में पत्रकार की शुरुआत हुई !

उनकी शैली से प्रभावित होकर भारतीय भाषा के सबसे बड़े अखबार आनंद बाजार प्रकाशन समूह में शामिल होने का अवसर मिला ! जिसमें वे देश नामकी पत्रिका के संपादक और आनंद बाजार पत्रिका के संपादक तक सफर तय किया !
गौरदा के उदाहरण से समझा जा सकता है कि उच्च शिक्षा और ज्ञान का कोई संबंध है? विनोबा, वसंत पल्शीकर, प्रफुल्ल बिडवाई , निखिल वागळे जैसी शख्सियतें जिनसे मैं मिला हूँ ! और काफी नजदीकी से उन सभीको देखने, समझने का मौका मिला है इसलीये इन्हि के उदाहरण दे रहा हूँ !

और उनके खोज पत्रकारिता के हुनर को देखकर आशियां का नोबेल पुरस्कार यानी रेमोन मैग्सेसे पुरस्कार ! 1981 में उन्हें प्रदान किया गया है ! उसके पहले 1970 बंगला भाषा का सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार आनंद बाजार प्रकाशन समूह के द्वारा दिया जाने वाला आनंद पुरस्कार से सम्मानित किया गया है ! इसके अलावा दक्षिण कोरिया का पत्रकारिता पर एक पुरस्कार 1976

1981 मे महाराष्ट्र के इचल्कर्ंजी का फाय फौडेंशन का पुरस्कार से सम्मानित किया गया है ! और इस पुरस्कार के लिए जब वे कलकत्ता से मुम्बई गये थे तो महाराष्ट्र के साहित्यकार पुल देशपांडे जी के मेहमान रहे ! और पुलने उनको इचल्कर्ंजी को ले जाने से वापस मुम्बई में कलकत्ता के विमान में लाकर पहुँचाने का बहुत ही रोचक वर्णन जो गौरदा ने मुझे बताया था वह मै कभी अलग से लिखूंगा !

परिस्थितियां आदमी को खत्म कर देने के उदाहरण ज्यादातर देखने को मिलती है ! लेकिन जिनके पास जबरदस्त संकल्प शक्ति होती है वह गौरदा के जैसे बनते हैं ! उनकी राजनैतिक विचारधारा कभी एम एन राॅय के प्रभाव से रेडिकल ह्यूमॅनिस्ट रही है!मैने और भी रेडिकल ह्यूमानिझवाले लोग देखे हैं जो सिर्फ रेडिकल मायनस ह्यूमन देंखे है ! लेकिन गौरदा सही मायने में रेडिकल ह्यूमन देंखे ! इस कारण उनके घर वीएम तारकुंडेजी से भी परिचित होने का अवसर मिला है ! इतनी अच्छी विचारधारा क्यो आगे बढ़ नहीं सकी ? यह प्रश्न अक्सर हमारे बीच में शिव नारायण राय, अमलान दत्त तथा गौरदा के साथ काफी बार चर्चा में आते रहता था !

उन्ही लोगों के साथ यह विचार धारा ठप्प हो गई ! शायद जिस फासिज्म विचारधारा को एम एन राॅयने सबसे पहले धिक्कार किया है ! उसके भारत में आगमन के साथ ही रेडिकल ह्यूमॅनिझम हवा हो गया ! मैंने भागलपुर दंगा की विदारकता देखकर यह बात कहना, लिखने की कोशिश की है ! जिसकी कद्र गौरदा करते थे ! और हमारे बीच मेरे पिताजी के उम्र का अंतर था ! यह साल मेरे पिताजी की शताब्दी का है और गौरदा की 2023 ! उसके बावजूद वे मेरा परिचय करते वक्त मीट माय फ्रेंड फिलोसोफर और गाईड ! जिससे मुझे बहुत संकोच होता था ! लेकिन वे अक्सर कहा करते थे कि तुम्हारे उम्र के तुलना में तुम बहुत आगे हो ! कयोंकि वे अपने संपादकीय छपवाने के पहले कभी-कभी मुझे पढकर सुनाते थे ! और मैं अपने ढंग से उसकी आलोचना करता था !

तो एक बार अटल बिहारी वाजपेयी की नेहरू के साथ तुलना करने पर मैंने बहुत ही कडे शब्दों में आलोचना की थी ! और गोविंदाचार्य के काफी पहिले ही अटलबिहारी एक मुखवटा है जो संघ के स्वयंसेवक होने के बावजूद झूठमूठ की उदार छवि दिखाने की कोशिश कर रहे है ! तो उन्होंने वह लेख छपने नहीं दिया ! इतना लोकतांत्रिक आदमी मैंने नहीं देखा ! अपने बच्चों के साथ भी बहुत ही उदार व्यवहार करते थे ! और सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बात महिलाओके साथ सबसे ज्यादा मैने उनकी मित्रौ में बहुत ही साधारण जीवन यापन करती महिलाएं देखी है ! और उनके साधारण से साधारण से प्रश्न पूछने पर बहुत ही सुंदर उत्तर देते थे !

साने गुरुजी को मैंने देखा नहीं है लेकिन गौरदा के अंदर मुझे गुरूजी दिखते थे ! उनकों मैंने क्या दिया पता नहीं है पर गौरदा मेरे जीवन को समृद्ध करके गये ! 26 जून1975 को आनंद बाजार पत्रिका के टेलीप्रिंटर पर देश मे आपात काल लगाने की खबर देखने के बाद गौरदा चुपचाप उठकर रस्ते के किनारे पर बैठे पहले नाईसे अपने सरपर के सभी बालों को मुंडवा कर रस्ते पर चलने लगें ! तो जान पहचान वाले लोग पूछने लगे कि की होलो तो गौरदा जवाब में जनतंत्र मारा गेलो बोलकर चलते रहे !

भारत मे आपातकाल लगने के बाद इस तरह का अनूठा सत्याग्रह शायद पहलाही था ! तो पूलिस ने उन्हें अपने साथ उस समय के मुख्यमंत्री सिद्धार्थशंकर राय के पास राइटर्सबिल्डिंग लेकर आये तो सिद्धार्थबाबु ने कहा कि आपनी बाडीते चोलें जान किंतु गौरदा ने कहा कि सिद्धार्थ आप अपने कर्तव्य का पालन करों ! मै मेरे कर्तव्यो का पालन कर रहा हूँ ! फिर सिद्धार्थ रायने पुलिसके लोगोंको उनके घर उन्हें अपने साथ ले जाकर उनके सामान लेकर उन्हें जेल ले जाने के लिए कहा!

आपातकाल में काफी सत्याग्रह हुऐ हैं पर इस तरह का यह एकमात्र सत्याग्रह हुआ है ! और यह सब बातें अपने 13 साल के बेटे भास्कर को बहुत ही सुंदर पत्र लिखा था ! कि मैंने यह सब कुछ क्यो कीया ? जो पत्र देशके सभि भारतीय भाषा में अनुवाद होकर बुलेटिन के रूप में बाँटने का प्रयास किया है जो मैंने भी मराठी भाषा में बांटने का प्रयास किया है ! बेटे के नाम पिताजी का पत्र ! एक आपातकाल का महत्त्वपूर्ण दस्तावेज बनकर रह गया है ! आनेवाले 25 जून को आपातकाल के 46 साल हो रहे है, लेकिन गत सात साल से अघोषित आपातकाल जारी है और इस समयमे गौरदा जैसे निर्भय पत्रकार की बरबस याद आ रही है !

1969-71के नक्षल आन्दोलनकारियों की हिंसा को देखकर गौरदा ने रुपदर्शी नाम लेकर देश नामकी बंगाली भाषा की पत्रिका में आमाके बोलते दाव (मुझे बोलने दो) लगातार नक्षलवादीयो के द्वारा हो रही हिंसा पर लिखा है ! जिस कारण नक्षलवादीयोने तथाकथित जनता के न्यायालय में उन्हे फांसी की सजा सुनाई थी ! बंगाल में काफी हडकंप मच गया था ! मुख्यमंत्री सिद्धार्थशंकर राय ने सुरक्षा के लिए पुलिस तैनात कर दी थी ! लेकिन गौरदा ने हटाने के लिए कहा ! फिर आनंद बाजार समूह के मालिक आशोक कुमार सरकार ने कहा था कि हम अपने प्रयावेट सिकुरिटी का प्रबंध करते हैं ! तो उन्हें भी गौरदा ने मना कर दिया ! इतना निर्भय आदमी मैंने नहीं देखा !

आपात्काल के समय ही 1976 माओ की मृत्यू हो गयी थी तो अलीपुर जेलमे नक्षलाइट भी थे ! और उन्होंने माओ को लेकर एक श्रदाँजलि सभा का आयोजन किया था ! तो उसमें गौरदा नंगे पांव चले गये थे ! तो किसिने पूछा कि चप्पल कहाँ है ? तो गौरदा बोलेकि हमारे घर के किसी सदस्य का निधन होने के बाद क्या हम चप्पल पहनने का करते हैं ? (बंगाल में 11दिन के सूतक में यह प्रथा है) ऐसे आदमी को आजात शत्रु के अलावा कुछ और कहेंगे ? शत -प्रतिशत रैडिकल ह्युमानिस्ट थे और एम एन राय के विरासत को निभाया, एम राय को इंटरनेशनल कोमिंटारने चीनी क्रांती के लिए अपने प्रतिनिधि के तौरपर अधिकृत रूपसे भेजा था !

सगीना महातो उनके कहानी पर आधारित बंगाली और हिंदी में एक सिनेमा तपन सिन्हाने बनाया है ! चाय बागान के मजदूरों के साथ कैसे-कैसे शोषण होता है ? इस विषयपर यह फिल्म का कथानक है ! जिसमें तथाकथित प्रगतिशील मजदूरों के नेतृत्व में भी क्या खामियां हैं ? यह बात उजागर करने का प्रयास किया है ! यह कहानी एक सत्य घटना पर आधारित है जिसे मैं खुद जानता हूँ ! गौरदा नेही उससे संबंधित मजदूर आंदोलन के एक नेता से मेरी मुलाकात करवायी है !

गौरदा के बारे में मेरी राय है कि वह भारत के पत्रकारिताजगत के भीष्म पितामह थे ! शोध पत्रकारिता क्या होती है यह उनकी लेखन शैली में झलक रहा है ! किसी भी तरह की गलत बातको कैसे लिखें यह उनकी लेखो की सूची में शामिल किया गया है वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आजकल जो हालत है वह आपात्काल से भी अधिकगंभीर दौरसे गुजर रही है ! गौरदा ने आपात्काल नक्षल आंदोलनों के मामलों में जो कुछ भी किया है वह आज के पत्रकारोके लिये बहुत बढ़िया उदाहरण है !

वो कुछ समय के लिए एक्सप्रेस अवार्ड कमिटी के सदस्य थे ! उस दरमियांनमे उन्होंने असमिया भाषा के एक पत्रकार जो आसमके सवाल असमिया आंदोलन के पहले (आसामी अस्मिता) और भोपाल के यूनियन कार्बाइड कारखाने की मशीन कैसी-कैसी खराबी है यह त्रासदी के पहले ही केसवानी नामक पत्रकार अपने छोटे से पेपर में छाप रहा था ! इसलिए उस भोपाल के पत्रकार को एक्सप्रेस पुरस्कार से सम्मानित किया गया था ! भोपाल गैस त्रासदी के पहले वह भी गौरदा के आग्रह पर !

6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद देश के दूसरे हिस्सों में दंगे हुए थे ! और उस समय कलकत्तामे भी दंगे हुए थे ! और उस बारें में रिपोर्टर के रूप में काम करने वाले लोगों मे एक गौरदा भी थे जो अपने साथ एक स्केच बनानेवाले को लेकर दंगाग्रस्त इलाके में घुम-घूमकर दूसरेदिन आनंद बाजार पत्रिका के प्रथम पृष्ठ पर स्केच के साथ जो रिपोर्ट होती थी वह शोध पत्रकार के लिये बहुत कुछ सीखने को मिलता है ! और उस समय गौरदा उम्र के 70 साल पार कर चुके थे!

पत्रकारिता के साथ साथ ही उन्होंने कथा, कविता और उपन्यास के माध्यम से लेखन किया है उनका आखिरी उपन्यास भागलपुर दंगा के बाद का है ! जो आज दोनों बंगाल में पढा जा रहा है ! वैसे भी पत्रकारिता के शुरू के दिनों से वह दोनों बंगाल में पढे जानें वाले पत्रकार हैं ! शायद बंगला देशमे ज्यादा !

हालांकि खुद बटवारेके भृकतभोगी होने के बावजूद जिस मानविय स्तरसे उन्होंने लिखा है वह सचमुच चकित कर देने वाला है ! कयोंकि मुझे फिलिस्तीन से लेकर सीरिया, इराक, इराण, इजिप्त, तुर्किस्तान, अजरबैजान, कुर्दिस्थान, पुराना यूगोस्लाविया, जो आज कितने तुकडोमे तबदीली हो गया है ! और हमारे देश भारतमें संघ परिवार का एक मात्र अजेंडा 96 सालों से क्या हैं?, पाकिस्तान, बंगाल के दोनों तरफ से लेकर लेबनान, अफगानी और दुनिया के हर कोने में एक बदलेकी भावनिक प्रतिक्रिया देखने को मिला है ! लेकिन गौरदा खुद शरणार्थियों में शुमार थे लेकिन मुझे कहीं भी उनके मन में कडवाहट या प्रतिक्रिया दूर दूर तक नजर नहीं आई ! उल्टा सुर्हावर्दी के बारे में काफी पाॅजिटिव बातें करते हुए सुना है !

यानी रियल सेन्समे रॅडिकल ह्यूमॅनिझमकी जिति जागती मिसाल यानी गौरदा ! 1988 में बाबा आमटे जी की भारत जोडो यात्राका दुसरे चरण की शुरूआत कोहीमा से ओखा के लिए बाबा कोहीमा जानेके रास्ते मे कलकत्ता एयरपोर्ट पर कुछ समय के लिए ठहर ने वाले थे ! तो मुझे मराठी भाषा के साप्ताहिक साधना के संपादक यदुनाथ थत्तेजीने पोस्ट कार्ड लिख कर सुचित किया था कि कोलकाता एअरपोर्ट पर बाबा को कंपनी देना है !

 

तो मैं एयरपोर्ट के वी आई पी लाॅजंमे पहुंचा तो देखा की पहले से ही एक टिपीकल बंगाली सज्जन बैठे हुए थे ! तो मेरे पहुंचने पर बाबा ने उन्हें अंग्रेजी में कहा की मेरे दोस्त डॉक्टर सुरेश खैरनार से मिलिये ! और फिर उनका नाम बताया तो मैंने कहा कि मैं आपको आपात्काल के समय से जानता हूँ ! मैंने आपके बेटे के नाम लिखा हुआ पत्र की मराठी भाषा में अनुवाद किया हुआ काॅपिओ को हमने सायकलोस्टाइल करके बाटी है !

तो बाबा को फ्लाईटमे चढाकर मै वापसीकी बस के लिए निकलनेही वाला था ! तो उन्होंने कहा कि पहले मेरे घर चलो उसके बाद मैं आनंद बाजार पत्रिका जानें के समय तुम्हारे घर छोड़कर जाउँगा ! उनका घर एयरपोर्ट से मेरे घर के पहले उल्टा डांगा मे पडता था !इसलिए मैं उनके साथ हो लिया ! उनके घर पहुचने के बाद सभी सदस्यों को बुलाया और मेरे साथ सबका परिचय कराया !

आनंद बाजार पत्रिका में अपने ऑफिस दिखा कर मुझे फोर्ट विलियम के हमारे घर छोड़कर चले गये ! लेकिन जाने से पहले बोलकर गये की भारत जोडो यात्रा के दौरान तुम मेरे साथ शांतिनिकेतन चलो और वहासे कलकत्ता तक हम उस यात्रा में शामिल होंगे ! और मैंने अभी देखा है कि फोर्ट विलियम से आनंद बाजार पत्रिका का अंतर पैदल का है ! तुम दोपहर के 3 बजेके बाद कभीभी अड्डे के लिए आ सकतें हो ! इस तरह मेरी और उनके साथ दोस्ती की शुरुआत शुरु हुई !जो उनके अंतिम दिनों तक जारी रहीं ! अब उन्हें जाकर 20 साल हो रहें हैं !

उन्होंने मुझे बंगाल के साहित्य, संगीत, नाटक, सिनेमा, पत्रकार से लेकर ममता बनर्जी तक परिचित कराने का काम किया ! इस कारण से मैंने बंगाल के सांस्कृतिक जीवन का जितना लुफ्त उठाया उतना मराठी का भी नहीं ! उठाया होगा ! वे खुद मुझे अली अकबर खाॅ, विलायत खाॅ, रविशंकर, महाश्वेता देवी, सुभाष मुखोपध्याय, सुनिल गांगुली, अपर्णा सेन,चिदानंद दासगुप्ता, दिव्येंदू पलित, शक्ति चट्टोपाध्याय, बादल सरकार, सावली मित्र, मृणाल सेन, शंभू मित्र, आनंदा शंकर राॅय ,अबू बशर, अविक सरकार, सत्यजित राय, सौमित्र चटर्जी,अमलान दत्त,शिव नारायण राय, अशिश नंदी, पीयूष कांति सरकार एक तरह से पूरे बंगाल के क्रीम से परिचित कराने का काम किया है !
और सबसे बड़ी बात भागलपुर !

1989 के अक्तूबर में जो दंगा रामशिला पुजाके जुलुस के दौरान शूरू हुआ दंगा जिसे वो पहले जाकर आये थे ! और मुझे बार-बार चलने का आग्रह करते रहे !लेकिन मैं उस समय घर-परिवार के काम में व्यस्त होनेके कारणोसे मई के प्रथम सप्ताह में बच्चों की छुट्टीया शूरू हुई तब मैं भागलपुर के लिए निकल सका ! तबतक दंगेको छ महीने हो गए थे !
लेखक, कवि, पत्रकार, कलाकारों से परिचित होने का अवसर मेरे 68 साल के जीवन में और भी कई बार मिला है ! लेकिन इतना ह्यूमन मैंने पहले किसी को देखा है तो गौरदाकोही ! लगता है कि एकमात्र प्रेम करने के लिए ही पैदा हुए हैं ! अपने लेखक-संपादक की नशा मुक्ति का सबसे बड़ा उदाहरण अगर कोई होगा तो गौरदा ! आज उनकी 98 वीं जयंती है इसलिए यह यादो की बातें आज मनमें उमडकर आई !

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