हमारे देश के लिए कहावत है कि हमारे यहां भ्रष्टाचार, शिष्टाचार बन चुका है. इंडिया करप्शन सर्वे 2018 की रिपोर्ट इसे सटीक भी साबित करती है. इस रिपोर्ट के मुताबिक पिछले एक साल में हमारे देश में तमाम प्रयासों के बावजूद घूस देने वालों में ग्यारह प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. 2017 में जो प्रतिशत 45 था, वह 2018 में बढ़कर 56 प्रतिशत हो गया है.
देश के 215 जिलों में सर्वे करने के बाद जो रिपोर्ट सामने आई, वो यह बताती है कि 30 प्रतिशत करप्शन हमारे यहां प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशन में है. 25 प्रतिशत पुलिस विभाग में है. 18 प्रतिशत नगर निकाय में है. 27 प्रतिशत बाकी सर्विसेज़ में है. 58 प्रतिशत लोगों को इस बात की जानकारी ही नहीं है कि करप्शन के मामले में कम्पलेन कहां हो सकती है.
अब सवाल ये है कि ये स्थिति कैसे बदलेगी? तो मात्र सरकारें बदलने से तो भ्रष्टाचार कम नहीं होगा. सरकार आती है जाती है. पॉलिटिकल पार्टी आती है जाती है, लेकिन काम करने वाले लोग वहीं होते हैं. जब तक हमारे यहां काम करने वालों का माइंडसेट नहीं बदलेगा, तब तक हमारे यहां भ्रष्टाचार यूं ही बढ़ता रहेगा.
सरकार भ्रष्टाचार मुक्ति की बात जरूर करती है, लेकिन जब तक हमारे यहां डिमांड और सप्लाई का गैप पूरा नहीं होता, तब तक भ्रष्टाचार यूं ही चलता रहेगा. लोगों का माइंड सेट इसलिए चेंज नहीं होता, क्योंकि भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों के पकड़े जाने पर भी उनको मामूली सजा होती है. सजा का डर नहीं होने के कारण सारे भ्रष्टाचारी खुलकर भ्रष्टाचार करते हैं.
पैसे लेने वालों को भी शर्म नहीं आती और देने वालों को भी शर्म नहीं आती. पैसा देने वाला लेने वाला को ढूंढ़ता है और पैसा लेने वाला ग्राहक ढूंढ़ता है. यह स्थिति निरंतर चलती आ रही है. हमारे नेता भाषणों में कुछ भी कहें, लेकिन देश की वास्तविकता यही है कि हमारे यहां भ्रष्टाचार अब जीवन का एक अंग बन चुका है.