ख़ान अशु
हे प्रभु, कैसी तेरी माया….!
सदियों की एक ख्वाहिश, हर मन का अरमान, प्रभु जी के जन्म स्थल को मिलने वाले आकार की शुरुआत….! ये भी आएगा, वह भी होगा, इसकी भी मौजूदगी, उसकी भी उपस्थिति…! हजारों तैयारियां, लाखों इंतजाम…! अरमानों के इन पलों में शामिल होने के लिए भेाैतिक परमिशन या हालात न पाने वाले अपने आंगन चिराग जलाकर खुशियों के भागीदार बनने वाले हैं….!
बरसों पहले जिन्होंने कंधे बढ़ाकर राख के नीचे दबी पड़ी चिंगारी को जगमगाया, वह बुजुर्गो की केटेगिरी में आकर साइड लाइन हैं…! देश की सुरक्षा के जिम्मेदार महामारी की चपेट में, जिस सूबे ये इतिहास लिखा जाना है, वहां के पार्टी प्रमुख भी जद में…! वहां के लाट साहब, यहां के मुखिया भी बीमारों की कतार में….! कुछ और लोगों के फेहरिस्त में शामिल होने के इंतजार में हैं, वजह आज जो बीमार करार दिए गए हैं, वे बैठकों में कई और मुलाकातों के साक्षी हैं….!
जो होता है, उसमें प्रभु इच्छा का समावेश होता है… जिन्हें प्रभु चरण जाने का सौभाग्य मिलने वाला है, उन्हें ईश का आशीर्वाद माना जाए, लेकिन जो नहीं जा पाएंगे, उनसे भगवन रूष्ट हैं, ऐसा कहना ठीक तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन इस बात का संशय तो हो सकता है…!
अपने गृह निर्माण की प्रथम सीढ़ी पर प्रभु ने उन लोगों को भी सद्बुद्धि दे ही दी, जो हमेशा खुद को इस मामले से खुद को अलग रखते आए हैं…! भूमि पूजन की पूर्व संध्या पर किए जाने वाले आयोजन से ये संदेश देने की सियासत शुरू हो गई है कि पर्दे के पीछे से ही सही, प्रभु के जन्म स्थल को आकार देने के लिए रास्ता बनाने में अघोषित भूमिका उनकी ही है…! बड़े आयोजन के एक दिन पहले के कार्यक्रम को उस तरह याद करने की परम्परा भी बन सकती है, जैसे भारतीय स्वतंत्रता पर्व से ठीक एक दिन पहले पाक अपनी आजादी का जश्न मनाकर खुश होता रहता है….!
पुछल्ला
कोरोना योद्धाओं की अधूरी फेहरिस्त….!
स्वास्थ्य, सफाई, सुरक्षा, सुविधा, व्यवस्था से जुड़े लोग कोरोना योद्धा। हर समाचार को जन जन तक पहुंचाने वाले इस सूची से बाहर। न सिम्पैथी, न सम्मान, न ही कोई सम्मान निधि। राजधानी में अखबारों से जुड़े तीन लोगों की महामारी से मौत की खबर है। नवदुनिया के बंसल, कौसर के तनवीर और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े शिराज की मौत को तो गैर कोरोना करार देने की भी कोशिश हैं, ताकि कल से होने वाले किसी बड़े ऐलान से इनको अलग किया जा सके।
पुछल्ला – दो
कोरोना चर्चा…!
पहली चर्चा भयावह है। कहा जा रहा है कि प्रदेश के कुछ अस्पतालों से कोरोना शिकार लोगों के अंगों का कारोबार हो रहा है। कहां, कैसे, क्यों, किस तरह के सवालों का जवाब खोजने कुछ स्टिंगर्स खोज पर आगे बढ़ चुके हैं। दूसरी चर्चा भी हैरानी की है। मुंगेर से प्रकाशित एक समाचार में डीजे का कहना है कि कोरोना से मृत किसी व्यक्ति के परिवार ने सरकारी मदद चार लाख रुपए के लिए अर्जी ही नहीं दी। मुंगेर के डीजे के बयान से उठते सवाल कहते हैं, ऐसा कोई शासकीय प्रावधान है क्या? अगर है तो इसका प्रचार, प्रसार, जानकारी, लाभ किसी तक क्यों नहीं पहुंचा?