अमेरिकी राष्ट्रपति भारत का दौरा करते रहे हैं. वर्तमान राष्ट्रपति बराक ओबामा भी 2010 में डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में भारत आ चुके हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में जनवरी 2015 में उनका यह दूसरा भारत दौरा था. ओबामा के हाल के दौरों में यह ऐसा पहला दौरा रहा, जब पाकिस्तान और उसका प्रिंट मीडिया वास्तव में बौखला उठा. वैसे अधिकतर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का अंदाज़ सामान्य था, जो कि आश्‍चर्य की बात है. आइए देखते हैं, क्या और कैसी है पाकिस्तानी प्रिंट मीडिया की बौखलाहट…

16वर्ष 2003 की बात है. यह पत्रकार दक्षिण एशिया के अन्य पांच पत्रकारों के साथ अमेरिका के दौरे पर था. उस दौरान अमेरिकी प्रशासन के कुछ ज़िम्मेदारों से बातचीत करने का अवसर मिला, जिसमें यह महसूस हुआ कि सब कुछ के बावजूद पाकिस्तान उसकी आवश्यकता ही नहीं, बल्कि उसका प्रिय है. यही कारण रहा कि दैनिक बिजनेस स्टैंडर्ड मुंबई के रेजिडेंट एडिटर तमल बंदोपाध्याय के साथ यह पत्रकार अमेरिकी प्रशासन के ज़िम्मेदारों से पाकिस्तान को भारत के मुकाबले अधिक अहमियत देने का कारण मालूम करता रहा. मगर, वे स़िर्फ यह कहकर सवाल टालते रहे कि यह इस समय अमेरिका के हित में है. जाहिर-सी बात है कि अमेरिका का उस समय यह दृष्टिकोण दक्षिण एशिया के शिष्टमंडल में मौजूद पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार महमूद शाम और उनके एक अन्य पत्रकार मित्र को बहुत भा रहा था. यही कारण था कि उस समय वे अमेरिकी प्रशासन के ज़िम्मेदारों से इस तरह मिल रहे थे कि जैसे वे उनके अपने खास और चहेते हों. अमेरिकी प्रशासन का यह दृष्टिकोण कमोबेश भारत में मोदी के सत्ता में आने से पूर्व तक बरकरार रहा. मगर, मोदी के पिछले वर्ष अमेरिका दौरे के दौरान और उसके बाद अमेरिकी प्रशासन के दृष्टिकोण में अचानक परिवर्तन देखा जाने लगा. फिर जनवरी 2015 में ओबामा के भारत के दूसरे दौरे के दौरान इस परिवर्तन का पूर्ण रूप से प्रदर्शन हुआ. और फिर अमेरिकी दृष्टिकोण में इस परिवर्तन पर भूतकाल में पाकिस्तान के अमेरिकी मित्र जैसे दिखने वाले प्रिंट मीडिया में जो कुछ आया, वह उसकी बौखलाहट का द्योतक है.
प्रसिद्ध पाकिस्तानी उर्दू दैनिक जंग अपने संपादकीय-क्षेत्र में अमेरिकी भूमिका के तहत लिखता है कि अमेरिका ने आशा के ठीक मुताबिक राष्ट्रपति ओबामा के नई दिल्ली दौरे के दौरान भारत पर मेहरबानियों की बारिश करके क्षेत्र के अन्य देशों को यह संदेश दिया है कि इस क्षेत्र में भारत ही उसका पसंदीदा मोहरा है. कई संधियों पर हस्ताक्षर करने के बाद एक संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में अमेरिकी राष्ट्रपति ने अफगानिस्तान को भारत का भरोसेमंद सहयोगी बताया और कहा कि भारत से बेहतर संबंध अमेरिकी विदेश नीति में सर्वोच्च है. विश्‍लेषण करने वाले ने अमेरिका-भारत संबंध के इस नए रुख को क्षेत्र में चीन के बढ़ते हुए प्रभाव के आगे बांध बनाने की एक चेष्टा बताया और यह संदेश दिया कि इससे क्षेत्र में शक्ति का संतुलन बिगड़ेगा, जो कि विश्‍व शांति के लिए लाभदायक नहीं होगा. यह अखबार आगे लिखता है कि पाकिस्तान और चीन दोनों परमाणु शक्तियां हैं, जो कि आपस में दोस्ती के गहरे रिश्तों में जुड़ी हुई हैं. भारत अमेरिका की सहायता से इन दोनों को नीचा दिखाकर क्षेत्र पर अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहता है. दुर्भाग्य से अमेरिका भी चीन से भयभीत है और उसके स्थान पर भारत को आगे लाना चाहता है. इस मामले में पाकिस्तान के हितों को वह बिल्कुल नज़रअंदाज़ कर रहा है.
दैनिक एक्सप्रेस अपने संपादकीय-दक्षिण एशिया में शक्ति का संतुलन और अमेरिकी प्राथमिकताएं के तहत लिखता है कि अमेरिका और भारत के बीच आपसी संबंधों के हवाले से महत्वपूर्ण क़दम बढ़ाए गए हैं. दोनों राष्ट्रों के बीच सिविल एवं परमाणु व्यापार शुरू करने का सौदा तय पाया गया है. बराक ओबामा और नरेंद्र मोदी के बीच मुलाकात के बाद चार बड़ी घोषणाएं की गईं. अमेरिका ने भारत को सुरक्षा परिषद का सदस्य बनाने का समर्थन भी कर दिया अमेरिका और भारत के बीच अरबों डॉलर की परमाणु एवं सुरक्षा संबंधी व्यापार संधि से दक्षिण एशिया में अमेरिकी नीति खुले रूप से निश्‍चित हो जाती है कि वह इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने के लिए भारत को अपना सहयोगी बना रहा है और इसके द्वारा इस क्षेत्र पर अपना नियंत्रण बनाना चाहता है. इसका साफ़ मतलब है कि भारत, जिसका अमल व दखल अफगानिस्तान में पहले ही मौजूद है, अब उसमें अमेरिकी छतरी तले और अधिक वृद्धि होगी. अमेरिका की भारत से होने वाली रक्षा संधियों के बाद क्षेत्र में शक्ति का संतुलन बरकरार रखने के लिए पाकिस्तान और भारत के बीच हथियारों की दौड़ तेज हो सकती है.
दैनिक नवा-ए-वक्त में उसके स्तंभकार असर चौहान की लेखनी पाकिस्तान की बौखलाहट को और भी खुले रूप से दर्शाती है. वह लिखते हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने जब सत्ता संभाली, तो मीडिया ने उनका पूरा नाम बराक हुसैन ओबामा बताया था. दुनिया भर के मुसलमान खुश हो गए थे कि जनाब ओबामा निस्संदेह ईसाई हैं, लेकिन हुसैन के नाम की लाज अवश्य रखेंगे. लेकिन, सितंबर 2014 में संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेंबली के अवसर पर जब उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से चौबीस घंटे में पूरे प्रोटोकॉल के साथ दो बार भेंट की और इस्लामिक जगत की एकमात्र परमाणु शक्ति पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मियां नवाज शरीफ को समय नहीं दिया, तो पता चला कि हुसैन का नाम तो मात्र दिखावा था. 25 जनवरी को राष्ट्रपति ओबामा जब दूसरी बार भारत के दौरे पर नई दिल्ली पहुंचे, तो नरेंद्र मोदी ने प्रोटोकॉल के तमाम नियम तोड़कर उनका अभिनंदन किया और उनके साथ गभट-गभट जिच्छियां (गलबहियां) डालकर अपने समीप खड़ी अमेरिका की प्रथम महिला मिशेल ओबामा समेत पूरी दुनिया को हैरान कर दिया. मोदी जी ने राष्ट्रपति ओबामा पर डोरे डालने के लिए और अधिक कमाल दिखाया मिशेल ओबामा को एक सौ मूल्यवान बनारसी साड़ियां तोहफे में देकर. एक साड़ी की क़ीमत सवा लाख रुपये बताई जाती है. राष्ट्रपति ओबामा ने प्रधानमंत्री मोदी एवं भारत के कश्मीरी शत्रु हिंदुओं को प्रसन्न करने के लिए भारत को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य निर्वाचित कराने का विश्‍वास दिलाया. इस अख़बार को यकीन है कि इसके बावजूद सुरक्षा परिषद का एक महत्वपूर्ण सदस्य चीन अमेरिका की इस इच्छा को पूरा नहीं होने देगा.
पाकिस्तान का प्रसिद्ध समाचार-पत्र जसारथ अपने संपादकीय में पाकिस्तानी कूटनीति पर दु:ख व्यक्त करते हुए लिखता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा ने अपने दौरे के पहले ही दिन भारतीय परमाणु कार्यक्रम की निगरानी से हटने और सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए भारत का समर्थन करने की घोषणा कर दी. शुरुआती तौर यह समाचार भारतीय मीडिया की तरफ़ से जारी हो रहा था, परंतु तुरंत बाद ही प्रेस कांफ्रेंस द्वारा इसकी सरकारी हैसियत भी साफ़ कर दी गई. इसका मतलब यह हुआ कि भारत की ओर से कश्मीर में हस्तक्षेप, मानवाधिकार की अवहेलना और पाकिस्तान में नकारात्मक सरगर्मियां जैसे आरोपों की कोई हैसियत नहीं है. अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत के साथ पहले से तय किए गए बहुत-से मामलों में एक-दो का पहले ही दिन ऐलान कर दिया. इसका दूसरा मतलब यह है कि पाकिस्तान की कूटनीति भी शून्य रही. अगर कोई कूटनीति थी, तो शून्य रही. वरना हुआ होगा, जो होता आया है. यह अख़बार आगे लिखता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा भारत दौरा एक ऐसे समय में किया गया है, जबकि पाकिस्तान आतंकवाद के विरुद्ध अपनी क्षमता से बढ़कर युद्ध लड़ रहा है. उन लोगों से भी युद्ध छेड़ दिया गया है, जो पाकिस्तान के दुश्मन नहीं हैं और अपने ही राष्ट्र के मदरसों के ख़िलाफ़ जंग छेड़ दी गई है. यही नहीं, ऐसे क़ानून भी बना दिए गए हैं, जिनसे पूरे राष्ट्र में बेचैनी है और यह सब अमेरिका को खुश करने के लिए किया गया है. लेकिन, अद्भुत बात तो यह है कि अमेरिका खुश होने की बजाय भारत पर ही मेहरबान होता जा रहा है.
सबसे ज़्यादा प्रसार संख्या वाले पाकिस्तानी अंग्रेजी दैनिक द डॉन ने ओबामा की भारत यात्रा को चीन के उदय होने के विरुद्ध एशिया को फिर से संतुलित करना करार दिया और यह महसूस किया कि ओबामा और मोदी के एशिया, प्रशांत एवं हिंद महासागर के संबंध में संयुक्त बयान से पाकिस्तान के लिए आइंदा नाजुक भूमिका का अंदाज़ा होता है. एक अन्य अंग्रेजी दैनिक एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने अपने संपादकीय में मोदी-ओबामा की बॉडी लैंग्वेज पर जोर दिया और कहा कि अमेरिका- भारत संबंध एक नए दृष्टिकोण तक पहुंच चुके हैं. इस समाचार-पत्र ने अमेरिका-पाकिस्तान संबंध की तुलना अमेरिका-भारत संबंध से करते हुए कहा कि पिछले छह महीनों में पाकिस्तान-अमेरिका के बीच संबंध बढ़े हैं, लेकिन इस हद तक नहीं बढ़े, जैसे भारत और अमेरिका के बीच इस समय है. पाकिस्तान के तमाम उर्दू एवं अंग्रेजी समाचार-पत्रों ने अपने पहले पन्ने पर ओबामा की भारत यात्रा को विशिष्ट स्थान दिया और अपने-अपने अंदाज़ के आलोचनात्मक संपादकीय लिखे. लेकिन, वहां के टीवी चैनलों ने सामान्य अंदाज़ अख्तियार किया. उन्होंने भारत के गणतंत्र दिवस के अवसर पर ओबामा को मुख्य अतिथि बनाए जाने को इतिहास रचना बताया और इस दौरे को लाइव दिखाया. टीवी चैनल आज, जियो टीवी, एआरवाई, एक्सप्रेस दुनिया एवं डॉन टीवी ने अपने प्रत्येक बुलेटिन में टेलीफोन पर पाकिस्तानी शहरों और नई दिल्ली में मौजूद भारतीय पत्रकारों के साक्षात्कार के साथ कवरेज किया. आज टीवी के सद्दाम तुफैल हाशमी ने तो यहां तक कहा कि ओबामा की भारत यात्रा पाकिस्तान के लिए भी सकारात्मक थी. मेरा विचार है कि हमारे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने इस समाचार को सामान्य अंदाज़ में दिखाया.

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