‘ब्लैक कैट’ नाम से मशहूर राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) को आतंकवाद रोधी अभियानों के लिए जम्मू कश्मीर में जल्द ही तैनात किया जाएगा. गृह मंत्रालय ने इस बात की जानकारी दी है. देश के सबसे खतरनाक एनएसजी कमांडो को आतंकियों से पार पाने के लिए सबसे ताकतवर फोर्स माना जाता है. गौर हो कि 26/11 मुंबई आतंकी हमले, पठानकोट एयर बेस पर आतंकी हमले और अक्षरधाम आतंकी हमले में भी एनएसजी के कमांडोज ने ही आतंकियों को ठिकाने लगाया था.
जानकारी के मुताबिक एनएसजी के ये कमांडो राज्य पुलिस के जवानों को ट्रेनिंग देंगे. साथ ही आतंक रोधी अभियानों में भी इनका इस्तेमाल किया जा सकता है. अधिकारियों ने कहा कि एनएसजी की एक टीम काफी समय से कश्मीर घाटी में मौजूद है और वह शहर के बाहरी क्षेत्र में कड़ा प्रशिक्षण ले रही है. गौरतलब है कि भाजपा द्वारा पीडीपी नीत गठबंधन सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद राज्य में राज्यपाल शासन लागू हुआ है. कश्मीर में एनएसजी कमांडो की तैनाती का कदम ऐसे समय उठाया गया है जब मुठभेड़ की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है और सुरक्षाबलों के कई जवान शहीद हुए हैं.
एनएसजी कमांडोज हवा, पानी, जमीन और आग लगे क्षेत्र में भी हमला करने में सक्षम होते हैं. एक साधारण सैनिक के मुकाबले पानी में छिपने और वहां से हमला करने की ताकत ज्यादा होती है. एनएसजी कमांडोज अत्याधुनिक हथियारों और उपकरणों से लैस होते हैं. NSG की क्रेक टीम दूर से मार करने वाले स्नाइपर के अलावा, एमपी 5 सब मशीन गन, स्नाइपर राइफल, वाल पेनिट्रेशन राडार, ग्लोक पिस्टल और सी-4 एक्सप्लोसिव से लैस होती है.
एनएसजी के एक-एक कमांडो की ट्रेनिंग बहुत ही कठिन होती है. इसका सबसे बड़ा मकसद अधिक से अधिक योग्य लोगों का NSG में चयन होना होता है. इसके लिए सबसे पहले जिन रंगरूटों का कमांडोज के लिए चयन होता है, वह अपनी-अपनी सेनाओं के सर्वश्रेष्ठ सैनिक होते हैं. इसके बाद भी उनका चयन कई चरणों से गुजर कर होता है. अंत में ये सैनिक ट्रेनिंग के लिए मानेसर पहुंचते हैं.
ट्रेनिंग सेंटर पहुंचने के बाद भी कोई सैनिक अंतिम रूप से कमांडो बन ही जाए यह जरूरी नहीं है. 90 दिन की कठोर ट्रेनिंग के पहले भी एक हफ्ते की ऐसी ट्रेनिंग होती है. इसमें 15-20 फीसदी सैनिक ही अंतिम दौड़ तक पहुंचने में सफल हो पाते हैं.
NSG में 53 प्रतिशत सेना से जबकि 47 प्रतिशत कमांडो चार पैरा मिलिटी फोर्सेज- सीआरपीएफ, आईटीबीपी, रैपिड एक्शन फोर्स और बीएसएफ से रखे जाते हैं. इन कमांडोज की अधिकतम कार्यसेवा पांच साल तक होती है. पांच साल भी सिर्फ 15 से 20 प्रतिशत को ही रखा जाता है, शेष को तीन साल के बाद ही उनकी मूल सेनाओं में वापस भेज दिया जाता है.