नरेंद्र मोदी के गुण अवगुण की तोल करें तो गुण सिर्फ एक ही मिलेगा अपनी महत्वाकांक्षाओं के लिए जिद और जिद के लिए हाड़तोड़ मेहनत । पर उस मेहनत के हाईवे पर इतनी दुष्टताएं हैं कि कभी कभी मन होता है कि ऐसा शासक हिंदुस्तान के शैशव काल के इस लोकतंत्र से दूर ही रहे तो अच्छा है । शासक का ऐसा व्यक्तित्व जो पारदर्शिता से सैंकड़ों मील दूर हो ,किसी भी देश के लिए बड़ा विस्फोटक होता है । चालाकी और धूर्तता से शासन नहीं चलाया जा सकता ।
मोदी ने पिछले हफ्ते कृषि के तीन काले कानून वापस लिए ।जब भी मोदी राष्ट्र के नाम संदेश देते हैं तो दो दिन पहले से खूब ढिंढोरा पीटा जाता है ।इस बार चोर की माफिक आने की जरूरत क्यों पड़ी । मेरी बरसों से आदत है रेडियो के सुबह आठ बजे के समाचार जरूर सुनता हूं । पिछले शुक्रवार भी सुने ।जो रेडियो प्रधानमंत्री से ही अपने दिन की शुरुआत करता है वहां कोई सूचना नहीं थी । लिहाजा मैं नौ बजे लेख लिखने बैठ गया । घंटे डेढ़ घंटे बाद जब पूरा किया तो एक मित्र का फोन आया – ‘बधाई हो ‘ मैंने पूछा किस बात की तो उसे बड़ी हैरानी हुई कि मुझे कैसे नहीं मालूम । मोदी का राष्ट्र के नाम संदेश और कहीं पूर्व सूचना नहीं । जबकि ऐसा तो कभी होता नहीं ।ये कैसा चालाक व्यक्तित्व है । देश के सबसे बड़े नेता को यह सब करने की जरूरत क्यों पड़ती है और क्यों पड़नी चाहिए ।ये तो चोट्टों की आदत होती है ।खैर उन्होंने संदेश में जो कुछ बोला उसकी अच्छी चीरफाड़ उर्मिलेश जी ने अपने कार्यक्रम ‘हफ्ते की बात’ में की । बताया कि कैसे कैसे प्रधानमंत्री कहां कहां भावुक हुए,कहां कहां झूठ बोला आदि आदि।
इन दिनों मोदी डरे हुए हैं । 2014 के आत्मविश्वास के बाद से हर चुनाव में मोदी डरे हुए होते हैं । फिर कोई ऐसा निर्लज्ज लेकिन वोट के हिसाब से कारगर कदम उठाते हैं कि चेहरे पर अचानक मुस्कान आ जाती है । सेना से राष्ट्रवाद जगाने का शगल मोदी को खूब आता है । उन्होंने ‘जय जवान जय किसान’ नारे में सेंध लगाई है । आपने कभी उन्हें किसानों के बीच जाकर होली दीवाली खेलते नहीं देखा । किसान आंदोलन से पहले भी नहीं। आरएसएस की पृष्ठभूमि ही कुछ ऐसी है ।जहां वीरता से ज्यादा शौर्यता है ।और यह शौर्यता दुश्मन से हिंसा के जरिए ली जाती है । आरएसएस के लिए दुश्मन कई रूपों में होता है । इसीलिए वे शस्त्र पूजा करते हैं ।
2022 में होने वाले यूपी चुनाव में देश के हर नागरिक की नजर लगी है । मोदी और योगी के लिए खतरा है । मोदी के पास पैसे से लेकर तमाम ताकतें और गोदी में बैठा हुआ मीडिया है ।यानी देश के प्रमुख न्यूज चैनल ।और विरोधियों के पास केवल सोशल मीडिया के वेबसाईट्स और न्यूज पोर्टल आदि ।सत्य और संतुलन इधर है । मगर इन्हें वहीं देखते हैं जो सब कुछ जानते हैं । जिन्हें सत्य नहीं पता,जो सीधे, सरल और भोले – भावुक हैं, वोटर हैं । वे मुख्य चैनल देख कर मोदी का सच समझने की कोशिश करते हैं । एक बड़ी बात तो यह है ।
हमारे यहां दिक्कत यह है कि जाने माने चेहरे अपने प्रस्तुतिकरण में कई सवाल पैदा करते हैं । एक तो इनमें से ज्यादातर की भागते हुए बोलने की आदत से कई हमारे मित्र परेशान हैं । इनमें सुपर हैं पुण्य प्रसून बाजपेई ।उनके बीस पच्चीस मिनट के वाक् चातुर्य के बाद लोगों से पूछिए कैसा था ,कछु समझ आया तो दस में से आठ कहेंगे अच्छा था पर पल्ले कुछ नहीं पड़ा ।सत्य बहुत थे और अनूठे सच ।और आधा खत्म होने के बाद वे कहते हैं आज इनके पन्ने खोले जाएं ।यह रोज का किस्सा है । फिर कभी मूड कुछ और मजेदार भी, होता है पर उनका भाषण(विश्लेषण) अपनी जगह । जैसे बिल वापसी पर पूरे दिन मूड मजेदार रहा पर वाजपेई जी बहुत गहरे में थे ।यह हाल औरों का भी है । लेकिन इतना और ऐसा नहीं । जैसे अभय कुमार दुबे, आशुतोष, आरफा खानम शेरवानी, शीबा फहमी और जब तब रवीश भाई भी । कभी कभी ये लोग इतनी स्पीड से बोलते हैं कि सुनने वाला ऊब उठता है ।पर अभय और रवीश जैसों को देखना और सुनना है हर हाल में तो वह बैठता ही बैठता है ।
संतोष भारतीय, अपूर्वानंद, उर्मिलेश, अनिल त्यागी, भाषा सिंह ये लोग बोलते हैं तो सब समझ आता है और पल्ले भी पड़ता है ।नीलू व्यास ने भी बेबाक नाम से अच्छा कार्यक्रम शुरू किया है पर स्वयं नीलू में गंभीरता की कुछ कमी है । मेहमान अगर अच्छे हों तो मजा आता है सुनने में ।इन सबको सुनने में मज़ा ही लीजिए । विशेषकर ‘सत्य हिंदी’ के कार्यक्रमों में । अच्छा विश्लेषण और जानकारी के लिए तो आपको अपूर्वानंद, अभय कुमार दुबे, संतोष भारतीय और रवीश कुमार को ही सुनना पड़ेगा । एनके सिंह बड़बड़ाते बहुत हैं ।जाने क्या रोग है उनके हलक में याकि दिमाग की स्लेट में । आलोक जोशी बहुत सार्थक बोलते हैं ।इसी तरह विजय त्रिवेदी ने इस बार ‘आप’ के संजय सिंह से बात की तो बोरियत हुई क्योंकि एक दिन पहले ही आशुतोष और आलोक जोशी उनका इंटरव्यू ले चुके थे ।पर शो सुनना शुरू किया तो अलग ही बात रही।यह विजय त्रिवेदी की खासियत है ।
यह वक्त बड़े आलोड़न का है । अगले साल यूपी के चुनाव हमें ‘सी सो’ के खेल जैसे लग रहे हैं । जिसमें एक बार इधर का हिस्सा झुकता है तो कभी उधर का ।हालात तो ऐसे दिख रहे हैं कि मोदी योगी को जबरदस्त मात मिलेगी पर सवाल वोटर के ब्रेनवाश हो चुके दिमाग का है । एटीएम तक पहुंचते वक्त उसका दिमाग कैसा रहेगा । जेवर एअरपोर्ट का शिलान्यास हुआ उसमें जिन्ना कहां से आ गया कोई टकले योगी से पूछे । फिलहाल तो कहा जाता है अखिलेश यादव की तूती बोल रही है यूपी में । प्रियंका अनुभवहीन हैं इसलिए दो बातें लगती हैं ।या तो अगर वे सीरियस हैं तो उनका संघर्ष 2024 में रंग लाएगा और यदि वे मजे के लिए कर रही हैं या मजा आ रहा है राजनीति में तो समझिए कांग्रेस की गयी भैंस पानी में । राजनीति के ये चटकदार दिन हैं ।चाहे फेसबुक खोलिए, टि्वटर या कुछ और ।मजा आएगा । जिंदगी तो अपनी रफ्तार से चल ही रही है – एसपी सिंह कहते थे ।