(नॉर्थ कोरिया-अमेरिका विवाद: साउथ चाइना सी से संतोष भारतीय की ग्राउंड रिपोर्ट)
उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच झगड़े को लेकर उत्तर कोरिया, दक्षिण कोरिया, जापान, सिंगापुर और चीन के लोगों के मन की बात जानने के लिए चौथी दुनिया के प्रधान संपादक संतोष भारतीय साउथ चाइना सी तक गए. वहीं से उन्होंने ये रिपोर्ट भेजी क्योंकि उन्हें उत्तर कोरिया जाने की इजाजत नहीं मिली.
साउथ कोरिया के लोगों ने कहा कि वे शांति चाहते हैं. वे नहीं चाहते हैं कि युद्ध हो. ये बात उन्होंने अपना नाम जाहिर नहीं होने की शर्त पर बताई. उनका कहना है कि हम अपने जीवन के इन क्षणों को, इन लम्हों को जीना चाहते हैं. हम नहीं चाहते कि किसी भी तरह के राजनीतिक विवाद में पड़ें. वहां के आदमियों और औरतों दोनों की एक ही मानसिक स्थिति है कि वो शांति चाहते हैं, वो युद्ध नहीं चाहते. हालांकि वे अमेरिका के राष्ट्रपति से गुस्सा हैं, क्रोधित हैं, लेकिन वे इस पर कुछ कहना नहीं चाहते हैं. उनका कहना है कि जब तक जिंदगी है, तब तक खुल कर और खुश होकर जीयो. जब मैंने पूछा कि उत्तर कोरिया के लोग आपके बारे में क्या सोचते होंगे, तो उन्होंने कहा कि 60 साल पहले हम एक-दूसरे के संपर्क में थे, लेकिन अब 60 वर्षों से हम अलग हैं. हमारे नौजवान बच्चे जब कभी विदेश जाते हैं, तो कभी आपस में उनकी मुलाकात हो जाती है, पर उनका अब कोई बहुत दिली लगाव नहीं है. लेकिन वो यह नहीं मानते कि उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन कोई बहुत जुनूनी आदमी हैं. उनका मानना है कि उन्हें बहुत परेशान किया जा रहा है और जापान उन्हें बहुत परेशान कर रहा है.
साउथ चाइना सी बनेगा युद्ध का अखाड़ा
जापान के लोगों से भी बातचीत हुई. वे यह कह रहे हैं कि उत्तर कोरिया उनके देश के लिए एक बड़ा खतरा बनकर खड़ा है. अगर उत्तर कोरिया को कंट्रोल नहीं किया गया, तो उनका देश कभी भी रसातल में जा सकता है. चीन के लोग इस मसले पर सिर्फ मुस्कराते हैं. हालांकि वो जानते हैं कि जब युद्ध हुआ तो जापान और दक्षिण कोरिया, उत्तर कोरिया के साथ-साथ वे भी लड़ाई के दायरे में आ सकते हैं. अगर बम चले, युद्ध हुआ तो जिसे हम इंडियन ओसन कहते हैं या जिसको साउथ चाइना सी कहते हैं, ये युद्ध के बड़े अखाड़े होंगे. यहां पर मिसाइल भी दागी जाएंगी, युद्धपोत भी आएंगे, लेकिन कोई भी युद्ध नहीं चाहता है.
आग कौन भड़का रहा है
उत्तर कोरिया के सिर्फ एक आदमी से बड़ी मुश्किल से बात हो पाई. उसने बात की, पर पहले कहा कि आप कागज और कलम हाथ में नहीं लीजिएगा. उसने कहा कि हम लड़ाई नहीं चाहते, लेकिन कोई है, जो आग भड़का रहा है. आग कौन भड़का रहा है, यह पूछे जाने पर उसने स्पष्ट कहा कि अमेरिका. सबसे बड़ी बात, जो उसने कही कि हमारे यहां लोग साउथ कोरिया के लोगों जैसे सुखी नहीं हैं, लेकिन हम भूखे नहीं मर रहे हैं. हमारे यहां परेशानियां हैं, लेकिन हम भूखे नहीं हैं. हमारे राष्ट्राध्यक्ष किम जोंग उन खोज में लगे वैज्ञानिकों की खूब मदद करते हैं. देश की सुरक्षा के लिए हथियारों की खोज में लगे वैज्ञानिकों के लिए यहां सभी साधन मौजूद हैं. लेकिन उनके मन में ये बात जरूर है कि किसी भी तरह उनके देश का जीवन स्तर थोड़ा ऊंचा हो सके. यहां के लोगों को ये भी नहीं लगता कि युद्ध होगा. उन्हें ये भी लगता है कि युद्ध होगा, तो हम कैसे रोक सकते हैं? हम तो सामान्य नागरिक हैं. युद्ध अगर रोकना है तो वो अमेरिका और किम जोंग उन के हाथ में है. साउथ कोरिया के हाथ में भी नहीं है. हालांकि साउथ कोरिया और जापान इसके पहले शिकार होने वाला हैं.
जब युद्ध होगा, तब देखा जाएगा
राष्ट्रपति ट्रम्प का कोई ठिकाना नहीं है कि वे कब, क्या कर बैठें? हो सकता है, फैसला भी ले लें कि उत्तर कोरिया के ऊपर बमबारी नहीं करनी है. पर मुझे लगता है कि उत्तर कोरिया को कहीं न कहीं अमेरिका से जानकारी मिल रही है कि अमेरिका ये करेगा और उसके पहले ही एक बम जापान के ऊपर और एक बम दक्षिण कोरिया के ऊपर डाल देगा. मैं सूत्र नहीं बता सकता, लेकिन मेरे ऊपर की बातचीत से ये छाप पड़ी है. इस क्षेत्र के लोग, जो अब धमकियों सेे उकता चुके हैं, का कहना है कि जब युद्ध होगा, तब देखा जाएगा. अभी तो जीयो, खाओ और जमकर शैंपेन पीओ. मेरा ख्याल है कि यह पूरा नॉनवेज इलाका है और सीफूड इनका प्रिय भोजन है. ये लोग इस समय खाने-पीने और जीने में लगे हुए हैं.
साउथ कोरिया सेना की कमांड अमेरिकी हाथों में
एक नई चीज पता चली कि साउथ कोरिया की पूरी सेनाओं का कमांड अमेरिका के पास है. साउथ कोरिया में बहुत हलचल मच रही है कि ये कमांड उनके पास क्यों है? सांग मू यंग वहां के रक्षा मंत्री हैं. उन्होंने ये कहा है कि आप निश्चिंत रहिए. हम यूनीफाइड कमांड, जिसके अंतर्गत साउथ कोरिया की सेनाएं हैं, जिसे ओपीसीओएन कहते हैं, उनसे वार टाइम ऑपरेशन कंट्रोल जल्द लेने वाले हैं. उन्होंने ये भी कहा कि हमारे प्रेसिडेंट मून जो-इन लगातार कोशिश कर रहे हैं और जल्दी ही कंट्रोल हमारे पास आ जाएगा. अब ये जो नई चीज पता चली है कि साउथ कोरिया और नॉर्थ कोरिया के जो रिश्ते हैं, उसमें अमेरिका ने साउथ कोरिया से डिप्लोमैटिक सॉल्यूशन का ऑप्शन छीन लिया है. डिप्लोमेटिक ऑप्शन छीन जाने से अब ये लड़ाई साउथ कोरिया और नॉर्थ कोरिया के बीच न होकर, अमेरिका और नॉर्थ कोरिया के बीच हो गई है.
मेरी एक नॉर्थ ईस्टर्न एशियन डिफेंस एक्सपर्ट से बातचीत हुई. उन्होंने कहा कि अब यह अमेरिका की सुरक्षा का मसला बन गया है, इसलिए अमेरिका ने सारा कंट्रोल अपने हाथ में ले लिया है. मौजूदा प्रेसिडेंट ट्रम्प इन चीजों को हाथ में लेकर अपने दिमाग से इसका हल निकालने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन साउथ कोरिया की जनता लड़ाई नहीं चाहती है और इसके लिए वहां प्रेशर बनाए हुए है. इसीलिए शायद प्रेसिडेंट मून जो-इन कोशिश कर रहे हैं कि उनके कमांड की सेना उनके हाथ आ जाए. दूसरी तरफ नॉर्थ कोरिया के पास बैलिस्टिक मिसाइल और शक्तिशाली बम हैं. लेकिन अभी तक अमेरिका और साउथ कोरिया को यह पता नहीं है कि उन्होंने जो बैलिस्टिक मिसाइल बनाई है, वह युद्धक बम या हाइड्रोजन बम को अमेरिका तक ले जाने में सक्षम है या नहीं. अमेरिका को ये डर है कि नॉर्थ कोरिया ने अगर किसी दिन उनपर हमला शुरू कर दिया, तब क्या करेंगे? दूसरी तरफ एक्सपट्र्स का ये भी कहना है कि चूंकि प्रेसिडेंट ट्रम्प अमेरिका के टॉप ट्वन्टी बिजनेसमैन में से रह चुके हैं, तो वे कभी भी इस हद तक नहीं जाएंगे कि दोनों में वार हो जाए.
इसके लिए उन्होंने मुझे एक उदाहरण भी दिया, उनका कहना है कि साउथ कोरिया की दो बड़ी कंपनियां एलजी और सैमसंग हैं. इनका अमेरिकी ऑपरेशन बहुत बड़ा है और वो चाहते हैं कि अमेरिका में उनका ऑपरेशन और बढ़े. इसीलिए उन्होंने दबाव डाला कि होम अप्लायंस और सफाई की मशीनों पर एलजी 250 मिलियन और सैमसंग 300 मिलियन डॉलर वहां इनवेस्ट करे. इसके तहत सैमसंग इतना पैसा खर्च कर अमेरिका में करीब 950 नौकरियां और एलजी 600 नए जॉब क्रिएट करेगा. प्रेसिडेंट ट्रम्प यह दबाव डाल रहे हैं कि दोनों कंपनियां अपने देश साउथ कोरिया पर दबाव डालें कि वो नॉर्थ कोरिया मसले को लेकर अमेरिकी रणनीति के ऊपर चलें.
मॉक ड्रिल की मॉनिटरिंग कर रहे ट्रम्प
अमेरिका ने एक और खतरनाक काम किया. बी1बी दुनिया के सबसे खतरनाक बॉम्बर्स हैं. बी1बी बॉम्बर्स कई बार रात में उड़े और एक बार तो खुलेआम तैनात किए गए. जब ये बॉम्बर्स रात में उड़े, तब व्हाइट हाउस में बैठकर उनकी मॉनिटरिंग खुद प्रेसिडेंट ट्रम्प कर रहे थे कि वो कैसे उड़ते हैं, कहां जाते हैं और कैसे बम गिराएंगे? नॉर्थ कोरिया की सीमा को टच करके वो बॉम्बर्स लौट गए. इस बीच उन्होंने दूरी का आकलन कर लिया. ये चीजें इस क्षेत्र के लोगों और खासकर नॉर्थ ईस्टर्न एशियन डिफेंस एक्सपर्ट्स को खतरनाक लग रही हैं. वे अंदाजा कर रहे हैं कि पाकिस्तान में ओसामा बिन लादेन ऑपरेशन के पूर्व जो मॉक ड्रिल हुआ था, उसकी निगरानी व्हाइट हाउस में बैठकर खुद तत्कालीन प्रेसिडेंट ओबामा कर रहे थे. जब वे खुद मुतमईन हो गए, तब जाकर उन्होंने ग्रीन सिग्नल दिया था. इसके बाद नेवी सील्स भेजे गए, जो पाकिस्तान में लादेन को मारकर डेड बॉडी के साथ वापस आ गए थे. ठीक वैसा ही काम अब प्रेसिडेंट ट्रम्प कर रहे हैं. वे व्हाइट हाउस में बैठकर बी1बी बॉम्बर्स के एक्सरसाइज को देख रहे हैं. एक सेकेंड में ये बॉम्बर्स कितनी दूरी पर और कितना बम गिराते हैं, इसे कैलकुलेट कर रहे हैं. ये अभी तक बहुत खुला हुआ नहीं है, लेकिन ऐसा हो रहा है.
भारत भी सुरक्षित नहीं
जनता तो अपने अंदाज में मस्त है, लेकिन जो डिफेंस एक्सपट्र्स और पीस लवर्स हैं, वे बहुत चिंतित हैं. उनका ये कहना है कि अगर लड़ाई हुई तो समुद्र के जीव-जन्तु खत्म हो जाएंगे, जिंदगियां खत्म हो जाएंगी, देश खत्म हो जाएंगे. इसका असर सिर्फ चीन, नॉर्थ कोरिया, साउथ कोरिया या जापान तक ही नहीं रहेगा, बल्कि इसका असर चीन के पड़ोसी देशों बर्मा, भारत और पाकिस्तान पर भी पड़ेगा. अगर इनके ऊपर असर पड़ता है, तो हम हिन्दुस्तानियों के पास तो कोई डिफेंस सिस्टम भी नहीं है. हमारे लोगों को तो यह तक पता नहीं है कि प्रदूषित हवा को हम अंदर जाने से कैसे रोक सकते हैं? यहां तो परमाणु अस्त्रों से निकले विषैले प्रभाव को रोकने की बात है. यह मानवता के ऊपर सबसे करारा हमला होगा, इसके बावजूद कुछ लोगों का मानना है कि चूंकि खुद ट्रंप बिजनेस मैन हैं, इसलिए वे इतनी दूर तक नहीं जाएंगे. लेकिन अमेरिका में प्रेसिडेंट की कुर्सी पर बैठा व्यक्ति, चाहे वो निक्सन हो या ट्रम्प, सिर्फ अमेरिकी हितों को देखता है. जो ताकतवर होता है, जिम्मेदारी तो उसी की होती है. जो कमजोर है, उसकी जिम्मेदारी नहीं होती है. कमजोर को तो लोग कहते हैं कि ये हमको उकसा रहा है, पर सचमुच वो कितना उकसा रहा है, कौन जानता है. चूंकि आरोप आपको लगाना है, तो आप किसी के ऊपर लगा दें. जैसे आपने सद्दाम के ऊपर आरोप लगा दिया था, लेकिन वहां तो कोई रासायनिक हथियार या मास डिस्ट्रक्शन वैपन्स नहीं मिले.
अब तो लोग कह रहे हैं कि साउथ कोरिया के हाथ से राजनीतिक हल निकालने का मसला दूर चला गया है. अब तो लोग ये कह रहे हैं कि संयुक्त राष्ट्रसंघ के, जो सबसे अच्छे और समझदार महासचिव बान की मून थे, अगर उनके हाथ में भी यह मसला दे दिया जाता, तो वे कुछ नहीं कर सकते थे. अब सिर्फ और सिर्फ ट्रम्प के हाथ में है. अगर ट्रम्प मानवता के बारे में कुछ सोचेंगे, तभी शायद स्थिति सामान्य हो सकती है, अन्यथा साउथ कोरिया और जापान के लोग काफी चिंतित हैं. साउथ कोरिया के लोग, जिनके रिश्तेदार नॉर्थ कोरिया में हैं, उनको तो दोनों तरफ से मरना है. इसीलिए प्रेसिडेंट मून जो-इन पूरी कोशिश कर रहे हैं कि साउथ कोरिया के सेना की कमान वे अमेरिका के हाथों से अपने हाथ में ले लें, देखें ये हो पाता है या नहीं. (आगे जारी…)