बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की दो दिवसीय नेपाल यात्रा के दौरान दोनों देशों के कई पुराने मसलों पर नई रोशनी पड़ती दिखाई दी. नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी, प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली एवं अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं से बातचीत में बिहार को बाढ़ से मुक्ति दिलाने में नेपाल की महत्वपूर्ण भूमिका रेखांकित करते हुए ज़ोर दिया गया कि इस कार्य में सप्तकोसी एवं सनकोसी पर प्रस्तावित हाईडैम काफी मददगार साबित हो सकते हैं. नीतीश कुमार के साथ-साथ नेपाली नेताओं ने भी वहां उपलब्ध जल-शक्ति के बेहतर इस्तेमाल और पनबिजली को विकसित करने पर ज़ोर दिया.
यह आम राय बनी कि पनबिजली के सहारे नेपाल के लिए समृद्धि के नए द्वार खुलेंगे और भारत भी लाभांवित होगा. नीतीश ने बिहार के साथ नेपाल के सदियों पुराने एवं मधुर संबंधों को नया आयाम देने के ख्याल से पटना और गया से काठमांडू के बीच हवाई सेवा शुरू करने पर भी ज़ोर दिया. इस दो दिवसीय यात्रा के दौरान नीतीश कुमार की छवि एक मंझे हुए नेता के तौर पर उभर कर सामने आई.
नीतीश की यह नेपाल यात्रा उस समय हुई, जब वहां संविधान की कई व्यवस्थाओं को लेकर माहौल में खासी गर्माहट है और साथ ही तराई क्षेत्र में मधेसी आंदोलन ने राजनीतिक व्यवधान पैदा कर रखा है. हालांकि, पिछले कुछ दिनों से यह आंदोलन स्थगित है, लेकिन इसके कभी भी फिर से भड़क उठने की आशंका है. इस आंदोलन से उन तबकों को ताकत मिली है, जो नेपाल को भारत की छाया से मुक्त करने के पक्षधर रहे हैं. इनमें वे राजनीतिक एवं ग़ैर राजनीतिक ताकतें भी शामिल हैं, जो भारत के बजाय चीन से मधुरता चाहती हैं. मधेसी आंदोलन के विभिन्न धड़ों के नेताओं ने भी नीतीश कुमार से भेंट की.
हालांकि, नीतीश ने अपने नेपाल प्रवास के दौरान ही साफ़ कर दिया कि मधेसी आंदोलन नेपाल का आंतरिक मसला है और इसका समाधान स्वयं नेपाल को तलाशना है. नीतीश की यह यात्रा नेपाली कांग्रेस के आमंत्रण पर हुई थी. नेपाली कांग्रेस के अधिवेशन को संबोधित करते हुए नीतीश ने नेपाल के सार्वजनिक जीवन में नेपाली कांग्रेस की भूमिका को सराहा. उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों, समाजवादियों एवं महत्वपूर्ण शख्सियतों से नेपाली कांग्रेस के रिश्तों की चर्चा की.
संविधान की कुछ व्यवस्थाओं को लेकर उपजे जनाक्रोश विशेषकर, मधेसी आंदोलन के आलोक में नेपाली कांग्रेस का यह 13वां अधिवेशन काफी अहम साबित हुआ. इसमें नीतीश कुमार की भागीदारी ने पूरे प्रकरण को नए आयाम दिए हैं. ग़ौरतलब है कि नेपाली कांग्रेस का जन्म 1947 में भारत में हुआ था और उसका पहला अधिवेशन कोलकाता में आयोजित किया गया था. नेपाल में राणाशाही के ख़िलाफ़ जन क्रांति (जिसे नेपाली क्रांति कहा जाता है) का नेतृत्व वीपी कोइराला ने किया था, जिन्हें भारत और बिहार में खासा आदर-सम्मान हासिल था.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नेपाल यात्रा को उपलब्धियों में बदलना बिहार सरकार की ज़िम्मेदारी है, लेकिन केंद्र सरकार की भूमिका उससे भी कहीं बड़ी है. एक दौर था, जब पटना और काठमांडू के बीच नियमित हवाई सेवा उपलब्ध थी. क़रीब चार दशक पहले यह सेवा बंद कर दी गई, जबकि बिहार से नेपाल जाने वाले यात्रियों की संख्या अच्छी-खासी है. अब काठमांडू जाने के लिए पहले दिल्ली या कोलकाता जाना पड़ता है और दूसरा रास्ता है, वीरगंज एवं विराट नगर से. गया अंतरराष्ट्रीय तीर्थ है और बड़ी तादाद में लोग नेपाल से गया आते हैं.
मुख्यमंत्री नीतीश की सलाह इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे सूबे के लिए एक अंतरराष्ट्रीय खिड़की खुलेगी. इतना तो तय है कि यह हवाई मार्ग घाटे का सौदा नहीं साबित होगा. इसी तरह पनबिजली का मसला है. पिछले कुछ दशकों से दुनिया भर में जल-शक्ति का इस्तेमाल आर्थिक ताक़त के तौर पर होने लगा है.
दुनिया के विभिन्न देश पनबिजली के ज़रिये जल का भरपूर दोहन करते हैं और इससे उनकी आमदनी में काफी इजाफ़ा हुआ है. वैसे भी कोयला भंडार सीमित होने के कारण उस पर दबाव कम करना आज आर्थिक बुद्धिमानी माना जाता है. भूटान पानी से इतनी बिजली पैदा करता है कि भारत को भी देता है. जल-शक्ति के सार्थक इस्तेमाल का यह अनुपम उदाहरण है. नेपाल के पास जल-शक्ति का अकूत भंडार है. ऊपर से गिरते पानी से बिजली बनाना खर्चीला भी नहीं है. यह नेपाल के लिए आय का एक बड़ा स्रोत बनकर उभरेगा.
जल के इस इस्तेमाल से उत्तर बिहार की बाढ़ त्रासदी कम करने में भी मदद मिलेगी. नीतीश की नेपाल यात्रा का एक मकसद बिहार को बाढ़ से मुक्ति दिलाने की पहल करना भी था. सप्तकोसी एवं सनकोसी पर प्रस्तावित हाईडैम की रूपरेखा और विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) बनाने पर सहमति हो चुकी थी, लेकिन अब तक यह काम नहीं हो सका. उक्त हाईडैम बनने से पनबिजली तैयार होने के साथ-साथ नेपाल और बिहार में बाढ़ त्रासदी कम की जा सकती है. भौगोलिक स्थिति के चलते बिहार को बाढ़ से निज़ात तो नहीं मिल सकती, लेकिन बेहतर जल प्रबंधन के ज़रिये राहत ज़रूर दी जा सकती है.
हाईडैम बनने से हिमालयी नदियों का बेलगाम जलप्रवाह नियंत्रित किया जा सकता है. लेकिन, यह अंतरराष्ट्रीय मसला है और बिहार के पास करने के लिए बहुत कम है. ऐसे में बिहार सरकार केंद्र से इस मसले पर गंभीर और सार्थक पहल का अनुरोध ही कर सकती है. और, नीतीश कुमार ने यह मसला छेड़कर माहौल बनाने की कोशिश की है. यह इसलिए भी ज़रूरी है, क्योंकि जनता की गाढ़ी कमाई का एक बड़ा हिस्सा आपदा प्रबंधन के नाम पर खर्च हो जाता है. जान-माल और फसल का जो ऩुकसान होता है, उसका तो आकलन ही संभव नहीं हो पाता.
इसलिए बिहार में बाढ़ के मद्देनज़र बहुत कुछ करने की ज़रूरत है, स़िर्फ नेपाल की सक्रियता पर्याप्त नहीं है. कोसी एवं गंडक समेत उत्तर बिहार की विभिन्न नदियां हिमालय से निकलती हैं या वहां से निकली किसी नदी की शाखाएं हैं, जो नेपाल के रास्ते उत्तर बिहार में मैदानी हिस्से पर उतरती हैं और कहर बरपाते हुए गंगा के बाद सागर में मिल जाती हैं. उक्त नदियां अपने साथ स़िर्फ पानी नहीं लातीं, बल्कि गाद, मिट्टी और पत्थर भी लाती हैं. कोसी समेत उत्तर बिहार की अधिकांश नदियां उथली होती जा रही हैं, उनके पेट भरते जा रहे हैं. नतीजतन, मामूली बाढ़ भी कहर बरपा देती है.
एक सवाल और है, जिस पर भारत, विशेषकर बिहार को गंभीरता से विचार करना होगा. यह सवाल है तस्करी का. भारत-नेपाल सीमा का क़रीब साढ़े सात सौ किलोमीटर हिस्सा बिहार में है, जो खुला हुआ है. यह खुली सीमा कई परेशानियों की जड़ है. पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी, मधुबनी, सुपौल, अररिया, किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार, मधेपुरा, सहरसा, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, गोपालगंज एवं शिवहर आदि ज़िलों में खिलौनों, बॉलपेन, मोबाइल एवं अन्य इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं, बच्चों की साइकिलों, धूप के चश्मों और रेडिमेड कपड़ों के बाज़ार पर चीनी उत्पादों का कब्जा है. इन वस्तुओं की खोज अगर आप उत्तर बिहार के खुले एवं छोटे बाज़ार-दुकान में करते हैं, तो आपको पहले चीनी उत्पाद मिलेंगे. मांगने पर ही भारत निर्मित वस्तुएं मिल सकेंगी. विडंबना यह कि इस पर देश के किसी कोने में किसी को चिंता नहीं है.