मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सात निश्चयों को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए बिहार की महा-गठबंधन सरकार ने अपना पहला बजट पेश किया, जो लगभग 1.45 लाख करोड़ रुपये का है. बजट में पंद्रह हज़ार करोड़ रुपये का राजकोषीय घाटा दर्शाया गया है, जो निर्धारित सीमा के दायरे में है. सूबे को खर्च और आमदनी की खाई पाटने के लिए 21 हज़ार करोड़ रुपये से अधिक का ऋण भी लेना होगा. महा-गठबंधन सरकार के इस पहले बजट में राज्य का योजना आकार साढ़े 71 हज़ार करोड़ रुपये से कुछ अधिक का है, जबकि ग़ैर योजना खर्च का आकार 72 हज़ार करोड़ रुपये से अधिक का.
बजट के ज़रिये जनता पर किसी नए टैक्स का बोझ नहीं डाला गया और न कोई राहत दी गई है. राज्य सरकार ने क़रीब डेढ़ महीने पहले कई वस्तुओं पर वैट की दरें बढ़ाने और कुछ नई वस्तुओं को टैक्स के दायरे में लाने का फैसला लागू कर दिया था. शराबबंदी लागू होेने से वित्तीय वर्ष 2016-17 में राज्य सरकार की आमदनी कम हो जाएगी. वित्त मंत्री अब्दुल बारी सिद्दीकी ने अपने बजट भाषण में 21 हज़ार करोड़ रुपये से अधिक की भरपाई ऋण से करने का वादा किया है, पर आर्थिक मामलों के जानकारों को ऋण के बजाय टैक्स की आशंका अधिक दिखती है. ग़ौरतलब है कि सूबे के हर शख्स पर फिलहाल क़रीब तीन हज़ार रुपये का ऋण है.
बजट में सबसे अधिक धन शिक्षा के लिए आवंटित किया गया. इस मद में सरकार 21,897 करोड़ रुपये खर्च करेगी, लेकिन यह धनराशि पिछली बार की तुलना में 3,231 करोड़ रुपये कम है. संसदीय कार्य विभाग को सबसे कम यानी एक करोड़ रुपये मिले. बजट के ज़रिये सरकार ने लोक-लुभावन घोषणाएं भी कीं. नीतीश निश्चय के तहत छात्रों को स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड के अलावा विश्वविद्यालय परिसरों में मुफ्त इंटरनेट सेवा भी उपलब्ध कराई जाएगी. सूबे में पांच मेडिकल एवं पांच इंजीनियरिंग कॉलेजों के साथ-साथ जीएमएन कॉलेज, पॉलिटेक्निक, एएनएम स्कूल और हर ज़िले में महिला आईटीआई स्थापित करने की घोषणा की गई है.
रा़ेजगार की तलाश में बिहार से बाहर जाने वाले 20 से 25 वर्ष तक की आयु के युवाओं को दो वर्षों तक एक हज़ार रुपये मासिक सहायता भत्ता दिया जाएगा. सरकार ने बतौर मौसमी मज़दूर राज्य से रा़ेजगार के लिए पलायन करने वाले बुनकरों को स्लीपर क्लास का रेल किराया देने का भी फैसला किया है. भागलपुर में टेक्सटाइल पार्क के साथ-साथ राज्य के विभिन्न हिस्सों में बुनकर प्रशिक्षण केंद्र, रोज़गार परामर्श केंद्र एवं फिश फीड उद्योग लगाने की घोषणा बजट में की गई है.
नीतीश निश्चय को खास तवज्जो देने के बावजूद शिक्षा, बिजली, सड़क एवं स्वास्थ्य आदि पर सरकार का ज़ोर बना हुआ है. सात निश्चयों में ग्रामीण बिहार पर भी फोकस किया गया है. कस्बों एवं ग्रामीण बिहार में बिजली आपूर्ति, सड़क निर्माण, स्वच्छता अभियान और नल से पेयजल आदि कार्यक्रमों पर खासा ज़ोर दिया गया है. वर्ष 2016-17 का बिहार बजट महा-गठबंधन सरकार की विकास दृष्टि को रेखांकित करता है. यह सूबे में नीतीश के नेतृत्व वाली पिछली सरकारों से जारी विकास रणनीति में कई बदलावों का संकेत देता है.
कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों को लेकर इस बजट में वैसी गंभीरता नहीं दिखी, जैसी पूर्ववर्ती बजटों में दिखती थी. कृषि या उद्योग जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में रा़ेजगार सृजन को लेकर बजट पर्याप्त गंभीर नहीं दिखता. बजट में कृषि को योजना मद का मात्र 3.28 प्रतिशत धन आवंटित किया गया है. इससे सूबे की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था की तस्वीर किस हद तक बदली जा सकेगी, यह सहज समझा जा सकता है.
बिहार में पिछले कई वर्षों से आधारभूत संरचना विकसित करने पर निरंतर ज़ोर दिया जाता रहा है. इस ख्याल से यह बजट भी उम्मीदों को नए पंख देता है. राज्य का बजटीय आवंटन पथ निर्माण (ग्रामीण कार्य विभाग सहित) एवं ऊर्जा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को लेकर सत्तारूढ़ महा-गठबंधन की प्रतिबद्धता नए सिरे से अभिव्यक्त करता है. हालांकि, नीतीश के सात निश्चयों में इन विभागों का हिस्सा काफी महत्वपूर्ण है.
इसी तरह शौचालय निर्माण, स्वच्छता अभियान एवं नल से पेयजल आदि योजनाएं भी नीतीश निश्चय से संबद्ध हैं. मानव विकास के संदर्भ में शिक्षा सहित इन सभी कार्यक्रमों की महत्वपूर्ण भूमिका है. ये कार्यक्रम लोक-लुभावन तो हैं, लेकिन सत्ता की विकास रणनीति में जन सरोकारों का खुलासा भी करते हैं. मानव विकास कार्यक्रम, कृषि विकास एवं उद्योग-धंधों की स्थिति में सुधार के उपाय जनता के जीवन स्तर में तात्विक बदलाव के वाहक माने जाते हैं. इन मापदंडों को सामने रखकर सत्ता की विकास रणनीति के आकलन से हालात ज़्यादा सा़फ होते हैं.
बिहार में पिछले कुछ महीनों में ऊर्जा की उपलब्धता बढ़ी है. कांटी एवं बरौनी से बिजली मिलने से हालात बेहतर होने की उम्मीद है. इससे उद्योगों और इस क्षेत्र में पूंजी निवेश को गति मिलने की आशा है. बजट में शिक्षा के बाद ऊर्जा क्षेत्र को सबसे अधिक धन दिया गया है. यह नीतीश निश्चय का हिस्सा है. बिजली की स्थिति में सुधार से छोटे उद्योगों एवं कोल्ड स्टोरेज से जुड़े कार्यक्रम ज़मीन पर उतारने की उम्मीद पैदा होगी, गांवों के कच्चे माल को संरक्षण एवं स्थानीय स्तर पर बाज़ार मिलेगा और वहां आर्थिक गतिविधियां बढ़ेंगी.
लेकिन, इसकी पूरी तैयारी है क्या? सूबे में कृषि आधारित एवं खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की व्यापक संभावना है, जिसमें रा़ेजगार सृजन की बड़ी क्षमता है. फल-सब्जी की खेती के विस्तार और उसकी उपज बढ़ाने के लिए कई योजनाएं यहां चल रही हैं. कुछ की घोषणा इस बजट में भी की गई है. लेकिन, उनके औद्योगिक इस्तेमाल की किसी ठोस रणनीति का अभाव रहा है. इसी वजह से रा़ेजगार के अवसर विकसित नहीं हो पा रहे हैं. मौजूदा बजट भी इस संदर्भ में कोई उम्मीद नहीं जगाता.
बिहार की एक पहचान श्रम आपूर्तिकर्ता की भी हो गई है. इस बजट से लगता है कि बिहार से पलायन की प्रक्रिया को गति देने की कोशिश की जा रही है. काम की तलाश में बिहार से बाहर जाने वाले बेरा़ेजगार युवाओं को दो वर्षों तक प्रतिमाह एक हज़ार रुपये भत्ता देने की योजना कई हलकों में इसी नज़रिये से देखी जा रही है. क़रीब डेढ़ करोड़ युवकों को भाषा एवं लोक संवाद का प्रशिक्षण देने और कौशल विकास करके उन्हें रोज़गार के लायक बनाने की भी योजना है.
कोई भी मान सकता है कि बिहार जब इतने बड़े पैमाने पर युवाओं को प्रशिक्षित कर रहा है, तो उनके रा़ेजगार की भी कोई योजना सरकार के पास होगी. लेकिन, इस मोर्चे पर यह बजट मौन है. बिहार में रोज़गार के अवसर विकसित करने की किसी परियोजना की स्पष्ट झलक इस बजट में नहीं मिलती. बजट और अन्य सरकारी दस्तावेज़ों की खामोशी सवाल पैदा करती है कि क्या हम देश में कुशल एवं प्रशिक्षित श्रमशक्ति के आपूर्तिकर्ता बन जाएंगे? अगर नहीं, तो हम बिहार के युवाओं को कहां और कैसा रोज़गार दे रहे हैं?