nitish-pul-udghatanशहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू ने जब पहले चरण के बीस स्मार्ट सिटी की घोषणा की, तो उसमें बिहार का कोई शहर शामिल नहीं था. सूबे के तीन नामित शहर भागलपुर, बिहारशरीफ एवं मुजफ्फरपुर इसमें जगह नहीं पा सके. बस, इसके बाद तो बयानों की बाढ़ आ गई. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने वादे से मुकर रहे हैं, समावेशी विकास से उन्हें कोई लेना-देना नहीं.

लालू प्रसाद तो दो क़दम आगे निकल गए और बोले कि बिहार को स्मार्ट सिटी नहीं, स्मार्ट गांव चाहिए. सुशील मोदी ने कहा कि नीतीश सरकार को इस बात पर गहन मंथन करना चाहिए कि आ़िखर किस वजह से बिहार का कोई शहर पहली सूची में नहीं आ सका. उन्होंने कहा कि यह दु:ख की बात है कि सौ शहरों में मुजफ्फरपुर का स्थान 97वां है. इसके दो दिनों बाद ही राघोपुर में देश के सबसे बड़े छह लेन वाले पुल का कार्यारंभ हुआ.

इसमें पुल के फायदे और यह कैसे बनेगा, इस पर चर्चा कम हुई, बल्कि मुख्य चर्चा इस बिंदु पर होती रही कि आ़खिर लालू प्रसाद किस हैसियत से समारोह में शरीक हुए? बकौल सुशील मोदी, यह समझ से परे है कि आ़िखर एक सजायाफ्ता नेता किस हैसियत से सरकारी समारोह में शामिल हुआ, जबकि इलाके के सांसद राम विलास पासवान को न्योता तक नहीं दिया गया. अ़खबारों में छपे विज्ञापन में भी कहीं राम विलास पासवान का नाम नहीं था. लेकिन, नीतीश कुमार ने सा़फ कहा कि लालू प्रसाद महा-गठबंधन के नेता हैं और उनके इस समारोह में शामिल होने पर किसी के पेट में दर्द नहीं होना चाहिए. उन्होंने कहा कि राम विलास पासवान को भी न्योता दिया गया था.

उक्त दो घटनाओं और उन पर हुई राजनीतिक बयानबाजी का जिक्र यहां इसलिए ज़रूरी है, ताकि यह सा़फ हो सके कि सूबे में विकास कार्यों को लेकर राजनीतिक दल कितने गंभीर हैं. गंगा पर बनने वाले उक्त पुल को लेकर तकरार चुनाव के समय से शुरू हो गई थी. केंद्र सरकार चाहती थी कि यह पुल उसे बनाने दिया जाए, लेकिन नीतीश कुमार इसके लिए तैयार नहीं हुए. उनका कहना था कि केंद्र चाहे, तो कोई दूसरा पुल गंगा पर बना ले, लेकिन राघोपुर में बनने वाले पुल का निर्माण हर हाल में बिहार सरकार एडीबी के सहयोग से करेगी. केंद्र और राज्य के बीच इस बात को लेकर तकरार बढ़ती गई.

आ़खिरकार नीतीश कुमार ने कार्यारंभ वाले दिन ऐलान कर दिया कि यह पुल हर हाल में बनेगा और समय पर बनेगा तथा इसके लिए उन्हें केंद्र से एक पैसे की मदद नहीं चाहिए. दूसरी तऱफ सुशील मोदी कह रहे हैं कि राज्य सरकार को बताना चाहिए कि इस बड़े पुल के निर्माण के लिए पैसों और ज़मीन का इंतजाम हुआ या नहीं? अगर नहीं हुआ, तो फिर कार्यारंभ की ज़रूरत क्या थी? सुशील मोदी के अनुसार, यह सब कुछ लालू प्रसाद के दबाव में हो रहा है. लालू प्रसाद ने अपने अनुभवहीन बेटे की छवि बनाने के लिए राघोपुर में शिलान्यास हो जाने के बावजूद कार्यारंभ किया. एक सजायाफ्ता नेता को स़िर्फ सरकारी समारोह में बुलाया नहीं गया, बल्कि उसके आने को जायज भी ठहराया जा रहा है.

जानकार कहते हैं कि सूबे में विकास की गाड़ी आगे बढ़ाने के लिए दिल्ली और पटना के बीच अच्छे रिश्ते रहना ज़रूरी है. राजनीतिक बयानबाजी के बीच विकास की गाड़ी आगे बढ़ना मुश्किल होता है. शराबबंदी लागू होने के बाद सूबे के राजस्व में वैसे भी भारी कमी आने वाली है. बेहतर यही होगा कि टकराव छोड़कर सहयोग का रास्ता अख्तियार किया जाए और सूबे में विकास का काम आगे बढ़ाया जाए. ग़ौरतलब है कि बिहार में सड़कों के जाल का जो मौजूदा नक्शा है, वह बहुत उत्साहवर्द्धक नहीं है. पटना से राज्य के किसी भी कोने की दूरी पांच घंटे में तय करना आज भी चुनौती है.

हालांकि, नई सरकार ने यह वादा कर रखा है. इस लक्ष्य की प्राप्ति में सबसे बड़ा रोड़ा समन्वय की कमी है. दरअसल, राज्य में तीन स्तरों पर सड़क निर्माण होता है, एनएच, एसएस एवं विलेज रोड. इनके निर्माण में अलग-अलग स्तरों पर केंद्र और राज्य सरकार की भूमिका होती है. उचित समन्वय न होने या कहिए कि राज्य और केंद्र के बीच अप्रत्यक्ष तनातनी का असर सड़कों के निर्माण पर सा़फ नज़र आता है. राज्य में ग्रामीण पथों से लेकर राजमार्गों तक के विकास का काम जारी है. हर जगह सड़कों का पुननिर्माण चल रहा है. ग्रामीण इलाकों की सड़कों एवं राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण का ज़िम्मा केंद्र एवं राज्य, दोनों पर है.

राष्ट्रीय राजमार्ग और प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना की धनराशि देने में केंद्र की आनाकानी से राज्य की मुश्किलें बढ़ती रहती हैं. नतीजा यह कि ग्रामीण इलाकों में सड़कों के निर्माण की गति धीमी हो गई है. आंकड़ों के अनुसार, सूबे में पथ निर्माण की 13,884 किलोमीटर सड़कों में 4,483 किलोमीटर राजमार्ग है, जिसमें 90 फीसद सड़कों की हालत अच्छी है, पर 9,401 किलोमीटर सड़कें उतनी अच्छी नहीं हैं. हालांकि, इनमें से 7,466 किलोमीटर सड़कों का पुनर्निर्माण कराया गया है, पर इनकी चौड़ाई कम होने के चलते वाहन फर्राटे से दौड़ नहीं पाते.

प्रदेश से 3,734 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग ग़ुजरता है, जिसके रखरखाव का ज़िम्मा केंद्र पर है. इसमें दक्षिण बिहार में उत्तर प्रदेश की सीमा से मोहनिया होते हुए डोभी तक 205 किलोमीटर, उत्तर बिहार में उत्तर प्रदेश की सीमा से गोपालगंज होते हुए किशनगंज तक 513 किलोमीटर और पटना-बख्तियारपुर राजमार्ग का फोरलेन निर्माण हो गया है. लेकिन, हाजीपुर-मुजफ्फरपुर, हाजीपुर-छपरा, पटना-आरा-बक्सर, बख्तियारपुर-खगड़िया, खगड़िया-पूर्णिया, पटना-गया-डोभी, मोकामा-मुंगेर, छपरा-गोपालगंज एवं पिपराकोठी-रक्सौल समेत कई महत्वपूर्ण राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण अटका पड़ा है और यह राज्य के लिए एक बड़ी चुनौती है. राज्य में बड़े पुलों का निर्माण भी चालू है.

बख्तियारपुर-ताजपुर, आरा-छपरा, गोपालगंज के विशुनपुर सत्तर घाट एवं बंगरा घाट के साथ-साथ सुल्तानगंज-खगड़िया और नासरीगंज-दाऊदनगर के बीच बड़े पुल का निर्माण समय पर पूरा करना चुनौती है. केंद्र सरकार द्वारा मुंगेर और दीघा में रेल सह सड़क सेतु का निर्माण अंतिम चरण में है. उम्मीद है कि इस वर्ष दोनों सेतुओं से रेल चलेगी, पर सड़क मार्ग शुरू होने में संशय है. सड़कों के लिए ज़मीन अधिग्रहण और निर्माण संबंधी विवादों के निबटारे के लिए सेंट्रल ट्रिब्यूनल बनाया गया है, पर सड़कों के निर्माण में अधिग्रहण अब भी सबसे बड़ी समस्या बना हुआ है.

सड़क और पुल के मसले पर बाज़ार की बढ़ोत्तरी के हिसाब से सरकारी विभागों द्वारा निर्माण सामग्री का मूल्य निर्धारण न कर पाने की बाध्यता किसी भी परियोजना को बाधित करने में अहम भूमिका निभाती है. बिना भूमि अधिग्रहण किए परियोजना का काम शुरू कर देने से भी निर्माण कार्य बाधित होता है. सड़क-पुल निर्माण में ये दो सबसे बड़ी चुनौतियां हैं. एक बड़ी समस्या लोहे की दशकों पुरानी हज़ारों जर्जर पुलियों को सीमेंट पुल में परिवर्तित न कर पाना भी है. इसी वजह से सड़कें ठीक हो जाने के बाद भी भारी वाहनों के परिचालन में बाधा आ रही है.

राज्य सरकार के एक अहम फैसले के तहत राष्ट्रीय राजमार्ग को फोर लेन और राजमार्ग को टू लेन में परिवर्तित करना शुरू किया गया है, पर राष्ट्रीय राजमार्ग के मसले पर केंद्र सरकार का सहयोग न मिलने से काम बाधित है. राजमार्ग को टू लेन में तब्दील करने का काम काफी हद तक हुआ है और उसका असर भी दिख रहा है. सड़क दुर्घटनाओं का एक बड़ा कारण राजमार्गों पर ग्रामीण सड़क को जोड़ने वाले मुहाने पर अंडरपास या सर्विस लेन का निर्माण न होना भी है. ऐसी सड़कें और
पुल-पुलिया राज्य के विकास की धमनियां हैं, पर इनके निर्माण के लिए पैसों की व्यवस्था करना राज्य और केंद्र, दोनों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है.

दोनों सरकारों को बिहार की ग्रामीण सड़कों के निर्माण पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है, क्योंकि बिना इसके विकास की गाड़ी नहीं चलाई जा सकती. केवल सड़कों एवं पुलों के मामले में ही सूबे के सामने चुनौतियों का अंबार है. ऐसे में, अगर बिहार जैसे राज्य को केंद्र का पूरा सहयोग न मिला, तो यह विकास की दौड़ में पीछे रह जाएगा.

बात जब स्मार्ट सिटी की आई, तो राज्य सरकार ने इस पर मंथन तेज नहीं किया कि आ़िखर क्या वजह रही कि केंद्र द्वारा निर्धारित मापदंड राज्य के उक्त तीनों शहर पूरा नहीं कर सके. उल्टे केंद्र पर भेदभाव का आरोप लगाते हुए बयानबाजी शुरू हो गई. हद तो तब हो गई, जब नीतीश कुमार ने बयान दिया कि सौ से अधिक सांसद देने वाले उत्तर प्रदेश और बिहार के किसी शहर को स्मार्ट सिटी में शामिल नहीं किया गया. जबकि होना यह चाहिए था कि नीतीश कुमार अपनी नौकरशाही से जवाब-तलब करते कि स्मार्ट सिटी के मापदंड पूरे क्यों नहीं हो सके और कहां कमी रह गई.

मापदंड कैसे जल्दी पूरे हों, ताकि दूसरे चरण की सूची में बिहार के शहर शामिल हो सकें. लेकिन, यहां तो गंगा उल्टी ही बह रही है. रालोसपा विधायक ललन पासवान कहते हैं कि राज्य का कोई भी शहर स्मार्ट सिटी नहीं बनेगा, क्योंकि लालू प्रसाद ऐसा चाहते हैं. उनका नारा स्मार्ट गांव का है, जिसे वह किसी भी क़ीमत पर पूरा नहीं कर पाएंगे. पासवान कहते हैं कि लालू प्रसाद के दबाव के चलते बिहार कभी भी स्मार्ट सिटी के मापदंड पूरे नहीं कर पाएगा. और, अधिकारियों में इतनी हिम्मत नहीं है कि वे लालू प्रसाद के दृष्टिकोण से अलग जा सकें.

नीतीश कुमार की साख दांव पर लगी है और वह केवल अपनी सरकार बचाने में लगे हैं. ऐसे में बिहार आगे बढ़ेगा, यह सोचना ही बेमानी है. बकौल ललन पासवान, लालू प्रसाद केवल अपने परिवार का विकास चाहते हैं, बिहार के विकास से उनका कोई लेना-देना नहीं है. वहीं लालू प्रसाद दावा कर रहे हैं कि बिहार में इतना विकास होगा कि दुनिया देखेगी, सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी और ठाठ से चलेगी. उनके अनुसार, विपक्षी नेताओं को अखर रहा है कि लालू प्रसाद और नीतीश कुमार साथ बैठकर क्यों चाय पी रहे हैं. ऐसे लोग छाती पीटते रहें, जनता ने अपना फैसला सुना दिया है, अब ग़रीबों की आवाज़ कोई नहीं दबा सकता.

जानकार कहते हैं कि विकास के नाम पर ऐसी बयानबाजी का सिलसिला अब रुकने वाला नहीं है. राज्य और केंद्र सरकार के रिश्ते में सुधार की गुंजाइश कम लग रही है. ये स्थितियां विकास के लिए ठीक नहीं हैं. इन्हें बदलना होगा, अन्यथा विकास के लिए जैसे-जैसे पैसे की किल्लत बढ़ती जाएगी, ऐसी बयानबाजी और तेज होती जाएगी. ज़ाहिर है, इसका सीधा ऩुकसान बिहार को होगा. 

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here