पटना: आखिरकार बिहार में भी गरीब सवर्ण आरक्षण को लागू करने का रास्ता साफ हो ही गया। अब राज्य सरकार की नौकरियों में सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था लागू होगी। आरक्षण का लाभ शैक्षणिक संस्थाओं में नामांकन में भी मिल सकेगा। राज्य मंत्रिमंडल ने विधानमंडल के शीतकालीन सत्र में पेश होने वाले सवर्ण आरक्षण विधेयक के प्रारूप को मंजूरी दी है।
Bihar cabinet passes the bill of 10% reservation to the economically weaker section. pic.twitter.com/6YNykJqyqR
— ANI (@ANI) February 1, 2019
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में हुई बैठक में कुल 58 प्रस्तावों को मंजूरी दी गई। बिहार के पहले गुजरात, यूपी झारखंड और हिमाचल प्रदेश ने सवर्ण आरक्षण की सुविधा बहाल की है। देश तथा अन्य राज्यों की भांति बिहार में भी आय के आधार पर सवर्ण आरक्षण का लाभ दिया जा सकेगा। गौरतलब है कि जब कई राज्यों ने इस आरक्षण को लागू कर दिया तो सवाल उठने लगे कि बिहार में क्यूं देरी हो रही है।
लेकिन कुछ दिनों बाद ही नीतीश कुमार ने साफ कर दिया था कि लीगल ओपनियन लेने के बाद ही वह इसे लागू करेंगे। सब जगह से निश्चित होने के बाद बिहार सरकार ने कैबिनेट में अब इसे पास करा लिया है और जल्द ही विधानसभा से भी इसे पारित करा लिया जाऐगा।
10 फीसदी आरक्षण का फायदा इस आधार पर मिलेगा:
- सालाना आय 8 लाख से कम होनी चाहिए
- कृषि भूमि 5 हेक्टेयर से कम होनी चाहिए
- घर 1 हजार स्क्वायर फीट से कम जमीन होनी चाहिए
- निगम में आवासीय प्लॉट 109 यार्ड से कम होना चाहिए
- निगम से बाहर के प्लॉट 209 यार्ड से कम होने चाहिए
पिछले सत्र में केंद्र की मोदी सरकार सामान्य वर्ग को आरक्षण देने के लिए यह बिल लाई थी। इसे संसद के दोनों सदनों से पास होने के बाद राष्ट्रपति ने विधेयक पर मुहर लगाई थी। हालांकि इस आरक्षण का कुछ दलों ने यह कह कर विरोध किया था कि इसमें कई कानूनी पहलुओं का ध्यान नहीं रखा गया है। ज्यादातर दलों का कहना था कि इस आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया जा सकता है, और रद्द भी हो सकता है।
संसद से पास होने के 24 घंटे के भीतर एक एनजीओं ने आरक्षण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी। जिस पर सुनवाई के बाद कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। हालांकि फिलहाल आरक्षण पर रोक लगाने से कोर्ट ने इनकार कर दिया है। मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
अपनी याचिका में एनजीओं ने ये दलीलें दी हैं:
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- सुप्रीम कोर्ट के 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण पर रोक के फैसले का उल्लंघन है
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- आर्थिक आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता
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- संसद ने 103वें संविधान संशोधन के जरिए आर्थिक आधार पर आरक्षण बिल पास किया
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- इसमें आर्थिक तौर पर कमजोर लोगों को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का प्रावधान है
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- ये समानता के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है
- आरक्षण के दायरे में उन प्राइवेट शिक्षण संस्थाओं को शामिल किया गया है, जिन्हें सरकार से अनुदान नहीं मिलता, ये सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है