भाजपा से दोस्ती तोड़ने और महागठबंधन से अलग होने के लिए भी नीतीश की नीति में दावत की बड़ी भूमिका रही है. भाजपा से नीतीश के अलग होने से ठीक पहले यह बात कही गई थी कि नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी को पहले दावत देकर फिर रद्द कर दिया था. पिछले साल जून में जब तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने दिल्ली में सभी विपक्षी दलों को दावत दी थी, तो नीतीश कुमार वहां के दस्तरख्वान पर नजर नहीं आए. उन्होंने इसकी चाहे जो वजह बताई हो, जानकारों ने इसे महागठबंधन से नाता तोड़ने का इशारा ही माना और इसके एक ही माह बाद वे उससे अलग भी हो गए.

nitishनीतीश कुमार कई बार जब बोलना कम या बंद कर देते हैं, तो उसके कुछ दिनों बाद उनकी ओर से कोई बड़ा फैसला आता है. ऐसा भी होता है कि जब उन्हें किसी से रिश्ता तोड़ना होता है, तो वे अपने साथियों को भी उलझन में डाल देते हैं और वे उस समय स्थिति को समझ नहीं पाते. कोई बड़ा संदेश देने के लिए नीतीश कुमार का सबसे मारक माध्यम होता है, प्रवक्ताओं से अपने मन की बात बुलवाना और फिर जरूरत पड़ने पर उन्हें डांट कर स्थिति संभालने की कोशिश करते दिखना. राजद और कांग्रेस के साथ महागठबंधन की सरकार चला रहे नीतीश कुमार ने पिछले साल जुलाई में अचानक ही चुप्पी नहीं साधी.

उनके बारे में अखबारों में यह खबर प्रमुखता से छपी कि वे बीमार हैं और उन्हें बोलने में तकलीफ है. इसके बाद वे स्वास्थ्य लाभ के लिए राजगीर चले गए. वहां से लौटने के कुछ ही दिनों बाद नीतीश कुमार का काफिला राजभवन की ओर बढ़ा और महागठबंधन सरकार की उम्र तमाम हो गई. उसके बाद राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने बिहार के मुख्यमंत्री और जद (यू) प्रमुख नीतीश कुमार को ‘पलटू राम’ और ‘पेट में दांत’ जैसे शब्दों से नवाजा. हालांकि उस समय इन शब्दवाणों से नीतीश को कोई सियासी नुकासान नहीं हुई.

फिर वही चुप्पी, फिर वही बीमारी

यह महज इत्तेफाक ही है कि गठबंधन करने या तोड़ने के ज्यादातर फैसले नीतीश कुमार ने जून या जुलाई माह में लिए हैं. एकबार फिर, जुलाई में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि क्या नीतीश कुमार फिर से भाजपा से अपना नाता तोड़ेंगे और कांग्रेस से उनका मिलन होगा. अपने चिर परिचित अंदाज में नीतीश कुमार ने इस बारे में अब तक कोई बयान नहीं दिया है. इधर, फिर खबर आ रही है कि नीतीश कुमार बीमार हैं. गौरतलब है कि पिछली बार, जब उन्होंने महागठबंधन से नाता तोड़ा था, तब भी बहुत दिनों तक नीतीश बीमार रहे थे. फिलहाल, भाजपा के साथ नीतीश कुमार की दूसरी पारी को लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जाने लगे हैं. नीतीश कुमार की पार्टी ने पहले ही यह घोषणा कर दी है कि बिहार में एनडीए का चेहरा नीतीश कुमार ही होंगे. इससे पहले भाजपा की ओर से एनडीए के चेहरे को लेकर ऐसी कोई घोषणा नहीं की गई थी. खैर, चेहरे पर जब तसल्ली हो गई, तो जद (यू) के एक प्रवक्ता ने नया राग छेड़ा. उन्होंने कहा कि भाजपा भी यह समझती है कि वो बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बिना नहीं जीत सकती.

उन्होंने भाजपा के नेताओं को हेडलाइन में बने रहने की इच्छा रखने वाला बताते हुए यह ध्यान दिलाया कि उन्हें मालूम होना चाहिए कि 2014 और 2019 में अंतर है. इससे आगे बढ़कर उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा को अगर सहयोगी की आवश्यकता नहीं, तो वो सभी 40 सीटों पर लड़ने के लिए स्वतंत्र है. अब एक और बयान को इस बयान से जोड़ने की जरूरत है. कांग्रेस के बिहार प्रभारी ने बयान दिया कि जम्मू और कश्मीर में जो कुछ हुआ उसे देखते हुए इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि भाजपा बिहार में भी जद (यू) से समर्थन वापस ले ले. कांगे्रस नेता ने नीतीश कुमार के उस हथियार पर भी सान चढ़ाया, जिसे वे वक्त और हालात के लिहाज से झोली से बाहर-अंदर करते रहते हैं. यह हथियार है, बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने का मुद्दा.

खुला है महागठबंधन का दरवाज़ा

इसी तरह एक और कांग्रेस नेता, विधायक शकील अहमद खान ने बयान दिया कि नीतीश कुमार के लिए महागठबंधन का दरवाजा सदा के लिए बंद नहीं हुआ है. उन्होंने कहा कि जब एनडीए के सहयोगी रहे जीतन राम मांझी को महागठबंधन में लाया जा सकता है और रालोसपा प्रमुख उपेन्द्र कुशवाहा के लिए महागठबंधन का दरवाजा खुला रहा सकता है, तो नीतीश कुमार के लिए क्यों नहीं. कांग्रेस नेता का यह बयान नेता प्रतिपक्ष, तेजस्वी यादव के उस ट्वीट के जवाब में था, जिसमें तेजस्वी ने नीतीश कुमार के लिए महागठबंधन का दरवाजा बंद होने की बता कही थी. इस बयान के बाद, तेजस्वी के समर्थन में राजद के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता तारिक अनवर ने भी बयान दिया था.

इन सबके बावजूद, गौर करने वाली बात वह है, जो कांग्रेस नेता शकील अहमद खान ने कही है. उनका दावा है कि कांग्रेस नेतृत्व 2019 के मद्देनजर, महागठबंधन को मजबूत करने के लिए राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद से संपर्क बनाए हुए है. कुछ सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस के जिस नेतृत्व ने कर्नाटक में गतिरोध दूर करने में सफलता हासिल की थी, वही बिहार में भी नीतीश की महागठबंधन में वापसी को लेकर बारीकी से हर पहलू पर नजर बनाए हुए है. यह बात तो काफी पुरानी हो चुकी कि नीतीश कुमार और लालू प्रसाद की राजनीति की जड़ कांग्रेस विरोध में रही है. लेकिन लालू प्रसाद तो अब कांग्रेस के लिए दो बदन एक जान की तरह हो चुके हैं, पर नीतीश कुमार जरा फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं. कांग्रेस से दूरी बनाने और बनाए दिखते रहने की अपनी नीति को उन्होंने राजद के साथ महागठबंधन बनाने के वक्त ठंडे बस्ते में डाल दिया था.

कांग्रेस के लिए ‘सॉफ्टकॉर्नर’

भाजपा से दोस्ती तोड़ने और महागठबंधन से अलग होने के लिए भी नीतीश की नीति में दावत की बड़ी भूमिका रही है. भाजपा से नीतीश के अलग होने से ठीक पहले यह बात कही गई थी कि नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी को पहले दावत देकर फिर रद्द कर दिया था. पिछले साल जून में जब तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने दिल्ली में सभी विपक्षी दलों को दावत दी थी, तो नीतीश कुमार वहां के दस्तरख्वान पर नजर नहीं आए.

उन्होंने इसकी चाहे जो वजह बताई हो, जानकारों ने इसे महागठबंधन से नाता तोड़ने का इशारा ही माना और इसके एक ही माह बाद वे उससे अलग भी हो गए. पिछले दिनों नीतीश कुमार की गठबंधन सहयोगी भाजपा ने कांग्रेस पर तीखे हमले किए और स्वर्गीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को हिटलर तक कहा गया. लेकिन नीतीश कुमार की तरफ से कांग्रेस के लिए ऐसा कोई कटु बयान सामने नहीं आया. 25 जून को वीपी सिंह की जयंती पर आयोजित स्वराज प्रतिबद्धता दिवस पर नीतीश कुमार ने बस इतनी सी बात कही कि अगर समाजवादी नेता अपने संगठन पर ध्यान देते तो आजादी के बाद ही लोगों ने कांग्रेस को छोड़ दिया होता. उन्होंने अपना हमला समाजवादियों पर साधा और कहा कि ज्यादातर समाजवादी व्यक्तिवादी हो गए हैं.

नीतीश कुमार परिस्थितियों के अनुसार खुद ढालने में कितने सिद्धस्थ हैं, यह कई बार देखा जा चुका है. इसमें सबसे दिलचस्प वो दौर रहा है, जब 2014 के लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी के दो सीटों पर सिमटने के बाद उन्होंने जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाकर अपने लिए बड़प्पन की मुहर लगवाई थी. लेकिन जीतन राम मांझी ने जब महज मुहर होने से इनकार किया और भाजपा से दोस्ती गांठनी शुरू की, तो वे हालात को सुधारने के नाम पर वापस दोबारा मुख्यमंत्री बन गए. आंकड़े की नजर से देखें, तो 66 साल की उम्र में नीतीश कुमार ने अब छह बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है, लेकिन उन्हें चार बार इस्तीफा भी देना पड़ा. हाल के बयानों और इनसे मिल रहे संकेतों के मद्देनजर लोगों के मन में सवाल उठ रहा है कि क्या नीतीश कुमार सातवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के लिए पांचवीं बार इस पद से इस्तीफा देंगे. ऐसे में क्या वे कांग्रेस का हाथ थाम सकते हैं, यह तो वक्त ही बताएगा.

तेज प्रताप का ‘तेवर’ तेजस्वी की नई चुनौती-चौथी दुनिया ब्यूरो

लालू प्रसाद यादव को हुई सजा के बाद ऐसे सवाल उठे थे कि क्या तेजस्वी और तेज प्रताप साथ मिलकर पार्टी संगठन को आगे बढ़ा पाएंगे या संगठन पर काबिज होने की दोनों की निजी महत्वाकांक्षा दल को ले डूबेगी. इन सवालों का जवाब बीते कुछ समय में सामने आए तेज प्रताप के बयानों से समझा जा सकता है. चाहे वो, अर्जुन को हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठाकर खुद द्वारका जाने की बात कहने वाला ट्‌वीट हो, या फेसबुक पोस्ट के जरिए राजनीति छोड़ने की धमकी, तेज प्रताप के बदले तेवर ने तेजस्वी सहित पूरे राजद कुनबे को उलझन में डाल दिया है.

हालांकि हर ऐसे बयान के बाद उन्होंने इसे विरोधियों की चाल बताया, लेकिन सब जानते हैं कि ऐसी बातें यूं ही सामने नहीं आतीं. 5 जुलाई को राजद के स्थापना दिवस पर भी वही हुआ, जिसका अंदेशा पूरे राजद कुनबे को था. तेज प्रताप यादव के तीखे तेवर ने तेजस्वी सहित सभी वरिष्ठ राजद नेताओं को सकते में डाल दिया. अब्दुल बारी सिद्दिकी, रघुवंश प्रसाद सिंह और राम चंद्र पूर्वे जैसे वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी में तेज प्रताप ने खुद को पार्टी का सबसे सीनियर नेता तक बता दिया. भाषण देने के क्रम में उन्होंने सवाल किया कि ‘गद्दी किसको मिलेगी’, इसपर पीछे से कुछ आवाज आई, जिसके बाद तेज प्रताप भड़क गए. उन्होंने कहा कि ‘यही आप लोगों की डिमेरिट है. कुछ सिखाते हैं, तो सीखते क्यों नहीं? देखते नहीं यहां इतने सीनियर-सीनियर लोग बैठे हैं.

सबसे सीनियर तो मैं हूं.’ तेज प्रताप के भाषण के दौरान जिस तरह से सामने बैठे लोगों में शामिल छात्र राजद के कार्यकर्ता तेज प्रताप के समर्थन में नारेबाजी कर रहे थे, उससे भी तमाम राजद नेता असहज दिखे. तेज प्रताप यादव ने इस दौरान छात्र राजद की हरे रंग की टोपी पहन रखी था. उन्होंने कई मौकों पर कहा भी कि राजद में छात्र इकाई की उपेक्षा नहीं की जा सकती है. भाषण के दौरान तेज प्रताप ने मंच पर ही एक नेता को डांट दिया और कहा कि क्या खुसुर-फुसुर कर रहे हो? बोलने क्यों नहीं देते हो? उन्होंने यह भी कहा कि ‘तेजस्वी ने मुझसे कहा था कि भाषण को लंबा मत खींचिएगा. उसे दिल्ली जाना है. तेजस्वी दिल्ली जाएगा, तो मैं संगठन चलाऊंगा.’

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