सितंबर 2008 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ जरदारी के बीच दोनों देशों के विभाजित कश्मीर के भागों के बीच व्यापारिक संबंध शुरू करने की घोषणा की गई थी. दोनों देशों की इस घोषणा ने दोनों क्षेत्रों यानी कश्मीर घाटी और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में खुशी की लहर दौड़ा दी, क्योंकि अब कुछ ऐसा होने वाला था जिसकी कश्मीरियों को पिछले सात दशकों से प्रतीक्षा थी. कश्मीर घाटी में सलामाबाद, चकौठी और जम्मू में पूंछ रावला कोट राजमार्ग व्यापार के लिए खोल दिए गए. दोनों तरफ से मालवाहक गाड़ियों के काफिले सात दशकों के बाद पहली बार 21 अक्टूबर 2008 को रवाना हुए. तय पाया गया कि आर-पार का यह व्यापार बार्टर सिस्टम के तहत होगा. अर्थात इसमें पैसों का कोई लेन-देन नहीं होगा बल्कि वस्तुओं के बदले वस्तु का कारोबार होगा. 21 विभिन्न वस्तुओं की लिस्ट व्यापार के लिए स्वीकृत की गई. तय ये हुआ कि जम्मू कश्मीर से कालीन, वॉल हैंगिंग, पेपर माशी से बनी चीजें, शॉल, अखरोट की लकड़ी से बनी चीजें, ड्राई फ्रूट, कश्मीरी मसाले, दालें, जाफरान इत्यादि नियंत्रण रेखा के उस पार भेजी जाएंगी और वहां से इसके बदले चावल, लहसन, प्याज, मसाले, ड्राई फ्रूट और पेशावरी चप्पल यहां लाई जाएंगी. शुरुआती कुछ वर्षों में ये व्यापार खूब फला-फूला. लेकिन फिर अचानक इस सारी प्रक्रिया को किसी की नजर लग गई. आर-पार का व्यापार कंट्रोवर्सी का शिकार हो गई.
आर-पार का व्यापार शुरू होने के चार वर्ष बाद अगस्त 2012 में भारतीय अधिकारियों ने दावा किया कि पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर से आनेवाले एक मालवाहक ट्रक में से 10 करोड़ रुपए मूल्य की हेरोइन बरामद हुई है. इसके दो वर्ष बाद, जनवरी 2014 में उस पार से आए एक ट्रक में से 100 करोड़ रुपए मूल्य के ड्रग्स बरामद हुए. एक वर्ष बाद, फरवरी 2015 में अधिकारियों ने कहा कि एक और ट्रक से बारह किलो ब्राउन शुगर बरामद की गई. इतना ही नहीं, उस साल मार्च में अधिकारियों ने उस पार से आए ट्रक से हथियार भी बरामद करने का दावा किया. इसके बावजूद आर-पार का व्यापार जारी रहा. सरकार ने स्मगलिंग रोकने के लिए आश्वासन दिया, ताकि व्यापार को नुकसान नहीं पहुंचे.
ऐसा लगता है कि ये मामला इतना सरल नहीं रहा. राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) राय दे रही है कि आरपार का व्यापार हवाला फंडिंग से जुड़ा है. एनआईए ने इस साल जुलाई में केन्द्रीय सरकार को एक रिपोर्ट पेश करते हुए जम्मू कश्मीर में कंट्रोल लाइन के आर-पार जारी व्यापार को फिलहाल बंद करने की सलाह दी है. अपनी रिपोर्ट में एनआईए ने कहा है कि अबतक जम्मू कश्मीर में इस आर-पार व्यापार से 2770 करोड़ रुपए का फर्जी लेन-देन हुआ है. एनआईए ने व्यापारियों का रिकॉर्ड जब्त किया है. 40 व्यापारियों को पूछताछ के लिए बुलाया गया है. इनमें से 15 व्यापारियों के घरों पर छापे मारे गए हैं, तलाशियां ली गई हैं. इससे साफ जाहिर है कि आर-पार व्यापार के हवाले से अब मामला बहुत गंभीर बन चुका है. पिछले पांच वर्षों से आर-पार व्यापार करने वाले समीउल्ला कहते हैं कि हमें एनआईए की जांच पर कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन हम चाहते हैं कि व्यापारियों को पूछताछ के लिए दिल्ली और लखनऊ न बुलाया जाए. एनआईए जब किसी व्यापारी को दिल्ली या लखनऊ हेडक्वार्टर पर बुलाती है, तो न केवल उसे बल्कि उसके घरवालों को भी बहुत परेशानियां होती हैं. समीउल्ला ने चौथी दुनिया से बात करते हुए कहा कि उन्होंने ये मामला गृहमंत्री राजनाथ सिंह के नोटिस में भी लाया है. गृहमंत्री ने तो उस समय आश्वासन दिया था, इसके बावजूद व्यापारियों को पूछताछ के लिए दिल्ली तलब करने का सिलसिला बंद नहीं हुआ.
व्यापारियों में एक आम धारणा है कि जम्मू कश्मीर में कंट्रोल लाइन के आर-पार की इस व्यापार के संबंध में पीडीपी और भाजपा के बीच मतभेद होने की वजह से व्यापारियों को बलि का बकरा बनाया जा रहा है.