NGOहाल में गृह मंत्रालय ने 11,319  गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) की मान्यता रद्द कर दी है. साथ ही 25 एनजीओ को राष्ट्रद्रोही गतिविधियों में लिप्त बताते हुए उनकी मान्यता रद्द कर दी गई. ये एनजीओ अभी तक विदेशी अंशदान नियमन अधिनियम (एफसीआरए) के तहत पंजीकृत थे. इनमें करीब 50 अनाथालय, सैकड़ों स्कूल और समाज के वंचित बच्चों के लिए काम करने वाले एनजीओ भी शामिल हैं. जाहिर है मान्यता रद्द होने के बाद अब वे विदेशों से धन प्राप्त नहीं कर सकेंगे. खबरों के मुताबिक ये संगठन सरकार द्वारा तय की गई तारीख तक अपने पंजीकरण का नवीकरण नहीं करा पाए थे. पिछले साल भी करीब 10 हजार एनजीओ के एफसीआरए के तहत पंजीकरण रद्द हुए थे. आरोप था कि उन्होंने बीते तीन वर्षों के अपने सालाना रिटर्न दाखिल नहीं किए थे.

एक स्वस्थ लोकतंत्र में सिविल सोसाइटी जैसी संस्थाएं फलती-फूलती हैं. जब लोकतंत्र पर अधिनायकवादी ताकतें हावी होने लगती हैं, तो सबसे पहले सिविल सोसाइटी की आवाज दबाने का प्रयास किया जाता है. समाजशास्त्रियों का मानना है कि एक जीवंत लोकतंत्र में सिविल सोसाइटी जनमत-निर्माण के जरिए महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं, या यूं कहें कि सरकार की लोककल्याण विरोधी नीतियों के खिलाफ जनता को एकजुट करते हैं. ऐसे में जाहिर है कि शायद ही कोई लोकतांत्रिक सरकार इस स्थिति को बर्दाश्त करने के लिए तैयार हो.

तब शुरू होता है इन संस्थाओं पर सरकारी दमन का खेल. मीडिया पर बैन लगाया जाता है, एनजीओ को फेरा के घेरे में फंसाया जाता है, उन्हें राष्ट्रद्रोही करार दिया जाता है, एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस पर हमले तेज किए जाते हैं, बुद्धिजीवियों को देश छोड़ने की सलाह दी जाती है. दरअसल, सरकार की नीतियों के खिलाफ जनमत तैयार करने का मकसद सीधे सरकार पर हमला माना जाता है और फिर उसे देशभक्ति, राष्ट्रप्रेम के ताने-बाने से जोड़ दिया जाता है.

देश में कुछ ऐसी ही स्थितियों के बीच लोकतंत्र अपना सफर तय कर रहा है. पहले, सत्ता पक्ष अपनी नीतियों की खूबियों-खामियों के बारे में जनता की राय जानने के लिए इन संस्थाओं को तवज्जो देते थे. ये संस्थाएं जनता और सरकार की नीतियों के बीच समन्वय का काम करती थीं. अपनी नीतियों की जनता द्वारा की गई आलोचना से घबराने के बजाय सरकार उन्हें बदलने के लिए तैयार रहती थी. लेकिन जब से कुछ संस्थागत पूर्वघोषित एजेंडों के जरिए सरकार की नीतियों का निर्धारण होने लगा है, तब से सिविल सोसाइटी और सरकार के बीच मतभेद बढ़ने लगे हैं.

लिहाजा, सिविल सोसाइटी की आलोचना को सरकार व्यक्तिगत आलोचना के रूप में लेने लगी है और उसी के आधार पर तय होता है कि कौन सी संस्था सरकार के पक्ष में है और कौन विरोध में. अब जनपक्षधरता के मुद्दे गौण हो गए हैं और सरकारी नीतियों के बखान में ही सिविल सोसाइटी का एक अवसरवादी धड़ा अपना हित देखने लगा है.

वहीं, 25 राष्ट्रद्रोही घोषित एनजीओ में कई ऐसे एनजीओ भी शामिल होंगे, जिन्होंने सरकार की हां-में-हां मिलाने से इंकार कर दिया होगा. हालांकि इस बात से कतई इंकार नहीं किया जा सकता कि एनजीओ की आड़ में कुछ ऐसे धंधेबाज भी हैं, जो बहुराष्ट्रीय कंपनियों व प्राइवेट कंपनियों की

कारगुजारियों को जनता में वैधता प्रदान कराने के लिए कार्य करते हैं. कुछ ऐसे एनजीओ भी हैं, जो मानवता के नाम पर विदेशों से चंदा उगाही करते हैं और गुप्त तरीके से अपने एजेंडे को आगे बढ़ाते हैं. यह बात भी जगजाहिर है कि एनजीओ अपने गुप्त धन का हिसाब-किताब शेयर करने से परहेज करते हैं. एक अनुमान के मुताबिक करीब 90 प्रतिशत एनजीओ टैक्स नहीं भरते हैं.

गुजरात की सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ एक एनजीओ चलाती हैं सबरंग ट्रस्ट. इसके संचालक हैं तीस्ता और उनके पति जावेद आनंद. तीस्ता के एनजीओ पर एफसीआरए के 6 नियमों के उल्लंघन का आरोप है. एक आरोप यह भी है कि विदेशों से आने वाले धन का इस्तेमाल व्यक्तिगत खर्च के लिए हो रहा था. बताते चलें कि सबरंग ट्रस्ट का पंजीकरण सामाजिक और शिक्षा के लिए हुआ है. गौरतलब है कि तीस्ता सीतलवाड़ गुजरात में हुए दंगों को लेकर मोदी सरकार के खिलाफ काफी मुखर रही हैं. एक अनुमान के मुताबिक, मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से 13,700 से अधिक भारतीय और विदेशी एनजीओ के एफसीआरए लाइसेंस रद्द किए गए हैं. 

जाकिर नाईक के एनजीओ को लेनी होगी पूर्व अनुमतिः   विवादास्पद इस्लामी प्रचारक जाकिर नाईक के आईआरएफ एजुकेशनल ट्रस्ट को सरकार ने पूर्व अनुमति श्रेणी में डाल दिया है. अब केंद्र की अनुमति के बिना यह ट्रस्ट विदेशी धन हासिल नहीं कर पाएगा. गृह मंत्रालय ने जांच में यह पाया था कि आईआरएफ एजुकेशनल ट्रस्ट ने फेरा के प्रावधानों का उल्लंघन किया है. इसके बाद गृह मंत्रालय ने आईआरएफ एजुकेशनल ट्रस्ट को किसी भी तरह का विदेशी योगदान लेने से पहले केंद्र सरकार से पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया.

हालांकि जांच में यह भी पता चला कि नाईक एनजीओ के लिए आए धन का इस्तेमाल युवाओं को कथित रूप से कट्टरपंथी बनाने और उन्हें आतंकवादी गतिविधियों के लिए प्रेरित करने में कर रहे थे. सरकार जाकिर नाईक द्वारा शुरू की गई एक अन्य एनजीओ इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन का एफसीआरए पंजीकरण रद्द करने की प्रक्रिया में है. इस संबंध में संस्था को अंतिम कारण बताओ नोटिस जारी किया जा चुका है. सूत्रों ने दावा किया कि नाईक ने आईआरएफ के विदेश कोष को पीस टीवी को आपत्तिजनक कार्यक्रम बनाने के लिए स्थानांतरित कर दिया. 

25 एनजीओ को बताया राष्ट्रद्रोही : केंद्रीय गृह मंत्रालय ने फेरा के तहत 25 एनजीओ का दोबारा रजिस्ट्रेशन करने से इनकार कर दिया है. सूत्रों के मुताबिक मंत्रालय ने यह कदम उनके देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने की वजह से उठाया है. गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने जानकारी दी कि वैसे एनजीओ जो विध्वंसकारी गतिविधियों में लिप्त हैं या देशहित से जुड़े काम नहीं करते हैं, उन्हें विदेश से फंड हासिल करने की इजाजत नहीं दी जा सकती है.

कोई एनजीओ राष्ट्रद्रोही है या नहीं, यह तय कौन करेगा? अगर यह सरकार करती है, तो फिर ऐसे एनजीओ पर कार्रवाई से इनकार नहीं किया जा सकता, जो सरकार परस्त न हों. ग्रीनपीस फाउंडेशन जैसे एनजीओ, जो पर्यावरण की रक्षा के लिए काम करते हैं, उन पर भी बैन इसलिए लगा दिया गया क्योंकि वे सरकार द्वारा संचालित कई ऐसे प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे थे, जो पर्यावरण के अनुकूल नहीं था.

सरकार पर्यावरण को लेकर जितनी चिंतित नजर नहीं आती, उससे ज्यादा चिंतित बड़े बांधों व परमाणु भट्टियों के निर्माण को लेकर होती है, जो कभी भी जनता के लिए विनाशकारी साबित हो सकते हैं. कई एनजीओ के रजिस्ट्रेशन रद्द होने के बाद भारत में विदेशों से फंड हासिल करने वाले एनजीओ की संख्या अब 33,138 से घटकर 20,000 रह गई है.

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