aaaराजगीर से नए संदेश और नई ऊर्जा के साथ जनता दल (यूनाइटेड) की राजनीतिक यात्रा ही नहीं, इसके डायनेमिक अध्यक्ष नीतीश कुमार का दिल्ली अभियान भी आरंभ हो गया. दल की नई राष्ट्रीय परिषद की यहां आयोजित बैठक में नीतीश की अध्यक्ष के तौर पर ताजपोशी तो हुई ही, उन्हें नरेन्द्र मोदी के बरअक्स सबसे बेहतर राष्ट्रीय विकल्प के तौर पर भी पेश किया गया. उन्होंने भी दल की इस उम्मीद को पूरा करने के लिए वैकल्पिक राष्ट्रीय एजेंडा के सूत्र पेश किए और देश भर में अभियान चला कर समान विचार के दलों को एक मंच पर लाने में कोई कोर-कसर न छोड़ने की घोषणा की. नीतीश कुमार ने यह वचन भी दिया कि इस अभियान के कारण बिहार को कोई हानि नहीं होगी. यह सब कुछ शरद यादव सहित दल के तमाम बड़े नेताओं और लगभग डेढ़ हजार डेलीगेट के सामने हुआ. जद(यू) राष्ट्रीय परिषद की इस बैठक के खुले अधिवेशन में इस अभियान में साथ आए झारखंड विकास मोर्चा के सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी भी मौजूद थे.

दल के अध्यक्ष नीतीश कुमार ने यहां डेढ़ घंटे के संबोधन में अपने मिशन उत्तर प्रदेश और मिशन 2019 का एजेंडा पेश कर दिया. उन्होंने अपने एक दशक से भी अधिक पुराने शासन काल की उपलब्धियों जैसे, महिला सशक्तिकरण, कन्या शिक्षा और महादलित विकास के साथ-साथ शराबबंदी के फैसले की भी चर्चा की. उनका कहना था कि ‘मैं शराबबंदी से कभी पीछे नहीं हटूंगा, यह है और रहेगा. बिहार में मैं नहीं, मेरे काम बोलते हैं. जयप्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया जैसे समाजवाद के पुरोधा पुरुष मेरे प्रेरणा-स्त्रोत रहे हैं. देश, किसानों की हालत में सुधार, नौजवानों को रोजगार, नारी के सम्मान और सामाजिक सुधारों से मजबूत होगा और जद(यू) यही कर रहा है, इसी के लिए संघर्ष कर रहा है.’ जद(यू) अध्यक्ष ने आह्वान किया कि कार्यकर्त्ता धैर्य के साथ इस अभियान में लगे रहें. उन्होंने कहा कि ‘मैं दल के एजेंडा के साथ देश भर में घूमूंगा, पार्टी जहां कहेगी जाऊंगा. लेकिन बिहार के कामकाज में बाधा नहीं आने दूंगा.’ नीतीश कुमार ने अपने संबोधन को व्यापक फलक दिया. उन्होंने एनडीए से बाहर निकल जाने के सवा तीन साल पुराने अपने निर्णय को जायज ठहराया और कहा कि भाजपा अब अटल-आडवाणी की नहीं रही. इसकी नीति-रीति सब बदल गई है. अब लव जेहाद, गौरक्षा, घरवापसी, धारा 370, तीन तलाक और समान नागरिक संहिता जैसे भावनात्मक मुद्दों को आगे कर राजनीति की जा रही है. जनता तो काम करने का मौका देती है, लेकिन कुछ लोग और दल जुबान चला कर प्रचार की बदौलत सब कुछ हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने सहयोग और संघर्ष की अपनी रणनीति का खुलासा कर आतंकवाद के सफाए के केंद्र सरकार के अभियान में उसके साथ होने और सदैव बने रहने का भरोसा दिलाया, तो वहीं जन सरोकार के सवालों को लेकर उसे नहीं छोड़ने का संकल्प भी दुहराया. जद(यू) सुप्रीमो के तीर तो समाजवादी पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव पर भी खूब चले. उन्होंने जो कुछ कहा उसका एक ही अर्थ था- जनता परिवार व बिहार में महागठबंधन के साथ सपा सुप्रीमो का विश्‍वासघात. उन्होंने साफ कर दिया कि बिहार चुनाव में उनकी भूमिका से किसे लाभ मिला, यह बताने की जरूरत नहीं है. फिर भी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिए उनके पास एक ऑफर थाः उत्तर प्रदेश में बिहार की तर्ज पर शराबबंदी की घोषणा कर चुनाव जीत लें, वह साथ देंगे.

अधिवेशन में राजनीतिक प्रस्ताव पारित कर संकल्प लिया गया कि दल, आगामी लोकसभा चुनावों में गैर भाजपा दलों का एक मजबूत गठबंधन देने की सार्थक पहल करेगा, जो मौजूदा एनडीए का और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का बेहतर राष्ट्रीय विकल्प होगा. नीतीश कुमार ऐसा फ्रंट तैयार करने की पहल करेंगे. अधिवेशन ने इसके लिए उन्हें अधिकृत कर दिया है. दल ने नीतीश कुमार की नेतृत्व क्षमता को डायनेमिक बताते हुए कहा कि देश की जनता उनकी ओर हसरत भरी निगाह से देख रही है. लेकिन इतने सब के बावजूद, प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर उनके नाम को पेश करने से दल ने फिलहाल परहेज किया है. हालांकि, पार्टी की समझ है कि एक अच्छे प्रधानमंत्री में जितने गुण होने चाहिए, वे सब के सब नीतीश कुमार में हैं. पार्टी का मानना है कि जद(यू) भले ही छोटी पार्टी है और कुछ राज्यों तक में सीमित है, लेकिन यह आज का यथार्थ है कि नरेन्द्र मोदी के विकल्प में देश का सबसे भरोसेमंद चेहरा, हमारे नेता नीतीश कुमार ही हैं. उनकी स्वीकृति किसी भी गैर भाजपाई नेता से कहीं अधिक है. दल ने बिहार के महागठबंधन की तर्ज पर उत्तर प्रदेश में भी गठबंधन बनाने का विचार किया है, ताकि भाजपा को वहां भी पटकनी दी जा सके. यह काम अध्यक्ष करेंगे. राष्ट्रीय परिषद ने प्रस्ताव पारित कर दल के संविधान में उपयुक्त संशोधन के लिए अध्यक्ष को अधिकृत कर दिया है. परिषद का मानना है कि दल का संविधान पुराना हो गया है और कई बिन्दुओं पर इसमें समय के साथ बदलाव की जरूरत है. प्रस्ताव के अनुसार ऐसे जरूरी बदलाव के लिए अध्यक्ष समिति का गठन करेंगे और उसकी सिफारिश के अनुरूप आगे की कार्रवाई करेंगे. हालांकि मीडिया को यह नहीं बताया गया कि दल के संविधान में किन-किन बिंदुओं को बदलने की जरूरत महसूस की जा रही है. इसी तरह दल की नई राष्ट्रीय कार्यकारिणी के गठन के लिए भी अध्यक्ष को अधिकृत कर दिया गया है. देश के कई राज्यों में समितियों का गठन नहीं हो सका है. राष्ट्रीय परिषद ने अध्यक्ष को अधिकार दे दिया है कि वे इन राज्यों में तदर्थ समितियों को मनोनीत कर दें. इससे पार्टी का कामकाज निर्बाध चलता रहेगा. हालांकि राजगीर में ही दल के पदाधिकारियों की बैठक में ऐसे राज्यों में अगले तीन महीने के भीतर सांगठनिक चुनाव करवा लेने का फैसला लिया गया, जहां अब भी यह होना है. चूंकि अधिवेशन में झाविमो के सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी भी मौजूद थे. इसलिए नीतीश कुमार ने भाषण में झारखंड विकास मोर्चा की भी चर्चा की. नीतीश कुमार, झारखंड में उनके आयोजन में भाग ले चुके हैं. राजगीर में उन्होंने घोषणा की कि वह झाविमो के दुमका में होने वाले सम्मेलन में शामिल होंगे. नीतीश कुमार ने अपने भाषण में भाजपा और सपा पर तो तीर ही तीर छोड़े, झाविमो की भी चर्चा की, लेकिन इसके अलावा किसी दल का नाम भी नहीं लिया, न आलोचना में न ही प्रशंसा में. यह अनायास नहीं था. यह नीतीश कुमार की भावी राजनीतिक रणनीति का संकेत भी हो सकता है. सत्ता केंद्रित राजनीति में कुछ भी स्थाई नहीं होता. न दोस्ती न दुश्मनी. सीमाएं बार-बार आड़े आती हैं, तो संभावनाओं के द्वार भी खुलते ही रहते हैं.

राजगीर अधिवेशन में नीतीश कुमार को गैर भाजपाई और गैर कांग्रेसी राजनीतिक ध्रुव, अर्थात तीसरा मोर्चा के नेता और इस बहाने प्रधानमंत्री पद के भावी दावेदार के रूप में अघोषित तौर पर पेश कर दिया गया. परिषद की बैठक के दौरान वक्ता और इससे बाहर के नेताओं की अनौपचारिक बातचीत में यह बार-बार दुहराया गया. हालांकि जद(यू) में यह बात, बिहार विधानसभा चुनाव में तीन दलों- राजद, जद(यू) और कांग्रेस के महागठबंधन की जीत के बाद से ही कही जा रही है. लेकिन अब इसे पार्टी के प्रस्ताव के तौर पर पेश कर औपचारिक स्वरूप दे दिया गया. यहां से नीतीश कुमार की राजनीति को एक नया आसमान और नई उड़ान मिली है. हालांकि बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर उनके कामकाज की सर्वत्र प्रशंसा ही होती रही. उनकी बेदाग छवि ने उन्हें हिंदी पट्टी के अन्य बड़े राजनेताओं से अलग रखा है. जद(यू) का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के साथ उन्हें बड़ा अखाड़ा मिला और अब प्रधानमंत्री पद के भावी दावेदार के तौर पर उनकी प्रस्तुति ने उन्हें और विशाल राजनीतिक फलक दे दिया है. केंद्रीय मंत्री के तौर पर नीतीश कुमार की छवि वाजपेयी सरकार के किसी भी मंत्री से (कुछ अपवादों को छोड़ कर) बेहतर ही रही. गैसल रेल दुर्घटना के बाद मंत्री पद से इस्तीफा देकर उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री की कतार में खुद को खड़ा कर लिया था. कई मोर्चों पर क्षत-विक्षत बिहार की कमान संभालने के बाद अपने डायनेमिक नेतृत्व से इस राज्य को निराशा के भंवर से बाहर निकाल कर यहां उम्मीद की किरण जगाई थी. फिर, सांप्रदायिकता के नाम पर एनडीए से अलग होकर नई चुनौती स्वीकार की. गत विधानसभा चुनाव में सत्ता में उनकी वापसी कम बड़ी राजनीतिक उपलब्धि नहीं रही है. इस वापसी ने गैर भाजपाई राजनीतिक समूहों में उनकी स्वीकृति को ज्यादा पुख्ता और गंभीर बना दिया. बहुत सी उपलब्धियों के तमगे के साथ अब वह नई चुनौतियों के सामने हैं.

नीतीश कुमार और जद(यू) की उनकी नई कोर टीम (जिसमें महासचिव और राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी, पत्रकार हरिवंश और पूर्व राजनयिक पीके वर्मा के नाम सबसे महत्वपूर्ण हैं) की जिम्मेवारी काफी बड़ी हो गई है. पार्टी को सब कुछ दुरुस्त रखते हुए राष्ट्रीय स्तर पर गैर भाजपाई राजनीति को अपने प्रस्ताव के अनुकूल लाना है. बड़ी-बड़ी अपेक्षाओं से लबालब छोटी-छोटी पार्टियों को एक साथ लाने में बड़ी परेशानी होती है. स्वीकार करे या न करे, जद(यू) ने उत्तर प्रदेश में स्वयं इसे भोगा है. स्थिति अब भी इसके मनमाफिक होती नहीं दिख रही है. हालांकि राजगीर से वापसी के तुरन्त बाद ही नीतीश कुमार ने पटना में, उत्तर प्रदेश की पीस पार्टी के अध्यक्ष और चौधरी अजित सिंह के राष्ट्रीय लोकदल के प्रतिनिधि से बातचीत की. हालांकि यह पता नहीं चला है कि क्या बातचीत हुई. लेकिन इतना तो तय है कि बातचीत का दायरा उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों तक ही सीमित रहा होगा. अभी यही जरूरी भी है. नीतीश कुमार को पश्‍चिम बंगाल में ममता बनर्जी, ओडिशा में बीजू पटनायक और आप के अरविंद केजरीवाल सहित कई नेताओं और दलों को अपने साथ लाने के लिए विशेष पहल और राजनीतिक कसरत करनी होगी. ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल, कांग्रेस और भाजपा से समान दूरी और कटुता बना कर काम कर रहे हैं, जबकि नवीन पटनायक की स्थिति इससे भिन्न है. उनका दोनों दलों से मधुर-तिक्त संबंध चलता रहता है. फिर, इन राजनेताओं की राजनीतिक आकांक्षाएं भी असीमित हैं. किसी राजनीतिक गोलबंदी में यह भी आड़े आ सकती है. नीतीश कुमार और उनके थिंक टैंक को दक्षिण भारत के बारे में भी विशेष तौर पर सोचना होगा. आंध्र प्रदेश-तेलांगना के साथ-साथ तमिलनाडु और कर्नाटक में भी मित्रों की खोज करनी होगी. कर्नाटक में तो एचडी देवेगौड़ा की जनता दल (एस) को पक्ष में लाने में आसानी होगी, लेकिन बाकी जगहों पर परेशानी तो है ही. बिहार भी इनके लिए एक नया और विशेष मोर्चा होगा. राजगीर अधिवेशन के बाद बिहार की सरकार में नीतीश कुमार के सहयोगी कांग्रेस ने घोषणा कर दी है कि राहुल गांधी ही उसके प्रधानमंत्री के उम्मीदवार होंगे. इधर, बिहार के महागठबंधन का सबसे बड़ा दल राष्ट्रीय जनता दल, लोकसभा चुनावों को लेकर पत्ते नहीं खोल रहा है. हां, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में वह समाजवादी पार्टी के लिए काम करेगा, इसकी घोषणा कर चुका है. अर्थात उत्तर प्रदेश में ही बिहार के सत्तारूढ़ महागठबंधन के तीनों दल तीन दिशा में हैं. कहना मुश्किल है कि लोकसभा चुनावों में क्या होगा. यह राजनीतिक माहौल नीतीश कुमार और उनके थिंक टैंक के लिए चुनौती तो होगा ही- छोटा या बड़ा.

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