Untitled-1भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने मुरादाबाद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक(एसएसपी) धर्मवीर को नागिन की तरह निगाहों में बसाकर बदला लेने की चेतावनी क्या दी सूबे का सियासी पारा एकदम चढ़ गया. भाजपा और समाजवादी पार्टी के नेताओें के बीच तलवारें खिंच गईं तो बसपाई-कांगे्रसी भी इस जंग में बिना देरी किए कूद पड़े. सबके अपने-अपने तर्क हैं, लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि लक्ष्मीकांत वाजपेयी से पहले भी तमाम राजनीतिक दलों के नेतागण नौकरशाहों और पुलिस अधिकारियों की तस्वीर निगाहों में अंकित कर कार्रवाई करते रहे हैं. उत्तर प्रदेश की राजनीति और ब्यूरोके्रसी में हमेशा एक चर्चा छिड़ी रहती है कि कौन ज्यादा पॉवरफुल और काबिल होता है. नेताओं को गुमान रहता है कि वह हजारों-लाखों मतदाताओं के वोट का विश्‍वास हासिल करके आते हैं, इसलिए उनकी ताकत को कम करके नहीं आंका जा सकता है,वहीं ब्यूरोके्रट्स को लगता है कि देश की सबसे महत्वपूर्ण भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस)की परीक्षा पास करने का मतलब ही यह है कि हम हर तरह से श्रेष्ठ हैं. तमाम ऐसे ब्यूरोके्रट्स और खाकी वर्दी वाले अधिकारी हैं जिन्होंने अपने सिद्धांतों के लिए कभी किसी राजनेता के सामने घुटने नहीं टेके. भले ही इसका उन्हें कुछ भी खामियाजा क्यों न भुगतना पड़ा हो.
दूसरी ओर ऐसे नौकरशाहों और खाकी वर्दी वाले अधिकारियों की भी कमी नहीं है जिनकी निष्ठा हमेशा किसी एक दल या नेता के पक्ष में झुकी रहती है. पूर्व आईएएस पीएल पुनिया नौकरी में रहते ज्यादातर समय माया के प्रति वफादार रहे. पूर्व आर्ईएएस अखंड प्रताप सिंह और नीरा यादव पर मुलायम के करीबी होने का आरोप लगता रहा. मायावती के एक और करीबी और आईएएस राय सिंह के बारे में तो यहां तक कहा जाता है कि उन्होंने उत्तर प्रदेश में बसपा-भाजपा की सरकार बनाने में मुख्य किरदार निभाया था. राजनेताओं से संबंध बना कर आईएएस आर के सिंह ने तो अपनी पत्नी ओमवती को पहले विधायक बनवाया और उसके बाद ओमवती मायावती सरकार में मंत्री तक बन गईं.
इसी प्रकार, डीजी यशपाल सिंह के ऊपर मुलायम का करीबी होने का आरोप लगता रहा. इसी करीबी का फायदा उठाकर यशपाल ने अपनी पत्नी गीता सिंह को गोंडा से विधायक तक बनवा दिया था. आईएएस अधिकारी फतेह बहादुर सिंह, नेतराम, विजय शंकर पांडेय आज भी इसलिए हासिये पर हैं क्योंकि इनके ऊपर माया के करीबी होने का ठप्पा लगा है. आईएएस नवनीत सहगल भी पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की गुड लिस्ट में हुआ करते थे, लेकिन हाल ही में समाजवादी सरकार ने उन्हें प्रमुख सचिव (सूचना) बनाकर उनका कद काफी ऊंचा कर दिया. इसी प्रकार डीजी के पद से रिटायर्ड होेेने वाले बुआ सिंह को हमेशा माया का आशीष मिलता रहा. माया राज में बृज लाल को जूनियर होते हुए भी डीजीपी की कुर्सी पर बैठा दिया गया था. पुलिस महकमें में उनके बिना पत्ता तक नहीं हिलता था, लेकिन जैसे ही सपा सरकार बनी, बृजलाल कहां चले गए कोई नहीं जानता. अरूण कुमार गुप्ता को सपा सरकार ने इसीलिए डीजी नहीं बनाया क्योंकि वह कभी कल्याण सिंह के खास हुआ करते थे. आज समाजवादी पार्टी में आजम के बाद सबसे बड़ा मुस्लिम चेहरा माने जाने वाले स्वास्थ्य मंत्री अहमद हसन भी पुलिस सेवा से रिटायर्ड होकर राजनीति में आए थे. अहमद हसन कभी इटावा के एसएसपी हुआ करते थे, यहीं पर उनकी मुलायम से नजदीकियां बढ़ीं और उन्होंने समाजवादी चोला ओढ़ लिया. वर्तमान में अहमद हसन विधान परिषद के सदस्य हैं. लखनऊ के डीआईजी नवनीत सिकेरा की गिनती तेज तर्रार अधिकारियों में होती है, लेेकिन मायाकाल में सिकेरा को कभी कोई तवज्जो नहीं दी गई.
राजनीति की यह कड़वी हक़ीकत है कि किसी भी चुनाव के बाद विपक्षी दल जब सत्ता में और सत्तारूढ़ दल विपक्ष में आता है तो सबसे पहला निशाना अफसर ही बनते हैं. पिछली बसपा सरकार में लखनऊ पुलिस की कमान डीआईजी धु्रवकांत ठाकुर के पास थी. एक दिन सपाइयों के आंदोलन में लोेहिया वाहिनी के अध्यक्ष आनंद सिंह भदौरिया को डीआईजी ने बूटों तले रौंद दिया. उसी दिन सपा ने घोषणा कर दी कि उनकी सरकार बनेगी तो धु्रवकांत ठाकुर से हिसाब बराबर किया जाएगा, और बाद में ऐसा ही हुआ. बसपा सरकार में एएसपी बीपी अशोक ने सपा के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेेश यादव और राष्ट्रीय महासचिव शिवपाल सिंह यादव से खराब व्यवहार किया था.
सपा सरकार बनने के बाद इन दोनों अफसरों को मिजार्र्पुर के रिक्रूटमेंट ट्रेनिंग सेंटर चुनार में भेज दिया गया. डीके ठाकुर तो आईजी होने पर भी वही हैं. आईएएस दुर्गा नागपाल का किस्सा तो सपा सरकार के ही राज में सुर्खियों में आया,दुर्गा की गलती बस इतनी मात्र थी कि उसने सपा के खनन माफियाओं के खिलाफ जंग छेड़ रखी थी. सपा के पिछले शाासनकाल में आईएएस राकेश बहादुर ने नोयडा में खूब सुर्खियां बटोरी. अदालत तक में उनके भ्रष्टाचार की शिकायतें पहुंची,लेकिन मुलायम का करीबी होने के कारण उनका कद हमेशा ऊंचा ही रहा. आईएएस राजीव कुमार प्रमुख सचिव नियुक्ति जैसे जिम्मेदारी वाले पद को देख रहे हैं, सीबीआई जांच से घिरे राजीव कुमार सपा प्रमुख मुलायम सिंह की कृपा से ही नियुक्ति विभाग की जिम्मेदारी उन्हें मिली हुई है. आईपीएस अफसर विजय सिंह तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के सचिव थे. सपा की सरकार बनी तो उन्हें डीआईजी स्तर के गोरखपुर के पुलिस ट्रेनिंग कॅालेज भेज दिया गया.
यह सिलसिला पुराना है. इमरजेंसी के दौरान पुलिस और प्रशासनिक अफसरों ने नेताओं साथ काफी अपमानजनक व्यवहार किया. 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी तो फिर ऐसे लोेगों को सबक सिखाया गया. सपा-बसपा ही नहीं कांगे्रस और भाजपा भी इस खेल को खूब खेलते हैं.

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