एनडीटीवी को अडानी द्वारा हड़पने की खबर क्या आयी सारा फेसबुक ही रवीश कुमार के इस्तीफे की खबर से पट गया । फेसबुकियों ने ऐलान कर दिया कि रवीश ने इस्तीफा दे दिया है । सुबह-सुबह छः बजे मैंने रवीश को व्हाट्सएप करके पूछा, सुना है आपने इस्तीफा दे दिया । जवाब में रवीश ने कहा, अभी तक तो नहीं । फेसबुकियों की बात तो जाने दें लेकिन सोचें एनडीटीवी का गोदी चैनल होने या रवीश कुमार के जाने का मतलब क्या है । मतलब सीधा और साफ है कि फंदा बहुत नजदीक आ रहा है । प्रतिकूल अवस्थाओं में इंसान की परख हुआ करती है। आज रवीश जिस मुकाम पर पहुंच गये हैं वह भी किसी तपस्या से तो कम नहीं , भाईसाहब ! जितने उनके समर्थक हैं शायद उससे कम उनके विरोधी भी नहीं । स्वयं मेरा बेटा ही उन्हें ‘रबीश’ कह कर संबोधित करता है । हर बात को आप लोकतंत्र से जोड़ दीजिए या उसे ही लोकतंत्र कह दीजिए , क्या फर्क पड़ता है । लोकतंत्र तो जैसे इस देश में खिचड़ी समान हो चला है । यों भी जब बिना पढ़े लिखों की सरकार हो तो ऐरों गैरों की जमात सब जगह जा जाती है । ऐसे में अगर कहीं उम्मीद बचती है तो ऐसे ही चैनलों से या मीडिया के सवाल पूछते तंत्र से । मीडिया में रवीश जैसों का जिंदा रहना वक्त की सबसे पहली और अहम जरूरत है । ऐसा तो नहीं कि एनडीटीवी के अलावा और कहीं कुछ बचा नहीं । प्रिंट मीडिया ही नहीं सोशल मीडिया के कई वेबसाइट जोरदार काम कर रहे हैं । प्रमुख रूप से ‘द वायर’ और ‘सत्य हिंदी’ के अलावा अनेक वेबसाइट हैं जो अपने अपने तरीकों से लगी हैं पर वे वह मुकाम हासिल नहीं कर पा रही हैं जो फिलहाल वायर और सत्य हिंदी ने तय किया है । एनडीटीवी चूंकि एक चैनल है और दूसरे अन्य चैनलों की तरह टीवी पर देखा जाने वाला है इसलिए उसकी महत्ता कुछ अलग और ज्यादा है । इसलिए एनडीटीवी का बचना या उसे बचाया जाना जरूरी है । अभी काफी गुंजाइश है पर यह खूंख्वार सत्ता किसी विरोधी स्वर को नहीं बर्दाश्त करने वाली । लोग एनडीटीवी का मतलब रवीश कुमार समझते हैं तो उनकी नजर से वह गलत भी कहां है । रवीश का शो देश दुनिया में बड़े पैमाने पर देखा जाता है । लत ऐसी कि कुछेक एपीसोड नीरस भी हों तो भी ग़म नहीं। अभी शो ‘ऑन’ है तसल्ली यही है ।
इधर ‘सत्य हिंदी’ वालों के लिए एक खुश खबर है और वे बधाई के पात्र हैं कि उन्हें देखने- सुनने वालों की संख्या बीस लाख तक पहुंच गई है । हमारी भी बधाई ! यकीनन यह उनकी जिद और लगन का कमाल है । खासतौर पर आशुतोष का । दरअसल आशुतोष की पहचान भी किसी से कम नहीं।पहचान बनाना इस व्यक्ति का कमाल है । आज यूट्यूब पर इस वेबसाइट के कई कार्यक्रम हैं । वायर अपने कंटेंट में सत्य हिंदी से बेहतर होते हुए भी उस ऊंचाई तक नहीं पहुंचा जहां आज सत्य हिंदी बना हुआ है । इसका कारण शायद यह है कि सत्य हिंदी का दर्शक हर वर्ग में मौजूद है । और शायद यह भी कि वायर के विस्तार के लिए वहां ऐसी जिद और लगन वाला कोई नहीं । सच तो यह है कि जब से आरफा खानम शेरवानी ने वायर को ज्वाइन किया तभी से वायर ने रफ्तार पकड़ी है । रवीश और आरफा एक सिक्के के दो पहलू हो सकते हैं । देखने वालों की वैसी नजर चाहिए । सत्य हिंदी में उसके बुलेटिन (जो वाकई तारीफ के काबिल है और जिसमें अंकुर जम गया है) से लेकर शाम सात बजे से दस बजे तक लगातार चलने वाले कार्यक्रम । यानी आप टीवी से मुक्त होना चाहते हैं तो लगातार तीन – चार घंटे स्वस्थ मसाला देखने को मिलेगा । बोर करने वाली चीजें भी हैं । फिर भी आप देखते चलिए । बनिया हर बार तो गुड़ नहीं देता । सबसे रोचक और गम्भीर चर्चा रात नौ बजे की होती है प्रायः । यही प्राइम टाइम है । मुकेश कुमार का कमिटमेंट है । वे कहीं और नौकरी में व्यस्त हैं लेकिन उन्होंने नौकरी इसी शर्त पर ली है कि सत्य हिंदी पर बराबर बने रहेंगे । दूसरी बात बहकते पैनलिस्ट को पटरी पर कैसे लाना है यह भी वे अच्छी तरह जानते हैं । इसी कसावट के चलते यह शो काफी देखा जाता है । आलोक जोशी को सुनना कुछ अलग है क्योंकि वे अलग ही बोलते हैं और जो बोलते हैं वे तर्क आपकी सोच से इस कदर जुड़ते चले जाते हैं कि आप आलोक जी के मुरीद हुए बिना नहीं रह सकते । इसके अलावा भी उनमें कई खूबियां हैं । भर्रायी और गर्वीली आवाज । जब वे धीरे से मुस्कुराते हैं तब आप जो कुछ सोचते हैं उससे पहले ही उनके होंठ गम्भीर हो उठते हैं । शीबा असलम फहमी मुझे कहती हैं आप इतनी गहराई से लोगों को परखते हैं , यह भी खूब है ! नीलू व्यास भी सत्य हिंदी में धीरे-धीरे जगह बना रही हैं । इधर उनकी बिलकिस बानो पर क्रम श्रंखला चल रही है । यह दर्शाता है कि बिलकिस बानो का मुद्दा जरूरी है और किसी भी हाल में मरना नहीं चाहिए । आशुतोष के संचालन से कई शिकायतें पहले भी रही हैं और आज भी हैं । पता नहीं इतना समझदार व्यक्ति चीख कर या चिल्ला कर नमस्कार क्यों करता है । उनका कहना है कि इसके पीछे एक कहानी है । कहानी है तो होगी, लोगों को उससे क्या लेना। फिर ‘दरअसल’ शब्द की इस कदर ऐसी तैसी करते हैैं उसके पीछे तो कोई कहानी नहीं । लोग सोचते हैं इस व्यक्ति को पता नहीं कि दरअसल शब्द के मायने क्या हैं । फिर उछलते कूदते बिना सांस लिए बोलना । और भी कई बातें हैं जिन्हें बताते भी अच्छा नहीं लगता । ऐसा समझदार आदमी और ऐसी हड़बड़ाहट । दरअसल ये चीजें ‘ईरीटेट’ करती हैं । करती सबको हैं पर सब बोल नहीं पाते । इसी तरह मैंने एक बार रवीश कुमार को भी कहा था कि अब आप स्टूडियो से कार्यक्रम शुरु कीजिए । खड़े खड़े दाएं बाएं हिलते हैं और एक हाथ हवा में बार बार उठता है । अंधे घंटे तक यही देखते रहना बड़ा नागवार सा गुजरता है । तो उन्होंने बताया कि स्टूडियो तक जाने में डेढ़ घंटा ट्रैफिक जाम में फंसना पड़ता है । बहरहाल, आप दर्शक हैं तो मूर्ति बन कर तो चीजों को नहीं देखते रह सकते न। पुण्य प्रसून वाजपेई को इसीलिए देखना कम किया कि उनके शब्दों का उच्चारण बहुत ग़लत होता है । चाहे हिन्दी चाहे इंग्लिश । और फिर एक ही ढर्रे से हथेलियों को सरसराते हुए । आप मंच से कोई भाषण सुनें और वक्ता बार बार कंधे ही उचकाते रहे तो आपका ध्यान भाषण में रहेगा या उसके कंधों पर । बहरहाल, आपका जवाब कुछ भी हो सकता है । सत्य हिंदी पर रविवार को भी दो कार्यक्रम देखने लायक होते हैं । एक सिनेमा पर सुबह ग्यारह बजे और रात नौ बजे ताना बाना । कुल मिलाकर सत्य हिंदी सोशल मीडिया का एक ऐसा धारावाहिक सा बन गया है जो किसी भी हाल में छोड़ा नहीं जा सकता । इसके लिए आशुतोष और उनके सभी साथियों को बधाई !!
कार्यक्रम वह होता है जिसका आपको इंतजार रहता है । जैसे रात नौ बजे रवीश कुमार , रविवार को सुबह ग्यारह बजे अभय दुबे शो या सत्य हिंदी पर हर रात मुकेश कुमार का ‘डेली शो’ । इस बार अभय दुबे शो नहीं आया लेकिन संतोष भारतीय ने अखिलेंद्र जी से बातचीत की । अच्छी और रोचक । इस बातचीत से ही पता चला कि कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में किन किन महत्वपूर्ण लोगों को छोड़ दिया गया है । मजेदार यह कि 19 अगस्त को गांधी शांति प्रतिष्ठान में सिविल सोसायटी के लोगों की बैठक हुई और बाद में प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत को ही न्योता नहीं दिया गया ।कई जरूरी सर्वोदय कार्यकर्ताओं को तो छोड़ा ही गया प्रशांत भूषण तक को भी न्योता नहीं । जबकि प्रशांत भूषण योगेन्द्र यादव के सबसे खास और उनकी पार्टी ‘स्वराज अभियान’ में महत्वपूर्ण सदस्य हैं । योगेन्द्र यादव इस यात्रा में एक तरह से सिविल सोसायटी के मुखिया हैं । अखिलेंद्र जी ने सवाल यह भी उठाया कि इस यात्रा से निकलेगा क्या । नफरत छोड़ो तो ठीक है पर देश के दूसरे जरूरी मुद्दों का क्या । कहा तो यह जा रहा है, और सही कहा जा रहा है, कि इस यात्रा से कुछ निकलने वाला नहीं । एक तरफ कांग्रेस भारत जोड़ने की बात कर रही है तो दूसरी तरफ वह खुद टूटती जा रही है । हमारे हिसाब से तो राहुल गांधी के पास जो युवा टीम (कोटरी) है वह अभी कतई काम नहीं आने वाली । उसका समय निकल गया । अभी तो 2024 मुहाने पर है और कांग्रेस का अस्तित्व कैसे बचे यह चिंता होनी चाहिए । दूर दूर तक न तो विपक्ष का एका दिखाई पड़ता है, न मोदी को टक्कर देने वाला कोई व्यक्तित्व । कांग्रेस का तो अस्तित्व ही जब खतरे में है तब विपक्ष बचा ही कहां । अरविंद केजरीवाल या आप अभी बहुत दूर की कौड़ी है । गुंजाइशों के दायरे खाली हैं । क्या कीजिएगा । यों आप कर भी क्या सकते हैं ।
बच गया एनडीटीवी ??….
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