upendra-kushwahaहोशियार-खबरदार के राजसी माहौल में एनडीए के तमाम बड़े नेता 19 नवंबर को सुशील मोदी के सरकारी निवास दो पोलो रोड़ में दनादन घुस रहे थे. दोपहर के एक बजते-बजते एनडीए के सारे दिग्गज एक दूसरे का अभिवादन कर चुके थे और अब बारी थी पत्रकारों से रूबरू होकर महागठबंधन की सरकार को कोसने की.

पत्रकारों से खचाखच भरे हॉल में नेता आए और अपनी-अपनी कुर्सियों पर विराजमान हो गए. खटका इसी समय से शुरू हो गया. दाहिने तरफ की सबसे अंतिम कुर्सी पर उपेंद्र कुशवाहा को बिठाया गया. उस समय ऐसा लगा कि शायद जल्दबाजी में इस तरह बैठने का क्रम बन गया होगा.

पत्रकार वार्ता की शुरूआत हुई और सुशील मोदी ने मेजबान की हैसियत से लंबे-चौड़े भाषण में कई आरोप महागठबंधन सरकार पर मढ़ दिया. इस दौरान रामविलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा दोनों एनडीए की रिपोर्ट कार्ड वाली किताब में छपे कुछ चुनिंदा अंशों को अंडरलाइन करते रहे.

शायद किताब छपने से पहले रालोसपा और लोजपा से राय भी नहीं ली गई थी. खैर मोदी जी का भाषण खत्म हुआ और बारी आई रामविलास पासवान की. श्री पासवान भी लंबा बोल गए. अब उम्मीद की जा रही थी कि मौका उपेंद्र कुशवाहा को मिलेगा.

लेकिन मंगल पांडेय ने घोषणा की कि अब जीतन राम मांझी बोलेंगे. श्री मांझी भी दलित, महादलित और अपने कामों पर इतना लंबा बोल गए कि उपेंद्र कुशवाहा के सब्र का बांध टूटने लगा. खैर, सबको लगने लगा कि अब उपेंद्र कुशवाहा की बारी ही आएगी. लेकिन हद तो तब हो गई जब नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार पत्रकारों को संबोधित करने लगे.

इसके बाद तो श्री कुशवाहा के धैर्य का बांध टूट गया. उन्होंने इशारों ही इशारों में अपने पीए को कुछ कहा. पीए साहब बाहर निकले और गाड़ी को पोर्टिको में लाकर खड़ा कर दिया. इस बीच एक बात और हुई. कुछ पत्रकारों की तरह भाजपा के तेजतर्रार विधान पार्षद संजय मयूख भी एनडीए के मंच पर चल रहे इस अंतरसंघर्ष को महसूस कर रहे थे.

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स्थिति की गंभीरता को समझते हुए मयूख ने उपेंद्र कुशवाहा से बात की. कुशवाहा ने इनसे कहा कि मेरा कार्यक्रम एक जगह और लगा हुआ है, इसलिए मुझे जाना होगा. मयूख ने तुरंत सुशील मोदी के कानों में फुसफसा कर यह बात बताई. बगल में बैठे मंगल पांडेय ने भी अपनी गर्दन लंबी कर इस फुसफुसाहट को सुन लिया.

लेकिन कुछ ही पलों में लगा कि सुशील मोदी और मंगल पांडेय ने कुछ सुना ही नहीं. अब अंतिम उम्मीद भी खत्म हो गई और उपेंद्र कुशवाहा ने बिना किसी को कुछ कहे मंच छोड़ दिया और जाकर गाड़ी में बैठ गए.

श्री कुशवाहा के जाने के बाद भी मंच पर बैठे एनडीए के नेताओं के चेहरे का हाव-भाव जस का तस ही रहा. राहत वाली बात यह रही कि संजय मयूख कुशवाहा को गाड़ी तक छोड़ने आए. खैर, तब तक काफी देर हो गई थी और महागठबंधन को कमजोर बताने वाली एनडीए खुद कितनी कमजोर है, इसका फिल्मी दृश्य लोगों ने देख लिया था.

जब यह दृश्य सरेआम हो गया, तो राजनीतिक प्रतिक्रियाएं आनी लाजिमी थी. बिना समय गंवाए उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा कि उपेंद्र कुशवाहा के साथ जो हुआ वह बेहद ही दुर्भाग्यपूर्ण है. सहयोगी दलों के नेताओं के साथ भाजपा का व्यवहार कैसा होता है, इसे अब बताने की जरूरत नहीं है. भाजपा मतलब की यार है, वह सहयोगी को पहले यूज करती है और काम खत्म होेने के बाद थ्रो कर देती है. हालांकि उपेंद्र कुशवाहा कहते हैं कि इसमें नाराजगी जैसी कोई बात नहीं है.

मेरा कार्यक्रम पहले से ही दूसरी जगह तय था, इसलिए मुझे समारोह के बीच से ही जाना पड़ा. उपेंद्र कुशवाहा भले ही इस मामले को रफा-दफा करना चाह रहे हों, पर उनकी पार्टी के कई बड़े नेता इस घटना को लेकर काफी आहत हैं. इन नेताओं का कहना है कि यह कार्यक्रम एनडीए का था न कि भाजपा का. इसलिए इसमें सबसे पहले एनडीए में शामिल दलों के अध्यक्षों को बोलना चाहिए.

सुशील मोदी किस हैसियत से सबसे पहले इतना लंबा भाषण दे दिए. मंच पर सबसे वरिष्ठ रामविलास पासवान थे. अच्छा होता कि प्रेस वार्ता की शुरूआत रामविलास पासवान से कराई जाती. इन नेताओं का कहना है कि भाजपा सबसे बड़ी सहयोगी पार्टी है, इसलिए इसकी जिम्मेदारी ज्यादा है.

रालोसपा नेताओं का कहना है कि इस तरह उपेंद्र कुशवाहा को समय पर बोलने का मौका न देेने से जनता के बीच गलत संदेश गया है.इसके उलट भाजपा नेता राकेश कुमार सिंह कहते हैं कि कुछ गलत नहीं हुआ. नेता प्रतिपक्ष की हैसियत केंद्र के किसी भी राज्यमंत्री से ज्यादा होती है.

इसलिए अगर उपेंद्र कुशवाहा से पहले प्रेम कुमार को बोलने का मौका दिया गया, तो इसमें गलत  क्या है. वैसे भी उपेंद्र कुशवाहा से एनडीए को कितना लाभ मिला और आगे कितना मिलने वाला है, यह सब को पता है. खैर, यह तोे हुई उपेंद्र कुशवाहा की बात.

एनडीए की इस प्रेस वार्ता में लोजपा सांसद चिराग पासवान को भी आना था. सबसे अंतिम कुर्सी पर चिराग पासवान का नाम भी चस्पा था. लेकिन शायद ऐन मौके पर उनका इसकी खबर लग गई और उन्होंने आने का कार्यक्रम रद्द कर दिया. अच्छा ही हुआ, नहीं तो कुशवाहा जी की तरह इन्हें भी बेआबरू होकर महफिल छोड़नी पड़ती.

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