हाल में आए गुजरात एवं हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव नतीजों से एनडीए खेमे में खुशी है और उसी के आधार पर 2019 के लोकसभा और 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर लकीरें खींची जाने लगी हैं. स्थानीय स्तर पर भी यह परिणाम प्रभावी दिख रहा है. सीतामढ़ी लोकसभा सीट से साल 2014 के चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा के रालोसपा के टिकट पर राम कुमार शर्मा बतौर सांसद निर्वाचित हुए. हालांकि मोदी लहर के बावजूद इनके लिए जीत उतनी आसान नही थी.
जातीय राजनीति की वजह से कुछ खास वर्ग के लोग इनकी उम्मीदवारी को पचा नहीं पा रहे थे, लेकिन दलगत दवाब के बाद इनकी नैया को पार लगाया गया. लोगों को उम्मीद थी कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद जिला के लिए बतौर सांसद श्री शर्मा कुछ बेहतर कर सकेंगे. मगर चुनाव का आधा से अधिक समय गुजरने के बाद भी कुछ ऐसा नहीं हो सका है.
नतीजा यह है कि लोग अब इनके कार्यकाल के अंतिम पहर का इंतजार करने लगे हैं. जिले में आयोजित सबका साथ-सबका विकास कार्यक्रम के दौरान सांसद को भाजपा कार्यकर्ताओं के विरोध का भी सामना करना पड़ा, लेकिन उसका कोई खास असर नहीं पड़ा. हाल यह है कि सांसद क्षेत्र के विकास से ज्यादा पार्टी नेताओं की परिक्रमा में व्यस्त चल रहे हैं.
बिहार के वर्तमान राजनीतिक गठबंधन के साथ भाजपा व जदयू का खेमा अपना-अपना किला बुलंद करने में लगा है. सीतामढ़ी जिले में जदयू की ओर से पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष सह पूर्व सांसद नवल किशोर राय, विधान पार्षद राज किशोर कुशवाहा, बाजपट्टी विधायक डॉ रंजूगीता, बेलसंड विधायक सुनीता सिंह चौहान व रून्नीसैदपुर की पूर्व विधायक गुड्डी देवी मुख्य रूप से जदयू के अभियान में लगी हैं. प्रदेश नेतृत्व के निर्देश पर सरकार के सात निश्चय समेत अन्य अभियानों की सफलता के लिए प्रदेश उपाध्यक्ष श्री राय व विधान पार्षद श्री कुशवाहा पूरी तरह से जुटे हुए हैं, वहीं हाल में जदयू की सदस्यता ग्रहण करने वाली पूर्व विधायक गुड्डी देवी ने भी मुख्यमंत्री के अभियान को गति देना शुरू कर दिया है. पार्टी गलियारों में चहलकदमी करने वालों की मानें, तो इनमें कुछ नेता ऐसे हैं जिनकी नजर सीतामढ़ी लोकसभा सीट पर भी है. विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से वे अपने लिए 2019 का रास्ता खोज रहे हैं. लेकिन इनपर कार्यकर्ताओं की भी पैनी नजर है.
गठबंधन के दूसरे दल, भाजपा की बात करें, तो 2014 का लोकसभा चुनाव हाथ से निकलने के बाद से ही जिला भाजपा संगठन के अंदर उहापोह की स्थिति बन गई थी. रही सही कसर 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव ने पूरी कर दी. इससे पहले सीतामढ़ी जिले के परिहार, बथनाहा, रीगा व सीतामढ़ी विधानसभा सीटों पर भाजपा ने साल 2010 के चुनाव में अपना परचम लहराया था. लेकिन 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के कारण भाजपा को रीगा व सीतामढ़ी सीटों से हाथ धोना पड़ा. भाजपा सिर्फ परिहार व बथनाहा पर ही सिमट कर रह गई. उस समय स्थानीय नेताओं में असंतोष की स्थिति व्याप्त हो गई थी.
यही कारण भी रहा कि पूर्व विधान पार्षद बैद्यनाथ प्रसाद बेलसंड विधानसभा क्षेत्र से बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनावी समर में उतरे. सीतामढ़ी में भाजपा खेमे के अन्य नेताओं की बात करें, तो वर्तमान में तिरहुत स्नातक क्षेत्र के विधान पार्षद देवेशचंद्र ठाकुर, पूर्व विधान पार्षद बैद्यनाथ प्रसाद, पूर्व विधायक सुनील कुमार पिंटू, पूर्व विधायक राम नरेश प्रसाद यादव, पूर्व विधायक मोतिलाल प्रसाद व परिहार विधायक गायत्री देवी मुख्य रूप से क्षेत्र में सक्रिय हैं.
हालांकि इनमें से कुछ ऐसे भी हैं, जो ज्यादातर किन्हीं कार्यक्रमों या आयोजनों में ही नजर आते हैं. स्थानीय वरीय नेताओं का दर्शन कार्यकर्ताओं को तब तक नहीं हो पाता, जब तक जिले में किसी प्रदेश स्तरीय नेता का आगमन नहीं होता. कुल मिलाकर देखा जाए, तो जदयू व भाजपा के स्थानीय नेताओं की दलीय कार्यकर्ताओं से बढ़ रही दूरी की संभावना को बेहतर नही माना जा सकता है. गठबंधन के दोनों ही दल के नेताओं को अपने-अपने कार्यकर्ताओं के बीच जाकर इनकी भावना को समझना होगा.
स्वहीत को किनारा कर दलहीत के लिए कदम बढ़ाना होगा. चुनाव में अभी काफी देरी है और प्रदेश में टिकट की दावेदारी में भी समय है. आम कार्यकर्ताओं की भूमिका पार्टी के निर्णय से आए प्रत्याशी के समर्थन में एकजुट होने भर तक सीमित होती है, इसे सभी को समझना होगा. अन्यथा टिकट के चक्कर में गुटबाजी के शिकार नेताओं की करतूत पार्टी के लिए खतरनाक साबित हो सकती है.