naxalकेंन्द्र और राज्य सरकार के तमाम प्रयासों के बाद भी बिहार के नक्सल प्रभावित गया जिले में नक्सली घटनाओं पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा है. करीब आधा दर्जन नक्सली संगठन भारी संख्या में मौजूद अर्द्धसैनिक बलों पर भारी पड़ रहे हैं. प्रति महीने इन अर्द्धसैनिक बलों पर करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं. फिर भी ऑपरेशन नक्सल गया जिले के नक्सल प्रभावित क्षेत्र शेरघाटी अनुमंडल में बेअसर साबित हो रहा है. इस क्षेत्र में नक्सलियों के विभिन्न संगठनों की ओर से लेवी मांगे जाने के कारण सैकड़ों छोटी-बड़ी योजनाएं बंद पड़ी है.

लेवी वसूले जाने से नक्सली तथा उनके समर्थक माला-माल हो रहे है, वहीं दूसरी ओर संबधित विभागों के अधिकारी और ठेकेदार नक्सलियों के लेवी वसूले जाने के बहाने को लेकर अपना काम निकालने में सफल हो रहे हैं. सुरक्षाबलों की कड़ी चौकसी, पर्याप्त संख्या, नियमित सर्च ऑपरेशन के बावजूद 9 प्रखंडों वाले नक्सल प्रभावित शेरघाटी अनुमंडल में नक्सलियों पर काबू नहीं पाये जाने को लेकर लोगों में तरह-तरह की चर्चा है. जिसमें नक्सलियों को स्थानीय स्तर से लेकर राज्य स्तर पर राजनीतिक संरक्षण दिये जाने की बात कही जाती है.

झारखण्ड की सीमा से लगे बिहार के गया जिले के शेरघाटी अनुमंडल के सभी नौ प्रखंड शेरघाटी, आमस, गुरुआ, बाराचट्‌टी, मोहनपुर, डुमरिया, इमामगंज, बांकेबाजार नक्सल प्रभावित माना जाता है. इन प्रखंडों में प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी, पीएलएफआई, आरसीसी, टीपीसी की सक्रियता अधिक है. पिछले दो दशक में इन नक्सली संगठनों के द्वारा सैकड़ों हिंसक वारदातों को अंजाम दिया जा चुका है.

जिनमें कई राजनीतिज्ञों की हत्या और जी.टी. रोड पर एक-साथ बड़ी संख्या में वाहनों को फूंके जाने की घटनाएं भी शामिल हैं. इन क्षेत्रों में नक्सलियों की लेवी वसूली के कारण सैकड़ों छोटी-बड़ी विकास योजनाएं बंद पड़ी है, जिनमें एक प्रमुख है डुमरिया से पटना तक बनने वाला स्टेट हाइवे. गया जिले में नक्सलियों की बढ़ती गतिविधियों को देखते हुए केन्द्र और राज्य सरकार ने विभिन्न केंन्द्रीय अर्द्धसैनिक बलों की कंपनियों को नक्सल प्रभावित शेरघाटी अनुमंडल के विभिन्न स्थानों को स्थापित किया.

जिनमें कोबरा बटालियन की स्थापना बाराचट्‌टी में की गई. इसमें अधिकारियों और जवानों की संख्या 1100 है. केन्द्रीय गृह मंत्रालय के निर्देश पर सीआरपीएफ की सात कम्पनियां जिनमें 910 जवान तथा एसएसबी की चार कम्पनियां जिनमें करीब 520 जवान हैं, गया जिले में स्थापित की गई हैं. इन सब के अलावा राज्य सरकार ने एसटीएफ की चार कंपनियां जिनमें करीब 520 जवान है तथा सैफ की करीब 500 जवान भी गया जिले में तैनात है. इन अर्द्धसैनिक बलों पर प्रति महीने अरबों रुपये खर्च किए जा रहे हैं. लेकिन नक्सलियों पर अंकुश लगाने की जो उपलब्धि है, वह खर्च के हिसाब से सार्थक नहीं है.

इसका एक प्रमुख कारण है कि सभी अर्द्धसैनिक बलों के वरीय अधिकारी अपने कैम्प में नहीं बल्कि गया व बोधगया जैसे शहर में रहते हैं. कोबरा बटालियन बाराचट्‌टी के बरवाडीह में है. वहां करोड़ों खर्च कर अवासीय सुविधा उपलब्ध करायी गई है. फिर भी कोबरा के कमांडेट कैम्प में नहीं रहते हैं. इसी प्रकार एसएसबी, एसटीएफ, सैफ, सीआरपीएफ के कमांडेट व डिप्टी कमांडेट स्तर के पदाधिकारी भी अपने कैम्प को छोड़ कर गया व बोधगया में रहते हैं. जिसके कारण इन अधिकारियों के आवास से कैम्प आने-जाने पर ही प्रति महीने भारी राशि गाड़ी के पट्रोल और डीजल में खर्च हो जाती है.

बताया जाता है कि जब नक्सली गतिविधियों की जानकारी मिलती है, या कोई नक्सली घटना हो जाती है तो अर्द्धसैनिक बलों के वरीय अधिकारी अपने आवास से कैम्प पहुंचते हैं, जिससे नक्सलियों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई नहीं हो पाती है. बताया तो यह जाता है कि शेरघाटी अनुमंडल में करीब डेढ़ दर्जन पुलिस थाने है. इन सभी का भी अर्द्धसैनिक बलों से समन्वय नहीं रहता है. जिसका लाभ नक्सली उठाते हैं.

इस मामले पर वर्ष 2012 में राज्य के तत्कालीन पुलिस महानिदेशक अभयानन्द ने अर्द्धसैनिक बलों के वरीय अधिकारियों से चर्चा की थी. अभयानन्द ने कहा था कि अर्द्धसैनिक बलों के पदाधिकारियों को अपने कैम्प में रह कर सभी सुरक्षाबलों के बीच आपसी समन्वय बनाकर नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई करनी होगी, तभी सफलता मिल पायेगी.

गया जिले के शेरघाटी अनुमंडल के चार थाने आमस, शेरघाटी, डोभी तथा बाराचट्‌टी से होकर प्रसिद्ध जी.टी. रोड गुजरती है. जी.टी. रोड जिसे अब राष्ट्रीय उच्च पथ दो के नाम से जाना जाता है, पर नक्सलियों का यह सबसे ईजी टारगेट माना जाता है. पिछले साल जब मनु महाराज गया के एसएसपी थे, तब आमस थाने के अर्न्तगत जी.टी. रोड पर नक्सलियों ने एक-साथ 32 ट्रकों को फूंक डाला था.

हाल के दिनों में पीएलएफआई ने जी.टी. रोड के पास ही सड़क निर्माण में लगे ठेका कम्पनी के एक पोकलेन मशीन व डोभी थाने के पिपरघट्‌टी स्थित पट्रोल पम्प को फूंक दिया था. जबकि बाराचट्‌टी में जी.टी. रोड के पास ही स्थित है, कोबरा बटालियन. इसी प्रकार अन्य अर्द्धसैनिक बलों का कैम्प भी जी.टी रोड के आस-पास स्थित है. लेकिन नक्सली अपनी कार्रवाई करने में सफल हो जाते है और अर्द्धसैनिक बल घटना के बाद छापामारी और सर्च अभियान चलाकर ऑपरेशन नक्सल की खानापूर्ति करते नजर आते हैं.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here