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हमारे देश की सरकार देश के जवानों को सर्वोपरि रखती है. हमेशा देश के जवानों के हित में बातें करती हैं लेकिन अब हम आपको जो बात बताने जा रहे हैं उसे जानने के बाद आपका विश्वास हमारे देश की सरकार से थोड़ा डगमगा जाएगा. दरअसल पहले सरकार देश के शहीद जवानों के परिजनों और उनके बच्चों की पढ़ाई लिखाई का खर्च देती थी जिससे शहीदों के बच्चों को आगे उच्च शिक्षा हासिल करने में कोई दिक्कत नहीं होती थी लेकिन अब ऐसा नहीं रहा.

बता दें कि सरकार ने बिना देश की जनता को बताए हुए एक हैरान करने वाला कदम उठाया है जिसे जानकार हर भारतवासी को झटका लग जाएगा. दरअसल सरकार ने फैसला लिया है कि अब देश के जिन शहीदों के बच्चों की पढ़ाई का खर्च सरकार उठा रही थी उस खर्च में अब कटौती की जाएगी और अब इस रकम को मात्र 10 हज़ार कर दिया गया है. आपको बता दें कि हमारे देश में सिर्फ 3400 ऐसे परिवार हैं जिनके खर्च सरकार उठा रही है और उनके बच्चों की शिक्षा में कोई बाधा ना आए इस दिशा में अब तक काम कर रही थी. लेकिन अब ऐसा नहीं होने वाला है.

बता दें कि सरकार के इस कदम पर नौसेना प्रमुख सुनील लाम्बा ने देश की रक्षा मंत्री नौसेना प्रमुख सुनील लांबा ने देश की रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण को आग्रह पत्र लिखा है। पत्र में उन्होंने लिखा है कि देश के लिए जान गवांने वाले बच्चों को मिलने वाली शिक्षा प्रतिपूर्ति को कम करने का जो फैसला लिया गया है। उसे वापस ले लिया जाए।

सुनील लाम्बा के इस पत्र पर रक्षा मंत्री ने अभी तक कोई भी जवाब नहीं दिया है. सुनील लांवा ने अपने पत्र में लिखा है कि उन जवानों ने देश के लिए अपनी जान गवांई है ऐसे में सरकार को उनके बच्चों को पढ़ाई के लिए मिलने वाला फंड कम नहीं किया जाना चाहिए। लांबा ने आगे लिखा कि अगर सरकार इस गुजारिश को मान लेती है तो इससे पता चलेगा कि सरकार देश के लिए बलिदान देने वाले जवानों को याद रखती है। साथ ही उनका आदर भी करती है।

सरकार की तरफ से उठाए गये इस कदम के बारे में अभी तक देश की जनता को भनक नहीं लग सकी है ऐसे में अब सरकार की मंशा पर सवाल उठने लगे हैं कि क्या देश के उन चंद शहीदों के बच्चों की शिक्षा का खर्च सरकार नहीं उठा सकती है जिन्होंने इस देश के लिए अपने प्राणों की कुर्बानी दे दी है.

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गौरतलब है कि कि पहले देश के लिए जान गवाने वाले, लापता हो जाने वाले या दिव्यांग सैनिकों के बच्चों की ट्यूशन फीस, हॉस्टल फीस, किताबों का खर्च, स्कूल और घर के कपड़ों का पूरा खर्च सरकार उठाती थी। वर्तमान केन्द्र सरकार ने एक जुलाई को फैसले लेते हुए इस राशि को दस हजार रुपए तक सीमित कर दिया है। खबर के मुताबिक सशस्त्र बल के जवानों के लगभग 3,400 बच्चे सरकार के इस फैसले से प्रभावित हुए हैं।

बता दें कि भारत सरकार वे इस व्यवस्था की शुरुआत 1971 की लड़ाई जीतने के बाद की थी। सुनील लांबा के पत्र के बाद रक्षा मंत्रालय ने अपने फैसले पर फिर से विचार करना शुरू कर दिया है।नौसेना प्रमुख सुनील लांबा ने देश की रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण को आग्रह पत्र लिखा है। पत्र में उन्होंने लिखा है कि देश के लिए जान गवांने वाले बच्चों को मिलने वाली शिक्षा प्रतिपूर्ति को कम करने का जो फैसला लिया गया है। उसे वापस ले लिया जाए।

 

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