वर्तमान में भारतीय नौकरशाहों की दयनीय स्थिति के लिए बहुत से कारण ज़िम्मेदार रहे हैं. कहा जाता है कि इनमें सबसे प्रमुख कारण उनके कार्य में राजनीतिक हस्तक्षेप और साथ ही राजनैतिक वर्ग द्वारा अपनी ताक़त का इस्तेमाल कर उनका तबादला या छोटा पद देकर उन्हें दरकिनार कर देना है. यह लगभग सभी ने महसूस किया है कि तबादला अधिकतर बेवजह किया जाता है.

हाल में ही बारह उत्तरी और दक्षिण एशियाई देशों में एक हज़ार दो सौ चौहत्तर विशेषज्ञों ने एक सर्वे किया है. इस सर्वे में भारतीय नौकरशाहों  को पूरे एशिया में सबसे अकुशल बताया गया है और भारत को वियतनाम, चीन और इंडोनेशिया जैसे देशों से पीछे रखा गया है. हालांकि ये तथ्य चौंकाने वाले और स्तब्धकारी नहीं हैं, लेकिन ये सभी के लिए एक चिंता का विषय ज़रूर हैं. आख़िरकार हमारे भविष्य का विकास इस संस्था की ताक़त और उसकी दक्षता और कार्यकुशलता पर ही निर्भर करेगा. इसलिए यह बहुत ज़रूरी है कि कभी भारतीय व्यवस्था की रीढ़ कहलाने वाली इस संस्था को इसकी स्थिति पर कोसने के बजाय गहराई में जाकर इसकी बदहाली के पीछे के कारणों का पता लगाया जाए.
वर्तमान में भारतीय नौकरशाहों की दयनीय स्थिति के लिए बहुत से कारण ज़िम्मेदार रहे हैं. कहा जाता है कि इसमें सबसे प्रमुख कारण उनके कार्य में राजनीतिक हस्तक्षेप और साथ ही राजनैतिक वर्ग द्वारा अपनी ताक़त का इस्तेमाल कर उनका तबादला या छोटा पद देकर उन्हें दरकिनार कर देना है. यह लगभग सभी ने महसूस किया है कि तबादला अधिकतर बेवजह किया जाता है और कभी-कभी तो राजनैतिक पार्टी का विरोध करने के शक़ के आधार पर भी तबादला कर दिया जाता है. यह भी कहा जाता है कि अगर नौकरशाह किसी ग़ैर-क़ानूनी आदेश के ख़िला़फ कोई कार्रवाई करने का फैसला लेता है या नियम के अनुसार ही कुछ करने की सोचता है तो उसमें हमेशा अड़ंगा लगा दिया जाता है. यही वजह है कि इस तरह की अनियमितताओ को रोकने के लिए आने वाला प्रस्तावित केंद्रीय विधेयक बेहद महत्वपूर्ण है.
माना जा रहा है केंद्र सरकार जल्द ही ऐसा एक क़ानून लाने वाली है, जो न स़िर्फ नौकरशाहों की कार्यकाल की तय-अवधि सुनिश्चित करेगा, बल्कि कार्यशैली को लेकर राजनैतिक हस्तक्षेप से भी बचाएगा. इतना ही नहीं, इन नौकरशाहों की नियुक्ति, तबादले और तैनाती संसदीय स्क्रूटनी के अधीन होंगे. अगर प्रस्तावित बिल वास्तविकता बन जाता है, तो आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के  अनियमित तबादलों और तैनाती पर लगाम लग जाएगी. कम-से-कम अधिकतर लोग तो ऐसा ही मानते हैं.
हालांकि अनियमित तबादले और तैनाती के ख़िला़फ प्रस्तावित वैधानिक सुरक्षा को लागू करने का एक पहलू और भी है. सरकार नया पब्लिक सर्विस कोड लाने की भी योजना बना रही है, जो बाबुओं की तऱक्क़ी और तबादले के लिए उनके कामकाज का कड़ाई से मूल्यांकन करेगा. यह उन प्रावधानों में से एक है, जो प्रस्तावित सिविल सर्विस बिल-2009 का हिस्सा है. इस कोड का मक़सद भारत की प्रशासनिक सेवा को और अधिक मज़बूत बनाना और प्रशासनिक विकास और शासन प्रणाली की नई चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार करना है.
विधेयक में बची ख़ामियों को दूर किया गया है और ऐसा माना जा रहा है कि यह पब्लिक सर्विस बिल 2007 का बेहतर रूप होगा, जिसे पिछली सरकार पेश नहीं कर सकी. इस विधेयक को पहले आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के बीच लागू किया जाएगा. उसके बाद इसका विस्तार अन्य सभी भारतीय सेवाओं जैसे भारतीय वन सेवा में भी किया जाएगा.
द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की सलाहों और स़िफारिशों को इस विधेयक में शामिल किया गया है और राष्ट्रीय स्तर पर एक नई सेंट्रल पब्लिक सर्विस अथॉरिटी (सीपीएसए) गठित करने की बात की गई है. इस अथॉरिटी पर न स़िर्फ इन संस्थाओं के पेशेवर प्रबंधन की ज़िम्मेदारी होगी, बल्कि यह वॉचडॉग के तौर पर काम करते हुए नौकरशाहों के  हितों को भी सुनिश्चित करेगी. अगर सिविल सर्विस विधेयक पारित हो जाता है तो सभी नौकरशाहों का कार्यकाल कम-से-कम तीन वर्षों के लिए निश्चित कर दिया जाएगा और अगर किसी नौकरशाह का विधेयक के प्रावधानों के अनुसार समय से पहले तबादला किया जाएगा तो उसे होने वाली असुविधा के लिए उचित मुआवज़ा दिया जाएगा. राज्यों में उच्च स्तर के अधिकारियों जैसे मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति एक पैनल द्वारा उम्मीदवारों की दी गई सूची में से होगी और इस पैनल में मुख्यमंत्री, विपक्ष के नेता और गृह मंत्री रहेंगे. अब तक इस तरह की नियुक्तियों का फैसला लेने का विशेष अधिकार मुख्यमंत्री के पास ही है.
इसलिए कहना न होगा कि इस तरह के तबादले और नियुक्तियां  सत्ताधारियों के विशेषाधिकार हैं और इसमें विपक्ष कहीं भी शामिल नहीं होता है. प्रस्तावित विधेयक के द्वारा केंद्र और राज्यों में इस तरह की नियुक्तियों के बारे में विपक्ष के नेता भी फैसले में शामिल हो सकते हैं. इस तरह विपक्ष के नेता दोनों स्तर (केंद्र और राज्य) पर नियुक्तियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे. राज्य की तरह केंद्र में भी वह कैबिनेट सचिव और अन्य पदों पर होने वाली नियुक्तियों के बारे में अपनी राय दे सकेंगे. कैबिनेट सचिव और अन्य बड़े पदों पर नियुक्ति के लिए भी एक पैनल होगा जिसमें प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और गृह मंत्री शामिल रहेंगे. अगर सरकार फैसला लेने में उन नियमों का, जो अधिनियम में उल्लेखित है, पालन नहीं करती है तो सरकार को संसद में ऐसा करने के कारणों के बारे में बताना होगा. इस विधेयक में नौकरशाहों के कार्यों के मूल्यांकन के बारे में भी काफी ध्यान दिया गया है. अधिकारियों की उच्च पदों पर नियुक्ति से पहले उनके कामकाज को महत्व दिया जाएगा. एन्युअल कॉन्फिडेंशियल रिपोर्ट (एसीआर) की जगह कार्य के मूल्यांकन के लिए वैज्ञानिक तरीक़े से बने एक नए सिस्टम का प्रस्ताव किया गया है. यह सिस्टम एसीआर से ज़्यादा विस्तृत होगा, जो स़िर्फ साल भर के दौरान के कार्यों का अवलोकन करता है. नया सिस्टम नौकरशाहों की उपलब्धियों और उन्होंने अपनी टीम के नेता के तौर पर किसी विभाग में कैसा काम किया है, के आधार पर उनका मूल्यांकन करेगा.
इस प्रस्तावित सिस्टम का प्रबंधन सीपीएसए ( सेंट्रल पब्लिक सर्विस ऑथरिटी) के पास होगा, जिसका निरीक्षण उसका अध्यक्ष करेंगे. इसके अध्यक्ष का पद मुख्य चुनाव आयुक्त के समकक्ष होगा. सीपीएसए के अध्यक्ष की नियुक्ति पांच वर्षों के लिए एक कमेटी के द्बारा की जाएगी. इस कमेटी के सदस्यों में प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के जज, गृह मंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता होंगे. कैबिनेट सचिव सीपीएसए के संयोजक के रूप में कार्य करेंगे. सीपीएसए नौकरशाहों के  संगठन, नियंत्रण, ऑपरेशन, नियमन और प्रबंधन से संबंधित मसलों पर सरकार को अपनी सलाह देगा. सीपीएसए भी पब्लिक सर्विस कोड का संरक्षक है. इस कोड को बनाने के पीछे का विचार यह है कि नौकरशाह अपने कर्तव्य का निर्वहन जवाबदेही, देखरेख, ईमानदारी, वस्तुनिष्ठता और नियमों में रहकर करे. सीपीएसए में तीन से पांच सदस्य हो सकते हैं. जो नौकरशाह पब्लिक सर्विस कोड का पालन नहीं करते हैं, सीपीएसए उनके ख़िला़फ कार्रवाई करने के लिए स़िफारिश कर सकती है. इस विधेयक के  क़ानून बन जाने के बाद सीपीएसए प्रत्येक वर्ष केंद्र सरकार को एक रिपोर्ट भी सौंपेगी, जिसमें सरकार के सभी विभागों में नए क़ानून के पालन से संबंधित जानकारी होगी.
आशा है कि इस विधेयक के क़ानून बनने के लिए जो कुछ ज़रूरी काम बाक़ी हैं उसे बहुत जल्द ही निपटा लिया जाएगा. हालांकि इस तरह के क़ानून से केंद्र-राज्य के संबंधों पर जो असर पड़ेगा, उन मुद्दों को भी जल्द ही आपसी विचार-विमर्श से सुलझा लेने की ज़रूरत है.
(लेखक प. बंगाल में आईएएस अधिकारी हैं. आलेख में व्यक्तविचार उनके अपने हैं और इनका सरकार के विचारों से संबंध नहीं है.)

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