yatraसबसे पहले ये जानना चाहिए कि राष्ट्रीय महिला दिवस कब और क्यों मनाया जाता है? राष्ट्रीय महिला दिवस 13 फरवरी को मनाया जाता है. भारत की पहली महिला राज्यपाल और स्वतंत्रता सेनानी सरोजनी नायडू का जन्म 13 फरवरी 1879 को हुआ था. उन्हीं की जन्मतिथि 13 फरवरी की याद में राष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है. भारत में महिलाओं के विकास के लिए उनके द्वारा किए गए कार्यों को मान्यता देने के लिए ही इस दिन का चयन राष्ट्रीय महिला दिवस के तौर पर मनाया जाता है. लेकिन, दुखद बात ये है कि हम सब अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस तो मनाते हैं, लेकिन सरोजनी नायडू के जन्मदिन को राष्ट्रीय महिला दिवस के तौर पर मनाना भूल जाते हैं. यहां तक कि सरकारें भी उनके योगदान को याद नहीं रख पाई हैं.

सरोजनी नायडू का योगदान

भारत कोकिला सरोजनी नायडू वो नाम हैं, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अपना अमूल्य योगदान दिया था. सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी 1879 में हुआ था. उनके पिता अघोरनाथ चट्टोपाध्याय एक वैज्ञानिक और शिक्षा शास्त्री थे. उन्होंने हैदराबाद के निजाम कॉलेज की स्थापना की थी. उनकी मां वरदा कवयित्री थीं और बंगाली भाषा में कविताएं लिखती थीं. सरोजनी एक प्रतिभावान छात्रा थीं. उन्हें उर्दू, तेलुगू, इंग्लिश, बांग्ला और फारसी भाषा का अच्छा ज्ञान था. उन्होंने मद्रास प्रेसीडेंसी में पहला स्थान हासिल किया था. उनके पिता चाहते थे कि वे गणितज्ञ या वैज्ञानिक बनें परंतु उनकी रुचि कविता में थी. उनकी कविता से हैदराबाद के निजाम बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने सरोजिनी नायडू को विदेश पढ़ने के लिए छात्रवृत्ति दी. 16 वर्ष की आयु में वेे इंग्लैंड चली गईं.

वहां पहले उन्होंने किंग कॉलेज लंदन में दाखिला लिया. उसके बाद कैम्ब्रिज के ग्रीतान कॉलेज में शिक्षा हासिल की. सरोजनी जब 15 साल की थीं, तभी उनकी मुलाकात डॉ गोविंदराजुलू नायडू से हुई. डॉ गोविंदराजुलू गैर-ब्राह्मण थे और पेशे से डॉक्टर थे. अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद सरोजिनी ने 19 साल की उम्र में उनसे विवाह कर लिया. उन्होंने अंतर्जातीय विवाह किया था जो कि उस दौर में मान्य नहीं था. यह एक तरह से क्रान्तिकारी कदम था, मगर उनके पिता ने उनका पूरा सहयोग किया था. वर्ष 1905 में बंगाल विभाजन के दौरान वेे भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल हुईं. इस आंदोलन के दौरान वे गोपाल कृष्ण गोखले, रवींद्रनाथ टैगोर, मोहम्मद अली जिन्ना, एनी बेसेंट, सीपी रामास्वामी अय्यर, गांधीजी और जवाहरलाल नेहरू से मिलीं.

भारत में महिला सशक्तीकरण और महिला अधिकार के लिए भी उन्होंने आवाज उठायी. उन्होंने राज्य स्तर से लेकर छोटे शहरों तक हर जगह महिलाओं को जागरूक किया. सविनय अवज्ञा आंदोलन में वे गांधी जी के साथ जेल भी गईं. वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी उन्हें 21 महीने के लिए जेल में रहना पड़ा था और बहुत सारी यातनाएं सहनी पड़ी थी. अपनी लोकप्रियता और प्रतिभा के कारण 1925 में कानपुर में हुए कांग्रेस अधिवेशन की वे अध्यक्षा बनीं और 1932 में भारत की प्रतिनिधि बनकर दक्षिण अफ्रीका भी गईं. भारत की स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद वे उत्तरप्रदेश की पहली राज्यपाल बनीं.

यूपी उस वक्त देश का सबसे बड़ा प्रांत था. उस पद को स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा था कि मैं अपने को क़ैद कर दिये गये जंगल के पक्षी की तरह अनुभव कर रही हूं. लेकिन वह प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की इच्छा को टाल न सकीं. वे लखनऊ में जाकर बस गईं और अपने राजनीतिक कर्तव्यों को निभाया. श्रीमती एनी बेसेंट की प्रिय मित्र और गांधीजी की इस प्रिय शिष्या ने अपना सारा जीवन देश के लिए अर्पण कर दिया. 2 मार्च 1949 को हृदयगति रूक जाने से उनका देहांत हो गया.

हैदराबाद से लखनऊ तक राष्ट्रीय यात्रा

लखनऊ के कुछ सामाजिक कार्यकर्ता और लखनऊ की मशहूर रेड ब्रिगेड संस्था मिल कर इस साल 13 फरवरी को हैदराबाद से एक यात्रा निकाल रहे हैं, जिसका समापन 2 मार्च को लखनऊ में होगा. यह यात्रा राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर हैदराबाद से शुरू होगी. इस यात्रा के मुख्य आयोजनकर्ता रेड ब्रिगेड संस्था की संचालक उषा विश्वकर्मा, सामाजिक कार्यकर्ता आलोक और डॉक्टर सत्यव्रत हैं. इस यात्रा का लक्ष्य महिलाओं की ताकत और सशक्तीकरण का एहसास कराना है और साथ ही सरोजनी नायडू के जन्मदिवस पर मनाए जाने वाली राष्ट्रीय दिवस के महत्व को भी रेखांकित करना है.

ये यात्रा वाहन से होगी, जिसमें कम से कम 20 लोग शामिल होंगे. यात्रा के दौरान हरेक दिन दो कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे. एक कार्यक्रम किसी स्कूल में और दूसरा कार्यक्रम किसी सार्वजनिक स्थान पर आयोजित किया जाएगा. लोगों को नुक्कड़ नाटक के जरिए सरोजनी नायडू के संघर्ष और स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान के बारे में बताया जाएगा. साथ ही, एलसीडी टीवी पर भी सरोजनी नायडू के जीवन से भी लोगों को परिचित कराया जाएगा. चौथी दुनिया से बात करते हुए यात्रा के आयोजक आलोक बताते हैं कि यात्रा के दौरान वे जिन भी राज्यों से गुजरेंगे, वहां के सरकारी प्रतिनिधियों को एक ज्ञापन भी सौंपेंगे, ताकि सरकारों को भी राष्ट्रीय महिला दिवस के बारे में जागरूक किया जा सके. इस यात्रा का समापन लखनऊ में 2 मार्च को होगा. गौरतलब है कि 2 मार्च को ही सरोजनी नायडू का निधन लखनऊ में हुआ था.

रेड ब्रिगेड : यौन अपराध के खिलाफ एक महाअभियान

उत्तर प्रदेश की उषा विश्वकर्मा ने रेड ब्रिगेड्स की स्थापना की है. इनका मकसद दस लाख महिलाओं को आत्मरक्षा की सीख देना है. रेड ब्रिगेड्स की शुरुआत के पीछे की कहानी भी बड़ी रोचक है. उषा विश्वकर्मा के सात सदस्यों वाले परिवार की आय इतनी नहीं थी कि वे उषा और उसके भाई बहनों की पढ़ाई और जीवन यापन का खर्च उठा सकें. उषा ने 12वीं तक की पढ़ाई उधार की किताबों से की. 2005 में जब उषा ने परिवार को आर्थिक मदद के लिए एक संस्था के साथ काम करना शुरू किया, तो उनके साथी शिक्षक ने उनके साथ बलात्कार की कोशिश की. साथी शिक्षक उषा का दोस्त भी था और हमउम्र भी. उस शिक्षक की कोशिश तो नाकाम हो गई लेकिन उषा उस घटना के बाद से अंदर ही अंदर घुटने लगीं. उस संस्था में उषा की बात किसी ने नहीं सुनी. स्वावलंबन के जिस सपने के साथ उषा ने नौकरी पकड़ी थी, वह भी चकनाचूर हो गया. इस दौरान दो साल तक उषा अवसाद में रहीं.

रेड ब्रिगेड्‌स की स्थापना

धीरे-धीरे उषा सामान्य जिंदगी जीने लगीं और बच्चों को पढ़ाने का काम शुरू किया. साथ ही वे महिलाओं के अधिकारों के बारे में सोचने लगीं. उषा के मुताबिक, लखनऊ के मड़ियांव इलाके में मनचले हमेशा लड़कियों को छेड़ते और उनपर फब्तियां कसते थे. इन सब हरकतों का कोई विरोध भी नहीं करता. एक दिन उनके स्कूल में पढ़ने वाली 11 साल की बच्ची के साथ उसके ही चाचा ने बलात्कार की घटना को अंजाम दिया. इस घटना ने उन्हें अंदर से हिला दिया. उषा ने 2010 में लिंग भेदभाव विषय पर अपने स्कूल की छात्राओं के साथ तीन दिवसीय वर्कशॉप का आयोजन किया. इस वर्कशॉप में उत्तर प्रदेश की 53 लड़कियों ने हिस्सा लिया. इसी वर्कशॉप में 51 लड़कियों ने उषा को जो बात बताई, वह चौंकाने वाली थी.

51 लड़कियों ने बताया कि उनके साथ किसी न किसी रूप में यौन हिंसा होती रही है. किसी लड़की ने बताया कि उसके भाई ने उसके साथ दुष्कर्म किया है, तो किसी ने बताया कि उसके जीजा ने ही उसकी इज्जत लूटने की कोशिश की. उषा ने इसके बाद, तय किया कि वे नुक्कड़ नाटकों के जरिए महिला हिंसा के खिलाफ जागरूकता फैलाएंगी. उन्होंने इसके लिए एक मंडली बनाई. जागरूकता अभियान चलाते समय इन लड़कियों के परिधान को लेकर कमेंट्स आने लगे और कमेंट्स करने वालों में लड़के शामिल थे. लड़के काले और लाल कपड़ों पर सेक्सी रेड ब्रिगेड की फब्तियां कसते. लड़कियों ने सोचा कि क्यों न हम अपना नाम रेड ब्रिगेड ही रख लें और इस तरह इस संस्था का नाम रेड ब्रिगेड रखा गया.

उषा एक घटना बताती हैं कि लखनऊ के मड़ियांव इलाके में रहने वाली लड़कियां अक्सर इस बात की शिकायत करती थीं कि आए दिन स्कूल आते-जाते समय उनके साथ छेड़खानी हो रही है और मनचले उनकी चुन्नी खींचते हैं. उषा ने 15 लड़कियों का एक ग्रुप बनाया और ऐसी छेड़खानी के खिलाफ आवाज उठाने लगीं. यह ग्रुप उन लड़कों के घर जाता जो लड़कियों के साथ छेड़खानी और अश्लील हरकत करते. परिवार में उन लड़कों की शिकायत की जाती और महिलाओं के साथ कैसे बर्ताव किया जाए, इसे लेकर अभिभावकों को जागरूक किया जाता. इस तरह से 6-7 महीनों तक चलता रहा, लेकिन पानी सिर से ऊपर चढ़ गया और एक दिन ग्रुप की एक लड़की ने अपने साथियों के साथ मिलकर एक मनचले की पिटाई कर दी. लड़के के परिवार वाले ने उषा से इसकी शिकायत की और उल्टा उषा को ही बुरा भला कहने लगे, लेकिन जब उन्हें तथ्यों से अवगत कराया गया तो परिवार का सिर शर्म से झुक गया.

और कारवां बनता गया…

वक्त के साथ उषा और रेड ब्रिगेड में काम करने वाली लड़कियों की जिम्मेदारी भी बढ़ती गई. लखनऊ में इन्होंने अपने काम को विस्तार दिया. दिल्ली की निर्भया कांड ने इस संस्था को झकझोर दिया. निर्भया कांड के बाद कानून में कड़े प्रावधान किए गए, लेकिन देश में बलात्कार के मामले घटे नहीं है, बल्कि बढ़ते ही गए. उषा ने तय किया कि अब वे इस घिनौनी वारदात के बाद देशभर में महिलाओं को आत्मरक्षा के गुर सिखाएंगी. रेड ब्रिगेड की खास बात ये है कि पूरा काम महिलाओं द्वारा ही अंजाम दिया जाता है.

मई 2013 में रेड ब्रिगेड को उसके द्वारा किए जा रहे सकारात्मक प्रयासों के लिए फिलिप्स गोडफ्रे राष्ट्रीय बहादुरी पुरस्कार से सम्मानित किया गया. मशहूर भारतीय टीवी रियलिटी शो कौन बनेगा करोड़पति में भी उषा और रेड ब्रिगेड के लिए अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा ने रकम जीतने के बाद दान दिया है. इस रकम का इस्तेमाल महिलाओं के लिए बनने वाली रेड ब्रिगेड अकादमी के लिए होगा. रेड ब्रिगेड ने अभी तक मुंबई, दिल्ली, असम और उत्तर प्रदेश की 35,000 महिलाओं को स्पेशल सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग दी है.

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