सरदार सरोवर बांध का गेट लगने के बाद नर्मदा घाटी के डूब प्रभावितों का आक्रोश बढ़ता जा रहा है. जैसे-जैसे डूब की तारीख पास आ रही है, वैसे-वैसे डूब प्रभावितों का आंदोलन उग्र होता जा रहा है. सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार इन्हें 31 जुलाई तक जगह खाली करना है, लेकिन अब तक प्रभावितों के पुनर्वास का काम पूरा नहीं हो सका है.

लोगों के आंदोलन को देखते हुए प्रशासन इन्हें लुभाने में जुट गया है. प्रभावितों के लिए प्रशासन ने पैकेज स्कीम तैयार की है. नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (एनवीडीए) के उपाध्यक्ष रजनीश वैश ने बताया कि प्रभावितों को 60 हजार रुपए मकान किराए के तौर पर और बीस हजार रुपए की राशि तीन महीने के भोजन-पानी के लिए अलग से दी जा रही है. सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार साठ लाख रुपए तक मुआवजा भी दिया जा रहा है.

उन्होंने ये भी बताया कि 31 जुलाई से पहले पुनर्वास स्थल सुविधाओं से पूर्ण हो जाएगा. जिन विस्थापितों ने प्लॉट बेच दिए हैं, उन्हें सरकार फिर से प्लॉट दे रही है और जिनके पास प्लॉट है, उन्हें मकान बनाने के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत राशि दी जा रही है. इसके उलट ग्रामीणों का आरोप है कि एनवीडीए ग्रामीणों का पुनर्वास किए बगैर ही घरों पर लाल निशान लगाकर उन्हें पुनर्वासित दिखा रहा है.

गांवों को खाली कराने के लिए एनवीडीए फर्जीवाड़ा करने पर तुला हुआ है. बिना मुआवजा, पुनर्वास का लाभ लिए परिवारों को ही लाभांवित दिखाकर डूब गांवों से बाहर करने की साजिश चल रही है. डूब ग्रामों में लाभान्वित डूब प्रभावितों के मकानों पर लाल रंग से क्रॉस का निशान बनाया जा रहा है, जिससे चिह्नित हो सके कि इन परिवारों को पुनर्वास स्थल पर प्लॉट, जमीन और 60 व 15 लाख रुपए का मुआवजा मिल चुका है. ग्राम छोटा बड़दा में कई परिवार ऐसे हैं जिनका न तो पुनर्वास हुआ है न ही कोई मुआवजा मिला है. एनवीडीए ने इन परिवारों के घरों पर भी क्रॉस निशान लगा दिया है. नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं ने सवाल उठाया कि जिन प्रभावितों के घरों पर ये निशान अंकित किए गए हैं, उनका पुनर्वास अभी पूर्ण नहीं हुआ है. ऐसे में मकानों पर निशान लगाना गलत है.

विस्थापित को आवंटित कर दी गांधी स्मारक की ज़मीन 

पुनर्वास में फर्जीवाड़े की हद ये है कि राजघाट स्थित ऐतिहासिक गांधी समाधि के लिए कुकरा पुनर्वास स्थल पर आरक्षित प्लॉट ही दूसरे को आवंटित कर दिया गया है. इसका खुलासा तब हुआ, जब राजघाट निवासी सुनील उक्त जमीन पर नक्शा लेकर पहुंचा और इसे अपनी मां राजुलबाई सोमा के नाम से 2014 में आवंटित बताते हुए निर्माण कार्य के लिए जेसीबी से गड्ढे खुदवाना शुरू कर दिया. इसकी जानकारी मिलते ही क्षेत्रवासी और राजघाट के लोगों ने विरोध किया.

इसकी सूचना पुनर्वास अधिकारी को भी दी गई. मौके पर पहुंचे पुनर्वास अधिकारी ने काम रुकवाया. गौरतलव है कि वर्ष 2004 में तत्कालीन कलेक्टर चंद्रहास दुबे की उपस्थिति में बापू समाधि के विस्थापन के लिए कुकरा बसाहट में 60 बाय 90 का भूखंड क्र. 174 आवंटित किया गया था. 16 अप्रैल 2012 को ग्राम पंचायत भीलखेड़ा में आयोजित ग्राम सभा में समाधि स्थल के निर्माण के लिए ठहराव प्रस्ताव कर जल्द निर्माण शुरू करने की मांग की गई थी. साथ ही उक्त स्थल पर पौधारोपण भी किया गया था. लेकिन 1 सितंबर 2014 को पुनर्वास अधिकारी द्वारा राजलबाई पति सोमा को भूखंड क्र. 174 आवंटित कर दिया गया.

इस पर पंचायत ने 16 सिंतबर 2014 को एक बार फिर लिखित आपत्ति जाहिर की. पत्रकार और समाजसेवी चिन्मय मिश्रा इसे बेहद दुर्भाग्यपूर्ण बताते हैं. वहीं, नर्मदा बचाओ आंदोलन के राहुल यादव का कहना है कि पुनर्वास स्थलों में प्लॉटों को लेकर फर्जीवाड़े का कई बार खुलासा किया जा चुका है. एनवीडीए अधिकारियों ने दलालों के साथ मिलकर एक ही प्लॉट को कई-कई बार आवंटित कर दिया है. इसमें छोटा बड़दा में 86, कसरावद बसावट में 20, कुकरा में 3, भीलखेड़ा में 4, दतवाड़ा में 25 और बोरलाय एक और दो में 10-10, प्लाट ऐसे हैं, जिन्हें दो से तीन लोगों को आवंटित कर दिया गया है. कसरावद में तो 48 प्लॉटों की फर्जी रजिस्ट्री भी कर दी गई है. इस मामले में दलाल पर केस भी दर्ज है. इतना ही नहीं पुनर्वास स्थल सलाहकार समिति ने वर्ष 2005 से 07 के बीच पुनर्वास स्थलों के 110 प्लॉटों में हेराफेरी कर जगह बदली है. प्लॉटों के जगह बदल कर उन्हें रसूखदारों को दे दिया गया है.

पशुओं का पुनर्वास भी बड़ी चिंता

अवल्दा पुनर्वास स्थल पर मौजूद भामटा ग्राम पंचायत की उपसरपंच मालू बाई ने बताया कि प्रशासन पुनर्वास स्थल से लगी उनकी चार एकड़ खेत की जमीन में से दो एकड़ पर जबरदस्ती कब्जा करना चाह रहा है. जब यहां अधिकारी पहुंचे, तो उन्होंने इस बात का विरोध किया. अधिकारियों का कहना था कि 25 हजार रुपए एकड़ के हिसाब से मुआवजा दे देते है. इस पर मालूबाई ने कहा कि 25 हजार रुपए आप हमसे ले लो और एक एकड़ जमीन दे दो. इसके साथ ही पशुओं के पुनर्वास को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं. पिछोडी, सौंदुल, जांगरवा आदि गांवों के लोगों का कहना है कि सरदार सरोवर परियोजना में विस्थापितों के साथ पशुओं का भी पुनर्वास होना चाहिए, ये भी लाखों की संख्या में है.

नर्मदा ट्रिब्यूनल का फैसले, सर्वोच्च अदालत के फैसले एवं राज्य की पुनर्वास नीति में भी मवेशियों की बात की गई है. लेकिन नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण द्वारा आज तक इसपर अमल नहीं किया गया है. डूब प्रभावित मदन अलावे और पेमा भीलाला ने बताया कि हमारे मूलगांव में पशु या मवेशियों के लिए चरगोई जमीन, पानी, चारा एवं उन्हें घर में रखने की जगह है, लेकिन पुनर्वास स्थल पर हमारे पशुओं के लिए कोई भी चरगोई जमीन नहीं छोड़ी गई है. चारा या पानी पिलाने के लिए कोई भी हलावा नहीं बनाए हैं. डूब प्रभावितों की मांग है कि पुनर्वास स्थल को भी उनके मूलगांव जैसा ही बनाए जाए, तभी वे गांव छोडेंगे.

राजपत्र की ग़लती और पुनर्वास नीति का उल्लंघन

सरदार सरोवर परियोजना में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा गत 25 मई को गजट पारित किया गया. नर्मदा बचाओ आंदोलन ने इस राजपत्र में कई गलतियां उजागर की हैं. इसमें विस्थापित के तौर पर उन लोगों के भी नाम हैं, जो दूसरी जगहों पर निवास कर रहे हैं. इसमें उनका भी नाम दर्ज किया गया है, जिन विस्थापितों को बैक वाटर लेवल से बाहर रखा गया है. मध्य प्रदेश सरकार के इस गजट में 18 हजार 386 परिवारों को 31 जुलाई 2017 तक हटाने की बात की गई है. इन किसानों के अधिकार के लिए मंदसौर से दिल्ली तक जाने वाली यात्रा में बड़वानी में नर्मदा घाटी के डूब प्रभावितों को न्याय दिलाने का संकल्प लिया गया. नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री मेधा पाटकर के मुताबिक, सरदार सरोवर बांध के चलते 40 हजार प्रभावित परिवारों को खतरे की ओर धकेला जा रहा है. आदर्श पुनर्वास व रोजगार के साधनों के बगैर इन्हें विस्थापित करना गलत होगा.

हैरतंगेज बात तो ये है कि सरदार सरोवर डूब गांवों के पुनर्वास स्थलों के लिए प्रशासन आदिवासियों की जमीन को भी अधिग्रहित कर रहा है और इन आदिवासियों को न तो विस्थापित माना जा रहा है और न ही मुआवजा दिया जा रहा है. पुनर्वास नीति के अनुसार आदिवासी किसानों की जमीनें नहीं ली जा सकती हैं. सामान्य वर्ग की जमीन लेने पर भी उन्हें विस्थापित मान कर उनका पुनर्वास करने का प्रावधान है, लेकिन यहां पुनर्वास नीति का पालन नहीं किया जा रहा है.

2010 की पुनर्वास नीति के अनुसार, आदिवासी को उसकी जमीन से बेदखल नहीं किया जा सकता. पुनर्वास नीति में साफ लिखा है कि डूब में आने वाले विस्थापितों के साथ डूब कार्य से प्रभावित लोगों को भी विस्थापित माना जाएगा. सामान्य वर्ग के किसान की जमीन अधिग्रहित की जा सकती है, लेकिन उसमें भी खेत मालिक और उसके व्यस्क पुत्र के लिए 2-2 हेक्टेयर जमीन छोड़नी पड़ेगी. इसके बाद बची जमीन का ही अधिग्रहण किया जा सकता है. एनवीडीए ने 2010 के बाद की पुनर्वास नीति में से डूब कार्य से प्रभावित शब्द हटा दिया है. इस मामले में भी कोर्ट में सुनवाई चल रही है.

1990 में सुंदरलाल बहुगुणा के नेतृत्व में हुए चिपको आंदोलन बांध की तर्ज पर नर्मदा बचाओ आंदोलन ने भी प्रभावित जिलों में चिपको आंदोलन शुरू कर दिया है. पेड़ बचाने के इस आंदोलन की शुरुआत नर्मदा किनारे राजघाट से की गई है. यहां पर 100-200 साल पुराने पेड़ों से चिपककर और गले लगाकर आंदोलनकारियों ने घाटी के पेड़ों को कटने से बचाने का संकल्प लिया है. लोगों का कहना है कि न तो हम पेड़ों को काटने देंगे और न ही पूर्ण पुनर्वास होने तक हम हटेगें.

बांध का गेट बंद होने से गुजरात में खुशी

सरदार सरोवर परियोजना सिंचाई, विद्युत और पेयजल वाली एक बहुउद्देशीय परियोजना है, जो चार राज्यों क्रमश: गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान द्वारा संयुक्त उपक्रम के रूप में क्रियान्वित की जा रही है. इस परियोजना के अंतर्गत गुजरात में नर्मदा नदी पर 1,210 मीटर लंबा और 163 मीटर ऊंचा कंक्रीट गुरूत्व बांध का निर्माण किया जा रहा है. इस परियोजना की सक्रिय भंडारन क्षमता 5,800 मिलियन घन मीटर (4.73 मिलियन एकड़ फीट) है.

इससे 458 किमी लंबी पक्की नर्मदा मुख्य नहर द्वारा (शीर्ष प्रवाह 1.133 घन मीटर प्रति सेकेन्ड) 17.92 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि पर वार्षिक सिंचाई करने का प्रावधान है. कहा जा रहा है कि इससे गुजरात के सर्वाधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र सौराष्ट्र, कच्छ एवं राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्र साबरकांठा, बनासकांठा आदि इलाकों तक पर्याप्त रूप से नर्मदा का पानी पहुंचेगा. अब तक जहां 6.8 लाख हेक्टेयर में ही सिंचाई की सुविधा मिल पाती है, वहीं इन दरवाजों के बंद होने और बांध के कारण करीब 18 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचाई की सुविधा मिलेगी.

इसके साथ ही राजस्थान को आवंटित 616 मिलियन घन मीटर (0.5 मिलियन एकड़ फीट) नर्मदा जल का उपयोग बाड़मेर और जालोर जिलों की कृषि योग्य कमाण्ड क्षेत्र की 246 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई के लिए किया जाना है. साथ ही कई शहरों एवं 1107 गांवों में पेयजल आपूर्ति करने हेतु प्रस्ताव बनाए गए हैं. सरदार सरोवर के बिजली संयत्रों में पूरी क्षमता के साथ रोजाना लगभग 1450 मेगावॉट पनबिजली का उत्पादन होगा. इसका अधिकतम लाभ राजस्थान, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र को होगा.

नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बांध की नींव रखे जाने के 56 साल बाद विवादित बांध के फाटकों को पिछले माह बंद कर दिया गया. नर्मदा कंट्रोल अथॉरिटी की ओर से अनुमति मिलने के कुछ घंटों बाद ही गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने बांध के दरवाजे बंद करने का शुभांरभ किया और शाम तक नर्मदा बांध के सभी 30 दरवाजे बंद कर दिए गए.

गुजरात सरकार का दावा है कि बांध का जो पानी समुद्र में व्यर्थ बह जाता था, वो अब गुजरात में पीने एवं सिंचाई के लिए उपयोग में लाया जाएगा. इससे अब मानसून में बांध की पूरी क्षमता के साथ नर्मदा का पानी संग्रहित हो सकेगा. दरवाजों के कारण  अब सरदार सरोवर नर्मदा बांध की पूरी ऊंचाई 138.68 मीटर हो गई है, जो पहले दरवाजों के बिना 121.92 मीटर थी. दरवाजे बंद होने के बाद अब बांध में 4.73 मिलियन एकड़ फीट (पौने चार गुना) पानी बढ़ जाएगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में अपनी गुजरात यात्रा के दौरान सरदार सरोवर बांध का जिक्र किया था. प्रधानमंत्री ने कहा था कि सरदार सरोवर बांध के गेट बंद होने के साथ ही गुजरात की समृद्धि का नया दौर शुरू हो गया है. पानी की उपलब्धता गुजरात के लिए एक बड़ी बात रही है. पहले पानी पर ही इतना पैसा खर्च होता था कि उसका अन्य योजनाओं पर असर पड़ता था. बांध पर बने 30 दरवाजे बंद होने के बाद से इसमें जल का संग्रहण स्तर करीब पौने चार गुना बढ़ गया है, जिससे गुजरात में जल की उपलब्धता की समस्या के काफी हद तक हल होने की उम्मीद है.

इधर, मध्यप्रदेश विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता अजय सिंह का कहना है कि सरदार सरोवर बांध के फाटकों के बंद होने से 192 गांवों के 40,000 लोग प्रभावित होंगे. इनके पुर्नवास की कोई योजना नहीं है. सरकार झूठे वचन पत्र भरकर विस्थापितों को भ्रमित कर रही है. गुजरात में विधानसभा चुनाव है, जिसके लिए बांध के गेट लगाकर उद्योगपतियों को उपकृत किया जा रहा है, ताकि चुनाव जीता जा सके. कांग्रेस इनके मंसूबे कभी कामयाब नहीं होने देगी. डूब प्रभावितों को उनका हक दिलाया जाएगा. गुजरात के फायदे के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मामले पर चुप्पी साध रखी है.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here