अब जदयू में घर वापसी के बाद नरेंद्र सिंह के बिहार सरकार में मंत्री बनने के प्रबल आसार हैं. जमुई जिले से अभी कोई मंत्री नहीं है. ऐसी चर्चा है कि पूर्वी बिहार में राजपूतों की बड़ी आबादी का ख्याल करते हुए नीतीश कुमार अपने कैबिनेट में नरेंद्र सिंह को जगह दे सकते हैं. नरेंद्र सिंह के मंत्री बनने से जमुई, बांका और मुंगेर इन तीनों लोकसभा सीटों पर एनडीए को काफी फायदा हो सकता है. इन तीनों सीटों पर नरेंद्र सिंह की अपने समाज के अलावा अन्य वर्गों में भी मजबूत पकड़ है.
लगभग 3 साल के अज्ञातवास के बाद नरेंद्र सिंह और उनके पुत्र सुमित सिंह की जदयू में वापसी ने जमुई जिले के सियासी समीकरण को उलट-पुलट कर रख दिया है. राजनीति की नब्ज को पहचनाने वाले जमुर्ई जिले के लोगों ने नीतीश कुमार की मौजूदगी में नरेंद्र सिंह की घरवापसी समारोह को बड़े ही गौर से देखा और परखा है. इस समारोह में जैसे ही नीतीश कुमार ने कहा कि नरेंद्र भाई पहले की तरह पार्टी में जैसे थे वैसे रहेंगे और सक्रिय रहेंगे, तो नरेंद्र सिंह के समर्थकों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. नीतीश कुमार का इशारा साफ था कि ससम्मान उनकी घर वापसी हो रही है और लाख खटास रहे हों पर उनका वजन पार्टी और सरकार में पहले की तरह बना रहेगा. इसे लोग नीतीश कुमार का बड़प्पन मान रहे हैं.
नीतीश कुमार ने समारोह में कहा कि मैं पुरानी कहानियों को दोहराना नहीं चाहता, नरेंद्र भाई का यह पुराना घर है, वे अपने घर में लौटे हैं, तो मेरे लिए यह खुशी की बात है. नीतीश कुमार के इन शब्दों ने नरेंद्र सिंह का कद काफी बढ़ा दिया है. नरेंद्र सिंह के लिए दोहरी खुशी तब आई जब ललन सिंह ने भी इनकी जमकर तारीफ की और उम्मीद जताई कि उनके आने से पार्टी और भी मजबूत होगी. पूर्व मंत्री दामोदर राउत की मौजूदगी ने भी जिले में यह संदेश फैलाने का काम किया कि अब नरेंद्र सिंह और दामोदर राउत मिलकर जदयू को मजबूत करेंगे और जमुई जिले की लोकसभा की एक और विधानसभा की चारों सीटों पर एनडीए का कब्जा होगा.
दरअसल, देखा जाए तो जमुई जिले की राजनीति पिछले 20 सालों से दो ध्रुवों के बीच बंटी हुई है. एक छोर पर नरेंद्र सिंह खड़े हैं तो दूसरी छोर पर जयप्रकाश यादव हैं. हर चुनावी अखाड़े में ये दोनों एक दूसरे को पछाड़ने में लगे रहते हैं. कभी बाजी नरेंद्र सिंह के हाथ लगती है तो कभी जयप्रकाश यादव के. अतिपिछड़ा वोटों पर अपनी पकड़ रखने वाले दामोदर राउत इस कालखंड में तीसरा कोण बनाने की कोशिश करते रहे हैं.
इसी कालखंड में नरेंद्र सिंह ने अपने पुत्रों अभय सिंह, अजय प्रताप और सुमित सिंह को, तो जयप्रकाश यादव ने अपने भाई विजय प्रकाश को चुनावी अखाड़े में उतारा. जमुई विधानसभा में अभय सिंह ने विजय प्रकाश को शिकस्त देकर जोरदार एंट्री की लेकिन इनके असामयिक निधन ने अजय प्रताप और विजय प्रकाश को जमुई के अखाड़े में आमने-सामने कर दिया. वहीं सुमित सिंह चकाई में अपना विजयी पताका फहराने में सफल रहे. इस दौरान दामोदर राउत ने झाझा विधानसभा में अपना कब्जा बरकरार रखा. सिंकदरा विधानसभा की राजनीति को भी नरेंद्र सिंह और जयप्रकाश यादव प्रभावित करते रहे.
जमुई जिले की राजनीति में एक नया मोड़ 2014 के लोकसभा चुनाव में आया, जब रामविलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान ने यहां से चुनाव लड़ने का फैसला किया और जीत दर्ज की. इस दौरान नीतीश कुमार और नरेंद्र सिंह की दूरी बढ़ती ही चली गई और अंजाम यह हुआ कि नरेंद्र सिंह जीतनराम मांझी की पार्टी में चले गए. 2015 के चुनावों ने नरेंद्र सिंह को बड़ा सबक दिया. इनके दोनों पुत्र, अजय प्रताप जमुई से तो सुमित सिंह चकाई से चुनाव हार गए. खुद नरेंद्र सिंह की भी विधान परिषद सदस्यता चली गई. बुरे दौर में चल रहे नरेंद्र सिंह की कमजोरियों का जयप्रकाश यादव ने पूरा फायदा उठाया और जमुई से अपने भाई विजय प्रकाश को जीत दिलवाने में सफल हो गए. चकाई में सुमित निर्दलीय लड़े पर हार गए, वहां पर जयप्रकाश यादव ने राजद उम्मीदवार का समर्थन किया.
झाझा से दामोदर राउत भी चुनाव हार गए. सिकंदरा में कांग्रेस के बंटी चौधरी ने बाजी मार ली. कहा जाय तो जिले की सभी सीटों पर जयप्रकाश यादव का सिक्का चल गया. सरकार बनी, तो जयप्रकाश के भाई विजय प्रकाश मंत्री भी बन गए. स्वाभाविक है कि सत्ता की हनक अब राजद खेमे की ओर थी और जयप्रकाश यादव और दामोदर राउत का खेमा बैकफुट पर आ गया. नरेंद्र सिंह ने महसूस किया कि चूंकि अभी राजनीतिक माहौल उनके खिलाफ है इसलिए चुप रहने में ही भलाई है. दामोदर राउत भी नीतीश कुमार के आशीर्वाद की प्रतीक्षा करने लगे.
मंत्री बनेंगे नरेंद्र सिंह
अब पुत्र समेत नरेंद्र सिंह की जदयू में वापसी ने एक बार फिर जिले की राजनीति को गरमा दिया है. कभी जिले में चारो सीटों पर जदयू का परचम लहराता था. लेकिन नरेंद्र सिंह के अलग होने के बाद 2015 के विधानसभा चुनाव में जिलें में जदयू का खाता भी नहीं खुला. अब चूंकि सूबे में जदयू और भाजपा का गठबंधन है, तो इनके बड़े पुत्र अजय प्रताप को भी परेशानी नहीं होगी. पिछला चुनाव इन्होंने भाजपा के टिकट पर ही जमुई से लड़ा था. जानकार बताते हैं कि चकाई से सुमित सिंह अब जदयू के टिकट पर लड़ेंगे. जहां तक सवाल नरेंद्र सिंह का है, तो इनके मंत्री बनने के प्रबल आसार हैं.
जमुई जिले से अभी कोई मंत्री नहीं है और पूर्वी बिहार में राजपूतों की बड़ी आबादी का ख्याल रखते हुए नीतीश कुमार अपने कैबिनेट में नरेंद्र सिंह को जगह दे सकते हैं. नरेंद्र सिंह के मंत्री बनने से जमुई, बांका और मुंगेर इन तीनों लोकसभा सीटों पर एनडीए को काफी फायदा हो सकता है. इन तीनों सीटों पर नरेंद्र सिंह की अपने समाज के अलावा अन्य वर्गों में भी मजबूत पकड़ है. ललन सिंह ने मिलन समारोह में जिस तरह नरेंद्र सिंह के तारीफों के पुल बांधे, इससे भी यह संकेत मिलता है कि आने वाले दिनों में जमुई को मंत्री मिलने वाला है.
नीतीश कुमार ने नरेंद्र सिंह पर भरोसा कर उन्हें एक जिम्मेदारी भी दे दी है. अब जिले की सभी सीटों पर एनडीए की जीत हो, इसके लिए नरेंद्र सिंह को पूरा प्रयास करना होगा. इनके अज्ञातवास वाले कालखंड में राजद ने जिले में अपनी मजबूत पैठ बना ली है. इसलिए नरेंद्र सिंह के सामने चुनौती पहले की तुलना में ज्यादा कठिन है. हालांकि नरेंद्र सिंह एक कुशल संगठनकर्ता हैं और उनके पास कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाली एक मजबूत टीम भी है. अब समय बताएगा कि अपनी क्षमता और टीम की बदौलत नरेंद्र सिंह नीतीश कुमार की कसौटी पर कितना खरा उतर पाते हैं.